Friday, January 20, 2017

झंवर परिवार के हित में उलझी मोर्या हिल्स

सेटेलाइट से दिखता है मोर्या हिल्स पर झंवर का झूठ
जानबÞुझकर फंसाया पेंच, ताकि बाद में बीजी कंपनी को ही मिल जाए जमीन
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जिस बीजी कंपनी के खिलाफ प्लॉटधारक अपने हक के लिए बार-बार कलेक्टर और डीआईजी का दरवाजा खटखटा रहे हैं उसने ‘मोर्या हिल्स’ की प्लानिंग ही ऐसी तगड़ी की थी कि लोगों को प्लॉट पाने में पसीने आ जाए। शिकायतकर्ताओं के माध्यम से ‘सरकार’ तक पहुंचे दस्तावेजों के अनुसार कंपनी और उसके सर्वेसर्वा उत्तम झंवर ने सुविधाओं का सब्जबाग दिखाकर कॉलोनी तो काटी लेकिन प्लॉटों की रजिस्ट्री कृषि भूमि के रूप में कर दी।
खजराना के सर्वे नं. 1429/1/1, 1429/1/2 और 1429/1/3 की 133.30 एकड़ जमीन पर बी.जे.कंपनी प्रा.लि. ने मोर्या हिल्स नाम की कॉलोनी 1997 में काटी थी। प्लॉटधारकों को लुभाने के लिए स्वीमिंग पुल, क्लब, बगीचे, लैंडस्केपिंग और 24 घंटे सुरक्षा जैसी सहुलियतें गिनाई। जमीन और जालसाजी की अच्छी समझ रखने के बावजूद शहर के संभ्रांत परिवारों ने झंवर परिवार के भरौसे प्लॉट खरीदे। यही उनकी भूल भी थी जिसकी सजा वे 20 साल से प्लॉट के लिए झंवर बंधुओं और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटकर भुगत रहे हैं।
इन जमीनों को बांटा
सर्वे नं कुल जमीन (एकड़) प्लॉट (बटांकन)
1429/1/1 44 56
1429/1/2 44 141
1429/1/3 45.30 94
कुल 133.30 291
हर प्लॉट सवा दो करोड़ का
इसमें से एक दर्जन खसरे अब भी बीजी कंपनी प्रा.लि. और झंवर परिवार के नाम ही दर्ज है। 133 एकड़ में बसी इस कॉलोनी का नेट प्लॉट एरिया 78.47 एकड़ था। यदि कंपनी के खसरें जोड़ लें तो भी हर एक प्लॉट 11746 वर्गफीट का है। इतनी जमीन की मौजूदा कीमत 2 करोड़ 34 लाख 92 हजार 461 रुपए है। मतलब 291 प्लॉटों की जमीन का खेल 680.94 करोड़ का है। बाकी 54 एकड़ जमीन अलग।
झंवर परिवार ने ऐसे खेले खेल
-- 1975 के मास्टर प्लान में जमीन का भू-उपयोग आवासीय नहीं था। इसीलिए यहां कॉलोनी की अनुमति नहीं मिल सकती थी। यही वजह थी कि बीजी कंपनी की मोर्यो हिल्स का अनुमोदन भी नहीं हुआ।
