Friday, November 4, 2016

गौशाला की जमीन जीम गए शुक्ला

- बेची छह एकड़, दी ढ़ाई एकड़, नहीं छूट रही साढ़े तीन एकड़
- 17 साल से मानव भूमि ट्रस्ट का संघर्ष जारी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एक दशक से बारोली और अलवासा की पहाड़ी में सेंधमारी करते आया शुक्ला परिवार ने उस जमीन को भी नहीं बख्शा जो उन्हीं ने मानव भूमि गौरक्षा ट्रस्ट को बेची थी। साढ़े तीन एकड़ जमीन के लिए ट्रस्ट 17 साल से संघर्षरत है। दर्जनों शिकायतों और दो सीमांकन के बाद शुक्ला परिवार ने जमीन की जगह पहाड़ नापकर दे दिया और बाद में उसमें भी मुरम खुदाई शुरू कर दी। कब्जाई गई जमीन की गाइडलाइन कीमत ही साढ़े सात करोड़ है।
मामला बारोली गांव का है। जहां प्रतिबंध के बावजूद शुक्ला परिवार और वीरसिंह नरवरिया की अवैध मुरम खदान चल रही है। खदान को लेकर दबंग दुनिया ने जब सरकारी दस्तावेज खंगाले तो शुक्ला परिवार की कब्जा कहानी सामने आ गई। दस्तावेजों के लिहाज से बात करें तो 1998-99 में शुक्ला परिवार ने 1990 में रजिस्टर्ड (286/1990) हुए मानव भूमि गौरक्षा ट्रस्ट को सर्वे नं. 4/1/2, 4/2/2, 9/3/2, 14/2/2, 15/2/1 और  15/2/2/2 की 25 लाख रुपए में छह एकड़ (261360 वर्गफीट) जमीन बेची थी। शुक्ला परिवार की रंगदारी के कारण सौदे और तमाम प्रयासों के बावजूद ट्रस्ट को सिर्फ 1.25 लाख वर्गफीट जमीन ही मिली जहां 2001-02 में गौशाला की स्थापना की गई। बाकी 136360 वर्गफीट जमीन के लिए ट्रस्ट की टेंशन जारी है।
साढ़े सात करोड़ है जमीन
जिस जमीन पर कब्जा है वहां सरकारी गाइडलाइन प्लॉट की 550 रुपए/वर्गफीट है जबकि कृषि भूमि की कीमत 82 लाख रुपए/हेक्टेयर है। हेक्टेयर के हिसाब से भी शुक्ला परिवार के कब्जे की 1.266 हेक्टेयर जमीन की कीमत 1 करोड़ 03 लाख 81 हजार 200 रुपए है जबकि 136360 वर्गफीट की कीमत 7 करोड़ 49 लाख 98 हजार है।
कलेक्टर की हिम्मत से हुआ सीमांकन
जिला प्रशासन में शुक्ला परिवार के खिलाफ ट्रस्ट द्वारा की गई शिकायतों का पूरा पुलिंदा पड़ा है। शिकायतें 1999 से 2011-16 तक प्राप्त हुई। 2011-12 तक तो कलेक्टर सीमांकन के आदेश तो देते थे लेकिन शुक्ला के सिपाहसालारों के डर से सीमांकन करना तो दूर पटवारी जमीन तक जाना भी पसंद नहीं करते थे। 2011-12 में पहली बार कलेक्टर राघवेंद्र सिंह ने सख्ती की और सीमांकन हुआ।
सीमांकन से भी नहीं सहमे...
2011-12 में हुए सीमांकन के बावजूद शुक्ला परिवार गौशाला की जमीन पर काबिज रहा। ट्रस्ट शिकायतें करता रहा। पटवारी और आरआई रिपोर्ट देते रहे। बावजूद इसके शुक्ला परिवार ने जमीन नहीं छोड़ी।
जमीन मांगी तो नपवा दिया पहाड़
विधायक उषा ठाकुर के जुड़ने से ट्रस्ट की उम्मीदें जागी। जून में ठाकुर के नेतृत्व में ट्रस्ट ने फिर प्रयास किए। इस बार साथ दिया कलेक्टर पी.नरहरि ने। जमीन का सीमांकन हुआ लेकिन शुक्ला परिवार ने अपनी जमीन नहीं छोड़ी। बल्कि ट्रस्ट के नाम पर पहाड़ का हिस्सा नपवा दिया।
पहाड़ देकर भी बाज नहीं आए ‘बड़े’
जून में हुए सीमांकन और विधायक की पहल पर प्रशासनिक स्तर पर शुरू हुई गौपर्वत की तैयारियों के बावजूद शुक्ला परिवार ने कदम पीछे नहीं खींचे। जहां मानव भूमि गौरक्षा ट्रस्ट के बोर्ड लगे थे या पत्थरों पर नाम लिखा था वहीं मुरम की खुदाई शुरू कर दी।
विधायक-कलेक्टर, सबसे बात कर ली, अब कहां जाएं
ट्रस्ट का कहना है कि हम शुक्ला परिवार के खिलाफ खुलकर मोर्चा नहीं खोल सकते। जमीन को लेकर विधायक से लेकर कलेक्टर तक से बात कर चुके हैं, सीमांकन हो गया, अब क्या करें? देखते हैं जमीन मिलेगी या नहीं।
एक नजर में गौशाला
पंजीयन : 1990
जमीन खरीदी- 1999
शुरू : 14 जनवरी 2002
गाय की संख्या : शुरूआत में 160, अब 250

उज्जैन में बैठेंगे ग्वालियर सेंट्रल एक्साइज कमिश्नर

 उद्योगपतियों की मांग पर उज्जैन होगा मुख्यालय, नहीं तय करना होगा 300 से 600 किलोमीटर का सफर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
उज्जैन और देवास सहित आसपास के तमाम उद्योगों के लिए अच्छी खबर यह है कि कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट का मुख्यालय ग्वालियर से अब उज्जैन हो चुका है। इससे न सिर्फ डिपार्टमेंट की वर्किंग एफिसिएंसी बढ़ेगी बल्कि उज्जैन संभाग के तमाम जिलों में स्थापित उद्योगों को अपनी बात रखने के लिए ग्वालियर नहीं जाना पड़ेगा। बल्कि ग्वालियर वालों को उज्जैन आना होगा। मप्र में यह पहला मौका भी होगा जब दो कमिश्नरेट के बीच की दूरी बमुश्किल 50 किलोमीटर ही होगी।
सेंट्रल बोर्ड आॅफ एक्साइज एंड कस्टम (सीबीईसी) ने कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स की केडर री-स्ट्रक्चरिंग करते हुए उज्जैन और ग्वालियर संभाग के लिए ग्वालियर में अलग कमिश्नर की व्यवस्था कर दी थी। इससे पहले दोनों संभाग इंदौर कमिश्नरेट का हिस्सा था। री-स्ट्रक्चरिंग में इंदौर को प्रिंसिपल कमिश्नर का दर्जा दिया। हालांकि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्वालियर कमिश्नर दो साल से इंदौर माणिकबाग मुख्यालय में बैठकर ही काम निपटाते रहे। इस बीच ग्वालियर कमिश्नर के मुख्यालय को  लेकर खींचतान चलती रही। इस बीच बोर्ड ने इशारा कर दिया कि ग्वालियर कमिश्नर का मुख्यालय उज्जैन ही होगा। दो-तीन दिन से कमिश्नर वी.पी.शुक्ला ने उज्जैन में बैठना भी शुरू कर दिया है।
तो सामने आया उज्जैन...
केडर री-स्ट्रक्चरिंग के बाद ग्वालियर को मिले कमिश्नर से संभाग के उद्योगों को तो राहत मिली लेकिन इंदौर मुख्यालय के नजदीक रहे उज्जैन संभाग के नौ जिलों के उद्योगों की ग्वालियर जाने के नाम से ही जमीन हिल गई। वह भी तब जब देवास में टाटा और रेनबेक्सी जैसी बड़ी कंपनियां हैं। इसीलिए औद्योगिक संगठनों ने मांग की कि कमिश्नर के बैठने की व्यवस्था ग्वालियर में नहीं, उज्जैन में हो। मामला कोर्ट तक पहुंचा। निर्णय के इंतजार में कमिश्नर को इंदौर बैठना पड़ा। इसी बीच तय हुआ कि इंदौर और ग्वालियर के बीच उज्जैन डिविजन ही है जहां कमिश्नर बैठ सकते हैं।
तो विकसित भी हो जाएगा मुख्यालय
री-स्ट्रक्चरिंग में ग्वालियर को कमिश्नर तो मिला लेकिन सिर्फ नाम का। ग्वालियर कमिश्नर इंदौर से ही काम निपटाते रहे। इस चक्कर में अब तक न मुख्यालय बन पाया, न ही डिपार्टमेंटल वेबसाइट। न ही कमिश्नरेट के दायरे का कन्फ्यूजन दूर हुआ। अलग मुख्यालय बनने से विस्तार की संभावनाएं भी बनेगी।
क्यों जरूरी था उज्जैन...
सिर्फ उज्जैन एकेवीएन के अंतर्गत ही उज्जैन का ताजपुर, देवास का औद्योगिक क्षेत्र 2-3, सिरसोदा, नेमावर, शाजापुर का मक्सी, मंदसौर का आईआईडीसी और एफपीपी, रतलाम का करमड़ी औद्योगिक क्षेत्र आता है।  यहां ग्वालियर संभाग से ज्यादा और बड़ी कंपनियां हैं।
विभागीय स्ट्रक्चरिंग के हिसाब से ग्वालियर डिविजन में रेंज-1 व 2 ग्वालियर, रेंज-1 व 2 मालनपुर, रेंज बनमोर, गुना और डबरा हैं। मतलब सात रेंज। जबकि उज्जैन डिविजन में रेंज-उज्जैन, रेंज-1, 2, 3 व 4 देवास हैं। रतलाम डिविजन में रेंज-1 व 2, रेंज-1 व 2 नागदा और मंदसौर हैं। मतलब 10 रेंज यानी ग्वालियर डिविजन से ज्यादा मजबूत है उज्जैन-रतलाम।
उज्जैन संभाग में शाजापुर-आगर और देवास आते हैं जिनकी ग्वालियर से दूरी 350 से 450 किलोमीटर है। वहीं नीमच-मंदसौर और रतलाम भी संभाग का हिस्सा हैं जिनसे ग्वालियर की दूरी 426 से 578 किलोमीटर है। 

चुहे कुतर रहे हैं गांधीजी के पैरों तले की जमीन

- संकट में रीगल रोटरी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
वर्षों से शहर के जश्न में शामिल और व्यवस्था से नाराज लोगों की नारेबाजी झेलते आए ‘गांधीजी’ की जमीन संकट में है! वजह है कबुतर और तोलों के लिए डाला जाने वाला दाना। दाने की चाह में पनपे चुहों ने सेंधमारी करके बापू की जमीन पोली कर दी है। मौका स्थिति और जानकारों की मानें तो जल्द ही एहतियाती कदम नहीं उठाए गए तो गांधीजी के पैरों तले से जमीन खीसक सकती है।
रीगल चौराहा सिर्फ एक चौराहा नहीं बल्कि शहरवासियों की अभिव्यक्ति का केंद्र है। वजह है यहां रोटरी में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा।  जिनके साथ शहर की आवाम अपना सुख-दुख साझा करती है। बहरहाल, नगर निगम द्वारा विकसित की गई 34 डायमीटर वाली इस रोटरी को कुतर-कुतर के चुहों ने पोला कर दिया है। इसीलिए पैर रखते ही पेवर तक धसने लगे हैं। कुछ पेवर तक कुतर दिए हैं चुहों ने। उबड़-खाबड़ हो चुके पेवर इसका बड़ा उदाहरण हैं भी। जिम्मेदार महकमे के जिम्मेदार अधिकारियों तक भी यह बात पहुंच चुकी है। वे  भी इसी मंथन में लगे हैं कि आखिर चुहों से गांधीजी को कैसे बचाया जाए।
महंगी पड़ रही शांति प्रतीक की सेवा
चूंकि पुलिस मुख्यलाय परिसर हराभरा है। नेहरू पार्क भी पास में है। इसीलिए यहां शांति के प्रतीक कबूतर और तोतों की संख्या ज्यादा है। इन पक्षियों के पेट की चिंता करते हुए सरकार और सामाजिक संगठन    रोटरी के दो आधे चांद (गांधीजी की प्रतीमा के दोनों ओर) आकार वाले हिस्सों में दाना डालना शुरू कर दिया। दाने के लालच ने यहां चुहों की तादाद बढ़ा दी।
ऐसे बचे रोटरी, मिले दाना
प्रतीमा के दोनों ओर जो आधे चांद जैसे हिस्से हैं चूंकि वह कच्चे हैं, वहां पेवर फिटिंग पूरी तरह नाकाम रही है। इसीलिए पेवर हटाकर जमीन से एक-डेढ़ फीट ऊपर चांद आकार की ही कांक्रीट स्लैब डाली जाना चाहिए। ताकि इस पर दाना भी डले और धरती भी पोली न हो। स्लैब पिज्जा पीस की तरह टुकड़ों में भी डल सकती है। हालांकि इसके लिए रोटरी में विकसित हुई हरियाली जरूर प्रभावित होगी। हालांकि इस हरियाली को स्लैब पर गमले लगाकर आकर्षित भी बनाया जा सकता है।
तो कार्यक्रम मुश्किल हो जाएंगे...
अभी समतल होने के कारण रोटरी में आए दिन कुछ न कुछ कार्यक्रम होते रहते हैं। कांक्रीट स्लैब बनने के बाद जो मुश्किल हो जाएंगे। हालांकि स्लैब को इस तरह डिजाइन किया जा सकता है कि कार्यक्रम में दिक्कत न हो।

