Friday, September 16, 2016

स्पायकॉम पर सर्विस टैक्स का छापा

                       
[12:18 AM, 8/30/2016] Bosssssss: good                        
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फायर फाइटिंग सिस्टम लगाने वाली कंपनी में करीब एक करोड़ की टैक्स चोरी का अनुमान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
फायर फाइटिंग सिस्टम स्थापित करने वाली स्पायकॉम इंडिया प्रा.लि. के खिलाफ कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स विभाग की टीम ने सोमवार दोपहर छापेमार कार्रवाई की। कार्रवाई के दौरान एक करोड़ से ज्यादा की कर चोरी उजागर होने का अनुमान लगाया जा रहा है। कंपनी के क्लाइंट्स की सूची में ट्रेजर समूह का भी नाम है जहां बीते सप्ताह विभाग ने छापेमार कार्रवाई करके करीब दो करोड़ की कर चोरी उजागर की थी। इसीलिए इस कार्रवाई को ट्रेजर समूह पर हुई कार्रवाई से जोड़कर देखा जा रहा है।
  दर्जनभर अधिकारियों के दस्ता सोमवार दोपहर एबी रोड स्थित आॅर्बिटमॉल के सामने 402 प्रिंसेस बिजनेस स्काईपार्क पहुंचा। स्पायकॉम ने कुछ समय पहले ही यहां आॅफिस शिफ्ट किया है। इससे पहले आॅफिस 406 हाईड पार्क मीरापथ पर था। अपै्रल 2008 में पंजीबद्ध हुई डी.के.शर्मा और विक्रांत शर्मा की यह कंपनी ट्रेजर, टेवा, आइशर, नेशले, केडबरी, क्राम्पटन,, महिंद्रा टूव्हीलर, वॉलवो-आइशर जैसी दो दर्जन से अधिक कंपनियों के 50 प्रोजेक्ट पर 120.48 करोड़ से अधिक का फायर फाइटिंग सिस्टम लगा चुकी है। चूंकि कंपनी सर्विस प्रोवाइडर है इसीलिए उसे सर्विस टैक्स चुकाना था जो कि नहीं चुकाया गया।
एक करोड़ से अधिक की कर चोरी
अधिकारियों ने बताया कि कार्रवाई के दौरान कई अहम दस्तावेजी प्रमाण मिले हैं जो कि प्रथम दृष्टया एक करोड़ से ऊपर की कर चोरी  की पुष्टि करते हैं। हालांकि सही आंकड़ा इन दस्तावेजों की जांच और कंपनी द्वारा जमा किए गए सर्विस टैक्स का आंकलन करने के बाद ही उजागर होगा।
पाइपकॉन प्रोडक्ट बनाए, स्पायकॉम फिटिंग करे
समूह की एक कंपनी और है पाइपकॉन सेफ्टी इंजीनियरिंग प्रा.लि. जिसका पता तुलसियाना रेसीडेंसी ब्लॉक सी 507 दर्ज है। कंपनी जून 2014 से रबर और प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाती है जिनका इस्तेमाल स्पायकॉम फायर फाइटिंग सिस्टम की फिटिंग में करती है। अब इसका आॅफिस भी प्रिंसेस बिजनेस स्काईपार्क में है।
ट्रेजर समूह ने नहीं जमा किए करीब दो करोड़
बीते बुधवार को ट्रेजर समूह पर सर्विस टैक्स विभाग की टीम ने छापेमार कार्रवाई की थी। कार्रवाई करीब-करीब संपन्न हो चुकी है। इसमें करीब दो करोड़ का ऐसा सर्विस टैक्स सामने आया जो कंपनी ने चुकाया नहीं था। हालांकि समूह का कहना था कि जिन लोगों को लीज पर प्रॉपर्टी दी हुई है उनसे ही बड़ी मात्रा में पैसा नहीं मिल पाया था इसीलिए जमा नहीं कर पाए।
जहां ट्रेजर, स्पायकॉम के फायर सिस्टम
प्रोजेक्ट लागत
टीआई मॉल बिलासपुर 2100 लाख
टीआई मॉल उदयपुर 644 लाख
टीआई मॉल उदयपुर 349 लाख
सूर्या टीआई मॉल भिलाई 317 लाख
टीआई मॉल जबलपुर 310 लाख
ट्रेजर बाजार, उज्जैन 178 लाख
डेस्टिनेशन मॉल, इंदौर 680 लाख
नमन मॉल, इंदौर 134 लाख
कंपनी के उत्पाद
यूटिलिटी पाइपलाइन, प्लम्बिंग सेनिटेशन, गैस बेस्ड आॅटोमेटिक  सिस्टम, पेसिव फायर प्रोटेक्शन सिस्टम, फोम बेस्ड सिस्टम, वॉटर बेस्ड, फायर डिटेक्शन सिस्टम।

प्रदेश टूडे पर कसा आयकर का शिकंजा

हृ्द्येश दीक्षित सहित दो दर्जन लोगों को नोटिस
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एमपी एग्रो और प्रदेश टूडे मीडिया समूह पर हुई सर्च के दौरान सामने आए तथ्यों के संबंध में इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने हृद्येश दीक्षित और उनके भाइयों सहित करीब दो दर्जन लोगों को नोटिस थमाए हैं। इनमें बैंकों से लेकर कंपनी सेकेट्ररी और वे लोग भी शामिल हैं जिनसे दीक्षित बंधुओं ने बीते वर्षों में संपत्ति खरीदी। इसके साथ ही खरीदी गई संपत्तियों का मुल्यांकन भी किया जा रहा है।
पोषण आहार बनाने वाली एमपी एग्रो, एमपी टूडे और प्रदेश टूडे समूह के खिलाफ इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग ने 12 जुलाई को छापेमार कार्रवाई की थी। एमपी एग्रा द्वारा 50 करोड़ और दीक्षित बंधुओं द्वारा 5 करोड़ सरेंडर किए जाने के बाद दस्तावेजों का असेसमेंट जारी है। भोपाल में बैठे विंग के आला अधिकारियों ने बताया कि बीते दिनों प्रदेश टूडे और ग्लोबल समूह से जुड़े दो दर्जन लोगों को नोटिस थमाए गए। इसमें ज्यादातर बैंकें हैं जहां दीक्षित बंधुओं के खाते हैं या फिर जिन बैंकों के क्रेडिट कार्ड इनके द्वारा इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। व्यक्तिगत और फर्म के खातों की संख्या तकरीबन दो दर्जन है। इसके अलावा आधा दर्जन बैंकों के क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल किए जाते रहे हैं।
जवाब देना होगा...
आयकर ने इन्हें कार्रवाई के दौरान सामने आए दीक्षित बंधुओं से संबंधित लेन-देन को लेकर नोटिस दिए हैं। विंग के सामने लिखित या मौखिक बयान या जवाब में इन्हें उन तमाम सवालों का जवाब देना होगा जो आयकर द्वारा दीक्षित के घर-आॅफिस से जब्त दस्तावेजों के आधार पर पूछे जाएंगे।
यूएस गोल्ड सिटी में 22000 वर्गफीट जमीन
जिन्हें नोटिस थमाए गए हैं उनमें सिमरन डेवलपर्स का भी नाम शामिल है। इस कंपनी ने यूएस गोल्ड सिटी में चार अलग-अलग प्लॉट की कुल 22000 वर्गफीट जमीन खरीदी गई थी। जमीन की खरीदी आॅन द रिकॉर्ड कितनी है और आॅफ द रिकॉर्ड कितनी है। इसके विंग के पास दस्तावेज है।
कारिंदों को बनाया डायरेक्टर
दस्तावेजों में अशोक चौधरी का नाम भी सामने आया है जो कि दीक्षित बंधुओं की एक कंपनी में डमी डायरेक्टर है। ऐसे ही डमी डायरेक्टरों में देवेश कल्याणी भी शामिल है जो कि अखबार के भोपाल एडिशन में संपादक है लेकिन वे ग्लोबल रियलकॉन प्रा.लि. में शांतनु दीक्षित के साथ डायरेक्टर हैं। कंपनी लैंडमार्क बिल्डिंग न्यू लिंक रोड अंधेरी, मुंबई के पते पर पंजीबद्ध है। राजीव दुबे भी ऐसे ही डायरेक्टर हैं जिनका नाम समूह की आधा दर्जन कंपनियों में है।
कंपनी सेक्रेटरी को नोटिस
नोटिस पाने वालों में अनूज अग्रवाल का नाम भी शामिल हैं जो कि पेशे से कंपनी सेक्रेटरी (सीएस) हैं। अनूज ग्लोबल मेटल एंड एनर्जी प्रा.लि. के डायरेक्टरों की सूची में शामिल हैं। 2012 में मुंबई के पते पर पंजीबद्ध हुई इस कंपनी में सुरेखा दीक्षित और अवधेश दीक्षित भी डायरेक्टर हैं।

‘रमानी’ में टॉप मंत्रियों और आईएएस ने लगाए 10 करोड़

खाद्य विभाग को घूस, डुप्लीकेट इंट्री, हवाले से कारोबार, डायरेक्टर फरार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
टॉप एंड टाउन ब्रांड बनाने वाली रमानी आईस्क्रीम और उसकी सहयोगी फर्मों पर छापेमार कार्रवाई करने पहुंची इनकम टैक्स की टीम को ‘मिस्टर एक्स’ ने चौका दिया है। ‘मिस्टर एक्स’ एक-दो भी नहीं बल्कि आधा दर्जन हैं जिन्होंने समूह और समूह की सहयोगी कंपनियों में 10 करोड़ से ज्यादा का निवेश कर रखा है। जांच और पूछताछ के दौरान ‘मिस्टर एक्स’ की पहचान प्रदेश के प्रमुख मंत्रियों और आला दर्जे के अधिकारियों के रूप में हुई। फिलहाल, समूह में 50 करोड़ से अधिक की अघोषित आय का आंकलन लगाया जा रहा है।
टॉप एंड टाउन समूह के मप्र और छत्तीसगढ़ में 18 ठिकानों पर इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने छापेमार कार्रवाई की जो दूसरे दिन भी जारी रही। दोनों दिन की कार्रवाई में विंग के हाथ मजबूत प्रमाण लगे। दस्तावेजों की मानें तो आधा दर्जन लोगों ने रमानी आईस्क्रीम, रमानी होल्डिंग के साथ बलविंदरपाल सिंह और रमानी बंधुओं की ईशान बिल्डर्स एंड डेवलपर्स में 10 करोड़ रुपए से ज्यादा निवेश कर रखा है। दस्तावेजों निवेशकों के नाम के आगे ‘मिस्टर एक्स’ लिखा है। यह देखकर विंग ने सख््ती से पूछताछ की। तब जाकर इनकी पहचान मंत्री और आईएएस अफसरों के रूप में हुई।
खाद्य विभाग को जाती थी बंदी
रमानी के अरेरा कॉलोनी स्थित घर से जो दस्तावेज मिले हैं उनमें खाद्य विभाग को दिए जाने वाले मासिक भुगतान का भी जिक्र है। समूह ने डिपार्टमेंट में अपनी पेठ बनाने और अपने काम आसानी से करने के साथ ही टॉप एन टाउन आईस्क्रीम की सेंपलिंग रोकने के लिए एक व्यक्ति की नियुक्त लाइजनर के रूप में की गई। इसके माध्यम से ही खाद्य निरीक्षक से लेकर विभागीय आला अधिकारियों तक पैसा पहुंचाया जाता रहा। इसीलिए भोपाल में आईस्क्रीम के नमूने लिए वर्षों हो चुके हैं। आखिरी कार्रवाई इंदौर में ही 2010-11 में खाद्य निरीक्षक रहे सचिन लोंगरिया ने की थी। नमूने फेल निकले थे। मामला कोर्ट में चल रहा है।
डुप्लीकेट बुक्स से कारोबार
कंपनी के 200 एक्सल्यूसिव पार्लर हैं और 10 हजार से ज्यादा आउटलेट्स। 1 लाख लीटर से अधिक आईस्क्रीम उत्पादन होता है। कंपनी की वेबसाइट पर डले आंकड़े और इनकम टैक्स रिटर्न में दिए आंकड़ों में बड़ा अंतर है। बताया जा रहा है कि कंपनी डुप्लीकेट बुक्स से कारोबार करती है। पार्टी से भुगतान होते ही बिल डिलिट कर दिए जाते हैं। डबल इंट्री सिस्टम भी है। एक कंपनी की प्रोफाइल दिखाने के लिए दूसरा इनकम टैक्स या अन्य विभागों को दिखाने के लिए।
हवा में रीयल एस्टेट
ईशान बिल्डर ने रायसेन रोड पर ईशान पार्क व ईशान कॉर्पोरेट पार्क, होशंगाबाद रोड पर कान्हां फनसिटी के पास ईशान ग्रांड एस्टेट, कोलार रोड पर ईशान विस्टा और इंदौर रोड पर ईशान सिटी वॉक में केश ट्रांजेक्शन और केश सेल के मामले सामने आए हैं। यहां बिक्री रेट अलग है और इंट्री रेट अलग।
खुला हवाला, जब्त 70 लाख
रमानी परिवार की जांच के दौरान एक नाम सामने आया घनश्याम दास का। कई जगह लेन-देन की इंट्री दिखी तो विंग ने उसके ठिकानों पर दबिश दी तो हवाले का कारोबार उजागर हो गया। हवाले के 70 लाख रुपए विंग ने जब्त कर लिए। विंग ने रजिस्टर भी जब्त किया जिनमें हवाले की रकम का हिसाब था।
डायरेक्टर ही फरार
विंग की छापेमार कार्रवाई शुरू होने के साथ ही विजय हरि हरिरमानी फरार हो गए। विजय रमानी होल्डिंग प्रा.लि. और रमानी आईस्क्रीम कंपनी प्रा.लि. में डायरेक्टर हैं जबकि हाईलाइन एज्युकेयर इंडिया प्रा.लि. में एडिशन डायरेक्टर हैं। ईशान बिल्डर्स एंड डेवलपर्स के डायरेक्टरों की सूची में भी उनका नाम है। रमानी परिवार भी उनका पता नहीं बता रहा है। इसी तरह ईशान बिल्डर्स के प्रमुख डायरेक्टर बलविंदरपाल सिंह 14 दिन से परिवार सहित अमेरिका में है। घर में जो सदस्य हैं वे जांच में सहयोग नहीं कर रहे। सिंह 15 दिन बाद आएंगे।

