पाकिस्तानी डॉ. अनिल घई और उनके निर्भयसिंह हॉस्पिटल की कहानी
भाजपा विधायक व नेताओं से नजदीकी के कारण नहीं होती कार्रवाई
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भाजपा के दिवंगत नेता दादा निर्भयसिंह पटेल के नाम पर मेमोरियल हॉस्पिटल संचालित कर रहे डॉ. अनिल एस.घई मुलत: पाकिस्तानी डॉक्टर है। क्लीनिक से कामकाज शुरू करके 30 बेड से ज्यादा का हॉस्पिटल खड़ा करने वाले डॉ.घई की पाकिस्तानी डिग्री शुरू से विवादों में है। ईलाज के दौरान एक के बाद हुई मरीजों की मौतें डॉक्टर और उनकी टीम की काबिलियत पर सवाल भी खड़े करती है।
विधायक मनोज पटेल से दोस्ती के चलते डॉ. घई ने उनके पिता दादा निर्भयसिंह पटेल के नाम पर अपने अस्पताल का नामकरण कर दिया। दादा के नाम और पटेल की दोस्ती न सिर्फ अवैध अस्पताल के साथ डॉ. घई को भी नगर निगम, पुलिस, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की सख्ती से बचा रही है। इसी का नतीजा है कि अस्पताल में ईलाज की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है जिसका खामियाजा उन मरीजों को जान देकर चुकाना पड़ रहा है जो ईलाज की आस में अस्पताल तक पहुंचे थे।
अपेंडिक्स थी, बुखार का ईलाज करता रहा
1 फरवरी 2015 को अस्पताल में प्रदीप बागड़ी ने अपने 68 वर्षीय पिता कन्हैयालाल बागड़ी को भर्ती कराया था। तबियत नासाज थी। बागड़ी दो दिन भर्ती रहे। इन दो दिनों में डॉ. घई यह नहीं पकड़ पाए कि मरीज को अपेंडिक्स है। वे बिना सोचे समझे ही बुखार का ईलाज करते रहे। अचानक से तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ी और बागड़ी को पास के दूसरे अस्पताल ले गए। वहां डॉक्टरों ने बताया कि दो दिन तक डॉ.घई ने जो दवाई दी है वह तेज पॉवर की थी जिससे बागड़ी का अपेंडिक्स बस्ट हो गया। पूरे शरीर में जहर फेल गया। ईलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई।
पहले भर्ती किया, दूसरे दिन कह दिया हमारे बस में नहीं
स्कीम-71 निवासी चौहान परिवार ने 83 वर्षीय सेवंतीबाई को अस्पताल में भर्ती कराया। उस वक्त उनका शुगर लेवल 560 था। बावजूद इसके डॉ. घई और उनकी टीम ने उन्हें भर्ती किया लेकिन सही तरीके से ईलाज नहीं कर पाए। दूसरे दिन परिजन को कहा कि आप दूसरे अस्पताल में ले जाओ, हमारे पास आईसीयू तो है लेकिन वैसी मशीनें नहीं है जैसी कि दूसरे अस्पताल में रहती हैं। दूसरे अस्पताल में रेफर किया जाता तब तक सेंवतीबाई की किडनी डेमेज हो चुकी थी। ईलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। परिजन का कहना है कि आईसीयू की क्षमता और मरीज की स्थिति दोनों डॉक्टर को पहले से पता थी फिर भर्ती क्यों किया।
ईलाज के नाम पर मिली मौत
21 अक्टूबर को ईलाज के दौरान अस्पताल में सेंधवा निवासी गेंदालाल पिता राजाराम की मृत्यु हो गई। डॉ. हरीश मंगलानी ईलाज कर रहे थे लेकिन ईलाज ठीक से कर नहीं पाए। परिजन ने विरोध किया। तोड़फोड़ की। परिजनों की मानें तो डॉक्टरों ने आधी रात को ही मरीज के हाथ-पैर बांध दिए थे। फिर भी उन्हें वेंटीलेटर पर रखा। सुबह 9.30 बजे मौत की जानकारी दी।
उनके पास होगी डिग्री
पाकिस्तानी डॉक्टरों को एमसीआई की गाइडलाइन के अनुसार हिंदुस्तान आकर एक बार फिर परीक्षा देना होती है ताकि समझ आ सके कि वास्तव में वहां एमबीबीएस या अन्य मेडिकल डिग्री हासिल की है। वर्षों से पाकिस्तानी सिंधियों और पाकिस्तानी डॉक्टरों के लिए लड़ाई लड़ते आए भाजपा नेता शंकर लालवानी का कहना है कि परीक्षा देना जरूरी है। डॉ. घई ने परीक्षा दी या नहीं दी? इस संबंध में स्पष्ट जानकारी मुझे नहीं है।