खनन से खतरे में वन की हरियाली, संकट में मोर

सरकारी काम के लिए अनुमति लेकर बाजार में बिक रही मुरम
इंदौर. विनोद शर्मा।
अलावासा, रिंगनोदिया, बारोली और पंचडेरिया के पहाड़ को हराभरा करने के लिए वन विभाग साल-दर साल हजारों पौधे रोप रहा है वहीं शुक्ला परिवार के सिपाहसालारों ने खुदाई शुरू कर दी है। हालात यह है कि वन विभाग की हरियाली से पहाड़ पर आए मोर जेसीबी-पोकलेन और डम्पर के शोर-शराबे से परेशान हैं। सरकारी प्रोजेक्ट के नाम पर हो रही इस खुदाई से निकली मुरम को बाजार में बेचा जा रहा है  सो अलग।
मामला उज्जैन रोड टोल टैक्स के पास स्थिति पहाड़ का है जो चार गांव की जद में आता है। रिंगनोदिया के सर्वे नं. 102 की 10.480 हेक्टेयर सरकारी जमीन (निर्माणाधीन जेल से लगी हुई) भी इसी पहाड़ का हिस्सा है। 2001 से खनन माफियाओं के निशाने पर रहे पहाड़ के इस हिस्से को बचाने के लिए 2005-06 में वन विभाग ने बड़ी तादाद में पौधारोपण किया। 10 साल में इन पौधों ने पोकलेन से हुए पहाड़ के जख्म भर दिए। हरियाली के कारण मोर आए। फिलहाल कैबिन में बैठकर ही खनीज विभाग के आला अधिकारियों द्वारा दी गई मुरम खनन की तथाकथित अनुमति ने  यहां अच्छी तादाद में रह रहे मोरोें का जीना मुश्किल कर दिया है।
फिर हरियाली की क्यों?
क्षेत्रवासियों का कहना है कि जेल तक पहाड़ के सामने का हिस्सा खोदा गया है जबकि जेल वाले हिस्से में पिछला हिस्सा। वन विभाग की मेहनत ने पहाड़ के उस हिस्से को भी हरा कर दिया है जिसे खनन माफियाओं ने खोदकर पटक दिया था। हरियाली से पहाड़ ठीक से हरा भी नहीं हुआ था कि खनीज विभाग ने दोबारा खुदाई की अनुमति दे दी। जबकि वीरसिंह वाली जिस खदान की अनुमति विभाग रद्द कर चुका है उसे अजमेरा बंधुओं को देकर पहाड़ का यह हिस्सा बचाया जा सकता था।
पशुओं की भी परेशानी...
जहां खुदाई हो रही है उसके पास सर्वे नं. 100 की 2.225 हेक्टेयर जमीन है। इस जमीन का सिर्फ दस्तावेजी उपयोग ही चरनोई नहीं है बल्कि यहां रिंगनोदिया के मवैशी चराए भी जाते हैं। खुदाई के बाद से यहां जानवरों का आना-जाना भी मुश्किल हो गया है। मवैशी चराने वाले जीवन मालवीय ने बताया कि दो-दो पोकलेन लगी है। आने-जाने में दिक्कत होती है।
सरकारी मंजूरी, माल बाजार में
लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाई जा रही सड़क के मुरम की आपूर्ति के लिए यहां प्रेमचंद नानूराम अजमेरा को खनीज विभाग ने खनन की मंजूरी दी थी। सूत्रों की मानें तो मजबूत सरपरस्तों के दम पर अजमेरा खुदाई में निकली मुरम का आधा हिस्सा बाजार में बेच रहा है। शिकायत की पुष्टि खनीज विभाग के मैदानी अमले की जांच में भी हुई। टीम ने मुरम से भरी एक गाड़ी को पकड़ा भी है जो कि धरमपुरी चौकी पर खड़ी है।
अब मौका देखेंगे...
खनीज विभाग ने क्षेत्र की निगरानी की जिम्मेदारी जिन लोगों को दे रखी है उन्होंने अब तक मौके पर जाकर ही नहीं देखा कि आखिर जहां खदान को अनुमति दी गई है वहां है क्या? बस जमीन का खसरा नंबर और आवंटी का नाम ही पता है। जब उनसे वन विभाग की हरियाली के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि एक-दो दिन में जाकर देख लेते हैं। यदि आपत्तिजनक स्थिति दिखती है तो आवंटन रद्द भी हो सकता है।

सात गांव की 10 हजार एकड़ जमीन तर करेगी नर्मदा

पाइप से खेत तक पहुंचेगा पानी, 5 हजार से ज्यादा किसान और 40 हजार आबादी को मिलेगा फायदा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इंदौर से लेकर उज्जैन तक तर करने के साथ ही नर्मदा अब आम्बाचंदन, दतौदा और हरसौला जैसे महू-सिमरोल के सात गांव का सूखा दूर करेगी। इसके लिए ग्रामीणों की मांग पर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) ने 60 करोड़ की विशेष योजना बनाई है जिसे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी मंजूरी दे चुके हैं। योजना से आना वाला पानी इन गांवों के साथ ही यहां की 10 हजार एकड़ जमीन की जरूरत पूरी करेगा।
नर्मदा-शिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना के बाद एनवीडीए नर्मदा-गंभीर परियोजना पर काम कर रहा है। दोनों योजनाएं सिमरोल और आम्बाचंदन से होकर निकल रही है लेकिन इन गांवों को इसका फायदा न मिला, न प्रस्तावित योजना में मिल रहा था। अपनी जमीनों से निकली बड़ी-बड़ी नर्मदा लाइनों के बावजूद पानी के लिए आसमान तांकते आ रहे किसानों में इसे लेकर नाराजगी थी। अंतत: किसानों की चिंता और मुख्यमंत्री के निर्देश पर एनवीडीए ने स्कीम बनाई और हरि झंडी के लिए सरकार को सबमिट कर दी।
6 हजार से ज्यादा किसानों को मिलेगा फायदा
स्कीम मुलत: सिमरोल, मेमदी, दतौदा, हरसौला, आंबाचंदन, बगौरा और चोरडिया के लिए हैं। चोरल नदी, महू-सिमरोल रोड और इंदौर-खंडवा रोड पर बसे इन गांवों की आबादी 40 हजार से ज्यादा बताई जा रही है। प्रोजेक्ट के तहत 4000 हेक्टेयर (9880 एकड़) जमीन की सिंचाई होगी।
टेंडर प्रक्रिया जल्द
सीएम से मिली मंजूरी के बाद एनवीडीए ने टेंडर प्रक्रिया के लिए तैयारी कर ली है जल्द ही टेंडर जारी कर दिए जाएंगे। बताया जा रहा है कि टेंडर दिवाली के आसपास जारी होंगे।
क्या रहेगी स्कीम...
नर्मदा-गंभीर परियोजना के तहत आम्बाचंदन होते हुए नर्मदा को जो पानी पाइपलाइन के माध्यम से इंदौर और उज्जैन के गांवों को दिया जाना है उसमें से एक क्यूमिक मीटर/सेकंड (मतलब 1000 लीटर/सेकंड) पानी गांवों को दिया जाएगा।
आपूर्ति पाइप्ड होगी। सूत्रों की मानें तो 6 किलोमीटर लंबी राइजिंग मेन लाइन डलेगी। इसके बाद छोटी-बड़ी 150 किलोमीटर लंबी लाइन डलेगी। लाइन को ढ़ाई-ढ़ाई हेक्टेयर के चक बनाकर आगे बढ़ाया जाएगा। ढ़ाई हेक्टेयर के चक से अपने पाइप के माध्यम से किसान अगली जमीन तक पानी पहुंचा सकता है।
नर्मदा-गंभीर की तरह यहां प्री-पेड मीटर नहीं लगेंगे लेकिन पानी की आपूर्ति रबी के सीजन में होगी। इसमें रोटेशन के साथ पानी दिया जाएगा। मतलब 24 घंटों को छह हिस्सों में बांटकर चार-चार घंटे चक बनाकर पानी दिया जाएगा ताकि सबको बराबर पानी मिले।
नर्मदा-गंभीर की धीमी गति से सरकार नाराज
चूंकि कंपनी नर्मदा-गंभीर परियोजना पर धीमी रफ्तार से काम कर रही है जिससे 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले योजना को जमींन पर उतारा जाना संभव नहीं हो रहा है इसीलिए सरकार ने इस मामले में सख्त रवैया अख्तियार करते हुए प्रोजेक्ट की अपने स्तर पर मॉनिटरिंग शुरू कर दी है।
सूखा दूर हो जाएगा क्षेत्र का
नर्मदा-शिप्रा का पानी भी सिमरोल से गुजर गया। नर्मदा-गंभीर का भी आंबाचंदन से गुजरना है। हमारी जमीनों से लाइनें निकलेगी तो पानी हमें क्यों नहीं मिले। इसीलिए सरकार से लगातार प्रार्थना करते रहे। स्कीम मंजूर हुई है इसके लिए सरकार को धन्यवाद। इससे क्षेत्र का सूखा दूर होगा।
पुनमचंद मंडलोई, अध्यक्ष
किसान जागृति संगठन, किसान दतौदा

तबादलों से ईडी में अधिकारियों का पतझड़

नए मामले हैं नहीं, पुरानी जांच की रफ्तार भी थमी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का भोपाल में खुलने वाला कार्यालय घोषणा के तीन साल बाद भी दस्तावेजों में अंतिम सांस ले रहा है वहीं इंदौर आॅफिस की स्थिति भी खराब है। यहां ट्रांसफर के रूप में अधिकारियों का पतझड़ जारी है। इससे नए केस पर काम करना तो दूर पुराने विचाराधीन मामलों की रफ्तार भी थम चुकी है।
काला धन अर्जित करने वालों के खिलाफ ईडी की जो भूमिका 10 वर्षों में इंदौर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर देखी गई है उससे लोगों में जहां ईडी के लिए लोगों में खौफ बढ़ा है वहीं शीर्ष प्रबंधन की अनदेखी इंदौर जैसे सब जोनल आॅफिसेस को कमजोर कर रही है। रणवीरसिंह उर्फ बॉबी छाबड़ा, आईएएस दंपति अरविंद-टीनू जोशी, विजय कोठारी और जगदीश सगर जैसे लोगों पर शिकंजा कसने वाला ईडी इंदौर छह महीने से स्टॉफ संकट झेल रहा है। डिप्टी डायरेक्टर के रूप में पदस्थ रहे प्रशांत मिश्रा के ट्रांसफर को तीन महीने हो चुके हैं लेकिन अब तक उनके पद की पूर्ति नहीं हुई। वहीं तीन साल से पदस्थ असिसटेंट डायरेक्टर के ट्रांसफर की प्रक्रिया भी शुरू हो गई।
मैदानी अमला भी नहीं
सिर्फ आला अधिकारी ही नहीं सहयोगी मैदानी स्टाफ भी एक-एक करके कम हो रहा है। डिपार्टमेंट में इन दिनों गिने-चुने लोग ही नजर आते हैं। जो हैं वे भी ट्रांसफर की आशंकाओं में जी रहे हैं। नया स्टाफ आ नहीं रहा। इससे लंबित मामलों की जांच भी धीमी पड़ चुकी है।
क्यों जरूरी है ईडी इंदौर...
ईडी के मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलाकाता और दिल्ली में रीजनल आॅफिस हैं। इसके अलावा अहमदाबाद, बेंगलोर, चंडीगढ़, चेन्नई, कोची, दिल्ली, पणजी, गुवाहटी, हैदराबाद, जयपुर, जालंधर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, पटना, श्रीनगर में जोनल आॅफिस हैं जबकि इनमें से कुछ राज्य ऐसे हैं जो आबादी और आर्थिक स्थिति के हिसाब से मप्र से कमजोर हैं।
मप्र के लिए इंदौर में ही सब जोनल आॅफिस है। विगत 10 वर्षों में मप्र में सामने आए आर्थिक अपराधों और प्रिवेंशन आॅफ करपशन एक्ट के तहत पकड़ाए सरकारी मुलाजिमों की संख्या बढ़ी है। जिसे विभागीय शीर्ष प्रबंधन ने भी स्वीकारा और भोपाल में भी सब जोनल आॅफिस खोलने की तैयारियां शुरू की जो बाद में ठंडी पड़ गई।
यहां व्यापमं मामला और सुगनीदेवी जमीन घोटाले जैसे बड़े मामलों पर विभागीय जांच जारी है। कई मामलों में जमीन अटैचमेंट हो चुका है प्रोसिक्यूशन जारी है। स्ट्रेंथ कम होने से न जांच हो रही है न ही प्रोसिक्यूशन में अधिकारी ध्यान दे पा रहे हैं।