चेरेटि की आड़ में चोरी

  इनकम टैक्स की कार्रवाई से बेनकाब रमानी परिवार, सामने आया ट्रिनिटी कॉलेज का सच
भोपाल. विनोद शर्मा ।
टॉप एंड टाउन ब्रांड के नाम से आईस्क्रीम बनाने वाले जिस रमानी परिवार को शहर का आदर्श बिजनेसमैन समझा जाता रहा है उसने चेरेटी को टैक्स चोरी का धंधा बना दिया है। 2007 में कोकटा बायपास रायसेन रोड स्थित ट्रिनिटी इंस्टिट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर इसका बड़ा उदाहरण है। यहां बच्चों की संख्या और फीस को कम बताकर स्टाफ के साथ ही खर्चे ज्यादा बताए जाते हैं ताकि टैक्स कम चुकाना पड़े। इसका खुलासा मंगलवार से जारी इनकम टैक्स की छापेमार कार्रवाई में भी हो चुका है।
1970 में मधु आईस्क्रीम के नाम से आईस्क्रीम का कारोबार शुरू करने वाले रमानी परिवार ने 2007 में कोकटा बायपास से लगी 15 एकड़ जमीन पर ट्रिनिटी की स्थापना की थी। मकसद था मुल्य आधारित उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोफेशनल एज्युकेशन देना जो कि कॉलेज की पूछपरख बढ़ने के साथ फुर्रर्र हो गया। रमानी आईस्क्रीम के साथ इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग ने इंस्टिट्यूट में भी दबिश दी। कार्रवाई के दौरान पता चला कि कॉलेज में दो तरह के अटेंडेंस रजिस्टर हैं। एक में स्टाफ की वास्तविक संख्या है और उन्हीं के आधार पर एक अन्य वेतन रजिस्टर भी है। दूसरे रजिस्टर में स्टाफ की संख्या और वेतन भी दोगुना ज्यादा दर्ज है। इसके लिए रजिस्टर में कई ऐसे लोगों के नाम लिखे गए हैं जिनका कोई वजूद नहीं है।
परिवार को ही बना दिया प्रोफेसर
कॉलेज में खर्च बढ़ाने के मकसद से प्रोफेसर और असिसटेंट प्रोफेसर की संख्या भी वास्तविकता से दोगुनी बताई गई है। फर्जी प्रोफेसरों में रमानी परिवार या उनके रिश्तेदारों के नाम भी लिखे हैं जिन्हें हर महीने मोटा वेतन जारी होता है।
डबल इंट्री सिस्टम
कॉलेज में बच्चों की संख्या दो तरह से दर्ज है। एक वास्तविक और दूसरी वास्तविक से कम जो कि सरकारी विभागों के लिए है। जैसे यदि 100 बच्चे हैं तो आॅन रिकॉर्ड 60 ही बताए जाते हैं। ज्यादातर फीस केश ली जाती है। इसीलिए 40 बच्चों की फीस ‘जो कि 60 हजार/सालाना से ज्यादा है’, सीधे संचालकों की जैब में जाती है।
नेट प्रॉफिट 35 प्रतिशत, बताया 4 प्रतिशत
समूह ने अपना नेट प्रॉफिट 4 प्रतिशत बता रखा है जबकि कार्रवाई के बाद आयकर अधिकारियों का अनुमान है कि नेट प्रोफिट 35 प्रतिशत तक है। अंतर सीधा 31 प्रतिशत का जो कि काली कमाई है।
रमानी के खिलाफ वॉरंट जारी
कार्रवाई के दौरान फरार हुए विजय रमानी का अब तक कोई पता नहीं चला। परिवार के लोग कभी बैंकॉक बताते हैं। कभी कहीं की। जांच में सहयोग न मिलने की स्थिति में इनकम टैक्स ने एसपी के नाम विजय का वारंट आॅफ प्रोडक्शन जारी कर दिया है। इसका मतलब यह है कि अब विजय को इनकम टैक्स के सामने पेश करने की जिम्मेदारी एसपी, भोपाल की होगी। वारंट के बाद रमानी बंधु का रूख बदला है और वे जांच में सहयोग कर रहे हैं।
रीयल एस्टेट के धुरंधर खिलाड़ी
रमानी परिवार में रीयल एस्टेट की कमानी विजय ने संभाल रखी है। अयोध्यानगर के पास इस परिवार की एक टाउनशीप है जहां मंदी के बीच भी फटाफट फ्लैट बिक गए। समूह ने हरदा में भी कॉलोनी काट रखी है।
कर्मचारियों ने छिपाए थे कम्प्यूटर
ईशान बिल्डर के आॅफिस पर जब रेड हुई तो वहां के कर्मचारियों ने दो कम्प्यूटर एक कार में छिपा दिए थे। इन कम्प्यूटर में रमानी परिवार की काली कमाई का कच्चा चिट्ठा है। डिप्टी डायरेक्टर इनकम टैक्स सन्नी कछवाह ने सिस्टम पकड़े और डाटा रिकवर किया।

रमानी बंधुओं ने इंदौर में भी खरीदी जमीनें

25 लाख से शुरू कारोबार तीन दशक में पहुंचा एक हजार करोड़ पार
- 100 करोड़ की तो काली कमाई ही
इंदौर. विनोद शर्मा।
200 डिस्ट्रीब्यूटर और 10 हजार से ज्यादा सेलिंग पॉइन्ट के साथ 100 से अधिक फ्लैवर की आईस्क्रीम का कारोबार करने वाले रमानी समूह की काली कमाई का आंकड़ा करीब सौ करोड़ तक जाएगा। आईस्क्रीम, बेकरी आइटम, इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट, रियल एस्टेट और फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में हाथ आजमा रहे इस समूह ने भोपाल और हरदा के साथ ही इंदौर में भी बड़े पैमाने पर जमीनों में निवेश कर रखा है। इनकम टैक्स को इसके दस्तावेजी प्रमाण मिल चुक हैं। तलाश है इंदौर के उन निवेशकों की जो रमानी के भागीदार हैं।
इन्वेस्टिगेशन विंग की छापेमारी ने टॉप क्लास बिजनेस हाउस रमानीज के कामकाज की वास्तविकता भी जगजाहिर कर दी। 25 लाख रुपए के निवेश के साथ आईस्क्रीम का कारोबार शुरू करने वाले रमानी बंधु आज तकरीबन एक हजार करोड़ के आसामी हैं। यहां तक पहुंचने के लिए कभी बैंकों का सहारा लिया तो कभी सफेदपोश मालदारों का। इनमें अधिकारी भी हैं और मंत्री-नेता भी। अधिकारियों का आंकलन है कि काली कमाई 100 करोड़ के करीब है। इसमें सरेंडर में कितनी सामने आती है और असेसमेंट में कितनी यह आने वाले दिन में ही क्लीयर होगा।
यह है कि रमानी समूह के सर्वेसर्वा
श्यामदास रमानी : न्यू मार्केट में बालचंद्र कुकरेजा की मधु आईस्क्रीम की दुकान थी। ब्रांड आगरा का था। कुकरेजा ने अपना कामकाज दामाद श्यामदास रमानी को हस्तांतरित किया। परिवहन के कारण आईस्क्रीम की बर्बादी देखते हुए रमानी ने ब्रांड की यूनिट भोपाल में स्थापित करने की मंशा जताई जिसे कंपनी ने रिजेक्ट कर दिया। तब रमानी ने कड़ा निर्णय लेते हुए 25 लाख रुपए के निवेश के साथ टॉप एंड टाउन ब्रांड के नाम से आईस्क्रीम बनाना शुरू कर दी।
प्रकाश रमानी : रमानी परिवार के बड़े बेटे। 16 साल की उम्र से पिता के साथ बिजनेस देखा। अपने सपने को पूरा करने के मकसद से ट्रिनिटी इंस्टिट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च की स्थापना की। बाकी बिजनेस भाइयों के हवाले। पूरा फोकस कॉलेज पर।
डायरेक्टर : रमानी आईस्क्रीम कंपनी लि.(1991 से), रमानी होल्डिंग प्रा.लि. (2004 से ) और टोरोक्यू सॉफ्ट सॉल्यूशन प्रा.लि. (2015 से)
विजय रमानी : इन्हें रमानी परिवार का संकटमोचन कहा जाता है। मुलत: रमानी इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम देखते हैं जो कि ईशान रियल एस्टेट के रूप में काम कर रही है। टॉप एंड टाउन ब्रांड और विजय के वित्त कौशल को देखते हुए बड़े लोग अपनी काली कमाई यहां निवेश करते हैं ताकि पैसा बड़े मुनाफे के साथ मिले।
डायरेक्टर : रमानी आईस्क्रीम कं.लि. (2009 से), रमानी होल्डिंग (2004 से), हाईलाइन एज्यूकेयर इंडिया प्रा.लि. (2014 से) और गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र प्रदुशन निवारण केंद्र (2016 से)
हरीश रमानी : बिजनेस वर्ल्ड में अच्छी पकड़। टॉप एंड टाउन आईस्क्रीम का डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और पब्लिक रिलेशन संभालते हैं।
डायरेक्टर : मानी आईस्क्रीम (1993 से) और रमानी होल्डिंग में (2004 से)
अरूण रमानी : प्रयोगधर्मी हैं इसीलिए टॉप एंड टाउन आईस्क्रीम को अपने इनावेटिव आईडियाज से नेशनल ब्रांड बनाया। 2009 में मिनिस्ट्री आॅफ कॉर्पोरेट अफेयर्स द्वारा अरूण यंग अचीवर्स अवार्ड से सम्मानित हो चुके हें।
डायरेक्टर : रमानी आईस्क्रीम (1993 से), रमानी होल्डिंग में (2004 से)  और  इंडियन आईस्क्रीम मैन्युफेक्चरर एसोसिएशन  में (2011 से)
किशोर रमानी : टॉप एंड टाउन ब्रांड के नाम से बेकरी सेक्शन संभालते हैं। बेकरी 2002 से गोविंदपुरा में स्थापित है।  अपने पिता के साथ फार्मासेक्शन भी संभालते हैं।
डायरेक्टर : रमानी होल्डिंग (2004) और लॉर्ड मेडीकेअर (2005)
पार्टनर
तेजींदरसिंह : रियल एस्टेट के मंजे खिलाड़ी जिन्हें सोनू भाई भी कहते हैं। विंडसर अरालिया के नाम से दर्जनभर प्रोजेक्ट किए।
ऐसे आया पैसा
बैंकों से लोन : टॉप एंड टाउन आईस्क्रीम के नाम पर 200 6 में बैंक आॅफ बरौदा से 3.90 करोड़, 2007 में पंजाब नेशनल बैंक से 1.20 करोड़, 2007 में पंजाब एंड सिंध बैंक से 19.00 करोड़, 2008 में एक्सिस बैंक  से 2.02 करोड़, 2008 में श्री इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लि. से 22 लाख, 2010 में पंजाब एंड सिंध बैंक से 10.87 करोड़, 2014 में एचडीएफसी से 15 लाख, 2014 में पंजाब एंड सिंध से 50 लाख, 2014 में एसबीआई से 43.50 करोड़, 2015 में आईडीबीआई 2.94 करोड़, 2002 में पीएनबी से 2.31 करोड़, 2003 में पीएनबी से 2.80 करोड़, 2005 में पीएनबी से 90 लाख, 2005 में पीएनबी से 68 लाख, एसबीआई से 1994 में 59 लाख, देना बैंक से 2001 में 24 लाख, 2003 में पीएनबी से 90 लाख और 1.20 करोड़ का लोन लिया।  कुल 94.34 करोड़ रुपए का कर्ज।
आईस्क्रीम : समूह के 200 एक्स्ल्यूसिव पार्लर हैं। 10 हजार आउटलेट्स। इनमें 100 फीसदी कारोबार केश होता है। 95 फीसदी कारोबार बिना बिल के होता है जो कि काली कमाई का बड़ा माध्यम है।
रियल एस्टेट : रायसेन रोड पर 15 एकड़ में ईशान पार्क बनाई। इसमें प्लॉटिंग के साथ ही मल्टीस्टोरी प्रोजेक्ट भी है। ज्यादातर लेन-देन केश से। यही स्थिति 20 एकड़ में बनी ईशान विस्टा और 38 एकड़ में होशंगाबाद रोड पर आकार ले रही ईशान ग्रांड  एस्टेट है। भोपाल, हरदा, रायसेन, इंदौर में भी जमीनें खरीदी।
ट्रिनिटी   कॉलेज : चेरेटी के नाम पर कमाई का साधन। आवक कम और खर्च ज्यादा बताए ताकि इनकम कम दिखे। या न दिखे।

