नए मामले हैं नहीं, पुरानी जांच की रफ्तार भी थमी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का भोपाल में खुलने वाला कार्यालय घोषणा के तीन साल बाद भी दस्तावेजों में अंतिम सांस ले रहा है वहीं इंदौर आॅफिस की स्थिति भी खराब है। यहां ट्रांसफर के रूप में अधिकारियों का पतझड़ जारी है। इससे नए केस पर काम करना तो दूर पुराने विचाराधीन मामलों की रफ्तार भी थम चुकी है।
काला धन अर्जित करने वालों के खिलाफ ईडी की जो भूमिका 10 वर्षों में इंदौर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर देखी गई है उससे लोगों में जहां ईडी के लिए लोगों में खौफ बढ़ा है वहीं शीर्ष प्रबंधन की अनदेखी इंदौर जैसे सब जोनल आॅफिसेस को कमजोर कर रही है। रणवीरसिंह उर्फ बॉबी छाबड़ा, आईएएस दंपति अरविंद-टीनू जोशी, विजय कोठारी और जगदीश सगर जैसे लोगों पर शिकंजा कसने वाला ईडी इंदौर छह महीने से स्टॉफ संकट झेल रहा है। डिप्टी डायरेक्टर के रूप में पदस्थ रहे प्रशांत मिश्रा के ट्रांसफर को तीन महीने हो चुके हैं लेकिन अब तक उनके पद की पूर्ति नहीं हुई। वहीं तीन साल से पदस्थ असिसटेंट डायरेक्टर के ट्रांसफर की प्रक्रिया भी शुरू हो गई।
मैदानी अमला भी नहीं
सिर्फ आला अधिकारी ही नहीं सहयोगी मैदानी स्टाफ भी एक-एक करके कम हो रहा है। डिपार्टमेंट में इन दिनों गिने-चुने लोग ही नजर आते हैं। जो हैं वे भी ट्रांसफर की आशंकाओं में जी रहे हैं। नया स्टाफ आ नहीं रहा। इससे लंबित मामलों की जांच भी धीमी पड़ चुकी है।
क्यों जरूरी है ईडी इंदौर...
ईडी के मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलाकाता और दिल्ली में रीजनल आॅफिस हैं। इसके अलावा अहमदाबाद, बेंगलोर, चंडीगढ़, चेन्नई, कोची, दिल्ली, पणजी, गुवाहटी, हैदराबाद, जयपुर, जालंधर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, पटना, श्रीनगर में जोनल आॅफिस हैं जबकि इनमें से कुछ राज्य ऐसे हैं जो आबादी और आर्थिक स्थिति के हिसाब से मप्र से कमजोर हैं।
मप्र के लिए इंदौर में ही सब जोनल आॅफिस है। विगत 10 वर्षों में मप्र में सामने आए आर्थिक अपराधों और प्रिवेंशन आॅफ करपशन एक्ट के तहत पकड़ाए सरकारी मुलाजिमों की संख्या बढ़ी है। जिसे विभागीय शीर्ष प्रबंधन ने भी स्वीकारा और भोपाल में भी सब जोनल आॅफिस खोलने की तैयारियां शुरू की जो बाद में ठंडी पड़ गई।
यहां व्यापमं मामला और सुगनीदेवी जमीन घोटाले जैसे बड़े मामलों पर विभागीय जांच जारी है। कई मामलों में जमीन अटैचमेंट हो चुका है प्रोसिक्यूशन जारी है। स्ट्रेंथ कम होने से न जांच हो रही है न ही प्रोसिक्यूशन में अधिकारी ध्यान दे पा रहे हैं।
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का भोपाल में खुलने वाला कार्यालय घोषणा के तीन साल बाद भी दस्तावेजों में अंतिम सांस ले रहा है वहीं इंदौर आॅफिस की स्थिति भी खराब है। यहां ट्रांसफर के रूप में अधिकारियों का पतझड़ जारी है। इससे नए केस पर काम करना तो दूर पुराने विचाराधीन मामलों की रफ्तार भी थम चुकी है।
काला धन अर्जित करने वालों के खिलाफ ईडी की जो भूमिका 10 वर्षों में इंदौर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर देखी गई है उससे लोगों में जहां ईडी के लिए लोगों में खौफ बढ़ा है वहीं शीर्ष प्रबंधन की अनदेखी इंदौर जैसे सब जोनल आॅफिसेस को कमजोर कर रही है। रणवीरसिंह उर्फ बॉबी छाबड़ा, आईएएस दंपति अरविंद-टीनू जोशी, विजय कोठारी और जगदीश सगर जैसे लोगों पर शिकंजा कसने वाला ईडी इंदौर छह महीने से स्टॉफ संकट झेल रहा है। डिप्टी डायरेक्टर के रूप में पदस्थ रहे प्रशांत मिश्रा के ट्रांसफर को तीन महीने हो चुके हैं लेकिन अब तक उनके पद की पूर्ति नहीं हुई। वहीं तीन साल से पदस्थ असिसटेंट डायरेक्टर के ट्रांसफर की प्रक्रिया भी शुरू हो गई।
मैदानी अमला भी नहीं
सिर्फ आला अधिकारी ही नहीं सहयोगी मैदानी स्टाफ भी एक-एक करके कम हो रहा है। डिपार्टमेंट में इन दिनों गिने-चुने लोग ही नजर आते हैं। जो हैं वे भी ट्रांसफर की आशंकाओं में जी रहे हैं। नया स्टाफ आ नहीं रहा। इससे लंबित मामलों की जांच भी धीमी पड़ चुकी है।
क्यों जरूरी है ईडी इंदौर...
ईडी के मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलाकाता और दिल्ली में रीजनल आॅफिस हैं। इसके अलावा अहमदाबाद, बेंगलोर, चंडीगढ़, चेन्नई, कोची, दिल्ली, पणजी, गुवाहटी, हैदराबाद, जयपुर, जालंधर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, पटना, श्रीनगर में जोनल आॅफिस हैं जबकि इनमें से कुछ राज्य ऐसे हैं जो आबादी और आर्थिक स्थिति के हिसाब से मप्र से कमजोर हैं।
मप्र के लिए इंदौर में ही सब जोनल आॅफिस है। विगत 10 वर्षों में मप्र में सामने आए आर्थिक अपराधों और प्रिवेंशन आॅफ करपशन एक्ट के तहत पकड़ाए सरकारी मुलाजिमों की संख्या बढ़ी है। जिसे विभागीय शीर्ष प्रबंधन ने भी स्वीकारा और भोपाल में भी सब जोनल आॅफिस खोलने की तैयारियां शुरू की जो बाद में ठंडी पड़ गई।
यहां व्यापमं मामला और सुगनीदेवी जमीन घोटाले जैसे बड़े मामलों पर विभागीय जांच जारी है। कई मामलों में जमीन अटैचमेंट हो चुका है प्रोसिक्यूशन जारी है। स्ट्रेंथ कम होने से न जांच हो रही है न ही प्रोसिक्यूशन में अधिकारी ध्यान दे पा रहे हैं।
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