-- भू-उपयोग भिन्न होने के कारण मोर्या हिल्स के प्लॉटों का सौदा कृषि भूमि बताकर किया जैसे कि फार्म हाउस के लिए होता है। चूंकि प्लॉट की साइज बढ़ी थी इसीलिए कृषि भूमि या फार्म हाउस बताने में कंपनी को कोई दिक्कत नहीं हुई।
-- तय हुआ था कि कॉलोनी का विकास नए मास्टर प्लान-21 के अनुसार होगा। 2008 में प्लान लागू हो गया। जमीन का भू-उपयोग आवासीय हो गया लेकिन तब तक जमीन के भाव बढ़ चुके थे इसीलिए झंवर परिवार की नियत डोल गई। उन्होंने सोचा कि 11 साल पुरानी प्लानिंग को आगे बढ़ाने से अच्छा से है उसे अटकाए रखना। इसीलिए टीएनसी नहीं कराई।
-- चूंकि टीएनसी हो जाती तो नक्शे में स्कूल, हॉस्पिटल, क्लब हाउस, पार्क प्ले ग्राउंड के रूप में छोड़ी गई 16.89 एकड़ जमीन से कंपनी का अधिपत्य चला जाता। क्योंकि नक्शे के अनुरूप न सिर्फ जमीन छोड़ना पड़ती बल्कि इन सुविधाओं को विकसित करके भी देना पड़ता।
-- आज की स्थिति में पूरी जमीन पर एकीकृत तार फेंसिंग है। झंवर परिवार के अलावा अन्य कोई अंदर नहीं जा सकता।
ऐसे आते हैं पकड़ में
-- कंपनी ने जो नक्शा दिखाकर प्लॉट बेचे थे शिकायतों के साथ वह नक्शा भी कलेक्टर और डीआईजी के पास पहुंच चुका है। नक्शे में कॉलोनी की प्लानिंग साफ नजर आती है।
-- कंपनी ने 1997 में इसी नक्शे के अनुसार मुरम की रोड, डेÑनेज लाइन और बिजली के खम्बे लगाए थे। मौके पर ड्रेनेज लाइन, तिराहो या चौराहों पर बनी रोटरी के साथ ही सड़क भी साफ नजर आती है।
-- इस सड़क को गुगल अर्थ के साथ ही गुगल ट्रेफिक मेप पर भी आसानी से देखा जा सकता है।
-- राजस्व विभाग का जो आॅनलाइन भू-नक्शा है उस पर जमीन के बटांकन और  उनके पास से निकली हुई रोड साफ नजर आती है।
-- कंपनी अब यह समझाने में असमर्थ है कि कृषि भूमि के रूप में बेची गई जमीन पर सड़क, सीवरेज, रोटरी, बिजली के खम्बे और पानी के ओवर हेड टैंक की क्या जरूरत पड़ी थी।
((नीचे वाला हिस्सा कल भी लिया जा सकता है)
यह थी कॉलोनी की प्लानिंग
कुल जमीन 133 एकड़
प्लानिंग एरिया 113.02 एकड़
कनाड़िया रोड में जमीन 3.05 एकड़
नेट प्लानिंग एरिया 109.97 एकड़
प्लॉट एरिया 78.47 एकड़
क्लब हाउस 2.48 एकड़
हॉस्पिटल 1.52 एकड़
स्कूल 1.50 एकड़
पार्क/गार्डन/वॉटर 11.39 एकड़
रोड 14.61 एकड़