सड़क की जमीन पर कैलिफोर्निया की सजावट

बनाया गार्डन और रोटरी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
प्लॉटों को जोड़कर रो-हाउसेस बनाने वाली हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. ने कैलिफोर्निया सिटी का डेकोरेशन भी फर्जी कर रखा है। मुख्य द्वारा के बाहर जिस जमीन पर लैंडस्कैपिंग और रोटरी बनी हुई है वह मास्टर प्लान में अंकित 45 मीटर चौड़ी रोड के लिए आरक्षित जमीन है। सड़क बनने के बाद सारा डेकोरेशन ध्वस्त हो जाएगा। रंग-बिरंगा ब्रोशर देखकर प्लॉट, बंगले या फ्लैट खरीदने वालों के हाथ सिर्फ बाउंड्रीवाल ही आएगी।
ग्राम हिंगोनिया की करीब 54 एकड़ जमीन पर कैलिफोर्निया सिटी बन रही है। कॉलोनी के सामने सर्वे नं. 308 की जमीन भी है जो कि सड़क के लिए आरक्षित है। मास्टर प्लान 2021 के अनुसार बायपास से कनाड़िया होते हुए बेगमखेड़ी की ओर जाने वाली इस सड़क की प्रस्तावित चौड़ाई 45 मीटर है। जनवरी 2012 में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग द्वारा स्वीकृत ले-आउट में भी इस सड़क का जिक्र है। कॉलोनाइजर के खसरों में सड़क को मार्क किया हुआ है। बावजूद इसके यहां सड़क किनारे ही रोटरी बना दी गई। बाउंड्रीवाल से सटाकर लैंडस्कैपिंग और गार्डन बना दिया।
17162.52 वर्गफीट है जमीन
कॉलोनी के स्वीकृत ले-आउट के अनुसार स्कूली की ओर से मुख्य द्वार तक 100 मीटर लंबा सड़क का हिस्सा है। इसमें स्पष्ट लिखा है कि 17162 वर्गफीट जमीन रोड की प्रस्तावित चौड़ाई का हिस्सा है।
ऐसे किया कब्जा
चूंकि प्लान में सड़क की चौड़ाई 45 मीटर है इसीलिए मौजूदा सड़क के बीच से दोनों ओर 22.50 मीटर जमीन छोड़ी जाना चाहिए। यहां सड़क से लेकर बाउंड्रीवाल के बीच पार्क बना दिया गया है। मुख्य द्वारा के ठीक सामने सड़क से 10 फीट की दूरी पर ही रोटरी बना दी है। वहीं घंटाघर की तरह मुख्य द्वारा पर खंबा लगाकर कॉलोनी के नाम के साथ घड़ी लगा दी गई।
यह है नियम...
मास्टर प्लान में प्रस्तावित सड़क का जिक्र उससे लगी कॉलोनी के ले-आउट में भी किया जाता है। चूंकि जमीन का उपयोग सार्वजनिक सड़क के रूप में प्रस्तावित है इसीलिए निजी जमीन भी शासकीय जमीन के दायरे में ही आएगी।
इस जमीन पर किसी भी तरह का कोई भी निर्माण या लैंडस्कैपिंग स्वीकार्य नहीं है। यदि कंपनी को लैंडस्कैपिंग करना है या रोटरी बनाना है तो वह कॉलोनी की प्रस्तावित जमीन पर बनाए।
इसके विपरीत बिल्डर सरकारी जमीन को अपने प्रोेजेक्ट की साज-सज्जा के लिए इस्तेमाल करते हैं जो पूरी तरह गैरकानूनी है। क्योंकि यह एक तरह की सुविधा है जिसे दिखाकर ग्राहकों को लुभाया जाता है जबकि इसकी वास्तविकता यह है कि यह बाद में जमींदोज ही होना है।
स्कूल वालों ने भी की थी शिकायत
2012-13 में जब कॉलोनी आकार लेने लगी थी जब कॉलोनी की बाउंड्रीवाल से लगे शासकीय स्कूल के टीचर्स ने बिल्डर की मनमानी की शिकायत भी की थी। इस शिकायत पर जांच भी हुई थी। 

तीन प्लॉटों को जोड़कर बना दिया एक हॉस्पिटल

- अवैध बेसमेंट में नियमों के विपरीत लगाए मरीजों के बेड
- संपत्तिकर की भी चोरी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एअर सिलेंडर फटने से सोमवार रात जिस क्योरवेल हॉस्पिटल में हंगामा मच गया वह नींव से छत तक गड़बड़ियों का गढ़ है। तीन प्लॉटों को जोड़कर बनाए गए इस अस्पताल में अनुमति के विपरीत बेसमेंट बनाया गया जिसे जनरल वार्ड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यहां मरीजों को न प्राकृतिक हवा नसीब होती है। न ही रोशनी। ऊपरी हिस्सा भी भुल-भुलैया से कम नहीं है।
क्योरवेल हॉस्पिटल का अधिकृत पता 19/1 सी न्यू पलासिया है जबकि बिल्डिंग बनी है क्योरवेल हॉस्पिटल प्रा.लि. के प्लॉट नं. 19/1 सी और 19/बी के साथ ही 19/4/1 पर जो कि अभय, दिलीप, विमल पिता गेंदालाल सुराना के नाम है। इसमें प्लॉट नं.  19/4/1 में आईसीयू है जहां आईसीसीयू बना हुआ है। नियमानुसार प्लॉटों का संयुक्तिकरण प्रतिबंधित है। आईसीसीयू तक पहुंचने का रास्ता किसी भुल-भुलैया से कम नहीं है। अस्पताल की मुल बिल्डिंग से इस भवन के बीच की दूरी 50 फीट से ज्यादा है जिसे गलियारा बनाकर मूल भवन से जोड़ा गया है।
आवासीय प्लॉट, व्यावसायिक इस्तेमाल
56 को छोड़कर न्यू पलासिया का भू-उपयोग आवासीय रहा है। 1988-1990 के बीच जब यहां अस्पताल बना तब तक आसपास के प्लॉटों का इस्तेमाल आवासीय ही होता रहा। यहां 7657.62 वर्गफीट प्लॉट पर जी+3 बिल्डिंग मंजूर हुई थी। इसमें बेसमेंट का जिक्र नहीं था जहां सोमवार को ब्लॉस्ट हुआ। बेसमेंट से सटकर ही अस्पताल की केंटिन है। उससे लगी होटल वृंदावन की कॉर्न चौपाटी। नगर निगम के राजस्व विभाग के अनुसार बिल्डिंग को प्राइवेट हॉस्पिटल मानते हुए ही व्यावसायिक श्रेणी में रखकर संपत्तिकर लिया जा रहा है।
संपत्ति कर सिर्फ 10 फीसदी...
्रप्लॉट नं. 19/4/1 19/1 सी 19/1 बी   कुल
ग्राउंड फ्लोर 849 924 924 2697
पहली मंजिल 849 2131 2131 5111
दूसरी मंजिल 849 1000 1000 2849
तीसरी मंजिल 355 924 924 2203
चौथी मंजिल 000 235 235 470
कुल 13330
मंजूरी से भी ज्यादा
7662 वर्गफीट पर एमओएस हजम करके 6130 वर्गफीट का ग्राउंड कवरेज किया है। इस पर नगर निगम ने करीब 10 हजार वर्गफीट निर्माण मंजूर किया था जबकि निर्माण हुआ है 22 हजार वर्गफीट से ज्यादा और संपत्ति कर चुकाया जा रहा है 13330 वर्गफीट का। समय-समय पर इसकी शिकायत भी होती रही है लेकिन मामला ठंडे बस्ते में ही रहा।
ऐसे बना है अस्पताल
1- मुख्य बिल्डिंग में बेसमेंट है जहां पुरुष और महिला जनरल वार्ड है जिनमें 8-8 बेड हैं।
मूल बिल्डिंग
ग्राउंड फ्लोर : यहां रिसेप्शन है, प्रशासनिक व चिकित्सकीय कक्ष हैं।
पहली मंजिल : आॅपरेशन थिएटर, डायलिसिस सेंटर, माइनर ओटी, वेटिंग हॉल, दूसरी मंजिल पर। ऊपरी फ्लोर पर अलग-अलग डिपार्टमेंट हैं। 23 प्राइवेट रूम है। सेमी डिलक्स में 6+5 बेड हैं। आईसीसीयू, आईसीयू सहित अन्य यूनिट में कुल 12 बेड और हैं। हॉस्पिटल कुल 62 बेड का है।
- पीछे 5 फीट की जगह छूटी है जहां गैस सिलेंडर रखे हुए हैं। जो कि बेसमेंट से लगी हुई जमीन है।
- डायलिसिस के सामने से गलियारा है जो आईसीसीयू जाता है।
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हमारे पास मैदानी अमला कम है इसीलिए नियमित मॉनिटरिंग तो नहीं कर सकते लेकिन अब आकस्मिक जांच जरूर होगी।
डॉ. एस.पोरवाल, सीएमएचओ