मंत्री-कलेक्टर पर भारी पीएचई का अधिकारी

करना थे पांच के तबादले, किए दो के, 15 दिन में फिर बुलाया
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अपने ही विभाग के ठेकेदार बन बैठे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई)  के मैदानी अमले को प्रभारी मंत्री जयंत मलैया भी सबक नहीं सीखा पाए। हुआ यूं कि तमाम शिकायतों के बाद मंत्री मलैया ने कलेक्टर को जिन पांच लोगों के तबादले की सूची भेजी थी कार्यपालन यंत्री ने उसमें से दो का ट्रांसफर तो किया लेकिन दस दिन बाद ही दोबारा बुला भी लिया। मलतब यह है कि शिकायत से पहले जो स्थिति थी वह तथाकथित तबादले के बाद भी है।
  पीएचई में अधिकारी और कर्मचारी गिरोह के रूप में काम करके कैसे पानी से पैसा बहा रहे हैं? इसका खुलासा दो उपायुक्त सहित पांच लोगों के खिलाफ हुई शिकायत के साथ दबंग दुनिया ने 22  अगस्त को प्रकाशित समाचार में किया था। इसके बाद इंदौर के प्रभारी मंत्री जयंत मलैया ने गंभीरता से लिया और कलेक्टर को पत्र लिखकर उपयंत्री एम.के.नाइक, टेक्नीशियन पुरणसिंह बेस, अनुरेखक राजेंद्र वर्मा, अकाउंटेंट ओ.पी. सोनवने और सुभाषचंद्र गवंडे को नियुक्ति से अन्यत्र ट्रांसफर के लिए लिखा। कलेक्टर ने कार्यपालन यंत्री संतोष श्रीवास्तव को मामले में कार्रवाई के लिए लिखा।
ऐसे मंत्री-कलेक्टर की आंखों में धूल झौंकी
मंत्री की सख्ती ने कार्यपालन यंत्री श्रीवास्तव को झटका दिया लेकिन झटके से उबरते हुए श्रीवास्तव ने ऐसा दिमाग लगाया कि ट्रांसफर भी हो गया और उनके गुर्गे वहीं रह भी गए।
जिला पेयजल समीक्षा समिति के सदस्य सज्जनसिंह भिलवारे ने शिकायत की जिसे गंभीरता से लेते हुए आठ दिन बाद मंत्री मलैया ने तबादला करने के निदे्रश दिए। इस आदेश के दूसरे ही दिन कार्यपालन यंत्री श्रीवास्तव ने ओपी सोनवने और पुरणसिंह बैस का ट्रांसफर पीएचई खंड इंदौर से उपखंड महू कर दिया। इसकी विधिवत सूचना मंत्री मलैया और कलेक्टर पी.नरहरी को भी दे दी गई जबकि दोनों यहीं काम करते रहे।
आदेश के ठीक 15 दिन बाद ही कार्यपालन यंत्री श्रीवास्तव ने ही एक नया आदेश निकाला और ओपी सोनवने को उपखंड महू से खंड इंदौर में अस्थाई तौर पर फिर नियुक्त कर दिया। आदेश में लिखा कि सोनवने को उपखंड महू के कार्य के अतिरिक्त खंड इंदौर में कार्य सुगमता की दृष्टि से काम करने के लिए निर्देशित किया जाता है।
नहीं दी मंत्री को जानकारी
बड़ी बात यह है कि जिन मंत्री मलैया के सख्त निर्देश पर सोनवने का तबादला हुआ और तबादला आदेश की जानकारी भी जिन्हें सौंपी गई उन्हे सोनवने को दोबारा खंड इंदौर में लाने की सूचना तक नहीं दी गई। न कलेक्टर को जानकारी दी गई। आदेश की कॉपी मूख्य अभियंता, अधीक्षण यंत्री और सहायक यंत्री उपखंड महू को ही भेजी गई।
ऐसा क्या मोह है ‘पंचों’ से
उपयंत्री एम.के.नाइक, टेक्नीशियन पुरणसिंह बेस, अनुरेखक राजेंद्र वर्मा, अकाउंटेंट ओ.पी. सोनवने और सुभाषचंद्र गवंडे पर इस मेहरबानी ने श्रीवास्तव के खिलाफ लगातार हो रही शिकायतों की पुष्टि भी कर दी है। पेयजल समिति सदस्य भिलवारे ने बताया कि पांचों श्रीवास्तव के कमाऊ पूत की तरह हैं इसीलिए वे किसी भी तरह इन्हें दूर नहीं करना चाहते फिर भले कलेक्टर पूरी ताकत लगा ले या फिर मंत्री। यह श्रीवास्तव इस घटनाक्रम को अंजाम देकर साबित भी कर चुके हैं। 

सिंहस्थ सफल, अब लिंक बुझाएगी शिप्रा के साथ देवास-उज्जैन की प्यास

-  130 करोड़ में डलेगी उज्जैनी से उज्जैन तक 78 किलोमीटर पाइपलाइन, औद्योगिक क्षेत्र भी होंगे तर
- मुख्यमंत्री ने दी हरीझंडी, टेंडर जल्द
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सिंहस्थ के सफलतम समापन के बाद नर्मदा-शिप्रा लिंक की उपयोगिता बढ़ाने और पानी की बर्बादी रोकने के मकसद से सरकार नर्मदा के पानी का बंटवारा करेगी। बड़वाह से इंदौर तक पहुंच रहे 5 क्यूबिक मीटर/सेंकट पानी में से आधा शिप्रा में छोड़ा जाएगा आधा देवास-उज्जैन के 12 लाख लोगों और पांच हजार उद्योगों की प्यास बुझाएगा। इसके लिए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) उज्जैनी से उज्जैन तक 78 किलोमीटर पाइपलाइन बिछाएगा।
सिंहस्थ 2016 के मद्देनजर एनवीडीए ने नर्मदा-शिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना को 2014 में अंजाम दिया। सिंहस्थ में लबालब शिप्रा के रूप में इसका फायदा मिला भी। सिंहस्थ के बाद जहां परियोजना की उपयोगिता पर सवाल उठने लग थे वहीं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पानी का उपयोग बढाने के मकसद से उज्जैनी-उज्जैन लिंक योजना मंजूर कर दी। इसकी प्रारंभिक लागत 130 करोड़ आंकी गई है। बताया जा रहा है कि जल्द ही टेंडर की कार्रवाई करके कंपनी को काम सौंप दिया जाएगा ताकि नवंबर 2018 (15वीं विधानसभा के लिए होने वाले चुनाव) तक योजना का काम जमीन पर दिखने लगा।
12 लाख लोगों को फायदा
2016 की मतगणना के हिसाब से देवास शहर की आबादी 4.68 लाख थी जो बढ़कर अब 5.5 लाख से ज्यादा हो गई है। इसी तरह उज्जैन की आबादी 5.15 लाख थी जो अब बढ़कर 6.20 लाख हो चुकी है। स्कीम से नर्मदा दोनों शहरों के करीब 12 लाख लोगों की प्यास बुझाएगी।
ऐसी होगी योजना
सिसलिया (बड़वाह) से उज्जैनी (इंदौर) तक नर्मदा का 5 क्यूबिक मीटर(5000 लीटर) /सेकंड पानी लाया जा रहा है। सारा पानी शिप्रा में छोड़ा जाता है। नई योजना के तहत इसमें से 2.8 क्यूबिक मीटर(2800 लीटर)/सेकंड पानी ही शिप्रा में छोड़ा जाएगा।
बाकी बचा 2.2 क्यूबिक मीटर (2200 लीटर)/सेंकड पानी पाइपलाइन के माध्यम से उज्जैनी से शिप्रा, शिप्रा से देवास, देवास से गऊघाट (उज्जैन) तक ले जाया जाएगा। इसके लिए 1800 एमएम डाया की 78 किलोमीटर लंबी लाइन उज्जैन-उज्जैन के बीच डलेगी।
मकसद : कोशिश जरूरत के मुताबिक पानी देने की है ताकि पानी का अपव्यय न हो। वैसे भी अभी पानी नदी के माध्यम से ही बहाया जा रहा है जिसका फायदा किसानों को तो मिल रहा है लेकिन दूरस्थ आबादी अब भी इससे अछूती है।
ऐसे उपयोग होगा पानी
एनवीडीए पाइप लाइन बिछाएगा। शिप्रा के पास आउटलेट वॉल्व (जैसे सिमरोल आईआईटी के पास हैं) छोड़े जाएंगे। देवास को पीने का पानी देना है तो नगर निगम को यहां से लाइन डालकर पानी ले जाना होगा। इसी तरह अपनी लाइन डालकर उद्योग विभाग या एकेवीएन उज्जैन भी देवास के उद्योगों को पानी देगा। यदि दोनों विभाग अपनी लाइन डाल पाते हैं और स्कीम जल्दी पूरी हो जाती है तो इसका पानी शिप्रा रिजवर में छोड़ा जाएगा।
इसी तरह उज्जैन और उज्जैन के उद्योगों को पानी देने के लिए उज्जैन नगर निगम और उद्योग विभाग को अपनी लाइन डालनी होगी। अन्यथा पानी डेडएंड (गऊ घाट) पर शिप्रा में छोड़ दिया जाएगा।
ग्रेविटी बेस होगी सप्लाई
प्रोजेक्ट की अच्छी बात यह है कि उज्जैनी से उज्जैन तक पानी पहुंचाने के लिए एनवीडीए को बिजली खर्च नहीं करना पड़ेगी। डिपार्टमेंट इसे ग्रेविटी बेस बना रहा है। यानी गति और ढाल के साथ ही पानी उज्जैनी से उज्जैन तक पहुंच जाएगा। इंदौर नगर निगम द्वारा इसी ग्रेविटी बेस सिस्टम से ही वॉचू पॉइन्ट से इंदौर तक नर्मदा का पानी पहुंचाया जाता है। 