Wednesday, January 18, 2017

निगम की अनुमति के बिना तान दिया ट्रूबा कॉलेज!

काम रुकवाया, पंचनामा बनाया
प्रबंधन पंचायत का देता रहा हवाला जिसे समाप्त हुए ही हो गए तीन साल
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इंदौर के चर्चित इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक कैलोद करताल का ट्रूबा कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में नगर निगम की अनुमति के बिना ही बड़ा अवैध निर्माण किया जा रहा है। अनुमति के नाम पर पंचायत की अनुमति का हवाला दिया जाता है जिसे भंग हुए भी तीन साल हो चुके हैं। बहरहाल, प्रबंधन की बहानेबाजी काम न आई। सोमवार को मौके पर पहुंचे नगर निगम के अधिकारियों ने कॉलेज का काम रूकवा दिया। चेतावनी भी दे डाली कि अब यदि बिना अनुमति लिए काम हुआ तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
मामला बायपास पर न्यूयॉर्क सिटी के सामने ग्राम कैलोद करताल की 4.213 हेक्टेयर जमीन (सर्वे नं. 286, 287, 288, 289 और 290) पर 2005-06 से संचालित हो रहे ट्रूबा इंजीनियरिंग कॉलेज का है। सोमवार को नगर निगम के अधिकारियों ने औचक निरीक्षण किया तो वे कॉलेज की नई बिल्डिंगें बनते देख चौक गए। भवन अनुज्ञा शाखा में बिल्डिंग पर्मिशन के बारे में पूछा तो पता चला कि 2013 से 2 जनवरी 2017 के बीच नगर निगम ने कॉलेज को बिल्डिंग पर्मिशन नहीं दी। इस पर जब अधिकारियों ने प्रबंधन को फटकारा तो जवाब मिला कि पंचायत से ली गई अनुमति के आधार पर निर्माण हो रहा है। जवाब संतोषजनक नहीं था इसीलिए पंचनामा बनाकर बिल्डिंग का काम रुकवा दिया गया।
अवैध निर्माण जो होता पाया गया
जमीन पर रामचंद्र पिता शिवाजीराम एवं अन्य के नाम से 7 जनवरी 2005 को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट ने 7680 वर्गमीटर प्रस्तावित निर्माण के साथ 17887 वर्गमीटर की अनुमति दी थी। नक्शे के हिसाब से  10207 वर्गमीटर पर कॉलेज बनना था। यह भी स्पष्ट था कि बिल्डिंग की ऊंचाई 10 मीटर (जी+2) से अधिक नहीं होगी। कॉलेज जी+2 ही बना था लेकिन बीते दिनों नए निर्माण के साथ पुरानी बिल्डिंग पर भी एक-एक मंजिल और बढ़ा दी गई।
कॉलेज की मूल बिल्डिंग के ठीक सामने तकरीबन 10 हजार वर्गफीट पर एक बिल्डिंग बन रही है बिना अनुमति के। इसका काम भी ग्राउंड लेवल से ऊपर आ चुका है।
इसी तरह जी+3 होस्टल बिल्डिंग भी बनाई गई है जो भी पूरी तरह अवैध है। इसकी भी अनुमति नहीं है।
एक साल तक ही वैध रहता है पंचायत का नक्शा
जिस कैलोद करताल पंचायत से ट्रूबा कॉलेज प्रबंधन अनुमति लेने की बात कह रहा है नगर निगम सीमा में गांव के विलय के बाद 2013 से ही उसके अधिकार समाप्त हो चुके हैं। पंचायत राज अधिनियम की धारा-55 के तहत ग्राम पंचायत किसी भी इमारत का नक्शा पास कर सकती है। हालांकि इस स्वीकृति की अवधि सिर्फ एक वर्ष रहती है। यानी जिस साल में मंजूरी ली गई है उसी साल में काम शुरू करना जरूरी है। अन्यथा मंजूरी स्वत: ही निरस्त हो जाती है। चूंकि 2013 में पंचायत के अधिकार समाप्त हो चुके थे लिहाजा यदि मंजूरी दी भी होगी तो 2012 में जो कि 2013 में स्वत: ही रद्द हो गई। क्योंकि बिल्डिंग का काम शुरू हुआ है जुलाई 2016 के बाद।
टीएनसी भी नहीं हुई
जमीन की आखिरी टीएनसी(81/नग्रानि/एसएसटी/2005/इंदौर) जनवरी 2005 में ही हुई थी जो कि 8 जनवरी 2008 तक ही वैध था। 2008 से 2017 के बीच दूसरा नक्शा या पूर्व स्वीकृत नक्शे के संशोधन के लिए भी आवेदन नहीं किया गया।
बिक चुका है ट्रूबा
ट्रूबा कॉलेज को 2005 में ट्रूबा एज्यूकेशन सोसायटी के बैनर तले शुरू किया गया था जिसके डायरेक्टर अभी डॉ. राजीव आर्या हैं और इसके चेयरमैन सुनील डंडीर हैं। ग्रुप ने बीते वर्ष में इस कॉलेज को सागर इंस्टिट्यूट आॅफ रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी को बेच दिया। इस संस्थान के सीएमडी संजीव अग्रवाल हैं।