दो आवेदन पर मंजूर कर दिए 197 बंगले

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
रोड के लिए आरक्षित जमीन पर बगीचा बनाकर जिस केलिफोर्निया सिटी की सजावट की गई उसमें एक ही आवेदन पर 146 प्लॉटों पर बंगले बनाने की अनुमति जारी हो गई। दूसरे आवेदन में 51 प्लॉट पर बंगले मंजूर हो गए। जबकि कानूनन जितने प्लॉट उतने आवेदन होना चाहिए।
हिंगोनिया की 54 एकड़ जमीन पर बनी कॉलोनी में एक के बाद एक नई कहानी सामने आ रही है। ताजा मामला यह है कि कॉलोनाइजर जिन प्लॉटों पर रो-हाउसेस की तरह बंगले बनाकर बेच रहा है उन 197 प्लॉटों पर बंगले बनाने की अनुमति सिर्फ दो आवेदन पर ही झलारिया पंचायत ने 2012-13 में जारी कर दी थी। जिम्मेदार भले इस जायज करार दे रहे हों लेकिन जानकारों की मानें तो ऐसा नहीं किया जा सकता। इसकी दो बड़ी वजह है। पहली कॉलोनी के जिस हिस्से पर बंगले मंजूर हुए हैं उस पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने भूखंड विकास का ले-आउट मंजूर कर रखा है। दूसरा, नियमानुसार जितने प्लॉट उतने आवेदन होना चाहिए। क्योंकि हर प्लॉट का अपना एरिया है।
तो रो-हाउस या ग्रुप हाउसिंग की मंजूरी लेते
हाई-वे इन्फ्रास्ट्रक्चर ने जनवरी 2012 में कॉलोनी की जो टीएनसी कराई थी उसमें प्लॉट और पी+6 की बिल्डिंग्स का जिक्र था। बंगलों का नहीं। 2012 में ही कंपनी ने पंचायत में आवेदन लगाया और बंगले मंजूर कराए। बंगले रो-हाउस की तरह बन रहे हैं जबकि टाउन एंड कंट्री प्लानिंग में भूखंडीय कॉलोनी के नियम अलग है और ग्रुप हाउसिंग के अलग।
विकास भी पूरा नहीं
कॉलोनी की भवन अनुज्ञा तब जारी होती है जब एसडीओ आॅफिस से उसका कंपलिशन सर्टिफिकेट जारी हो चुका हो। इसके विपरीत पंचायत ने भवन अनुज्ञा कॉलोनी का विकास पूरा होने से पहले ही जारी कर दी। कॉलोनी में अब भी 30 फीसदी सड़कें अधूरी है। एमिनिटिज के नाम पर गार्डन बने हैं। पानी की टंकी है। कॉलोनी का अपना बिजली सब स्टेशन नहीं है। प्राइमरी स्कूल नहीं बना। सब पोस्ट आॅफिस नहीं है। प्राइमरी हैल्थ सेंटर नहीं है। मार्केट नहीं है। क्लब नहीं है। गरीबों के लिए बनने वाले ईडब्ल्यूएस यूनिट सिर्फ डॉक्यूमेंट पर ही हैं। 

बिल केमिकल का, आयात सीजनल प्रोडक्ट का

प्रेस्टीज पोलिमर की मनमानी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
केमिकल की आड़ में आयात किए गए चायनीज पटाखों का जखिरा पकड़ने वाली डायरेक्टर रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की टीम गुरुवार को भी कंटेनर की जांच करती रही। वहीं इस बात के भी कयास लगाए जाते रहे कि डेढ़ साल पहले एसईजेड में कदम रखने वाली प्रेस्टीज पोलिमर प्रा.लि. आखिर केमिकल की आड़ में अब तक क्या और कितना आयात कर चुकी है।
गुरुवार को एक और कंटेनर खोला गया। इसमें भी चायनीज पटाखे सहित अन्य प्रतिबंधित उत्पादों का जखिरा मिला। तीन कंटेनर के पटाखों की कीमत अब तक साढ़े तीन करोड़ आंकी जा रही है। अभी पांच कंटेनर और खुलना है। बिखरे सामान को देखते हुए मैदानी अमला भी बढ़ाया जा चुका है। जिनकी मदद से माल चेक करने में वक्त भी कम लगेगा। हालांकि पूरे मामले में आईसीडी पीथमपुर में पदस्थ अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं कि आखिर वे एसईजेड में आने वाले माल की तफ्तीश क्यों नहीं करते।
गड़बड़ की प्रेस्टीज
आमद : स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) के डायरेक्टर रहे ईश्वर सिंह से अच्छे संबंधों के चलते मनीष भल्ला ने प्रेस्टीज पोलिमर के ट्रेडिंग प्लेटफार्म के रूप में डेढ़ साल पहले एसईजेड-1 में शिरकत की।
काम करने का तरीका : एसईजेड में उन यूनिट को स्थान दिया जाता है जिनका काम आयात करना और उसे नए सिरे से एक्सपोर्ट करना है। ऐसे में प्रेस्टीज जैसी ट्रेडिंग कंपनियां प्रोडक्ट आयात करती हैं और उसे री-पेकिंग करके री-एक्सपोर्ट करती हैं।
छूट : एक्सपोर्ट करने वाले उत्पाद या उनमें इस्तेमाल होने वाले उत्पाद का आयात होता है तो उस पर कस्टम ड्यूटी की छूट मिलती है। यदि प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट करने के बजाय देश में ही इस्तेमाल किया या बेचा जाता है तो इसे कस्टम ड्यूटी की चोरी कहा जाता है।
गड़बड़ : अब जबकि प्रेस्टीज पोलिमर कंपनी के नाम से आए आयातित बिल के अनुसार कंटेनर में केमिकल हैं तो वह केमिकल री-एक्सपोर्ट कर सकती थी। वास्तव में केमिकल की आड़ में प्रतिबंधित चायनीज पटाखे आए हैं इसीलिए उन्हें री-एक्सपोर्ट नहीं किया जा सकता। ऐसे में कंपनी की जो सिस्टर कंसर्न कंपनियां है पायोनियर पॉलिमर प्रा.लि. और आॅरियो आॅर्गेनिक्स प्रा.लि. वे जो केमिकल बनाती है उनका केमिकल कंपनी अपने लेवल से एक्सपोर्ट करती है।
शंका : चूंकि अभी दिवाली का सीजन आना है इसीलिए कंपनी ने पटाखे आयात किए हैं इसीलिए शंका जताई जा रही है कि कंपनी सीजन के हिसाब से केमिकल की आड़ में प्रोडक्ट मंगाती हैं।
जांच का विषय : मुद्दा यह है कि आखिर कंपनी ने डेढ़ साल में यहां केमिकल के नाम पर कितनी बार अन्य उत्पाद आयात किए हैं। कस्टम ने कभी इसकी जांच क्यों नहीं की। या अब जबकि मामला डीआरआई के प्रयासों से उजागर हो चुका है तो क्या आगे कंपनी के डेढ़ साल में किए गए कारोबार की जांच भी होगी।

अस्पताल भर्ती, डायरेक्टर डिस्चार्ज

सवालों में प्रशासन की सख्ती
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एअर सिलेंडर फटने से हुए हादसे के बाद सख्ती का उदाहरण पेश करते हुए प्रशासन ने क्योरवेल हॉस्पिटल को तो अस्थाई रूप से बंद कर दिया लेकिन अस्पताल मालिक के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई। न सिर्फ लापरवाही के संबंध में बल्कि इसलिए भी नहीं कि वह तीन आवासीय प्लॉटों को जोड़कर तीस साल से कैसे अस्पताल चलाता आ रहा है। इधर, अस्पताल संचालकों ने प्रशासन के साथ अपनी लड़ाई में साथ देने के लिए इंदौर नर्सिंग होम एसोसिएशन पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया।
विस्फोट के बाद क्योरवेल की मनमानियां भी जगजाहिर हुई। इसके बावजूद तीस साल से अस्पताल चलाते आ रहे सुराना परिवार के माथे पर किसी तरह की शिकन नजर नहीं आई। वे आश्वस्त थे। जैसे तीन आवासीय उपयोग के प्लॉटों को जोड़कर बना अस्पताल नगर निगम की आंख में आए बिना तीस साल चल गया वैसे ही अधिकारियों की मेहरबानी से यह मामला भी एक-दो दिन के हो-हल्ले के बाद ठंडा पड़ जाएगा। उन्हें काफी हद तक कामयाबी मिली भी। जब प्रशासन ने जिम्मेदार संचालकों को छोड़ अस्पताल पर लगाम कसना शुरू कर दी।
और मरीजों को किया शिफ्ट
बताया जा रहा है कि शुक्रवार सुबह तक 28 मरीज भर्ती थे। इसमें से 8-10 को डिस्चार्ज कर दिया गया जबकि बाकी मरीजों के उनकी सहुलियत और सेहत के हिसाब से नजदीकी अस्पतालों में शिफ्ट कर दिया। शिफ्टिंग से डॉक्टर व अन्य स्टाफ भी परेशान हैं।
नर्सिंग होम एसोसिएशन दे साथ
अधिकारियों ने जिस अस्पताल संचालक दिलीप सुराना को बख्श रखा है वह नर्सिंग होम एसोसिएशन के पदाधिकारियों से सतत संपर्क में है। दबाव बनाया जा रहा है कि ऐसोसिएशन इस मामले में प्रशासनिक सख्ती के खिलाफ दखल दे।
क्यों कसे शिकंजा
1- अस्पताल पार्मार्थिक नहीं है। कंपनी द्वारा संचालित है जहां मुलत: चिकित्सा के नाम पर व्यवसाय होता है। 26 दिसंबर 1988 को पंजीबद्ध हुई कयोरवेल हॉस्पिटल प्रा.लि. नाम की कंपनी के डायरेक्टर दिलीप कुमार सुराना, संजीव सुराना, उर्मिला सुराना और निरेन मेहता हैं। इनमें से एक भी मेडिकल फिल्ड से नहीं है। यह सुरटेल टेक्नोलॉजिस प्रा.लि. और सिस्टकॉन टेक्नोलॉजी प्रा.लि. चला रहे हैं।
2- चूंकि यहां लगाई गई मशीनें या उपकरण सीधे मरीजों की जान से जुड़े हैं इसीलिए उनकी बारीकी से मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी मैनेजमेंट की है। मैंनेजमेंट को एक-एक उपकरण की निगरानी और मेंटेनेंस के लिए बजट निर्धारित करना पड़ता है। इस बजट का इस्तेमाल कब और किन उपकरणों पर होगा? इसकी उनके पास विधिवत सूची रहती है। आखिरी बार उपकरण कब चेक हुआ से लेकर चेकअप की तारीख तक का चार्ट मैनेजमेंट से लेकर मालिक तक जाता है।
3- ऐसे में सिलेंडर या उसके वॉल्व की खराबी मैनेजमेंट से कैसे छिपी रह सकती थी। बावजूद इसके ‘कर लेंगे’, की मानसिकता के साथ प्रबंधन लापरवाही बरतता रहा।
4- ब्लास्ट के वक्त बेसमेंट में मरीज भर्ती थे जिनमें से 80 फीसदी को दूसरे दिन दोपहर में ही डिस्चार्ज कर दिया गया। जो बचे थे उन्हें चौथी मंजिल पर भर्ती किया। प्रशासन को यह बताना भी उचित नहीं समझा कि ब्लास्ट से उड़ी र्इंट और बिखरे कांच से उस वक्त भर्ती रहे कितने मरीजों या उनके परिजनों को चोट लगी। बस यही बताया जाता रहा कि एक मरीज को ही मामूली चोट लगी है।
5- प्रशासन ने हादसे वाले दिन प्रबंधन को अस्पताल से जुड़े तमाम इंतजामात को मुक्कल करने के निर्देश दिए थे लेकिन शुक्रवार को हुई मरीजों की शिफ्टिंग के वक्त तक भी मलबा ही हटता रहा। मेडिकल इंजीनियर्स द्वारा उपकरणों की बारीक जांच नहीं कराई गई।
6- अस्पताल के नाम पर  1994 में एसबीआई से 18 और 2011 में देना बैंक से 25 लाख का लोन भी अस्पताल के नाम पर लिया जा चुका है