7628 वर्गफीट अवैध पलसीकर का ‘सक्षम’ भवन

भवन अधिकारी की जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश
घर का नक्शा मंजूर कराकर मल्टी बनाकर बेच दी गई
इंदौर. विनोद शर्मा ।
पारिवारिक उपयोग के लिए घर की मंजूरी लेकर पलसीकर में जिस इमारत को बनाकर बेचा गया है उसमें स्वीकृति से 7628 वर्गफीट ज्यादा निर्माण हुआ है। इसके लिए चौतरफा एमओएस कब्जाकर बड़ी मात्रा में हेंगिंग की गई है। इसका खुलासा 15वें अपर जिला न्यायाधीश बी.एल.प्रजापति के समक्ष प्रस्तुत नगर निगम की रिपोर्ट में हुआ है। हालांकि अब तक जिम्मेदार मैदानी अमला बिल्डिंग का काम तक नहीं रुकवा पाया है।
भवन के नाम पर बनी इस इमारत में बिल्डर सोनू चांदवानी  उर्फ सक्षम की मनमानी का खुलासा दबंग दुनिया ने 4 अक्टूबर 2016 को ‘घर के लिए ली अनुमति, मल्टी बनाकर बेच दी’, शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। राजमहल कॉलोनी निवासी निलेश दरियानी की शिकायत और दबंग दुनिया की खबर के आधार पर मामला कोर्ट पहुंचा। कोर्ट के निर्देश पर जोन-2 के भवन अधिकारी पी.एस.कुशवाह ने जांच की और मौका पंचनामा के साथ जांच रिपोर्ट सबमिट की।
सटिक रही दबंग दुनिया की रिपोर्ट
4 अक्टूबर 2016 को दबंग दुनिया ने प्रथम पृष्ठ पर बिल्डिंग को लेकर जो समाचार प्रकाशित किया था उसमें उल्लेख किया था कि इन्दरसिंह के बेटों हरभजनसिंह, भूपेंद्रसिंह, सतवंतसिंह, चरणजीतसिंह और कमलजीतसिंह ने 5675 वर्गफीट प्लॉट पर सितंबर 2014 में करीब 7450 वर्गफीट निर्माण की अनुमति ली। निर्माण किया 15078 वर्गफीट। अतिरिक्त 7628 वर्गफीट। जिसे 4100 रुपए/वर्गफीट में बेचकर 3.12 करोड़ कमाएगा बिल्डर।
नपती हुई तो बिल्डर गायब
भवन अधिकारी कुशवाह ने जो पंचनामा रिपोर्ट दी है उसके अनुसार जब बिल्डिंग की नपती की गई तब शिकायतकर्ता निलेश और उनके वकील विजय नागपाल तो मौके पर मौजूद थे लेकिन बार-बार सूचना देने के बावजूद निर्माणकर्ताओं की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। न प्लॉट मालिक इन्दरसिंह के बेटों हरभजनसिंह, भूपेंद्रसिंह, सतवंतसिंह, चरणजीतसिंह और कमलजीतसिंह। न ही बदनाम बिल्डर सोनू चांदवानी ‘सक्षम’।
नहीं रूका काम
मामला न सिर्फ नगर निगम के गलियारों तक सिमित रहा बल्कि जिला सत्र न्यायालय तक पहुंच चुका है। बावजूद इसके अब तक नगर निगम मौके पर जाकर सोनू सक्षम द्वारा किए जा रहे अवैध निर्माण को रूकवाने तक की हिम्मत नहीं की। न सिर्फ निर्माण बल्कि फ्लैट्स की बिक्री भी जारी है।
कहां कितना अवैध निर्माण
बेसमेंट दक्षीण की ओर- 580.71 वर्गफीट
ग्राउंड फ्लोर
पूर्व - 425 वर्गफीट
पश्चिम - 65 वर्गफीट
उत्तर - 696 वर्गफीट
दक्षीण - 143 वर्गफीट
कुल - 1329 वर्गफीट
पहली, दूसरी और तीसरी मंजिल
उत्तर में - 696 वर्गफीट
ओपन टू स्काई - 502 वर्गफीट
दक्षीण में - 244 वर्गफीट
दक्षीण में - 334 वर्गफीट
उत्तर में - 455 वर्गफीट
पूर्व में - 317 वर्गफीट
एक मंजिल का कुल - 1346 वर्गफीट
तीन मंजिल पर - 4039 वर्गफीट
टेरेस फ्लोर
हॉल - 1675 वर्गफीट


तीन साल में राऊ का दिल नहीं जीत पाए जीतू

सिर्फ विरोध के तरीकों से पाई सुर्खियां, काम से रही दूरी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
देश-प्रदेश के मुद्दों पर बयानबाजी से मीडिया की सुर्खियां बटौरते आ रहे राऊ के विधायक जीतू पटवारी विधानसभा चुनाव के तकरीबन तीन साल होने के बावजूद क्षेत्र में उल्लेखनीय काम नहीं कर पाए। फिर मामला पटवारी के सालाना प्रदर्शन के बाद भी नुरानीनगर चौराहे से सिंहासा के बीच बदहाल पड़े धार रोड का हो या फिर राऊ के समग्र विकास का। हर जगह पटवारी ने मुंह की खाई है।
14वीं विधानसभा के लिए चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2013 में हुए थे। करीब तीन साल हो चुके हैं। इस दौरान पटवारी ने ऐसा कोई बड़ा काम नहीं किया जो राऊ के उन रहवासियों के कलेजे को ठंडक पहुंचा सके जिन्होंने भाजपा लहर के विपरीत चुनाव में जीतू का साथ दिया था। लोगों की मानें तो साइकिल से दौरा करने, स्ट्रीटलाइट के खम्बे पर चढ़ने, ठेला लेकर सब्जी बेचने और आंख पर पट्टी बांधकर विधानसभा में जाने से जीतू पटवारी की खबरें तो अखबारों में छप जाती है लेकिन हमें खबर से ज्यादा क्षेत्र के विकास की जरूरत है। पटवारी को चुना भी इसीलिए था। वहीं क्षेत्र के भाजपा नेताओं की मानें तो कोई ऐसा बड़ा या उल्लेखनीय काम नहीं है जिसे पटवारी सीना तानकर अपना कह सके।
क्या हुआ तेरा वादा...
क्षेत्रवासियों का कहना है कि चुनाव के दौरान पटवारी ने कई बड़े दावे किए थे। इनमें राऊ में बड़ा सरकारी अस्पताल, युवाओं के खेलने के लिए बड़ा स्टेडियम और राऊवासियों को नर्मदा का पानी भी शामिल था। तीनों के अब तक पते नहीं है। कोई ऐसा जनआंदोलन तक नहीं किया जिसे पटवारी द्वारा क्षेत्र के विकास के लिए की गई कोशिश तक करार दी जा सके। शहर में विरोध-धरने खूब किए लेकिन क्षेत्र में निष्क्रिय रहे। नुरानीनगर निवासी शाहरूख अंसारी ने बताया कि सड़क वैसी ही है जैसी 2013 चुनाव से पहले थी। तीन साल में तीन धरने हो चुके हैं पटवारी के। लिम्बोदी निवासी हरविंदर सिंह ने बताया कि सड़क और रोशनी की समस्या जस की तस है। राऊ निवासी अजय पाटीदार ने बताया कि चुनाव के बाद से पटवारी के दौरे क्षेत्र में कम, शहर में ज्यादा हुए। सिलीकॉन सिटी निवासी रूपेश अग्रवाल ने बताया कि न स्टेडियम बना, न ही अस्पताल।
प्रदेश अध्यक्ष बनना ही लक्ष्य
पटवारी के नजदीकी भी बताते हैं कि 2008 के विधानसभा चुनाव के दौरान जीतू ने बड़े नेताओं वाली अपनी जिन आदतों से शिकस्त खाई थी वही आदतें फिर उन्हें लोगों से दूर कर रही है। क्षेत्र से ज्यादा देश और प्रदेश के मुद्दों पर बयान देकर उन्होंने मीडिया की नजर में तो स्वयं को ऊंचा उठाया ताकि वे प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हो सकें। यही स्थिति रही तो उन्हें 2018 के आगामी चुनाव में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।
नहीं मिला जवाब...
क्षेत्रवासियों की राय को लेकर जब दबंग दुनिया ने पटवारी से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। उन्हें उनके नंबर पर वॉट्स अप और मैसेज भी किया लेकिन फिर भी जवाब नहीं मिला।


दो चुनाव ने जीतू को किसान से बिल्डर बना दिया

कालानी से लेकर चंपू-चिराग तक से नजदीकी
हार के बावजूद 2008 से 2013 के बीच कमाए 12 करोड़
इंदौर. विनोद शर्मा ।
राऊ के मतदाताओं के सामने किसान के बेटे के रूप में स्वयं का ब्रांडिंग करते आए कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने 2008 की हार से लेकर 2013 की जीत के बीच पांच साल में करीब 12 करोड़ की संपत्ति अर्जित की। यानी सालाना 2.39 करोड़ की कमाई। किसी वक्त किसानी करता आया पटवारी परिवार आज राऊ-बिजलपुर का बड़ा बिल्डर घराना है। मनीष कालानी और  चंपू-चिराग से लेकर कई घराने ऐसे हैं जिनके भागीदार के तौर पर पटवारी परिवार काम कर रहा है।
2.39 करोड़ की औसत आय के हिसाब से बात की जाए तो किसान पूत्र के पास 20 करोड़ से ज्यादा की पूंजी है। पालाखेड़ी, बिजलपुर, अलवासा, फतनखेड़ी में जीतू के नाम की जमीन है जो कृषि भूमि है। वहीं क्षेत्रवासियों की मानें तो पटवारी सिर्फ खेती तक सीमित नहीं है। इंदौर में मॉल संस्कृति की शुरूआत मनीष कालानी ने ट्रेजर आईलैंड से की तो उसके साथ ही पटवारी परिवार ने अपने बिल्डरशीप के काम का आगाज भी किया। टीआई, सेंट्रल मॉल से लेकर चंडीगढ़ व जयपुर तक कालानी ने जहां-जहां काम किया, पटवारी परिवार साथ रहा।
जहां कालानी, वहां जीतू..
बैंकों से अरबों का कर्ज लेकर अपनी सल्तनत खड़ी करने वाले मनीष कालानी ने जहां-जहां काम किया वहां पटवारी ने अहम योगदान दिया। टीआई और सेंट्रल मॉल के लिए खुदाई करने का मामला हो या फिर रंगवास व बिजलपुर में ट्रेजर समूह की कॉलोनियों के लिए जमीन जुटाने का। पटवारी ने हर मोर्चे पर कालानी का साथ दिया। उन्होंने इस काम में बिजलपुर के लोगों का दिल दुखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
चंपू-चिराग के भी सरपरस्त
फिनिक्स टाउनशीप जमीन घोटाले में क्राइम ब्रांच जिन निलेश उर्फ चंपू अजमेरा और चिराग शाह को सलाखों के पीछे पहुंचा चुकी है उनसे भी पटवारी की नजदीकियां चर्चा में रही है। पुलक सिटी के लिए दोनों को पटवारी ने ही जमीन दिलवाई थी। 6 मार्च 2011 को वरिष्ठ कांग्रेस नेता अर्जून सिंह को अंतिम विदाई देने के लिए जीतू पटवारी ‘जो उस वक्त मप्र यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे’, का काफिला जिन गाड़ियों में चुरहट रवाना हुआ था उसमें चिराग की गाड़ी भी थी। इस गाड़ी का भामिता के पास एक्सीडेंट हुआ। इसमें कमलेश यादव और उमाशंकर यादव की मौत हो गई थी जबकि बाणगंगा निवासी गोपाल यादव घायल हो गए थे।
भाइयों को बनाया बिल्डर
पटवारी के दो भाई हैं भरत पटवारी और कुलभूषण पटवारी उर्फ नाना। भरत पटवारी कृष्णायन डेवलपर्स प्रा.लि., केएसपीएल शुभम सोलर एनर्जी पार्क प्रा.लि. और बी.पी.रीयल एस्टेट प्रा.लि. के डायरेक्टर के रूप में काम कर रहे हैं। कुलभूषण पटवारी इटीग्रेटेड कृषि प्रा.लि., हरिओम एग्रो रीसचर प्रा.लि., कृष्णायन डेवलपर्स प्रा.लि., सोलराइजर प्रोडक्ट प्रा.लि. और इंदौर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर में डायरेक्टर हैं। पटवारी बंधू पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. के नाम से भी काम कर रहे हैं। कंपनी के नाम पर 4 करोड़ का लोन लिया था। कंपनी का पंजीकृत पता 582 पटवारी चौक बिजलपुर है। इस पते पर केबी लैंड डेवलपर्स प्रा.लि. भी पंजीबद्ध है।
5 साल में ऐसे बड़ी संपत्ति
वर्ष स्वयं के नाम पत्नी के नाम देनदारी
2008   80,62,000 45,14,150 6,72,790
2013 7,44,02,000 5,43,48,750 0000