2.5 लाख वर्गफीट अवैध है ट्रूबा कॉलेज

प्राथमिक आंकलन में सामने आया बड़ा अंतर, नगर निगम कराएगा नपती
इंदौर. विनोद शर्मा।
सीमावर्ति गांव भले नगर निगम सीमा में शामिल हो चुके हों लेकिन वहां आज भी शिक्षा माफियाओं और भू-माफियाओं की मनमानी ऐसे चल रही है मानों वहां कोई कानून कायदा लागू ही न होता हो। इसका बड़ा उदाहरण कैलोद करताल में स्थित सागर इंस्टिट्यूट आॅफ रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी का ट्रूबा कॉलेज है। यहां कॉलेज प्रबंधन की मनमानी से 10 महीनों में 2.50 लाख वर्गफीट से ज्यादा अवैध निर्माण हो चुका है। वहीं करीब एक लाख वर्गफीट से अधिक निर्माण और होना है जिसका ठेका भी दिया जा चुका है।
बायपास पर न्यूयार्क सिटी के सामने कैलोद करताल के सर्वे क्रमांक 286, 287, 288, 289 और 290 की 4.213 हेक्टेयर यानी 452476.2 वर्गफीट जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) ने जनवरी 2005 को कॉलेज का नक्शा मंजूर किया था। स्वीकृत नक्शे के अनुसार कॉलेज में कुल 192111.75 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई थी। इसमें 109628.55 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई थी जबकि 82483.2 वर्गफीट निर्माण प्रस्तावित था। सोमवार कॉलेज में चल रहे काम को रूकवाने के बाद जब नगर निगम के अधिकारियों ने मौके पर अब तक हुए निर्माण और 2005 में मिली स्वीकृति की समीक्षा की तो पता चला कि तकरीबन ढ़ाई लाख वर्गफीट अतिरिक्त निर्माण हुआ है।
हमने नहीं दी अनुमति
कॉलेज ने 2005 से अपै्रल 2016 के बीच कॉलेज की पुरानी बिल्डिंग, लेब और पीछे केंटिन जो कि 2010-11 में बनी थी सवा लाख वर्गफीट के लगभग थे। इसके बाद जो निर्माण हुए हैं उनकी अनुमति तक नहीं ली गई।
यह थी स्वीकृति की शर्तें...
मप्र नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 की धारा 16‘1’ और मप्र भूमि विकास नियम 1984 के नियम-2 ‘5’‘क’ और नियम 27 के तहत जमीन पर कॉलेज की अनुमति दी गई थी।
निर्मित क्षेत्र 25 फीसदी से अधिक मान्य नहीं होगा।
चारों तरफ सीमांत खुले क्षेत्र छोड़ना होंगे।
भवन की ऊंचाई 10 मीटर से अधिक नहीं होगी।
भवन भूकंप रोधी तकनीक के बनना होंगे।
प्रावधानो ंके तहत भवन के आंतरिक प्रस्ताव/विकास कैलोद पंचायत से नक्शा पास करवाही कर शुरू करना होगी।
प्रश्नाधिन भूमि की ओर स्थिति कांकड़ की चौड़ाई यथावत रखते हुए 30 मीटर चौड़ा मार्ग खुला छोडन्Þना जरूरी है।
बायपास से लगी 75 मीटर जमीन खाली छोड़ना होगी।
बना ऐसा है कॉलेज
पुरानी कॉलेज बिल्डिंग
कुल जमीन 68000 वर्गफीट
बीच में गार्डन 17000 वर्गफीट
बिल्डिंग एरिया 51000 वर्गफीट
(जी+2 मंजूर थी जिसे जी+3 कर दिया गया)
जी+3 204000 वर्गफीट
आॅडिटोरियम 10000 वर्गफीट
आॅडिटोरियम और कॉलेज के बीच जी+3 बिल्डिंग : 9000 वर्गफीट पर 23000 वर्गफीट
केंटिन जी+1 15000 वर्गफीट
लेब/वकॅशॉप 7500
होस्टल 32000 वर्गफीट जमीन पर जी+4 : 150000 वर्गफीट
यहीं अन्य बिल्डिंग 15000 वर्गफीट पर जी+1 बन चुकी है : 30000 वर्गफीट
एडमिनिस्टेÑशन केंपस 10000 वर्गफीट पर जी+1 (15000 वर्गफीट) बन चुका है जी+3 बनना है।
इस हिसाब से प्रथम दृष्टया 450000 वर्गफीट निर्माण मौके पर नजर आता है जो कि स्वीकृत व प्रस्तावित 257888.25 वर्गफीट ज्यादा है।

यह थी स्वीकृति
टोटल लैंड एरिया 452476.2 100%
सड़क के लिए आरक्षित 13962
नेट प्लानिंग एरिया 438514.2 100%
पर्मिसेबल बिल्टअप एरिया 109628.55 25%
प्रपोज्ड बिल्ट अप एरिया 82483.2 18.80%
पार्क 43851.42 10%
एमओएस पार्किंग 312179.58 71.20%