हृद्येश दीक्षित ने बिल्डरों से पैसा लेकर बॉलीवुड कलाकारों को किया फाइनेंस

-- डायरी और मोबाइल डिटेल में चंपू से लेकर अभिनेता संजय कपूर तक के नाम
-- दो दर्जन सवालों के जवाब देने से बच रहे दीक्षित बंधू
इंदौर. विनोद शर्मा ।
प्रदेश टूडे मीडिया समूह और एमपी टूडे मीडिया समूह के डायरेक्टर हृद्येश दीक्षित  फाइनेंसर के रूप में भी काम करते रहे हैं। फिनिक्स टाउनशीप में हेराफेरी के आरोप में महीनेभर से जेल में दिन गुजार रहे रितेश उर्फ चंपू अजमेरा से लेकर फिल्म अभिनेता अनिल कपूर के भाई अभिनेता व डायरेक्टर संजय कपूर तक से लेन-देन के दस्तावेज इनकम टैक्स को मिले हैं। इसका खुलासा उन नोटिसों में हुआ है जो इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग की तरफ से बीते दिनों दीक्षित बंधुओं को थमाए गए हैं।
स्वयं हृद्येश दीक्षित को दो दर्जन से ज्यादा सवालों के साथ नोटिस दिया गया है जिसका जवाब उन्हें सोमवार तक पेश करना है। सवालों की सूची के अनुसार प्रदेश टूडे मीडिया समूह और एमपी एग्रो न्यूट्री फुड्स के बीच कारोबारी संबंध, महंगी गाड़ियों, निपानिया स्थित फॉर्म हाउस से लेकर यूएस गोल्ड सिटी में खरीदी गई 22 हजार वर्गफीट जमीन तक का हिसाब शामिल है। सवालों में दीक्षित की फाइनेंसर के रूप में भूमिका चौकाने वाले तथ्य के रूप में सामने आई है। दीक्षित रितेश अजमेरा और उनके साथियों सहित इंदौर-भोपाल के कुछ अन्य लोगों से पैसा लेते और उसे ब्याज की बड़ी दर के साथ किसी ओर को इस्तेमाल के लिए देते। घर-आॅफिस से मिले दस्तावेजों और मोबाइल से मिली जानकारी के अनुसार दीक्षित ने अभिनेता संजय कपूर सहित बॉलीवुड के कुछ और लोगों को भी फाइनेंस कर रखा है। कपूर के अलावा भी तीन से चार नामों का जिक्र इनकम टैक्स के दस्तावेजों में है।
चंपू कौन है...? नाम सुना-सुना लगता है..?
12 जुलाई से अब तक हुई पूछताछ में लिखित और मौखिक रूप से दीक्षित बंधु इनकम टैक्स अधिकारियों के सवालों से बचते नजर आ रहे हैं। या यूं कहें कि वे सीधे मूंह जवाब नहीं देना चाहते। दोनों भाई चंपू अजमेरा को नहीं जानते। अवधेश दीक्षित तो उलटा पूछते हैं कि चंपू कौन है? नाम कुछ सूना-सूना लगता है। वहीं मोबाइल डिटेल को लेकर दोनों का रटा- रटाया जवाब यही है कि मोबाइल सिर्फ हम ही इस्तेमाल नहीं करते। परिवार और दोस्त भी इस्तेमाल करते हैं। जिन मैसेज के बारे में हमसे पूछा जा रहा है वह किसी दोस्त ने किए होंगे। किसने किए? याद नही।
शादी की सालगिराह में आए कलाकार भी घेरे में
13 से 17 फरवरी के बीच हृद्येश दीक्षित और प्रतीक्षा दीक्षित ने शादी की 25वीं सालगिराह मनाई। 17 फरवरी के हुए जश्न में अभिनेता अनिल कपूर, संजय कपूर, जैकी श्रृाफ, रजल रवैल, चंकी पांडे, सुनील शेट्टी, शिल्पा शेट्टी व उनके पति राजकुंद्रा, अभिनेत्री तब्बू, पूर्व क्रिकेटर अजय जडेजा और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला सहित दो दर्जन हस्तियां शरीक हुई। इन तमाम बालीवुड सेलेब्रेटी को कितने खर्च में बुलवाया गया, आने-जाने व ठहरने की व्यवस्था कैसे हुई? जैसे सवालों की जांच भी विंग कर रही है। विजयनगर क्षेत्र की होटलों में पूछताछ भी की गई है। अब दीक्षित परिवार फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया से इन तमाम तस्वीरों को हटा चुका है। यहां तक की 18 फरवरी को प्रकाशित हुए प्रदेश टूडे का ई-पेपर भी नहीं खुलता जिसमें उस वैभवशाली और खर्चीले आयोजन की तस्वीरें छपी थी।
एमपी एग्रा का पीओ खोला
जुलाई में कार्रवाई और सरेंडर के बाद भी एमपी एग्रोटेक प्रालि., डी-13 सतलापुर, मंडीदीप और 72-73 मंडीदीप स्थित एमपी एग्रो प्रा.लि. के आॅफिस पर पीओ लगाकर कार्रवाई को अल्प विराम दे दिया गया था। इस पीओ को शनिवार को खोला गया। आवश्यकतानुसार दस्तावेज जब्त किए गए।

केअरलेस क्योरवेल % सेंटिंग हो चुकी थी, विस्फोट ने खोली पोल और आंखे


इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
एअर सिलेंडर में विस्फोट ने क्योरवेल हॉस्पिटल के तमाम इंतजामात की पोल तो खोली ही निर्माण में नगर निगम के मैदानी अमले की मिलीभगत का किस्सा भी उजागर कर दिया। यकायक नगर निगम को याद आ गया कि 26 साल से चले आ रहे इस अस्पताल में स्वीकृति के विपरीत निर्माण हुआ है। स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों को भी पता चला कि अस्पताल में गैरकानूनी रूप से बेसमेंट को जनरल वार्ड की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है।
चौतरफा छोड़ी जाने वाली मार्जिनल ओपन स्पेस (एमओएस) पर कब्जा करके अस्पताल प्रबंधन ने पार्किंग तक नहीं छोड़ी थी। सारी गाड़ियां रोड पर खड़ी होती रही। लोग परेशान होते रहे। न नगर निगम ने नोटिस देकर कब्जा हटवाने की कोशिश की और न ही विस्फोट के बाद अस्पताल अस्थाई रूप से बंद करवाने वाले जिला प्रशासन या यातायात पुलिस ने। विस्फोट ने प्रबंधन की लापरवाही के साथ इन विभागों में अर्से से बंद पड़ी फाइलें भी खुल गई। तब जाकर पता चला कि अस्पताल के अवैध निर्माण को लेकर वर्षोें पहले जांच तो हुई थी लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं जिन्होंने पहले अवैध निर्माण व पार्किंग की जमीन पर कब्जा होने दिया और वे भी जिन्होंने जांच तो की लेकिन कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा सके। यातायात पुलिस के अमले की भूमिका भी जांची जाना चाहिए  जिसने सड़क पर खड़ी गाड़ियों के खिलाफ कभी कार्रवाई नहीं की।
अब है मौका...
चलते अस्पताल में कार्रवाई हो तो मरीजों को दिक्कत होती है? शायद जिन कारणों से क्योरवेल पर कार्रवाई नहीं हुई उनमें अधिकारियों की यह सोच भी रही होगी। ऐसे में नगर निगम के पास अब सुनहरा मौका है जब गड़बड़ के चलते जिला प्रशासन अस्पताल को खाली करवा चुका है। अब नगर निगम एमओएस से कब्जे हटवाकर पार्किंग की व्यवस्था कर सकता है। इसके अलावा जो भी अवैध निर्माण हुआ है उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। अस्पताल की सड़क पर पार्किंग से परेशान लोग भी अब कार्रवाई की मांग करने लगे हैं।

पर्यावरणीय मंजूरी के बिना विकसित हुई केलिफोर्निया सिटी

करूणासागर पर सिया की सख्ती से भी हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर ने नहीं लिया सबक
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इन्वायरमेंट क्लीयरेंस की शर्तों के उल्लंघन के मामले में जिस हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. की करूणासागर टाउनशीप के निर्माण पर दो साल से रोक लगी है उसने केलिफोर्निया सिटी बिना क्लीयरेंस के विकसित कर दी। इसका खुलासा मप्र स्टेट इन्वायरमेंट इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (एपीएसईआईएए) और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को की गई शिकायत में हुआ है। शिकायत में समूह की करूणासागर और न्यूयॉर्क सिटी का भी जिक्र है।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सितंबर 2006 में जारी नोटिफिकेशन के अनुसार बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के लिए 20 हजार वर्गमीटर से अधिक और 50 हेक्टेयर जमीन या 1.5 लाख वर्गमीटर जमीन तक के भूखंड पर कॉलोनी के लिए पर्यावरण मंजूरी जरूरी है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से कॉलोनी या टाउनशीप का ले-आउट मंजूर कराने के बाद राज्य पर्यावरण प्रभाव अध्ययन प्राधिकराण (सिया) से अनुमति जरूरी होगी। हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. ने हिंगोनिया गांव की 21.632 हेक्टेयर जमीन पर केलिफोर्निया सिटी बनाई है। कंपनी ने कॉलोनी के लिए इन्वायरमेंट क्लीयरेंस लेने की जरूरत नहीं समझी।
करूणासागर-न्यूयार्क में ईसी तो यहां क्यों नहीं
केलिफोर्निया के अलावा कंपनी के सीधे तौर पर दो प्रोजेक्ट और चल रहे हैं कनाड़िया रोड पर 26890 वर्गमीटर जमीन पर विकसित हाईवे करूणासागर और ग्राम निहालपुर मुंडी की 5.25 हेक्टेयर जमीन पर विकसित न्यूयार्क सिटी। दोनों प्रोजेक्ट के लिए कंपनी ईसी ले चुकी है। शर्तों के उल्लंघन पर दोनों प्रोजेक्ट की ईसी एक-एक बार निरस्त हो चुकी है। न्यूयार्क सिटी की ईसी दोबारा अपै्रल 2015 में मिली जबकि ईसी निरस्त होने के साथ ही रूका करूणासागर का काम अब तक शुरू नहीं हुआ है। तमाम कोशिशों के बावजूद कंपनी अब तक ईसी नहीं ले पाई।
क्यों आती है नियम के दायरे में
20 हजार वर्गमीटर से अधिक की टाउनशीप और 1.5 लाख वर्गमीटर से अधिक की कॉलोनी के लिए ईसी जरूरी है। यदि केलिफोर्निया सिटी की बात करें तो 45 मीटर चोड़ी प्रस्तावित सड़क में आ रही जमीन सहित कुल जमीन 213174 वर्गमीटर है जहां कॉलोनी विकसित हुई। इसमें ऐसे मिली मंजूरी-
मंजूरी वर्गमीटर
व्यावसायिक प्लॉट 9432.86
इंटरटेनमेंट बिल्डिंग 6378.30
प्लॉट डेवलपमेंट 131849.73
मल्टी प्रोजेक्ट 46721.95
प्राइमरी स्कूल 4000.78
इन्फार्मल सेक्टर 8073.00
सब पोस्ट आॅफिस 138.24
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 742.20
अंडर सर्विस 1370.37
फ्यूचर प्लानिंग 4467.02
कुल 213174.45
जबकि मंजूरी के लिए 1.5 लाख वर्गमीटर ही जरूरी है। 1.5 लाख वर्गमीटर से अधिक वाले मामले बड़े माने जाते हैं। इसमें इन्वायरमेंट इम्पेक्ट असेसमेंट (ईआईए) होता है जो कि एमपीएसईएआईआई की टीम मौके पर जाकर करती है।
स्थानीय निकाय की जिम्मेदारी पालन कराना
नोटिफिकेशन 2006 का पालन सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी स्थानीय निकाय (पंचायत या नगर निगम) से लेकर जिला कलेक्टर तक की है। नियम कहता है जो बिल्डर प्रोजेक्ट्स पर सिया से पर्यावरण मंजूरी नहीं लेंगे, उनकी टीएनसीपी की भूमि विकास अनुज्ञा भी निरस्त हो जाएगी। इस अनुमति के बाद ही टीएनसीपी में आवेदन दिया जा सकेगा।