वाणिज्यिक कर विभाग के छापे
फोम एवं मैट्रेस व्यवसायियो से वसूले 26 लाख
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
वाणिज्यिक कर विभाग के एंटी इवेजन विंग ‘ए’ ने दो फोम और मैट्रेस कारोबारियों के खिलाफ छापेमार कार्रवाई की। कार्रवाई के दौरान दोनों ने कर चोरी स्वीकारी और 26 लाख रुपए जमा कराए।
आयुक्त राघवेन्द्र कुमार सिंह के निर्देश और विंग प्रभारी व उपायुक्त धर्मपाल शर्मा के नेतृत्व में 30 अधिकारियों ने कार्रवाई को अंजाम दिया। कार्रवाई जवाहरमार्ग स्थित फकरी फोम ऐंड कारपेट और कलकत्तावाला कापोर्रेशन के छह ठिकानों पर हुई। इनमें गोदाम और घर भी शामिल हैं। कार्रवाई के बाद मौके पर ही 25.50 लाख रुपए कर एवं पेनल्टी के जमा कराये गए।
यह है गड़बड़
1-  व्यवसायी से कच्ची पर्चियां जप्त की गयी जिस पर व्यवसायी द्वारा पेनल्टी जमा करायी गयी। इनकी विस्तृत स्क्रूटनी के बाद और भी मांग निकलेगी।
2- व्यवसायी के यहां लेखा पुस्तकों की तुलना में भौतिक स्टॉक में हेरफेर पाया गया इस पर व्यवसायी द्वारा पेनल्टी जमा कराई गई ।
3- सोफे के आयातित कपड़े पर प्रवेश कर नहीं जमा कराया जा रहा था जिसकी कर एवं पेनाल्टी मौके पर जमा कराई गई।

दर्जनभर कागजी कंपनियों का समूह है पटवारी ग्रुप

-भाइयों और कारिंदों को बनाया डायरेक्टर
- मंत्री के साथ बनाई शुभम रेसीडेंसी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
किसी भी मुद्दे पर प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार तक को घेरते आए विधायक जितेंद्र ‘जीतू’ पटवारी सखा मनीष कालानी की तरह ही कॉर्पोरेट सेक्टर में भी अपनी पेठ जमाने में लगे हैं। कालानी की तरह ही उन्होंने ने भी फर्जी कंपनियां खड़ी कर दी। अपने रिश्तेदारों और कारिंदों को डायरेक्टर बना दिया। पटवारी पोषित समूह न सिर्फ एग्रो इंडस्ट्री और रीयल एस्टेट तक ही सीमित नहीं रहा, अब सोलर पैनल और मेडिकल एज्यूकेशन तक में पांव पसार चुका है।
पटवारी ने कालानी को कॉलोनी में मदद की। कालानी ने पटवारी बंधुओं को कॉर्पोरेट कल्चर की शिक्षा दी और उन्हें किसान परिवार को कॉर्पोरेट घराना बना दिया। इस काम के लिए जीतू पटवारी को बाहर रखा गया ताकि वे राजनीति में ऊंचा मुकाम बनाएं और अपने बंधुओं, भागीदारों और कारिंदो की व्यावसायिक पकड़ मजबूत करने में मदद करे। पटवारी समर्थक प्रणव पचौरी, सुनील चौधरी, राकेश शिवहरे, निलेश सोलंकी के साथ कॉर्पोरेट कमान संभाली भाई भरत पटवारी और कुलभूषण पटवारी ने।  समूह के पास दर्जनभर से ज्यादा कंपनियां पंजीबद्ध है जिसमें से 80 फीसदी कागजी हैं।
‘पटवारी’ के खिलाफ केस...
भारत और कुलभूषण की कंपनी है पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि.। इस कंपनी के खिलाफ चीफ ज्यूडिशियल मजिस्टेÑेट कोर्ट ग्वालियर में दो केस चल रहे हैं। 16 सितंबर 2008 को धारा 162 और इसी तारीख को धारा 220(1) व 220(2) के तहत दर्ज है। कंपनी पर चार करोड़ की देनदारी है।
मेडिकल कॉलेज खोलने की तैयारी
अपने चुनावी वादे के अनुसार पटवारी राऊ में बड़ा अस्पताल तो नहीं खोल सके लेकिन  शायद इसकी एक बड़ी वजह ट्रूबा कॉलेज के पास पटवारी का प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज भी है। पटवारी ने इसके लिए अपने प्रोफेशनल मित्रों के साथ इंदौर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर के नाम से 31 अक्टूबर 2012 ‘चुनाव जीतने से सालभर पहले ही’, कंपनी रजिस्टर्ड करवा ली थी। इस कंपनी का पता फ्लैट नं. 108 सी-2 शुभम रेसीडेंसी (पटवारी के घर के पीछे) दर्ज है। इसमें प्रणव पचौरी और राकेश शिवहरे के साथ कुलभूषण पाटीदार पार्टनर है।
यह है टीम पटवारी
भारत पिता रमेशचंद्र पटवारी : 6 फरवरी 1981 को जन्में भारत का डायरेक्टर आईडेंटिफिकेशन नंबर (डीन) 00369805 है। बिजलपुर के सर्वे नं. 105/1/1 की 1.002 हेक्टेयर जमीन पर पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. तर्फे डायरेक्टर भारत पटवारी ने 14 फरवरी 2011 को पी+6 टाउनशीप का नक्शा मंजूर करवाया था जिसे आज शुभम रेसीडेंसी के नाम से जाना जाता है।
कुलभूषण पिता रमेशचंद्र पटवारी : 7 जनवरी 1982 को जन्में नाना का डीन 01219431 है। बिजलपुर की सर्वे नं. 979/1/1 की 0.712 हेक्टेयर जमीन आज भी पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. तर्फे डायरेक्टर कुलभूषण के नाम है।  इटीग्रेटेड कृषि प्रा.लि., हरिओम एग्रो रीसचर प्रा.लि., कृष्णायन डेवलपर्स प्रा.लि., सोलराइजर प्रोडक्ट प्रा.लि. और इंदौर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर में डायरेक्टर है।
प्रणव पिता चंद्रमोहन पचौरी : 22 अगस्त 1981 को जन्म। डीन 06392352 है। विक्रमनगर उज्जैन निवासी है। मप्र यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष कुणाल चौधरी के साथ उज्जैन में ही पढ़े। इसी दौरान जीतू पटवारी से जुड़े। बायो टेक कृषि प्रा.लि.,  नेचुरल कल्टीवेटस प्रा.लि., इंटीग्रेटेड कृषि प्रा.लि. और हरि ओम एग्रो रिसर्चर प्रा.लि. जैसी कंपनी में 9 दिसंबर 2013 में एक साथ डायरेक्टर बने। महाकालेश्वर चिकित्सा एवं शोधसंस्थान और इंदौर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर में भी डायरेक्टर।
सुमित पिता कल्याणमल मंत्री : बिजलपुर के सर्वे नं. 105/1/1 की 1.002 हेक्टेयर जमीन पर पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. ने जिस जमीन पर मल्टी का नक्शा मंजूर करवाया था उसे डेवलप सुमित की शुभम डेवलपर्स ने किया है। इसीलिए इसका नाम शुभम रेसीडेंसी है। मंत्री के साथ केएसपीएल शुभम सोलर एनर्जी पार्क प्रा.लि. में भारत पटवारी भी पार्टनर है। 20 अक्टूबर 2014 में सर्वे नं. 105/1/1 का नामांतरण शुभम डेवलपस के नाम हो गया।
(सुखलिया निवासी राकेश शिवहरे, राजीव चौहान, अतूल कुमार जैन भी पटवारी साम्राज्य का हिस्सा हैं। )

रिहायशी इलाके में अग्रवाल पापड़ के अवैध कारखाने

- भट्टी की आग, मशीनों की आवाज और चिमनी के धुएं ने क्षेत्रवासियों का जीना किया दुभर
- मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आज तक नहीं ली सूध
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मास्टर प्लान में ग्रीन बेल्ट के रूप में आरक्षित जमीन पर तना अग्रवाल पापड़ ‘420’ का कारखाना हुकुमचंद कॉलोनी की घनी बसाहट के बीच है। बड़ी-बड़ी भट्टियों की गर्मी और चिमनियों से निकलने वाले धुएं के साथ ही तंग गलियों में व्यावसायिक वाहनों की बेइंतहां आवाजाही हुकुमचंद कॉलोनी की तंग गलियों में रहने वालों के लिए सिरदर्द बन चुकी है। बार-बार शिकायत की लेकिन न तो प्रशासन ने सूध ली और न ही सख्ती पर्यावरण प्रहरी की भूमिका निभाने वाले मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने यहां झांककर देखा।
सिरपुर की जमीन पर अग्रवाल पापड़ प्रा.लि. का नमकीन-पापड़ कारखाना चल रहा है। 242/2/1, 242/-3-1, 244/1 और 242/2-1 हुकुमचंद कॉलोनी में जहां यह कारखाना चल रहा है उसके एक हिस्से में अग्रवाल पापड़, अग्रवाल एक्वाकेअर और राजेश के नमकीन कारखाने हैं वहीं तीन तरफ रिहायशी इलाका है। जबकि सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी रिहायशी इलाके में किसी भी कारखाने को पर्यावरणीय अनुमति नहीं दी जा सकती। यानी रिहायशी इलाके में यदि कारखाना चल रहा है तो पर्यावरण की दृष्टि से वह अवैध है।
जीना हो गया हराम...
हुकुमचंद कॉलोनी निवासी रजनीश सिंह ने बताया कि पहले एक कारखाना था, धक जाता था लेकिन अब एक के बाद एक कारखानों की बाड़ आ गई। मशीनों की आवाज और चिमनी से निकलने वाले काले धुएं ने जीना मुश्किल कर दिया है। कारखानों में बड़ी-बड़ी भट्टियां है जिनमें बडेÞ पैमाने पर लकड़ी इस्तेमाल होती है।
इसी कॉलोनी के गोविंद कुशवाह ने बताया कि हुकुमचंद कॉलोनी अवैध है। यहां नक्शे पास नहीं होते। मकानों तक ठीक था लेकिन नगर निगम की अनुमति के बिना ही भव्य कारखाने खड़े हो गए और नगर निगम के अधिकारी संचालकों के साथ मिलन समारोह करते रहे। खामियाजा हम लोगों को चुकाना पड़ रहा है। कभी घुएं के रूप में तो कभी मशीनों की आवाज के रूप में।
सकरी सड़कों पर टेंकर नहीं दिखता पुलिस को...
अंतिम चौराहे और परमानंद हॉस्पिटल के पास पुलिस के जवान बैठे रहते हैं और उनके सामने से तेल के टेंकर दिन के उजाले में कारखानों तक पहुंच जाते हैं लेकिन पुलिस वालों को नहीं दिखते। चौड़ी सड़कों पर पुलिस दिन में भारी वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित करवा चुकी है जबकि कॉलोनी की तंग सड़कों पर तेल के टेंकर, लकड़ी के ट्रक, नमकीन-पापड़ के ट्रांसपोर्टेशन की गाड़ियां पुलिस से कार्रवाई की उम्मीद लगाए बैठे हुकुमचंद कॉलोनी के लोगों का मुंह चिढ़ाती हैं। खुद की गाड़ियां खड़ी करने की जगह नहीं मिल रही है रहवासियों को।
अवैध बिल्डिंगों के कैसे खोल दिए खाते
नगर निगम के साथ अग्रवाल पापड़ की मिलीजुली कुश्ती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिन जमीनों पर कारखाने खड़े है उनका भू-उपयोग ग्रीन बेल्ट है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से ले-आउट मंजूर है और न ही नगर निगम से नक्शा पास। बावजूद इसके  अग्रवाल पापड़ के नाम से एक-दो नहीं बल्कि संपत्तिकर के चार खाते हैं। जबकि 2014 में नगर निगम की छापेमार कार्रवाई में ही सामने आया था कि जिस जगह प्लॉट बता रखे थे वहां दो-दो मंजिला कारखाने मिले। इसका मतलब यह है कि कारखानों की नगर निगम से अनुमति हुई ही नहीं। वैसे भी रिहायशी इलाके में कारखाना मंजूर करना न निगम के बस में है और न ही टीएंडसीपी के बस में। 

ग्रीन बेल्ट पर अग्रवाल पापड़ की ‘420’