ट्रूबा कॉलेज की टिकड़बाजी

पार्क की जमीन पर तान दिया होस्टल
इंदौर. विनोद शर्मा ।
पंचायत की कथित अनुमति का हवाला देकर बिना नगर निगम की स्वीकृति के एक बाद एक बिल्डिंग तान रहे ट्रूबा कॉलेज ने बगीचे की आरक्षित जमीन पर ही होस्टल की चार मंजिला इमारत तान दी। इतना ही नहीं होस्टल के सामने भी तकरीबन 10 हजार वर्गफीट जमीन पर एक बिल्डिंग का काम और शुरू कर दिया। बहरहाल, नगर निगम की आपत्ति के बाद निर्माण रूका हुआ है।
कैलोद करताल की 452476.2 वर्गफीट जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने कॉलेज का जो नक्शा मंजूर किया था उसमें दक्षीण की ओर 43851 वर्गफीट जमीन पार्क के लिए आरक्षित छोड़ी गई थी। सागर इंस्टिट्यूट आॅफ रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी ने ट्रूबा कॉलेज खरीदने के बाद एक तरफ जी+2 बनी पुरानी बिल्डिंग को विस्तार दिया तो दूसरी तरफ पार्क के लिए आरक्षित इस जमीन पर जी+4 होस्टल तान दिया। होस्टल तकरीबन 30 हजार वर्गफीट पर बना हुआ है। इस होस्टल के सामने 10 हजार वर्गफीट जमीन पर एक भवन का निर्माण और बीते दिनों शुरू हुआ है।
ओपन स्पेस को कवर नहीं कर सकते
टीएंडसीपी के अधिकारियों ने बताया कि 2005 में जिस वक्त कॉलेज का नक्शा मंजूर हुआ था उस वक्त गांव और गांव की जमीन प्लानिंग एरिया से बाहर थी। मास्टर प्लान 2021 जनवरी 2008 में मंजूर हुआ जिसमें गांव प्लानिंग एरिया में आया। चूंकि कॉलेज के नक्शे की डेडलाइन जनवरी 2008 तक थी इसीलिए 2008-09 में रिवाइज प्लान प्रस्तुत किया था लेकिन उसमें खूले क्षेत्र को बिल्डिंग से कवर करने की अनुमति नहीं दी गई। न ही दी जा सकती है।
एमओएस भी हजम किया है
कॉलेज प्रबंधन ने एमओएस भी कवर किया है। कॉलेज की बिल्डिंग के पास किसी डिपार्टमेंट की बिल्डिंग बनाई जा रही है और उसके सटाकर आॅडिटोरियम बन रहा है। आॅडिटोरियम से सटा हुआ केंटिन भी है।
पटवारी की विधायक के नाम पर धाक
ट्रूबा कॉलेज में भी विधायक जीतू पटवारी का बोलबाला है। उनके नाम को ऊंचाई देने और कॉलेज को सरकारी बलाओं से बचाने की जिम्मेदारी कॉलेज प्रबंधन ने अनिल पटवारी को दे रखी है जो कि रिश्ते में जीतू का रिश्तेदार है। कॉलेज को जमीन दिलाने से लेकर बाद में कॉलेज की नौकरी करते रहे अनिल पटवारी को केंटिन दिलाने तक में जीतू की भूमिका अहम रही। कैलोद करताल पंचायत ‘जो निगम सीमा में विलय हो चुकी है’ से लेकर नगर निगम के अधिकारी तक का कहना है कि पटवारी विधायक का नाम लेकर बार-बार कार्रवाई में अडंगे लगा रहा है। अनिल स्वयं को कॉलेज का एस्टेट इन चीफ और लाइजनर बताता है। 