केमिकल के नाम पर आई 50 करोड़ की आर्टिफिशियल ज्वैलरी

- डीआरआई के शिकंजे में आईसीडी पीथमपुर
- पांच दिन में दूसरी कार्रवाई, 12 कंटेनर जब्त,
- बहुतायत में ज्वैलरी और स्टेराइड मिला
इंदौर. विनोद शर्मा ।
केमिकल की आड़ में आए पटाखों की अकाउंटिंग भी पूरी नहीं हुई थी कि डारेक्टर रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की टीम ने सोमवार को 12 कंटेनर और पकड़े। पटाखे लाने वाली दिल्ली की प्रेस्टीज पोलिमर प्रा.लि. के नाम से आए इन कंटेनर्स में केमिकल की आड़ में प्रतिबंधित आर्टिफिशियल ज्वैलरी और बॉडी बिल्डिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले स्टेराइड्स और फूड सप्लीमेंट््स की खेप निकली है।
प्रिंसिपल एडिशनल डायरेक्टर जनरल (पीएडीजी), मुंबई अजीतकुमार सिंह के आॅफिस से मिली सूचना के आधार पर डीआरआई इंदौर ने आईसीडी पीथमपुर में इस कार्रवाई को अंजाम दिया। बताया जा रहा है कि 12 कंटेनर जब्त किए गए हैं जिनकी बिल्डिंग प्रेस्टीज के नाम से थी जो कि मुलत: दिल्ली की कंपनी है लेकिन एसईजेड-1 से ट्रेडिंग करती है। सीज किए गए 12 कंटेनर्स में से दो कंटेनर में ही वह सामान निकला जिसकी बिल बनकर आया था। चार अन्य कंटेनर खोले गए जिनमें 50 करोड़ से ज्यादा की आर्टिफिशियल ज्वैलरी निकली है और करीब 5 करोड़ का स्टेराइड व सप्लीमेंट निकला है।
चोरी सामने आई तो भाग गया संचालक
केमिकल की आड़ में आए पटाखों की जांच के दौरान हाथ लगे प्रेस्टीज के एक संचालक को डीआरआई की टीम ने पकड़ा और आईसीडी पीथमपुर ले गई। यहां संचालक ने अपने काम को पाक साफ बताने के लिए पहले दो कंटेनर खुलवाए। इन कंटेनर में बिल के हिसाब से ही सामान था। इस पर उसने टीम पर अनावश्यक परेशान करने का आरोप तक मढ़ा। बाद में टीम ने जब तीसरा कंटेनर खोला तो सारी हेकड़ी निकल गई। पहले टीम मेंम्बर्स को मोटी रकम आॅफर की लेकिन जब दाल नहीं गली तो लघुशंका का बहाना करके फरार हो गया।
डीआरआई के निशाने पर आईसीडी
आयात-निर्यात के नाम पर कस्टम ड्यूटी पकड़ने की जिम्मेदारी कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स विभाग की है। जिसका कार्यालय आईसीडी पीथमुपर में भी है। बावजूद इसके यहां आठ दिन में लगातार दूसरी बार मिस डिक्लेरेशन का केस उजागर कर डीआरआई की टीम ने न सिर्फ करोड़ों रुपए का सामान जब्त किया बल्कि करोड़ों की कस्टम ड्यूटी चोरी भी उजागर की। बताया जा रहा है कि लगातार सामने आई ड्यूटी चोरी के चलते डायरेक्टर जनरल (डीजी) जयंत मिश्रा ने आईसीडी पर अपनी टीम को पैनी निगाह रखने की हिदायत दी है।
पटाखों की गणना ही नहीं हो पाई
टीम ने 7 सितंबर को केमिकल की आड़ में आए पटाखों के आठ कंटेनर जब्त किए थे जिनकी गणना ही अब तक नहीं हो पाई है। पहले  दिन दो कंटेनर खोले गए थे। दूसरे दिन एक। अब तक छह कंटेनर ही खोले गए हैं। 

प्रेस्टीज पॉलीमर प्रा.लि. पर मेहरबान कस्टम और एसईजेड

व्यापार के नाम पर दिया  तस्करी का लाइसेंस 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
केमिकल के नाम पर चीनी पटाखे, आर्टिफिशियल ज्वैलरी और स्टेराइड फूड सप्लीमेंट आयात करने वाली प्रेस्टीज पॉलीमर प्रा.लि. के नाम से न कोई गोदाम है, न ही मैन्यूफेक्चरिंग या री-पैकिंग यूनिट। है तो सिर्फ एसईजेड में करीब पांच हजार वर्गफीट का प्लॉट। यहां आईसीडी से कंटेनर आते हैं। सामान निकालकर आधे घंटे में दूसरे कंटेनर में रखकर रवाना कर दिया जाता है। मतलब, व्यापार कम, तस्करी ज्यादा। ऐसे में कंपनी को एसईजेड में मिली जगह ने एसईजेड प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 
प्रेस्टीज पोलीमर प्रा.लि. के कंटेनर की जांच डायरेक्टर रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) के जांच अधिकारियों के लिए सिरदर्द बन गई है। जितने कंटेनर, उतनी नई कहानी। अधिकारियों की मानें कस्टम ड्यूटी चोरी के मामले में आईसीडी, पीथमपुर में पहले कभी ऐसी कंपनी नहीं देखी। इस कंपनी को एसईजेड के उन अधिकारियों का भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष साथ मिल रहा है जिन्होंने मेन्यूफेक्चरिंग यूनिट के बीच पहले तो इस यूनिट को टेÑडिंग के लिए जमीन दी। अब उसके कंटेनर भी चेक नहीं होते। मंगलवार को भी एक कंटेनर से 2.65 करोड़ की स्टेशनी और फूड सप्लीमेंट निकले हैं। 
ट्रेडिंग पर लगाई रोक... 
डीआरआई ने सख्ती करते हुए प्रेस्टीज पोलिमर पॉलीमर प्रा.लि. की एसईजेड से होने वाली ट्रेडिंग पर रोक लगा दी है। एसईजेड और कंपनी के बीच हुआ लेटर आॅफ अप्रुवल भी निरस्त कर दिया है। जांच अधिकारियों ने एसईजेड को लिखित में दे दिया है कि जब तक डीआरआई की एनओसी न मिले, तब तक ट्रेडिंग की इजाजत न दें। 
अपै्रल 2016 में आवंटन, अब तक सिर्फ बाउंड्रीवाल
मुलत: दिल्ली की इस कंपनी को एसईजेड का प्लॉट नं. डी-62 अपै्रल 2016 में आवंटित हुआ था। आवंटन के कुछ दिन बाद से ही कंपनी ने ‘इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट’ शुरू कर दिया था। वह भी उस स्थिति में जब आवंटित प्लॉट पर अब तक शेड भी नहीं लगा। रेडिमेड बाउंड्रीवाल खड़ी है। बीच में प्लींथ का काम हुआ है, दो फीट ऊंची दीवार उठी है।   
सेक्शन का सहारा...
एसईजेड के कानून अलग हैं। इसे अलग देश ही माना जाता है। जहां मेन्यूफेक्चरिंग यूनिट्स को बिना ड्यूटी चुकाए माल आयात करने की इजाजत है ताकि वे इससे प्रोडक्ट बनाएं, निर्यात करें और विदेशी करंसी भारत में लाएं। एसईजेड की यूनिट के लिए आने वाले कंटेनर की आईसीडी में जांच नहीं होती है। न कंटेनर कॉर्पोरेशन आॅफ इंडिया(सीसीआई) जांच करती है और न वहां पदस्थ कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स विभाग की टीम। जब कंटेनर एसईजेड में जाता है तो वहां भी सेक्शन 75 के नाम पर कंटेनर के कंटेंट की जांच नहीं होती।
सिर्फ यही देखा जाता है कि बिल में जो नंबर है उसी नंबर का कंटेनर है या नहीं। कंटेनर पर बॉटल सील लगी है या नहीं। बिल में कंटेनर की लंबाई 20 फीट लिखी है और आया हुआ कंटेनर 40 फीट का तो नहीं है। कंपनी को मिले कानूनी अधिकार एसईजेड में चीनी पटाखों के रूप में बारूद का जखिरा पहुंचाने वाले थे। वह भी उस स्थिति में जब प्लॉट के आसपास केमिकल और फार्मा कंपनियां है। 
कंपनी के डायरेक्टर भी फरार 
डीआरआई ने आईसीडी में छापामार कार्रवाई करने के साथ ही ए-6 शालीमार टाउनशीप रो-बंगलो और साहिल कान्हां पार्क में भी कार्रवाई की थी। दोनों जगह कोई नहीं मिला। दिल्ली के पतों पर भी दबिश दी लेकिन जांच में वह भी फर्जी निकले। विशेषज्ञों की मानें तो चूंकि आयातित माल की कीमत एक करोड़ से अधिक है इसीलिए डायरेक्टर्स की गिरफ्तारी तय है। मिस डिक्लेरेशन की कार्रवाई अलग। 
सभी फरार हैं
डायरेक्टर पते
मनीश पिता हरीशचंद्र भल्ला बी-2/15 मॉडल टाउन, दिल्ली
हरीशचंद्र पिता गणेशदास भल्ला बी-2/15 मॉडल टाउन, दिल्ली
कंपनी 
प्रेस्टीज पॉलीमर प्रा.लि.
पायोनियर पॉलीमर प्रा.लि. 
ओरिया आॅर्गेनिक प्रा.लि. 