भाजपा विधायक व नेताओं से नजदीकी के कारण नहीं होती कार्रवाई
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भाजपा के दिवंगत नेता दादा निर्भयसिंह पटेल के नाम पर मेमोरियल हॉस्पिटल संचालित कर रहे डॉ. अनिल एस.घई मुलत: पाकिस्तानी डॉक्टर है। क्लीनिक से कामकाज शुरू करके 30 बेड से ज्यादा का हॉस्पिटल खड़ा करने वाले डॉ.घई की पाकिस्तानी डिग्री शुरू से विवादों में है। ईलाज के दौरान एक के बाद हुई मरीजों की मौतें डॉक्टर और उनकी टीम की काबिलियत पर सवाल भी खड़े करती है।
विधायक मनोज पटेल से दोस्ती के चलते डॉ. घई ने उनके पिता दादा निर्भयसिंह पटेल के नाम पर अपने अस्पताल का नामकरण कर दिया। दादा के नाम और पटेल की दोस्ती न सिर्फ अवैध अस्पताल के साथ डॉ. घई को भी नगर निगम, पुलिस, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की सख्ती से बचा रही है। इसी का नतीजा है कि अस्पताल में ईलाज की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है जिसका खामियाजा उन मरीजों को जान देकर चुकाना पड़ रहा है जो ईलाज की आस में अस्पताल तक पहुंचे थे।
अपेंडिक्स थी, बुखार का ईलाज करता रहा
1 फरवरी 2015 को अस्पताल में प्रदीप बागड़ी ने अपने 68 वर्षीय पिता कन्हैयालाल बागड़ी को भर्ती कराया था। तबियत नासाज थी। बागड़ी दो दिन भर्ती रहे। इन दो दिनों में डॉ. घई यह नहीं पकड़ पाए कि मरीज को अपेंडिक्स है। वे बिना सोचे समझे ही बुखार का ईलाज करते रहे। अचानक से तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ी और बागड़ी को पास के दूसरे अस्पताल ले गए। वहां डॉक्टरों ने बताया कि दो दिन तक डॉ.घई ने जो दवाई दी है वह तेज पॉवर की थी जिससे बागड़ी का अपेंडिक्स बस्ट हो गया। पूरे शरीर में जहर फेल गया। ईलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई।
पहले भर्ती किया, दूसरे दिन कह दिया हमारे बस में नहीं
स्कीम-71 निवासी चौहान परिवार ने 83 वर्षीय सेवंतीबाई को अस्पताल में भर्ती कराया। उस वक्त उनका शुगर लेवल 560 था। बावजूद इसके डॉ. घई और उनकी टीम ने उन्हें भर्ती किया लेकिन सही तरीके से ईलाज नहीं कर पाए। दूसरे दिन परिजन को कहा कि आप दूसरे अस्पताल में ले जाओ, हमारे पास आईसीयू तो है लेकिन वैसी मशीनें नहीं है जैसी कि दूसरे अस्पताल में रहती हैं। दूसरे अस्पताल में रेफर किया जाता तब तक सेंवतीबाई की किडनी डेमेज हो चुकी थी। ईलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। परिजन का कहना है कि आईसीयू की क्षमता और मरीज की स्थिति दोनों डॉक्टर को पहले से पता थी फिर भर्ती क्यों किया।
ईलाज के नाम पर मिली मौत
21 अक्टूबर को ईलाज के दौरान अस्पताल में सेंधवा निवासी गेंदालाल पिता राजाराम की मृत्यु हो गई। डॉ. हरीश मंगलानी ईलाज कर रहे थे लेकिन ईलाज ठीक से कर नहीं पाए। परिजन ने विरोध किया। तोड़फोड़ की। परिजनों की मानें तो डॉक्टरों ने आधी रात को ही मरीज के हाथ-पैर बांध दिए थे। फिर भी उन्हें वेंटीलेटर पर रखा। सुबह 9.30 बजे मौत की जानकारी दी।
उनके पास होगी डिग्री
पाकिस्तानी डॉक्टरों को एमसीआई की गाइडलाइन के अनुसार हिंदुस्तान आकर एक बार फिर परीक्षा देना होती है ताकि समझ आ सके कि वास्तव में वहां एमबीबीएस या अन्य मेडिकल डिग्री हासिल की है। वर्षों से पाकिस्तानी सिंधियों और पाकिस्तानी डॉक्टरों के लिए लड़ाई लड़ते आए भाजपा नेता शंकर लालवानी का कहना है कि परीक्षा देना जरूरी है। डॉ. घई ने परीक्षा दी या नहीं दी? इस संबंध में स्पष्ट जानकारी मुझे नहीं है।
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