कॉलेज के सामने कर दिया पीछे से गुजर रहा एमआर-3

ट्रूबा के लिए टीएंडसीपी की तिकड़म
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नगर निगम की अनुमति के बिना एक के बाद एक बिल्डिंग ताने जा रहे सागर इंस्टिट्यूट आॅफ रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी के ट्रूबा कॉलेज पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) भी मेहरबान रहा। अधिकारियों ने कॉलेज को फायदा पहुंचाने के लिए 30 मीटर चौड़ी प्रस्तावित रोड को एक जगह से उठाकर दूसरी जगह पटक दिया। फिर जिला प्रशासन के अधिकारी क्यों साथ न निभाते। प्रशासन ने भी कॉलेज की अपनी जमीन होने के बावजूद सरकारी जमीन कॉलेज के नाम कर दी।
बायपास पर  कैलोद करताल के सर्वे क्रमांक 286, 287, 288, 289 और 290 की 4.213 हेक्टेयर (452476.2 वर्गफीट) जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) ने जनवरी 2005 को कॉलेज का नक्शा मंजूर किया था। उस वक्त क्षेत्र प्लानिंग एरिया से बाहर था। तब कॉलेज के पीछे कैलोद करताल और निहालपुरमुंडी के बीच कांकड़ को  30 मीटर चौड़ी सड़क के रूप में दर्शाया गया था। इसी नक्शे से कॉलेज बना भी लेकिन नक्शा मंजूर करने वाले अधिकारी मास्टर प्लान 2021 बनाते वक्त पीछे की सड़क का खांका कॉलेज के सामने खींच दिया ताकि नई सड़क का फायदा कॉलेज को मिले।
ताकि सामने न रहे झोपड़े
कॉलेज और बायपास के बीच सर्वे नं. 271 की 5.473 हेक्टेयर जमीन  सरकारी  है इसी जमीन पर जहां कॉलेज जाने का निजी रास्ता बना हुआ है वहीं कॉलेज के सामने ही करीब 30 झोपड़े बने हुए हैं। कॉलेज के बनने से पहले गिनती के घर थे। इनकी संख्या कॉलेज की कथित कीर्ति के साथ ही बढ़ती गई जो कि प्रबंधन को नगवारा थी। इसीलिए 2008 में 271 की  जमीन के बड़े हिस्से के आवंटन के लिए आवेदन भी किया गया। जमीन मिल भी गई लेकिन भू-उपयोग ग्रीन बेल्ट था इसीलिए प्रबंधन चुप बैठ गया।
अब पीछे की सड़क पर कब्जा!
कॉलेज कैंपस के सामने से सड़क गुजरने के बाद प्रबंधन ने पीछे प्रस्तावित सड़क की जमीन को बपौती मानकर कब्जे शुरू कर दिए। इस कड़ी में पहाड़ की ढलान को भराव करके पहले केंटिन बनाया गया और अब आॅडिटोरियम और डिपार्टमेंट का काम भी जारी है।
पुरानी सड़क
कैलोद कर्ताल के सर्वे नं. 287, 288, 291
निहालपुर मुंडी के सर्वे नं. 987, 988, 993, 994
मास्टर प्लान में सड़क
कैलोद कर्ताल के सर्वे नं. 271, 287, 285, 284, 282
अलाइनमेंट ही नहीं मिलता
जिस सड़क को प्लान किया गया है वह 1975 से प्लान है जिसे एमआर-3 के नाम से जाना जाता है। सड़क रीजनल पार्क से शुरू होकर बिलावली, फतनखेड़ी, मुंडी की जमीन होते हुए बायपास को क्रॉस करती है। इसीलिए टीएंडसीपी के अधिकारी यह भी नहीं कह सकते कि ले-आउट पहले मंजूर हुआ और नक्शा बाद में बना इसीलिए गफलत हुई।
यदि ऐसा नहीं होता तो कॉलेज के ले-आउट में भी 30 मीटर चौड़ी सड़क का जिक्र नहीं होता।
निहालपुर मुंडी की ओर से आने वाली सड़क जहां आकर छुटती है उसके सामने से ही ट्रूबा तक पहुंचने की चढ़ाई शुरू होती है। आगे जाकर ओमेक्स सिटी वालों के नक्शे में भी रास्ता छुड़वाया गया है जो कि इस रास्ते के अलाइनमेंट से मिलता है लेकिन टीएंडसीपी के नक्शे में नजर आने वाला नक्शे का अलाइनमेंट नहीं मिलता। 

