- संकट में रीगल रोटरी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
वर्षों से शहर के जश्न में शामिल और व्यवस्था से नाराज लोगों की नारेबाजी झेलते आए ‘गांधीजी’ की जमीन संकट में है! वजह है कबुतर और तोलों के लिए डाला जाने वाला दाना। दाने की चाह में पनपे चुहों ने सेंधमारी करके बापू की जमीन पोली कर दी है। मौका स्थिति और जानकारों की मानें तो जल्द ही एहतियाती कदम नहीं उठाए गए तो गांधीजी के पैरों तले से जमीन खीसक सकती है।
रीगल चौराहा सिर्फ एक चौराहा नहीं बल्कि शहरवासियों की अभिव्यक्ति का केंद्र है। वजह है यहां रोटरी में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा। जिनके साथ शहर की आवाम अपना सुख-दुख साझा करती है। बहरहाल, नगर निगम द्वारा विकसित की गई 34 डायमीटर वाली इस रोटरी को कुतर-कुतर के चुहों ने पोला कर दिया है। इसीलिए पैर रखते ही पेवर तक धसने लगे हैं। कुछ पेवर तक कुतर दिए हैं चुहों ने। उबड़-खाबड़ हो चुके पेवर इसका बड़ा उदाहरण हैं भी। जिम्मेदार महकमे के जिम्मेदार अधिकारियों तक भी यह बात पहुंच चुकी है। वे भी इसी मंथन में लगे हैं कि आखिर चुहों से गांधीजी को कैसे बचाया जाए।
महंगी पड़ रही शांति प्रतीक की सेवा
चूंकि पुलिस मुख्यलाय परिसर हराभरा है। नेहरू पार्क भी पास में है। इसीलिए यहां शांति के प्रतीक कबूतर और तोतों की संख्या ज्यादा है। इन पक्षियों के पेट की चिंता करते हुए सरकार और सामाजिक संगठन रोटरी के दो आधे चांद (गांधीजी की प्रतीमा के दोनों ओर) आकार वाले हिस्सों में दाना डालना शुरू कर दिया। दाने के लालच ने यहां चुहों की तादाद बढ़ा दी।
ऐसे बचे रोटरी, मिले दाना
प्रतीमा के दोनों ओर जो आधे चांद जैसे हिस्से हैं चूंकि वह कच्चे हैं, वहां पेवर फिटिंग पूरी तरह नाकाम रही है। इसीलिए पेवर हटाकर जमीन से एक-डेढ़ फीट ऊपर चांद आकार की ही कांक्रीट स्लैब डाली जाना चाहिए। ताकि इस पर दाना भी डले और धरती भी पोली न हो। स्लैब पिज्जा पीस की तरह टुकड़ों में भी डल सकती है। हालांकि इसके लिए रोटरी में विकसित हुई हरियाली जरूर प्रभावित होगी। हालांकि इस हरियाली को स्लैब पर गमले लगाकर आकर्षित भी बनाया जा सकता है।
तो कार्यक्रम मुश्किल हो जाएंगे...
अभी समतल होने के कारण रोटरी में आए दिन कुछ न कुछ कार्यक्रम होते रहते हैं। कांक्रीट स्लैब बनने के बाद जो मुश्किल हो जाएंगे। हालांकि स्लैब को इस तरह डिजाइन किया जा सकता है कि कार्यक्रम में दिक्कत न हो।
इंदौर. विनोद शर्मा ।
वर्षों से शहर के जश्न में शामिल और व्यवस्था से नाराज लोगों की नारेबाजी झेलते आए ‘गांधीजी’ की जमीन संकट में है! वजह है कबुतर और तोलों के लिए डाला जाने वाला दाना। दाने की चाह में पनपे चुहों ने सेंधमारी करके बापू की जमीन पोली कर दी है। मौका स्थिति और जानकारों की मानें तो जल्द ही एहतियाती कदम नहीं उठाए गए तो गांधीजी के पैरों तले से जमीन खीसक सकती है।
रीगल चौराहा सिर्फ एक चौराहा नहीं बल्कि शहरवासियों की अभिव्यक्ति का केंद्र है। वजह है यहां रोटरी में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा। जिनके साथ शहर की आवाम अपना सुख-दुख साझा करती है। बहरहाल, नगर निगम द्वारा विकसित की गई 34 डायमीटर वाली इस रोटरी को कुतर-कुतर के चुहों ने पोला कर दिया है। इसीलिए पैर रखते ही पेवर तक धसने लगे हैं। कुछ पेवर तक कुतर दिए हैं चुहों ने। उबड़-खाबड़ हो चुके पेवर इसका बड़ा उदाहरण हैं भी। जिम्मेदार महकमे के जिम्मेदार अधिकारियों तक भी यह बात पहुंच चुकी है। वे भी इसी मंथन में लगे हैं कि आखिर चुहों से गांधीजी को कैसे बचाया जाए।
महंगी पड़ रही शांति प्रतीक की सेवा
चूंकि पुलिस मुख्यलाय परिसर हराभरा है। नेहरू पार्क भी पास में है। इसीलिए यहां शांति के प्रतीक कबूतर और तोतों की संख्या ज्यादा है। इन पक्षियों के पेट की चिंता करते हुए सरकार और सामाजिक संगठन रोटरी के दो आधे चांद (गांधीजी की प्रतीमा के दोनों ओर) आकार वाले हिस्सों में दाना डालना शुरू कर दिया। दाने के लालच ने यहां चुहों की तादाद बढ़ा दी।
ऐसे बचे रोटरी, मिले दाना
प्रतीमा के दोनों ओर जो आधे चांद जैसे हिस्से हैं चूंकि वह कच्चे हैं, वहां पेवर फिटिंग पूरी तरह नाकाम रही है। इसीलिए पेवर हटाकर जमीन से एक-डेढ़ फीट ऊपर चांद आकार की ही कांक्रीट स्लैब डाली जाना चाहिए। ताकि इस पर दाना भी डले और धरती भी पोली न हो। स्लैब पिज्जा पीस की तरह टुकड़ों में भी डल सकती है। हालांकि इसके लिए रोटरी में विकसित हुई हरियाली जरूर प्रभावित होगी। हालांकि इस हरियाली को स्लैब पर गमले लगाकर आकर्षित भी बनाया जा सकता है।
तो कार्यक्रम मुश्किल हो जाएंगे...
अभी समतल होने के कारण रोटरी में आए दिन कुछ न कुछ कार्यक्रम होते रहते हैं। कांक्रीट स्लैब बनने के बाद जो मुश्किल हो जाएंगे। हालांकि स्लैब को इस तरह डिजाइन किया जा सकता है कि कार्यक्रम में दिक्कत न हो।
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