छह महीने में पूरा करें इंदौर-दाहोद का जमीन अधिग्रहण-ताई

दबंग रिपोर्टर, इंदौर।
महत्वकांक्षी इंदौर-दाहोद रेल परियोजना में जमीन अधिग्रहण का बहाना अब नहीं चलेगा। बजट की कमी नहीं है। छह महीने में हर हाल में अधिग्रहण पूरा करें और ट्रेक के टुक-टुक काम को रफ्तार दें। ढिलाई किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं होगी। मंगलवार को रेल अधिकारियों की बैठक लेते हुए तल्ख तेवर के साथ यह चेतावनी लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने दी।
रेसीडेंसी कोठी में हुई बैठक में ताई ने दो टूक शब्दों में कहा कि प्रोजेक्ट की रफ्तार सिरदर्द बन चुकी है।  अधिग्रहण बाधा है तो इसे जल्द दूर करें। अब तो बजट में भी 300 करोड़ मिले हैं। अधिकारियों ने बताया कि सागौर-गुणावद के बीच 15 किलोमीटर और गुणावद से धार के बीच 12 किलोमीटर में समस्या है। झाबुआ से पिटोल के बीच अधिग्रहण हुआ नहीं है। इस पर ताई ने कहा कि जहां जमीन मिली है या मिल रही है वहां तो गति दें। 30 किलोमीटर का घाट सेक्शन है वहां टनल और पहाड़ कटिंग का काम तेज किया जा सकता है। रहा अधिग्रहण का मुद्दा तो छह महीने में यह काम तो पूरा कर लो। इसके लिए रेलवे और प्रशासन के साथ जनप्रतिनिधियों को एक होना होगा। बैठक में झाबुआ सांसद कांतिलाला भूरिया, धार सांसद सावित्री ठाकुर के साथ ही तीनों जिलों के कलेक्टर और पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक जीसी अग्रवाल व रेलवे के अन्य अधिकारी मौजूद थे।
भूरिया ने राज्य सरकार पर निशाना साधा
झाबुआ सांसद भूरिया ने कहा योजना में देरी के लिए मप्र और गुजरात  सरकार जिम्मेदार है जिनकी वजह से वक्त पर भू-अधिग्रहण नहीं हुआ।  इनकी ढिलाई का खामियाजा न सिर्फ रेलवे ने बढ़ी हुई लागत के रूप में भुगता है बल्कि दोनों राज्यों की जनता भी परेशानी झेल रही है।
एटीसीपी के लिए पहले खंडवा सनावद ब्राडगेज...
पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री अग्रवाल के मुताबिक  2019 तक खंडवा में एंटीसीपी का प्लांट शुरू होना है। इसीलिए महू-सनावद के पहले सनावाद-खडंवा के बीच ब्राडगेज कर देंगे। इस बीच महू-सनावद पर भी काम होगा। आवश्यक राशि भी रेलवे को दे दी। टेंडर हो चुके हैं। इंदौर-दाहोद और धार-छोटा उदयपुर प्रोजेक्ट में भी अधिग्रहण जल्द होगा यह आश्वसन संबंधित कलेक्टर भी दे चुके हैं।
टनल पर टेंशन...
टीही से पीथमपुर चौपाटी होते हुए खंडवा तक टनल बनना है। इसके काम भी अभी पेपर पर ही है जिसके लिए भी ताई ने नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा  2011 तक टनल नहीं थी, बाद में डिजाइन बदलकर टनल बढ़ा दी। अब योजना में बदलाव संभव नहीं है। बस फटाफट काम करो।
ताई ऐसे तो 10 साल में भी पूरा नहीं होगा प्रोजेक्ट
एक दशक तक चली लंंबी कवायद के बाद 2008 में 202 किलोमीटर लंबी इंदौर-दाहोद परियोजना का काम शुरू हुआ था। अब तक इंदौर से टिही के बीच ही 18 किलोमीटर लंबी लाइन ही डली है। टीही से पीथमपुर चौपाटी के बीच सिर्फ अर्थवर्क है। इसी तरह खंडवा (पीथमुपर) से तीन किलोमीटर तक अर्थवर्क ही नजर आता है। इस गति से 2026 तक भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं होगा।
लागत कहां से कहां...
2008 में जिस वक्त परियोजना का शिलान्यास हुआ था तब इसकी लागत 642 करोड़ आंकी जा रही थी। काम के मुकाबले लागत तेजी से बढ़ी। आठ वर्षों में 2.72 गुना बढ़ी जबकि काम हुआ 2.25 किलोमीटर/साल के औसत से।
प्रोजेक्ट 2013 में पूरा होना था, होगा 2023 में
शुरूआत के साथ प्रोजेक्ट की समयसीमा 2013 तय की गई थी लेकिन मौजूदा काम को देखते हुए कहा जा सकता है कि परियोजना 2023 में पूरी होगी। 10 साल देर से। 202 में से 20 किलोमीटर में गुजरात काम कर चुका है। करीब 20 किलोमीटर में मप्र। बचे 160 किलोमीटर, जहां काम होना है

जीएसटी : उपभोग दिलाएगा मप्र को ज्यादा राजस्व

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
जीएसटी आजादी के बाद अप्रत्यक्ष करों के सुधार में सबसे सार्थक कदम है। जीएसटी के अंतर्गत जिस राज्य मे माल की खपत होगी, उसी राज्य को इसका राजस्व मिलेगा। चूंकि मप्र की गिनती कंस्यूमर स्टेट के रूप में होती है इसीलिए जीएसटी से यहां राजस्व बढ़ना तय है। इंडियन कन्फेक्शनरी मेन्यूफेक्चरर्स (आईसीएम) द्वारा आयोजित आॅल इंडिया कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए यह बात वाणिज्यिक कर उपायुक्त सुदीप गुप्ता ने कही।
नक्षत्र गार्डन में संपन्न हुई एक दिवसीय कॉन्फ्रेंस के पहले सत्र को संबोधित करते हुए श्री गुप्ता ने कहा कि जीएसटी काउंसिल का गठन केन्द्रीय मंत्रिमंडल के द्वारा कर दिया गया है। काउंसिल द्वारा कर से मुक्त वस्तुएं एवं सेवाओं का निर्धारण,  कर की दरों का निर्धारण,  थ्रेसहोल्ड लिमीट का निर्धारण आदि कार्य किया जाना है। काउंसिल की प्रथम मिटींग इसी माह 22 एवं 23 तारीख को होना है। जीएसटी वैज्ञानिक रूप से तैयार की गई कर प्रणाली है। जिसमें व्याप्त पारदर्शिता के कारण व्यापार करना सरल होगा।
रूकेगी टैक्स चोरी
वरिष्ठ कर सलाहकार आर.एस.गोयल ने बताया कि जीएसटी के अंतर्गत प्रथम बिंदु पर ही कर वसुल लिया जाएगा। अत: जीएसटी के अंतर्गत टैक्स चोरी की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी जिसके परिणामस्वरूप राजस्व मे वृध्दि होने से निकट भविष्य मे कर की दरें कम होगी।
12 महीने में बिल नहीं तो क्रेडिट नहीं
श्री गोयल ने बताया जीएसटी लागु होने के दिनांक को जो स्टॉक शेष रह जाएगा उस स्टॉक का इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने के लिए व्यवसायियों को उससे संबंधित बिल प्रस्तुत करना होंगे। किन्तु यदि ऐसे बिल 12 माह की अवधि के पहले के होंगे तो इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त नही होगा।
लाभ : चूंकि जीएसटी के अंतर्गत ऐसी वस्तुएं जिन पर वर्तमान में एक्साइज डयूटी, सीएसटी, इंट्री टैक्स, वाणिज्यिक कर देय है उन पर वर्तमान मे 32 से 35 प्रतिशत की दर से अप्रत्यक्ष कर का दायित्व आता है जो जीएसटी के बाद घटकर 18 से 20 प्रतिशत रह जाएगा।
नुकसान : जिन वस्तुओं पर वर्तमान में 5 से 6 प्रतिशत टैक्स लगता है या जिन पर एक्साइज डयूटी नही लगती है उन पर भी जीएसटी में 6 से 12 प्रतिशत तक टैक्स देना पड़ सकता है। 

टीही में सौ एकड़ जमीन पर बन रहा 200 करोड़ का लॉजि पार्क

मालवा-निमाड़ में आयात-निर्यात को देगी गति
पीथमपुर की कंपनियों का खर्च होगा कम
 इंदौर. विनोद शर्मा ।
पीथमपुर सहित मालवा-निमाड़ के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में आयात-निर्यात आसान करने के मकसद से कंटेनर कॉर्पोरेशन (कोनकोर) आॅफ इंडिया (रेल मंत्रालय का उपक्रम) ने टिही में मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क का काम शुरू कर दिया है। इंदौर-दाहोद रेल लाइन और एबी रोड के बीच करीब सौ एकड़ में बनने वाले लॉजि पार्क से कंटेनर परिवहन न सिर्फ आसान बल्कि सस्ता भी होगा।
कॉर्पोरेशन ने बीते साल 520 करोड़ की लागत से दो लॉजि पार्क मंजूर किए थे। 346 करोड़ की लागत से बरही, हरियाणा और 174 करोड़ की लागत से टीही, इंदौर। पहले चरण के तहत कॉर्पोरेशन 38.65 करोड़ के काम की जिम्मेदारी संजीवकुमार गोयल कान्ट्रेक्टर को दी है। कंपनी ने एक तरफ अर्थवर्क, बाउंड्रीवाल, वेअरहाउस, प्रशासनिक भवन, डेÑेनेज सिस्टम, ब्रिज और विद्युतीकरण का काम शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ 22 करोड़ की लागत से डेढ़ किलोमीटर लंबी ट्रेक डाली जा रही है।
दूसरा चरण
अभी कॉर्पोरेशन ने 32 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित करके काम शुरू किया है। विस्तार की संभावनाओं के साथ अधिग्रहण अभी जारी है। दूसरे चरण के तहत वेअर हाउस व अन्य सुविधाओं का विस्तार होगा। इंदौर-दाहोद रेल लाइन और प्लेटफार्म के बीच होगी नई सुविधाएं।
थ्री लेन लाइन डलेगी
टीही पर बन रहे इंदौर-दाहोद रेल लाइन के स्टेशन से पीथमपुर की ओर 1.700 किलोमीटर दूर प्रोजेक्ट के तहत 800 मीटर लंबा और 30 मीटर चौड़ा प्लेटफार्म बनाने का काम भी शुरू हो चुका है। इसके लिए इंदौर-दाहोद रेल लाइन से जोड़कर 1.600 किलोमीटर लंबी थ्री लेन ब्रांडगेज रेल लाइनें भी बिछाई जाएगी। टेÑक का काम भी शुरू हो चुका है। इसका काम किसी अन्य कंपनी के पास है।
अभी पीथमुपर में दो इनलैंड कंटेनर डिपोर्ट (आईसीडी) हैं। 1994 से संचालित 17 एकड़ का आईसीडी पीथमपुर और  करीब 8 एकड़ का खेड़ा आईसीडी। दोनों रोड लिंक है। रेल लिंक आईसीडी अभी रतलाम (टू लेन ट्रेक) और मंडीदीप में है। टीही लॉजि पार्क इन सबसे भारी बनना है।
आईसीडी पीथमपुर से संबंधित
अभी कंटेनर कॉर्पोरेशन आॅफ इंडिया पीथमपुर में इनलैंड कंटेनर डिपोट (आईसीडी) संचालित कर रहा है। चूंकि यह डिपो रोड लिंक से जुड़Þा है इसीलिए कॉर्पोरेशन रेल लिंक वाले टीही डीपी को आईसीडी पीथमपुर से जोड़कर ही चलाएगा।
बड़ा फायदा...
अभी पीथमपुर या सांवेर रोड के उद्योगों को रतलाम से कंटेनर बुलवाना पड़ते हैं। क्योंकि पीथमपुर आईसीडी रोड लिंक है और सांवेर रोड पर कुछ है नहीं। अब इंदौर-टीही तक कंटेनर आ सकेंगे। यहां से पीथमपुर बमुश्किल 10-15 किलोमीटर है। जबकि सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र 20-25 किलोमीटर दूर। इससे कंटेनर बुलाने का खर्च भी काफी कम होगा।
पानी निकासी में बाधा नहीं
रेल लाइन और एबी रोड के बीच 300 मीटर की दूरी है। दोनों के बीच  से टीही की ओर से आने वाला नाला भी निकलता है। इंदौर-दाहोद रेल लाइन और एबी रोड पर पुलिया बनी है इस नाले पर। पानी निकासी को निर्बाध रखने के मकसद से इसी नाले पर रेल-एबी रोड के बीच एक पुल और बन रहा है। इस पुल से भी प्लेटफार्म के लिए आने वाली ट्रेक डलेगी। नाले से जुड़ने वाली डेÑन भी डाली जाएगी ताकि प्लेटफार्म के पानी की निकासी भी हो।