लैंडयूज बदलाव की अर्जी लगाई, फैसले से पहले ताना प्रशासनिक भवन

ट्रूबा कॉलेज की मनमानी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
पंचायत की कथित अनुमति का हवाला देकर नगर निगम की आंख में धूल झौंकते आ रहे ट्रूबा कॉलेज का नया प्रशासनिक भवन जिस जमीन पर बन रहा है मास्टर प्लान 2021 में उसका लैंडयूज ग्रीन बैल्ट आरक्षित है। लैंडयूज को बदलवाने के लिए कॉलेज प्रबंधन का आवेदन टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट और प्रमुख सचिव आवास एवं पर्यावरण विभाग के पास विचाराधीन है। फैसला आने से पहले ही कॉलेज ने ग्रीन बेल्ट पर बिल्डिंग बनाना शुरू कर दी।
बायपास पर  कैलोद करताल के सर्वे क्रमांक 286, 287, 288, 289 और 290 की 4.213 हेक्टेयर (452476.2 वर्गफीट) जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) ने जनवरी 2005 को कॉलेज का नक्शा मंजूर किया था। इसमें सर्वे नं. 287 की जमीन कॉलेज के पीछे से शुरू होकर बायपास की ओर से कॉलेज के सामने बने झोपड़ों के पीछे तक जाती है। नक्शे में पूरी जमीन एमओएस और पार्किंग के लिए आरक्षित रही है। जनवरी 2008 में जो मास्टर प्लान-21 लागू हुआ। पूरा क्षेत्र प्लानिंग एरिया में आ गया जो 2005 में कॉलेज का ले-आउट मंजूर होते वक्त प्लानिंग से बाहर था। मास्टर प्लान में उसमें सर्वे नं. 287 का बड़ा हिस्सा एमआर-3 और ग्रीन बेल्ट के रूप में आरक्षित कर दिया गया।
कैसे बनने लगी बिल्डिंग
जब मास्टर प्लान में जमीन के जिस हिस्से का भू-उपयोग ग्रीन बेल्ट के रूप में आरक्षित है तो उस के 10 हजार वर्गफीट हिस्से में दो महीने पहले बिल्डिंग का काम कैसे शुरू हो गया? बिल्डिंग को कॉलेज का प्रशासनिक भवन बताया जा रहा है। बिल्डिंग जी+3 बनना है। अब तक ग्राउंड की स्लैब डल चुकी है। उस पर भी अगली स्लैब तक का काम हो गया है।
भू-उपयोग परिवर्तन विचाराधीन
टीएंडसीपी के अधिकारियों ने बताया कि ट्रूबा एज्यूकेशन सोसायटी का कॉलेज जिस जमीन पर बना है उसका भू-उपयोग पीएसपी है जबकि बायपास की ओर खूली भूमि का लैंडयूज ग्रीन बेल्ट और रोड है। कॉलेज प्रबंधन ने ग्रीन बेल्ट लैंडयूज पर आपत्ति दर्ज कराई थी। बाद में एक आवेदन किया और लैंडयूज बदलने की मांग की। मामला शासन स्तर पर विचाराधीन है। इससे पहले यदि कॉलेज प्रबंधन ने बिल्डिंग बनाना शुरू कर दी तो यह गलत है और अवैधानिक है।
271 का आवेदन किया है, 287 का नहीं
कॉलेज का रीयल एस्टेट सेगमेंट देख रहे एक अधिकारी ने बताया कि 286, 287, 288, 289 और 290 की 4.213 हेक्टेयर जमीन ट्रूबा एज्यूकेशन सोसायटी की है। अतिरिक्त जमीन के आवंटन के लिए 2008 में आवेदन किया था। आवेदन पर सकारात्मक रूख दिखाते हुए अधिकारियों ने सर्वे नं. 271 की जमीन आवंटित कर दी जो कि 287 और बायपास के बीच है। इस जमीन के बड़े हिस्से में बायपास भी बना है और एमआर-3 भी प्रस्तावित है। करीब ढ़ाई एकड़ जमीन का भू-उपयोग ग्रीन बेल्ट है उसी को बदलने के लिए आवेदन लगाया है। अभी बदला नहीं है। बदलेगा तो वहां नक्शा पास करवाकर ही बिल्डिंग बनाएंगे। 