 टीएनसी, नगर निगम और अन्य विभागों की अनुमति के बिना तने कारखाने
इंदौर. विनोद शर्मा ।
1962 में 150 रुपए और 5 किलोग्राम मुंगदाल के साथ कारोबार शुरू करके आज अंतरराष्ट्रीय पहचान बन चुका 420 पापड़ जिन कारखानों में बन रहा है वह ग्रीन बेल्ट की जमीन पर तने हुए हैं। इन कारखानों को न टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग की अनुमति है और न ही नगर निगम की। बावजूद इसके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तमाम कायदों को ठेंगा बताते सघन आबादी के बीच अग्रवाल पापड़ प्रा.लि. की 420 बदस्तूत जारी है। न किसी कानून की परवाह न सरकारी सख्ती का संताप।
सिरपुर गांव के सर्वे नं. 244/1/क/मिन-2, 244/1/ज, 244/1/झ व अन्य खसरों की दो एकड़ से ज्यादा जमीन पर अग्रवाल पापड़ प्रा.लि. द्वारा पांच-पांच कारखाने संचालित किए जा रहे हैं। जमीन अग्रवाल पापड़ तर्फे नारायण पिता हुुकुमचंद अग्रवाल के नाम पर है। इनमें 420 पापड़, 420 इंजीनियरिंग, केपीआर पापड़-नमकीन, 420 इंस्टंट मिक्स और क्रांति-देशी अंदाज पापड़ के कारखाने शामिल है। वहीं मास्टर प्लान 2021 में सिरपुर गांव की यह जमीन आरक्षित ग्रीन बेल्ट का हिस्सा है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग और मप्र भूमि विकास अधिनियम के तहत ग्रीन बेल्ट के लिए आरक्षित जमीन का औद्योगिक उपयोग नहीं हो सकता है।
दिन दुना, रात चौगुना बड़ा कारोबार
अग्रवाल पापड़ की नींव 1962 में हुकुमचंद अग्रवाल ने सिमित संसाधनों के साथ रखी थी। फिल्म अभिनेता राजकपूर के फेन रहे अग्रवाल परिवार ने 6 सितंबर 1955 को प्रदर्शित हुई कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ के नाम पर पापड़ का नामकरण कर दिया।  2 जून 1997 को एमसीए में कंपनी ने आरओसी रजिस्टर्ड करवाई और लिस्टेड लिमिटेड कंपनियों की सूची में आई।
420 पापड़ का कारखाना सबसे पहले 374 हुकुमचंद कॉलोनी की 12000 वर्गफीट पर बना। यहीं 5000 वर्गफीट जमीन पर कंपनी के डायरेक्टर व अग्रवाल परिवार के सदस्य रहते भी हैं। इसी को एक्सटेंड करके 420 इंजीनियरिंग शुरू की। इसका पता 244ए-245 हुकुमचंद कॉलोनी है। इस पते पर अग्रवाल मसाले एलएलपी भी रजिस्टर्ड है।
2007-08 में 5500 वर्गफीट पर केपीआर और 2008-09 में 9500 वर्गफीट से अधिक जमीन पर केपीआर-1 के नाम से नमकीन और पापड़ की मेन्युफेक्चरिंग यूनिट खड़ी की। 2011-12 में लक्ष्मणदास महाराज के आश्रम के पास 18000 वर्गफीट से ज्यादा जमीन पर इंस्टेंट मिक्स की यूनिट खड़ी की।
(यह सभी जमीन ग्रीन बेल्ट के रूप में ही आरक्षित है)
एक बना था, इसीलिए बाकी भी बनते गए
हुकुमचंद कॉलोनी अवैध है। यहां पहले 420 पापड़ का कारखाना था। लोगों की आपत्ति को प्रशासन ने नजरअंदाज किया तो यहां राजेश फुड्स  ने राजेश के नमकीन बनाना शुरू कर दिया तो दूसरी तरफ अग्रवाल टेंट हाउस वालों की कंपनी अग्रवाल एक्वा प्रोडक्ट ने एक्वाकेअर के नाम से पानी का ही कारखाना खोल दिया।  इसके बाद 420 वाले अग्रवाल परिवार ने अपना रंग दिखाते हुए एक के बाद एक चार कारखाने खड़े कर दिए।
अग्रवाल और सिंघल परिवार की जुगलबंदी
सर्वे नं. 244 का बड़ा हिस्सा अग्रवाल पापड़ और उसके डायरेक्टर्स के नाम पर है। इसमें नारायण अग्रवाल, नमद अग्रवाल, नमन मित्तल, अनूप सिंघल और राजेश सिंघल भी शामिल है। यही लोग अग्रवाल मार्केट्स आॅनलाइन सर्विस एलएलपी, अग्रवाल मसाले एलएलपी और केसरतुलसी रीयल बिल्ड प्रा.लि. में भी डायरेक्टर है।
ग्रीन बेल्ड पर अनुमति कैसे दे दें...?
इस संबंध में जब टीएंडसीपी के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि 1 जनवरी 2008 को जारी मास्टर प्लान 2021 के अनुसार जो जमीन ग्रीन बेल्ट का हिस्सा है उस पर कारखानों की अनुमति नहीं दी जा सकती है। युक्तियुक्तकरण से यदी मंजूरी मिली भी है तो अग्रवाल परिवार उसे दिखा दे। वहीं 420 का मैनेजमेंट दावा करता है कि उसके कारखाने वैध है(
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कालानी के साथ पटवारी पर भी हो चुकी है आयकर की कार्रवाई

- पहले बेदाग बताते रहे फिर दस्तावेज देखे तब करीब तीन करोड़ किए सरेंडर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सार्वजनिक मंच पर अपने आप को किसान का बेटा और गरीबों का हमदर्द बताते आए कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के घर पर इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग भी छापेमार कार्रवाई कर चुकी है। मनीष कालानी समूह और पटवारी बंधुओं की पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. के खिलाफ एकसाथ हुई इस कार्रवाई में पटवारी बंधुओं ने करीब तीन करोड़ रुपए की काली कमाई सरेंडर की थी।
मनीष कालानी समूह की चार कंपनियों फ्लैक्सीटफ इंटरनेशनल लिमिटेड, इंटरनेशनल वर्ल्ड डेवलपर्स प्रा.लि., टेÑजर वर्ल्ड डेवलपर्स प्रा.लि.  और कालानी इंडस्ट्री प्रा.लि. पर इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने 16 अपै्रल 2009 को छापेमार कार्रवाई की थी। ज्वाइंट डायरेक्टर हरेश्वर शर्मा के नेतृत्व में डिप्टी डायरेक्टर के.सी.सिल्वामनी द्वारा की गई इस कार्रवाई में कालानी के ठिकानों से पटवारी  रीयल एस्टेट प्रा.लि. से जुड़े दस्तावेज मिले थे जिनके आधार पर कंपनी पर भी कार्रवाई हुई थी।
जीतू ने ही दिए थे बयान
इनकम टैक्स से जुड़े सूत्रों की मानें तो जिस वक्त पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. पर कार्रवाई हुई थी उस वक्त भारत पटवारी और कुलभुषण पटवारी ह्यनानाह्ण के साथ जितेंद्र पटवारी भी कंपनी के डायरेक्टर थे। इसीलिए इनकम टैक्स द्वारा दिए गए समन का जवाब देने स्वयं जीतू ही पहुंचे थे।
मैं तो समाजसेवक हूं...
अधिकारियों की मानें तो समन पर आए जीतू से जब सवाल-जवाब किए गए तो उसने कहा कि मैं किसान हूं, राजनीति से जुड़ा हूं और समाजसेवा करता हूं। मैंने कभी कोई चोरी नहीं की। इस पर जब उन्हें मनीष कालानी के घर से बरामद हुए दस्तावेज दिखाए गए और लेन-देन की जानकारी दी गई तब उन्होंने स्वीकारा कि उन्होंने कालानी के साथ काम किया है।
करीब तीन करोड़ किए सरेंडर
जब कालानी और पटवारी की जुगलबंदी को अधिकारियों ने दस्तावेजों पर प्रमाणित कर दिया तब पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. ने करीब तीन करोड़ रुपए की अघोषित आय स्वीकारी। बताया जा रहा है कि अघोषित आय ज्यादा थी लेकिन बाद में समूह ने महाराष्ट्र में संचालित अपने विंड प्रोजेक्ट का हवाला दिया। इस आधार पर समूह को राहत भी मिली।
कालानी के साथ क्या थी पटवारी की भूमिका
मनीष कालानी और पटवारी रीयल एस्टेट की जुगलबंदी ट्रेजर आईलैंड के निर्माण के साथ 2003 में शुरू हुई। 11 तुकोगंज स्थित करीब 1 लाख वर्गफीट के इस प्लॉट पर करीब 18 मीटर गहराई की खुदाई का ठेका कांग्रेस विधायक की पटवारी रीयल एस्टेट प्रा.लि. को मिला था। जिस वक्त काम शुरू हुआ था उस वक्त मप्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री थे। मॉल में सिंह की भूमिका शुरू से ही सवालों के घेरे में रही है।
मनीष कालानी ने बिजलपुर और रंगवासा में पटवारी के माध्यम से ही किसानों से जमीन खरीदी थी। पहले किसानों से पटवारी ने एग्रीमेंट किए और बाद में जमीन कालानी को दे दी। इससे पटवारी बंधुओं को मोटा मुनाफा भी हुआ।
कालानी की कंपनियों में शेयरहोल्डर भी है पटवार
बैंकों के कर्जे से अपनी कामयाबी की कहानी लिखने वाले कालानी एक दशक में दिवालिया हो चुके हैं। दिवालियापन कुछ वास्तविक है तो कुछ दिखावटी। कोलकाता और पीथमपुर बेस कई कंपनियां बनाई गई और उनके नाम से जमीनें खरीदी गई है। इन कंपनियों में जीतू पटवारी की कंपनी भी शेयर होल्डर है।