फार्मा ट्रेडर और जीएनजी कोचिंग पर सर्विस टैक्स का छापा

दोनों जगह डेढ़ करोड़ की कर चोरी का अनुमान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
दवा कंपनियों की केअरिंग एंड फार्वर्डिंग (सीएंडएफ) से लेकर देवी अनुसुइया स्कूल चलाने वाले सुभाषचंद्र अग्रवाल और गुलाब अग्रवाल की फार्मा ट्रेडर इंडिया प्रा.लि. के खिलाफ कस्टम सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स विभाग की टीम ने गुरुवार को छापेमार कार्रवाई की। बताया जा रहा है कि कार्रवाई के दौरान अधिकारियों के हाथ ऐसे दस्तावेज लगे हैं जो कि प्रथम दृष्टया ही एक करोड़ तक की सर्विस टैक्स चोरी की पुष्टि करते हैं।
सर्विस टैक्स की टीम ने गुरुवार की शाम 18/2 लसूड़िया (पंचवटी के सामने) स्थित फार्मा ट्रेडर इंडिया प्रा.लि. पहुंची और छापेमार कार्रवाई को अंजाम दिया। कंपनी न सिर्फ फार्मास्यूटिकल्स प्रोडक्ट की सीएंडएफ है बल्कि आॅटोमोबाइल पार्ट्स और इंजीनियरिंग गुड्स में भी हाथ आजमा रही है। कंपनी के वेअरहाउस हैं। सुभाषचंद्र अग्रवाल और गुलाब अग्रवाल देवी अनुसुइया विद्या संस्थान के बेनर तले इंदौर-देवास रोड स्थित डकाच्या के सर्वे नं. 277/4 की  0.971 हेक्टेयर जमीन पर देवी अनुसुइया विद्या निकेतन संचालित कर रहे हैं। जमीन गुलमोहर कॉलोनी निवासी सुभाष पिता रामकिशोर, गुलाबबाई पति सुभाष अग्रवाल के नाम है। यहीं सर्वे नं. 242/1 की 0.916 हेक्टेयर जमीन भी अग्रवाल के नाम ही है।
करीब एक करोड़ की चोरी
अग्रवाल ने 1989 में फार्मा ट्रेडर की स्थापना की  थी। कंपनी आरओसी में पंजीबद्ध हुई जनवरी 2001 में। कंपनी से जो दस्तावेज बरामद हुए हैं उनमें एक करोड़ तक की कर चोरी सामने आई है। हालांकि अधिकारी इस आंकड़े से इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि जब तक दस्तावेजों की बारीकी से जांच नहीं हो जाती तब तक आंकड़ा स्पष्ट नहीं होगा।
बड़ा है समूह
18/2 लसूड़िया से पहले 4/7 में संचालित होते आया समूह फार्मा टेÑडर समूह की गिनती इंदौर ही नहीं मालवा-निमाड़ के बड़े सीएंडएफ एजेंट के रूप में होती है। फार्मा ट्रेडर के बाद सुभाष अग्रवाल ने 2006 में एस्ट्रा आईडीएल लि. और 2011 में एसआरके देवबिल्ड प्रा.लि., पी.ट्रेड एफएमसीजी प्रा.लि. और देवी अनुसुइया संस्थान की नींव रखी।
बैंक कर्ज से बढ़ी कहानी
फार्मा ट्रेडर प्रा.लि. ने 2001 के बाद कर्ज से अपने कारोबार को आगे बढ़ाया। 2005 से 2015 के बीच कंपनी ने 42,16,40,178 का कर्ज लिया। इसी तरह 2011 में पंजीबद्ध हुई देवी अनुसुइया विद्या संस्थान के नाम से 11,56,25,419 का कर्ज लिया। अन्य कंपनियों के नाम जारी हुए लोन की सूची भी लंबी है-
एसआरके देवबिल्ड
एचडीएफसी : 12,00,000
बैंक आॅफ इंडिया : 11,00,00,000
एयू फाइनेंस : 4,00,00,000
एस्ट्रा  आईडीएल
एक्सिस बैंक : 4,25,00,000
पी-ट्रेड एफएमसीजी
बैंक आॅफ बरौदा : 2,98,00,000
एचडीएफसी : 11,35,26,000
फेडरल बैंक : 21,00,00,000
रिलायंस केपिटल : 3,00,00,000
टाटा केपिटल : 4,10,00,000
जीएनजी कोचिंग क्लास पर भी छापा
सर्विस टैक्स चोरी के मामले में कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स विभाग की टीम ने एमजी रोड की इंद्रप्रस्थ टॉवर स्थित जीएनजी कोचिंग क्लासेस के खिलाफ भी छापेमार कार्रवाई की। इसकी एक शाखा मनभावन प्लाजा बैंक कॉलोनी दशहरा मैदान पर भी है। यहां आईआईटी, जेईई, पीएमटी जैसे इंटेÑंस एक्साज की तैयारी कराई जाती है। यहां भी बड़ी तादाद में दस्तावेज मिले हैं जिनकी जांच जारी है।

चेक पोस्ट हटते ही बढ़ेगा वाहनों का सफर

एआईएमपी सदस्यों को जीएसटी से रुबरू कराया वाणिज्यिक कर आयुक्त ने
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
अलग-अलग राज्यों द्वारा लागू कर प्रणालियों के स्थान पर जीएसटी के रूप में एक ही कर प्रणाली लागू होने से व्यापारियों की समस्या कम होगी। चेक पोस्ट हटने से वाहन अभी 280 किलोमीटर/दिन ही यात्रा कर पा रहे हैं। जीएसटी के बाद यह दूरी 444 किलोमीटर/दिन हो जाएगी। इससे ट्रांसपोर्टेशन कास्ट कम होगी। मुनाफा बढ़ेगा। एसोसिएशन आॅफ इण्ड्रस्टीज म.प्र. (एआईएमपी) द्वारा जीएसटी पर आयोजित सेमीनार में यह जानकारी वाणिज्यिक कर आयुक्त राघवेंद्र सिंह ने दी।
उद्योगपतियों को जीएसटी के प्रावधानों से रुबरू कराने के मकसद से उद्योग भवन पोलोग्राउण्ड पर आयोजित सेमीनार को संबोधित करते हुए बतौर मुख्य अतिथित श्री सिंह ने कहा कि अभी रेवेन्यू न्यूट्रल रेट 15 से 16 प्रतिशत है। कुछ प्रोडक्ट कर मुक्त हैं। जीएसटी के बाद कुछ वस्तुओं के लोवर रेट, कुछ के स्टेंडर्ड टैक्स रेट लागू होंगे। डी मेरिट गुड्स पर 40 प्रतिशत तक होंगे। इसीलिए संभावना है कि स्टेंडर्ड रेट 18 से 20 प्रतिशत होंगे। संचालन  संस्था के सचीव  योगेश मेहता ने किया।
2 प्रतिशत कंपोजिशन देगा झंझट से मुक्ति
जीएसटी से जहां दोहरे करारोपण से मुक्ति मिलेगी वही दूसरी ओर पूरे देश में एक समान कर की दर होने से व्यापार एवं व्यवसाय करना सरल होगा।  50 लाख तक के टर्नओवर वाले छोटे व्यवसाइयों को 2 प्रतिशत की दर से कम्पोजिशन फीस जमा कराने पर अलग से कर की वसूली, इनपुट टैक्स रिबेट (आईटीआर), इनपुट टैक्स क्रेडिट(आईटीसी) के दावे और मासिक रिटर्न से मुक्ति मिलेगी।
सुधीप गुप्ता, उपायुक्त
वाणिज्यिक कर
जीएसटी से मिलेगी उद्योगों को नई उर्जा
विश्वव्यापी मंदी के कारण गिरते औद्योगिक उत्पादन, गलाकाट प्रतिस्पर्धा, उपभोक्ताओं की क्षीण क्रय शक्ति की समस्या से जूझ रहे उद्योगों को जीएसटी से नई उर्जा मिलेगी। करों के एकीकरण से न सिर्फ करों की संख्या कम व दर कम होगी बल्कि व्यापारियों का समय बचेगा। उत्पादन बढ़ेगा। जीडीपी के  साथ उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी। जीएसटी के पारदर्शी एवं कम्प्यूटराइजेशन के कारण मानवीय हस्तक्षेप कम होने से व्यवसाइयों की परेशानियां कम होगी। चेकपोस्ट हट जाएगी। चूंकि प्रदेश भारत वर्ष से सड़क मार्ग से जुडा हैं, अत: विभिन्न कम्पनियां यहां से अपना अपना व्यवसाय संचालित करना चाहेंगी।
आर.एस.गोयल
वरिष्ठ कर सलाहकार
उद्योगपतियों को अप्रत्यक्ष कर की नई प्रणाली के अनुसार स्वयं की तैयारी पुख्ता रखनी चाहिए ताकि जीएसटी के लागू होने से प्राप्त होने वाले लाभ को भुनाया जा सके।
ओमप्रकाश धूत, अध्यक्ष
एआईएमपी

सीबीआई को भी नहीं मिलेगी घोषित संपत्ति की जानकारी

अंतिम चरण में आईडीएस को लेकर सीबीडीटी की पहल
इंदौर. विनोद शर्मा ।
आयकर विभाग की स्वघोषित आय स्कीम (आईडीएस) के तहत काली कमाई सरेंडर करने वालों की संख्या 30 सितंबर नजदीक आते-आते और बढ़ गई है। वहीं स्कीम के तहत अब तक प्रिंसिपल चीफ कमिश्नरेट (मप्र-छग) में 550 करोड़ तक काली कमाई सरेंडर हुई है। उधर,  सीबीडीटी ने स्पष्ट कर दिया है कि सरेंडर राशि के संबंध में किसी तरह की जानकारी कोर्ट को छोड़ किसी के साथ साझा नहीं की जा सकती। फिर भले वह टैक्सेशन डिपार्टमेंट हो या फिर सीबीआई जैसी इन्वेस्टिगेशन एजेंसी।
सितंबर के पहले हफ्ते तक डिक्लेरेशन की स्थिति कमजोर थी जो अब बढ़ चुकी है। मंत्रालय को 1 लाख करोड़ के खुलासे का अनुमान है। चूंकि स्कीम स्व: घोषणा की है इसीलिए अधिकारियों को टार्गेट नहीं दिए गए हैं। बावजूद इसके अब तक छत्तीसगढ़ में 300 करोड़ और मप्र में 250 करोड़ से ज्यादा सरेंडर हो चुके हैं। चीफ कमिश्नरेट इंदौर की स्थिति चीफ कमिश्नरेट भोपाल से बेहतर है। इंदौर में फर्जी लोन, फर्जी तरीके से लिए लॉन्ग टर्म केपिटल गेन (एलटीसीजी) और नकदी में होने वाले बिजनेस लेनदेन के मामले सामने आए हैं। यहां सरेंडर राशि का अनुमान 100 करोड़ से ज्यादा लगाया जा रहा है। हालांकि स्कीम की शर्तों का हवाला देते हुए अधिकारी डिक्लेरेशन की संख्या से लेकर डिक्लेयर इनकम तक की जानकरी नहीं दे रहे हैं। उनकी मानें तो आंकड़ा 30 सितंबर के बाद सार्वजनिक होगा।
आगे नहीं बढ़ेगी तारीख
स्कीम के तहत छह बार आ चुके सीबीडीटी के स्पष्टीकरण और टैक्स की राशि चुकाने के लिए बढ़ाई गई समयसीमा को देखते हुए आईडीएस की समयसीमा भी 30 सितंबर के बाद भी बढ़ाए जाने का कयास लगाया जा रहा था। इसके विपरीत बोर्ड ने स्पष्ट कर दिया कि 30 सितंबर ही अंतिम मौका है। तारीख नहीं बढ़ेगी।
बड़े फायदे हैं स्कीम के...
- इनकम टैक्स डिक्लेयर जानकारी को सेंट्रल एक्साइज, सर्विस टैक्स, ईडी या वाणिज्यिक कर जैसे डिपार्टमेंट के साथ साझा नहीं कर सकता। इतना ही नहीं किसी भी लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसी (सीबीआई, ईओडब्लयू, लोकायुक्त) को भी जानकारी नहीं दे सकता।
- अनक्लेम्ड टीडीएस की के्रडिट ली जा सकेगी। बेनामी संपत्ति खरीदते वक्त जो टीडीसी किसी अन्य नाम से चुकाया गया है उसे भी क्लैम किया जा सकता है।
- स्कीम के तहत 25 प्रतिशत की पहली किस्त का भुगतान नवंबर, 2016 तक करना है। 25 प्रतिशत की अगली किश्त 31 मार्च 2017 तक  चुकाना है। बाकी रकम 30 सितंबर 2017 तक चुकाना है। पहले समयसीमा सिर्फ 30 नवंबर थी।
तो बैंग्लुरू में फाइल कर दें डिक्लेरेशन
यदि किसी करदाता को लगता है कि उसके द्वारा स्कीम में घोषित की गई जानकारियां स्थानीय अधिकारी लीक कर सकते हैं या उसे दूसरे विभागों से साझा कर सकते हैं, सार्वजनिक कर सकते हैं। ऐसे करदाता सेंट्रलाइज्ड प्रोसेसिंग सेंटर (सीपीसी) बैंग्लुरू के कमिश्नर इनकम टैक्स के समक्ष अपना डिक्लेरेशन फाइल कर सकते हैं।