नर्मदा के भरौसे ‘शिव’ की सरकार

मालवा के बाद निमाड़ पर फोकस, 1570 करोड़ की पांच परियोजनाएं मंजूर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नर्मदा-शिप्रा सिंहस्थ लिंक से मिली सफलता और वैश्विक श्रेय मिलने के बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने नर्मदा के रास्ते निमाड़ का गढ़ जीतने की तैयारी कर ली है। इसके लिए शनिवार को मुख्यमंत्री ने इस कड़ी में 1570 करोड़ से ज्यादा की अलग-अलग सिंचाई परियोजनों को मंजूरी दी। इन योजनाओं से खंडवा और खरगोन की करीब 2.37 लाख हेक्टेयर जमीन की प्यास बुझेगी। इन सभी परियोजनों को पूरा करने की समयसीमा 24 से 30 महीने रखी गई है। यानी 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले-पहले काम जमीन पर दिखने लगेगा।
नर्मदा नियंत्रण मंडल (एनसीबी) की 55वीं बैठक शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के अध्यक्षता में संपन्न हुई थी। बैठक का पूरा जोर नर्मदा जल के ज्यादा से ज्यादा दोहन और सूखे निमाड़ को तर करने पर था। इस कड़ी में पांच योजनाओं पर चर्चा हुई। छेगांव माखन, बिस्टान, चोंडी जमुनिया, जावर, बलकवारा लिफ्ट एरिकेशन को मंजूरी मिली। पांचों योजनाओं की लागत 1570.63  करोड़ है। इनका फायदा खंडवा के जिले के खंडवा, पंधाना और खरगोन जिले के खरगोन, भिकनगांव, गोगांवा, भगवानपुरा, तहसील के 253 गांव के तकरीबन तीन लाख किसानों को मिलेगा।
मालवा पर भी मेहरबान
2014 में नर्मदा-शिप्रा सिंहस्थ लिंक पर काम पूरा करने के बाद मुख्यमंत्री ने नर्मदा-गंभीर मालवा पर काम शुरू करवा दिया। इतना ही नहीं नर्मदा-कालीसिंध और नर्मदा-पार्वती का सर्वे भी शुरू करवा दिया। इन चारों योजनाओं से इंदौर, देवास, शाजापुर, उज्जैन, सीहोर, राजगढ़ तक के जिलों की जमीन को पानी मिलना है।
बीते सितंबर ही मुख्यमंत्री ने इंदौर के लिए 60 करोड़ की सिमरोल-अंबाचंदन माइक्रो सिंचाई योजना और 130 करोड़ की उज्जैनी-उज्जैन पाइप लाइन योजना मंजूर की। इन योजनाओं से इंदौर-उज्जैन-देवास को सिंचाई के साथ ही पीने का पानी भी मिलेगा। इसके साथ ही पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के लिए भी 350 करोड़ की योजना मंजूर की जा चुकी है।
14 बड़ी योजनाओं को मिलेगी जमीन
बैठक में अलग-अलग योजनाओं पर भी चर्चा हुई। इनमें सिंध प्रोजेक्ट-फेज दो, इंदिरा सागर प्रोजेक्ट फेज एक और दो, माही प्रोजेक्ट, बरियारपुर प्रोजेक्ट, महन प्रोजेक्ट, पेंज प्रोजेक्ट, सागर प्रोजेक्ट, सिंहपुर प्रोजेक्ट, संजय सागर प्रोजेक्ट, महुअर प्रोजेक्ट, इंदिरा सागर प्रोजेक्ट कैनाल फेज-चार और पांच, ओकारेश्वर प्रोजेक्ट, बरगी प्रोजेक्ट तीन और चार। बता दें कि इस प्रोजेक्टों में मध्य प्रदेश के जिन जिलों को लाभ मिलेगा,उनमें शिवपुरी, ग्वालियर, बड़बानी, खरगोन, भिंड, दतिया, जबलपुर, सतना, रीवा, धार, झाबुआ, छतरपुर, छिंदबाडा, विदिशा और सीधी आदि जिले शामिल है।
इन योजनाओं के टेंडर मंजूर किए..
छ:गांव माखन लिफ्ट एरिकेशन
सिंचित क्षेत्र- 86485 एकड़
लागत-- 536.99 करोड़
काम करेगी - लार्सन एंड टर्बो (एलएंडटी)
लाभान्वित  गांव - पंधाना(खंडवा) के 58 गांव
समयसीमा- 3 साल
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बिस्टान लिफ्ट एरीकेशन योजना
लागत- 374.64 करोड़
सिंचित क्षेत्र- 54362 एकड़
काम करेगी- हिन्दुस्तान कन्सट्रक्सन कम्पनी और लक्ष्मी सिविल इंजीनियरिंग (ज्वाइंट वेंचर)
समयसीमा- 30 माह
लाभांवित गांव- 92( भगवानपुरा के 37, गोगांवा के  47 और खरगोन के 8)
मिली प्रशासकीय स्वीकृति
चोंडी जमुनिया लिफ्ट एरिकेशन
लागत- 68.36 करोड़
सिंचित क्षेत्र- 9884 एकड़
लाभांवित गांव- 10( भिकनगांव के 8, कसरावद के 2)
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बलकवाड़ा लिफ्ट एरिकेशन
लागत- 123.69 करोड़
सिंचित जमीन - 22239 एकड़
लाभान्वित गांव- कसरावद के 40
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जावर लिफ्ट एरिकेशन
लागत : 466.91 करोड़
सिंचित जमीन : 64246 एकड़
लाभान्वित गांव : खंडवा तहसील के 5

नहीं मनी बात, अब बिगड़ेगी रात

समझाइश के बावजूद आईडीएस से किनारा करने वालों के खिलाफ आयकर ने कसी कमर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इनकम डिसक्लोज स्कीम (आईडीएस) को मिली सफलता के बाद इनकम टैक्स ने उन कुबेरों की सूची तैयार की है जिन्होंने समझाइश के बावजूद स्कीम के तहत सरेंडर नहीं किया। बताया जा रहा है कि सूची बनाकर ऐसे चार हजार लोगों की कुंडली जांचना शुरू कर दी गई है। नवंबर से लेकर जनवरी के बीच इन पर गाज गिरना तय है।
  टाइम बम के फोटो के साथ इनकम टैक्स ने आईडीएस का प्रचार किया। कुछ लोग डरे, कुछ को डराया व समझाया अंतत: सरेंडर करवाया। ताकि स्कीम इंदौर मुख्य आयकर आयुक्तालय में फेल न हो। इस कड़ी में तकरीबन हर औद्योगिक और व्यापारिक संगठन से संपर्क किया गया था। 30 सितंबर को योजना सफलता के साथ संपन्न हुई। अक्टूबर का महीना सफलता के सेलीब्रेशन और दिपोत्सव के बीच गुजर गया। इस दौरान मुख्य आयकर आयुक्त वी.के.माथुर ने चीफ कमिश्नर बनकर गए प्रिंसिपल कमिश्नर गिरीश चांदोरकर का अतिरिक्त प्रभार उज्जैन रेंज के प्रिंसिपल कमिश्नर बी.एस.गेहलोत को देते हुए उन असेसियों से सख्ती से निपटने को कह दिया है जिन्होंने योजना में सहयोग नहीं किया।
मोदी दे चुके हैं सर्जिकल स्ट्राइक की चेतावनी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  आय घोषणा योजना (आईडीएस) के तहत 30 सितंबर की समय सीमा के भीतर काले धन की घोषणा करने में नाकाम रहने वाले लोगों के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ संकेत दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि  आईडीएस के तहत 65,000 करोड़ रुपये से अधिक की बेहिसाब संपत्ति की घोषणा हुई है, वह भी बिना किसी सर्जिकल स्ट्राइक के। सोचिए, अगर हम सर्जिकल स्ट्राइक करें, तो क्या होगा।
एक तरफ सर्टिफिकेट, दूसरी तरफ नोटिस
इनकम टैक्स में इन दिनों ताबड़तोड़ काम हो रहा है। एक तरफ आईडीएस के तहत सरेंडर करने वाले करदाताओं को सर्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ योजना से परहेज करने वाले असेसियों के पेनकार्ड, बैंक अकाउंट, लेन-देन और प्रॉपर्टी से संबंधित दस्तावेज खंगाले जा रहे हैं।
गड़बड़ तय करेगी प्राथमिकता
इनकम टैक्स तकरीब 4000 असेसियों की समीक्षा कर रहा है। पेन, रिटर्न और बैंक अकाउंट के साथ प्रॉपर्टी की समीक्षा के बाद सामने आएगा कि किस व्यक्ति ने कितना धन छिपा रखा है। उसी आधार पर उनके खिलाफ कार्रवाई की प्राथमिकता तय होगी। फिर भी माना जा रहा है कि नवंबर से जनवरी के बीच नोटिस और सर्वे की कार्रवाई होगी।
दिवाली की खरीद भी रहेगी आधार
बताया जा रहा है कि असेसियों द्वारा की गई दिवाली की खरीदी भी इनकम टैक्स की समीक्षा और कार्रवाई का आधार बन सकती है। इसके लिए सभी बैंकों से बड़े लेन-देन की जानकारी मांगी गई है। ज्वैलर्स, इलेक्ट्रॉनिक शोरूम, फर्नीचर और प्रॉपर्टी ब्रोकर्स व पंजीयक से जानकारी मांगी है।

डॉ. घई के मैनेजमेंट में उलझी सरकार


कार्रवाई करना तो दूर, शिकायतें तक दबा दी, बेखौफ चल रहा है अवैध निर्भयसिंह हॉस्पिटल
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
दादा निर्भयसिंह पटेल के नाम से मेमोरियल हॉस्पिटल चला रहे डॉ. अनिल एस.घई का मैनेजमेंट तगड़ा है जिसके चलते उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती। इस काम में उनकी भाजपा विधायक के साथ ही अन्य सिंधी राजनीति से जुड़े अन्य नेता भी मदद करते हैं। हालात  यह है कि क्षेत्र की आधी आवाम की नाराजगी और परेशानियों को नजरअंदाज करके अस्पताल को पोषित किया जा रहा है।
हॉस्पिटल जिस जमीन पर बना है वह सीलिंग की है। मतलब सरकारी। बावजूद इसके यहां बड़ा भारी हॉस्पिटल तन गया। हॉस्पिटल बिलावली जोन से के सामने भोलाराम उस्ताद मार्ग पर तकरीबन 250 मीटर दूर ही है। बावजूद इसके अवैध निर्माण पर नगर निगम ने कार्रवाई नहीं की। रिमुवल तो दूर, नोटिस तक नहीं दिया गया। वह भी उस स्थिति में जब अस्पताल की खुदाई के दौरान नीचे बिलावली तालाब-बिलावली फिल्टर प्लांट मेनलाइन निकल चुकी है।
अधिकारियों ने देखा, अनदेखा कर दिया
अस्पताल 2012 से 2014 के बीच बना है। अस्पताल एलशेप में बना है। भोलाराम उस्ताद मार्ग से शुरू होकर शिवमपुरी कॉलोनी की ओर। शिवमपुरी कॉलोनी की ओर वाला जो हिस्सा बना है उसकी खुदाई के दौरान बिलावली लाइन निकली थी। लोगों ने इसकी सूचना बिलावली के भवन अधिकारी अशोक शर्मा को दी। शर्मा मौके पर पहुंचे। लाइन देखी भी लेकिन किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। बाद में इन्हीं भवन अधिकारी के देखते देखते ही अस्पताल तन गया।
हमेशा कचरे के डिब्बे में डाल देते हैं शिकायत
डॉ. घई और उनके अस्पताल से क्षेत्र के आधे लोग खफा है। बिलावली जोन से लेकर नगर निगम मुख्यालय, भंवरकुआं थाने से लेकर आईजी आॅफिस तक और एसडीएम से लेकर कलेक्टर तक से मामले की शिकायत की जा चुकी है। शिकायतों में ईलाज की मनमानी से लेकर निर्माण की मनमानी तक सब शामिल है। अस्पताल की अवैध पार्किंग लोगों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। बावजूद इसके किसी एक महकमे ने कार्रवाई नहीं की।
विधायक की माया, डॉ.घई पर छाया
देपालपुर विधायक मनोज पटेल इसी क्षेत्र में रहते हैं। सरकार में उनकी पकड़ भी अच्छी है। इसीलिए उनके और उनके दिवंगत पिता के नाम की आड़ लेकर अस्पताल नियम-कायदों को तांक पर रखकर चलता आ रहा है। विसम परिस्थिति में विधायक पटेल डॉ.घई के साथ खड़े भी नजर आए। 

ऐसा ईलाज की, मर्ज रह गया, मरीज चला गया

पाकिस्तानी डॉ. अनिल घई और उनके निर्भयसिंह हॉस्पिटल की कहानी
भाजपा विधायक व नेताओं से नजदीकी के कारण नहीं होती कार्रवाई
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भाजपा के दिवंगत नेता दादा निर्भयसिंह पटेल के नाम पर मेमोरियल हॉस्पिटल संचालित कर रहे डॉ. अनिल एस.घई मुलत: पाकिस्तानी डॉक्टर है। क्लीनिक से कामकाज शुरू करके 30 बेड से ज्यादा का हॉस्पिटल खड़ा करने वाले डॉ.घई की पाकिस्तानी डिग्री शुरू से विवादों में है। ईलाज के दौरान एक के बाद हुई मरीजों की मौतें डॉक्टर और उनकी टीम की काबिलियत पर सवाल भी खड़े करती है।
विधायक मनोज पटेल से दोस्ती के चलते डॉ. घई ने उनके पिता दादा निर्भयसिंह पटेल के नाम पर अपने अस्पताल का नामकरण कर दिया। दादा के नाम और पटेल की दोस्ती न सिर्फ अवैध अस्पताल के साथ डॉ. घई को भी नगर निगम, पुलिस, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की सख्ती से बचा रही है। इसी का नतीजा है कि अस्पताल में ईलाज की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है जिसका खामियाजा उन मरीजों को जान देकर चुकाना पड़ रहा है जो ईलाज की आस में अस्पताल तक पहुंचे थे।
अपेंडिक्स थी, बुखार का ईलाज करता रहा
1 फरवरी 2015 को अस्पताल में प्रदीप बागड़ी ने अपने 68 वर्षीय पिता कन्हैयालाल बागड़ी को भर्ती कराया था। तबियत नासाज थी। बागड़ी दो दिन भर्ती रहे। इन दो दिनों में डॉ. घई यह नहीं पकड़ पाए कि मरीज को अपेंडिक्स है। वे बिना सोचे समझे ही बुखार का ईलाज करते रहे। अचानक से तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ी और बागड़ी को पास के दूसरे अस्पताल ले गए। वहां डॉक्टरों ने बताया कि दो दिन तक डॉ.घई ने जो दवाई दी है वह तेज पॉवर की थी जिससे बागड़ी का अपेंडिक्स बस्ट हो गया। पूरे शरीर में जहर फेल गया। ईलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई।
पहले भर्ती किया, दूसरे दिन कह दिया हमारे बस में नहीं
स्कीम-71 निवासी चौहान परिवार ने 83 वर्षीय सेवंतीबाई को अस्पताल में भर्ती कराया। उस वक्त उनका शुगर लेवल 560 था। बावजूद इसके डॉ. घई और उनकी टीम ने उन्हें भर्ती किया लेकिन सही तरीके से ईलाज नहीं कर पाए। दूसरे दिन परिजन को कहा कि आप दूसरे अस्पताल में ले जाओ, हमारे पास आईसीयू तो है लेकिन वैसी मशीनें नहीं है जैसी कि दूसरे अस्पताल में रहती हैं। दूसरे अस्पताल में रेफर किया जाता तब तक सेंवतीबाई की किडनी डेमेज हो चुकी थी। ईलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। परिजन का कहना है कि आईसीयू की क्षमता और मरीज की स्थिति दोनों डॉक्टर को पहले से पता थी फिर भर्ती क्यों किया।
ईलाज के नाम पर मिली मौत
21 अक्टूबर को ईलाज के दौरान अस्पताल में सेंधवा निवासी गेंदालाल  पिता राजाराम की मृत्यु हो गई। डॉ. हरीश मंगलानी ईलाज कर रहे थे लेकिन ईलाज ठीक से कर नहीं पाए। परिजन ने विरोध किया। तोड़फोड़ की। परिजनों की मानें तो डॉक्टरों ने आधी रात को ही मरीज के हाथ-पैर बांध दिए थे। फिर भी उन्हें वेंटीलेटर पर रखा। सुबह 9.30 बजे मौत की जानकारी दी।
उनके पास होगी डिग्री
पाकिस्तानी डॉक्टरों को एमसीआई की गाइडलाइन के अनुसार हिंदुस्तान आकर एक बार फिर परीक्षा देना होती है ताकि समझ आ सके कि वास्तव में वहां एमबीबीएस या अन्य मेडिकल डिग्री हासिल की है। वर्षों से पाकिस्तानी सिंधियों और पाकिस्तानी डॉक्टरों के लिए लड़ाई लड़ते आए भाजपा नेता शंकर लालवानी का कहना है कि परीक्षा देना जरूरी है। डॉ. घई ने परीक्षा दी या नहीं दी? इस संबंध में स्पष्ट जानकारी मुझे नहीं है।

दादा निर्भयसिंह के नाम पर चल रहा है अवैध हॉस्पिटल

डॉ. घई ने दिया सरकारी नजर से बचने के लिए दिवंगत नेता का नाम
इंदौर. विनोद शर्मा ।
बेदाग राजनीति से इंदौर में अपनी छाप छोड़ गए स्व. निर्भयसिंह पटेल के नाम से शिवमपुरी में डॉ. अनिल घई का जो मेमोरियल हॉस्पिटल चल रहा है उसका दादा या दादा के परिवार से लेना-देना नहीं है। शहरी सीलिंग की जमीन पर मनमाने तरीके से फल-फुल रहे इस अस्पताल को सरकारी नजर से बचाए रखने के लिए दादा का नाम दिया गया।  नक्शे और पार्किंग के बिना बने इस अस्पताल की ईलाज क्वालिटी अब तक आधा दर्जन से ज्यादा लोगों की जान ले चुकी है। बीते सप्ताह भी हादसा हो चुका है।
भंवरकुआं क्षेत्र स्थित भोलाराम उस्ताद मार्ग पर दादा निर्भय सिंह मेमोरियल हॉस्पिटल चल रहा है। अस्पताल पीपल्याराव गांव की सर्वे नं. 166/1/1 और 166/2 की 0.664 हेक्टेयर जमीन के बड़े हिस्से पर बना है। राजस्व रिकॉर्ड में जमीन शहरी सीलिंग की दर्ज है। बिना किसी नक्शे के जी+2 हॉस्पिटल चल रहा है। 30 बेडेड इस हॉस्पिटल में पार्किंग तक नहीं है। मरीज और उनके परिजनों की गाड़ियां रोड पर खड़ी होती है जिससे भोलाराम उस्ताद मार्ग का यातायात भी प्रभावित होता है। आसपास के लोगों को तकलीफ होती है सो अलग।
ताकि पकड़ में न आए पता
अस्पताल की मनमानी पर सरकारी सख्ती न हो और न ही किसी तरह की शिकायतबाजी हो इसके लिए डॉ. घई ने अपने अस्पताल का पता  अलग-अलग लिखवा रखा है। कहीं 10 भोलाराम उस्ताद मार्ग लिखा है तो कहीं 1 शिवमपुरी लिखा है। कहीं 11 पीपल्याराव तो कहीं 11 शिवमपुरी लिखा है। असल पता 11 पीपल्याराव है।
1 शिवमपुरी पर गुरूनानक अपार्टमेंट बना है जिसके 16 खाते नगर निगम में दर्ज है। इसके अलावा सुनील गलानी, जगदीश मंघानी और प्रीकेश चंद की दुकानों का संपत्ति कर खाता है।
11 शिवमपुरी के पते पर मिरास विला बना है। 4 संपत्तिकर खाते हैं। इसमें से एक डॉ. अनिल एस घई पिता श्रीचंद घई का है जो कि जी-1 मिरास विला का है। 1440 वर्गफीट एरिया है जो आवासीय दर्ज है।
नगर निगम की पेयजल लाइन है नीचे..
जिस जमीन पर अस्पताल तना हुआ है उसके ठीक नीचे से नगर निगम की मेन लाइन गुजरती है। सात दशक पुरानी यह लाइन बिलावली तालाब से बिलावली जोन फिल्टर प्लांट के बीच डली है। अस्पताल के निर्माण के दौरान जब नींव खोदी गई थी तब पाइप उजागर हो गए थे जिन्हें तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया ताकि शिकायत न हो, न ही काम रूके।
लगातार फैल रहा है अस्पताल
अस्पताल हर साल बढ़ रहा है। कुछ समय पहले एक क्लीनिक से कामकाज करने वाले डॉ. घई आज 30 बेड का हॉस्पिटल चला रहे हैं जो कि अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बताया जाता है। अस्पताल एक-दो नहीं बल्कि तीन प्लॉटों को जोड़कर बना है। पीछे एक बिल्डिंग नई है जो कि अलग से बनी हुई लोगों को नजर आती है, निगम को नहीं दिखती।
लगातार बिगड़ रहे हैं केस
अस्पताल में ईलाज की क्वालिटी हमेशा से नकारात्मक चर्चा का केंद्र रही है। 21 अक्टूबर को भी ईलाज के दौरान एक वृद्ध मरीज की मौत हो गई थी। नाराज परिजनों ने तोड़फोड़ की। पुलिस ने मर्ग तो कायम किया लेकिन इन्वेस्टर्स समिट की आड़ में मामला दब गया। इससे पहले भी भंवरकुआं पुलिस तक ऐसे मामले पहुंचे हैं लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसकी वजह डॉ. घई की चंदा बांटने की आदत बताई जाती है।
बेड में भी गड़बड़
कुल बेड 30 (जो रिकॉर्ड में बताया जाता है)
आईसीयू- 10 बेड का
प्राइवेट - 12
सेमी प्राइवेट- 2-2 बेड के छह
जनरल वार्ड- 6-6
(जो अस्पताल से जानकारी दी गई)

टुकड़ों में बेच दी प्रिंसेस एस्टेट की बड़ी जमीन

मुनाफे के लालच में अब डागरिया की डी कंपनी खरीद रही है प्लॉट
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
प्रिसेंस एस्टेट में हुई मनमानी के नाम पर जिस फेनी गृह निर्माण सहकारी संस्था के कर्ताधर्ताओं के खिलाफ पुलिस ने अपराध दर्ज किया था असल में उसके नाम बमुश्किल दो एकड़ जमीन बची है। बाकी जमीन अलग-अलग लोगों के नाम चढ़ी है। इसमें एसडीए डेनमार्क सिटी का भी कुछ हिस्सा है। वहीं जमीन का बड़ा हिस्सा वी.टेक मॉर्कोन प्रा.लि. के नाम पर भी है। कंपनी के डायरेक्टर अतूल सुराना हैं जो कि दर्जनभर कंपनियों में अरूण डागरिया के भागीदार हैं।
महेंद्र जैन की हाउसिंग सोसायटी ने अरूण डागरिया की कंपनी के साथ 1997-98 में प्रिसेस एस्टेट कॉलोनी काटी थी। उस वक्त कॉलोनी 80 एकड़ से ज्यादा जमीन पर है। 1998 में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से ले-आउट मंजूर कराए बिना ही प्रिसेंस एस्टेट में प्लॉटों की रजिस्ट्री कर दी थी। अक्टूबर 2016 में लैंड रिकॉर्ड में इसी फेनी संस्था के नाम पर सिर्फ लसूड़िया के सर्वे नं. 324/2 की 0.810 हेक्टेयर जमीन ही बची है। बाकी जमीनों का सौदा किया जा चुका है। डागरिया और उनकी पत्नी के नाम पर भी बमुश्किल एक एकड़ जमीन है। इस संस्था के अध्यक्ष महेंद्र जैन हैं और वे ही फैनी कंस्ट्रक्शन कंपनी प्रा.लि.  के भी डायरेक्टर हैं। कंपनी का पता 104-105 सनराइज टॉवर दर्ज है।
 वी.टेक मॉर्कोन के नाम कर दी आधी कॉलोनी
लसूड़िया की सर्वे नं. 257/4/1/मिन-2, 258/1/मिन-2, 259/1/मिन-2 259/2/1, 259/3, 259/4, 260/1, 260/2, 260/3, 260/4, 262/1, 263/5/मिन-2, 264/3/1/मिन-2, 264/4/1/मिन-2, 268/1/मिन-2, 326/2/मिन-2 और 330/मिन-1 की छह एकड़ जमीन  वी.टेक मॉर्कोन के नाम पर है। सारी  जमीन 2009 से 2011 के बीच खरीदी गई। बताया जा रहा है कि इसमें वह जमीन भी शामिल है जहां प्रिसेंस एस्टेट कटी हुई है। कॉलोनी की सड़क यहां साफ नजर आती है। सूराना डागरिया का जैबी पार्टनर है लेकिन इस कंपनी में उनके साथ तपन सागरमल जैन, पुष्पेंद्र सिंह ठाकुर डायरेक्टर है।
अब प्लॉट करवा रहे हैं सरेंडर
चूंकि एमआर-11 पर यातायात बढ़ा है और आसपास एसएस इन्फिनिटी, रास टाउन, डेनमार्क सिटी जैसी कॉलोनियां-टाउनशीप कट चुकी है, लिहाजा प्रिसेंस एस्टेट की बेजार जमीन के भाव भी आसमान छूने लगे हैं। ऐसे में वर्षों पहले ओने-पोने दाम पर बेचे गए प्लॉट अब डागरिया-जैन की जोड़ी को महंगे पड़ने लगे हैं। विकास का न करने का मुद्दा उन्हें हवालात तक पहुंचा चुका है। इसीलिए उन्होंने नई रणनीति के तहत विकास पर पैसा लगाने के बजाय अब जमीन को प्लॉट होल्डरों से फ्री कराने पर ज्यादा जोर देना शुरू कर दिया है।
दर्जनभर से जयादा नामों पर बटी जमीन
प्रिसेस एस्टेट की जमीन कई डागरिया और जैन की जोड़ी ने तितरबितर कर दी है। अतूल सुराना जैसे दर्जनभर से ज्यादा नाम हैं जिन्हें जमीन 2009 से 2011 के बीच नामांतरित की गई। जबकि कॉलोनी की इस जमीन पर 1000 से ज्यादा प्लॉट काटे जा चुके हैं।
डेनमार्क सिटी-2 में भी है प्रिसेस का हिस्सा
सूत्रों की मानें तो शंभूदयाल अग्रवाल एसडीएम डेनमार्क सिटी के नाम से लसूड़िया में जो टाउनशीप बना रहे हैं उसका कुछ हिस्सा भी प्रिसेस एस्टेट की जमीन पर है। एमआर-11 स्थित कॉलोनी के मुख्य द्वार पर न सिर्फ कॉलोनी का विशालकाय होर्डिंग लगा है बल्कि प्रिसेस की सड़क का इस्तेमाल भी यहां पहुंचने के लिए किया जा रहा है। अग्रवाल ने दो सड़कें भी बनाई है जो कि प्रिसेंस के साथ बनी थी।