कर्ज की आड़ लेकर संचालकों ने बढ़ाया अपना कुनबा

सिंधी सहकारी संस्था
- चहेतों को बचाने के लिए उनके नाम से लोन लेकर चुका तक दिया
- सुबह दी सदस्यता और शाम को लोन थमा दिया
इंदौर. विनोद शर्मा ।
लोन न लेने या लोन लेकर न चुकाने वाले 671 सदस्यों को बाहर कर देने वाले सिंधू सहकारी साख संस्था के संचालकों ने अपने चहेतों को संस्था में बनाए रखने के लिए लोन के नाम पर जमकर हेराफेरी की है। नियम कायदों को एक तरफ रखकर सुबह सदस्य बनाएं और शाम को लोन थमा दिया। दबंग दुनिया के पास ऐसे भी उदाहरण हैं जिनके नाम से संचालकों ने ही लोन लिया और उन्हीं ने चुका दिया ताकि सदस्य बैंक आए न आए लेकिन उसकी सदस्यता बरकरार रहे।
संस्था में 2601 सदस्य हैं। 2012 में हुए चुनाव के दौरान तय हुआ था कि कर्ज लेने वाले या न लेने वाले दोनों तरह के सदस्य चुनाव  में भाग ले सकते हैं। संचालकों ने इसमें बालेबाले संसोधन कर दिया। सिर्फ कर्ज लेने वाले ही मतदान के पात्र कहते हुए 671 सदस्यों को बेदखल कर दिया। वहीं दीपक छोड़वानी ‘बाबा’ जैसे कुछ नाम ऐसे हैं जिन्हें संचालकों की मर्जी पर सुबह सदस्यता मिली और शाम तक लोन भी मिल गया।
पहले बोर्ड बैठक, फिर ऋृणसमिति की
27 नवंबर को संस्था की बोर्ड बैठक हुई। बैठक में 671 सदस्यों को बाहर करने का फैसला लिया गया। वहीं इसी दिन शाम को ऋृण समिति की बैठक हुई। बैठक में छोटे-बड़े लोन के 67 मामलों को अनुशंसा की। इसमें कई सदस्य ऐसे हैं जिन्हें सदस्यता दी गई और एक-दो दिन बाद ही लोन दे दिया गया। 28 नवंबर को सदस्यता सूची प्रकाशन के लिए सहकारिता विभाग को सौंप दी गई।
क्यों उठी अंगुली : संचालकों को सदस्यता बरकरार रखने के लिए लोन लेना जरूरी है यह सूचना हर सदस्य तक पहुंचाना थी। 27 नवंबर की शाम तक आवेदन लिए जाते, हो सकता है ऋृणसमिति की बैठक में मामलों की संख्या 67 से बढ़कर 350 से 450 तक हो जाती। करना क्या था एक आवेदन ही तो भरना था जो हाथोहाथ भरा जा सकता था।
रेवड़ी की तरह बंटा कर्ज
जिन लोगों को नई सदस्यता के साथ लोन दिए गए उनमें संस्थाध्यक्ष प्रकाश लालवानी के रिश््तेदार, भू-माफिया रणवीरसिंह छाबड़ा उर्फ बॉबी के सर्वानंद संस्था में खासमखास सिपाहसालार गोपाल दरियानी के रिश्तेदार शामिल हैं। कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें लालवानी और दरियानी ने लोगों से आवेदन साइन करवाए, खुद ही लोन लिया और दूसरे दिन चुका भी दिया। ताकि उनकी सदस्यता बरकरार रहे। इसमें लालवानी के रिश्तेदार महेश जमुनादास लालवानी से लेकर गोपाल दरियानी के रिश्तेदार महेश ओटवानी तक शामिल हैं।
जिन्हें मिला लोन
हितेश दरियानी 2000
आकाश पठेजा 1500
प्रियंका दरियानी 2000
वर्षा छोड़वानी 1500
एक ही परिवार में बांटा लोन
इंदर पठेजा 2000
कोमल पठेजा 2000
प्रियांशी पठेजा 2000
धीरज कुंडल 5000
पूजा कुंडल 5000
योगेश कुंडल 5000
उमेश कुंडल 5000
लता कुंडल 5000
(पठेजा परिवार के धीरज को चुनाव में खड़े करने का प्रलोभन भी दिया जा रहा है।)
यह है सदस्यता और लोन प्रक्रिया
सदस्यता : सिंधी समाज का कोई भी व्यक्ति फोटो व आईडी के साथ आवेदन कर सकता है। संस्था की कमेटी आवेदक की छानबीन करती है। हरी झंडी मिलने के बाद सदस्य को 8600 सदस्यता शुल्क जमा करने का पत्र भेजा जाता है। सदस्यता शुल्क जमा होने के बाद सदस्यता नंबर जारी होता है।
लोन : जिसने सदस्यता शुल्क जमा कर दिया है वह भी लोन के लिए पात्र होता है। लोन समिति की बैठक हर मंगलवार को होती है। आवेदक द्वारा किए गए आवेदन पर इसी समिति में अनुसंशा होती है। दबाव-प्रभाव से लोन पहले भी करा लिया जाता है। 

एक करोड़ तक सर्विस टैक्स चोरी की आईबीडी

- डिपार्टमेंट के हाथ लगा दस्तावेजों का जखिरा
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट ने आईबीडी समूह पर शुक्रवार को जो छापेमार कार्रवाई की थी उसमें सर्विस टैक्स चोरी से संबधित बड़ी मात्रा में दस्तावेज बरामद हुए हैं। कंपनी ने कीमत बाजार मुल्य पर ली और रजिस्ट्री गाइडलाइन दरों पर कराकर सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट से लेकर इनकम टैक्स तक को चपत लगाई है। कंपनी इन्वेस्टर्स समिट में करोड़ों के निवेश और सैकड़ों नौकरियों का सब्जबाग दिखाकर ‘शिव’ सरकार को ठेंगा दिखा चुकी है।
कार्रवाई के दौरान जो दस्तावेज हाथ लगे हैं उन्होंने अधिकारियों को चौका दिया है। बिल्डर ने ऐसा कोई तरीका नहीं छोड़ा जिससे सर्विस टैक्स या इनकम टैक्स जैसे डिपार्टमेंट की आंख में धूल झौंकी जा सके। टैक्स बचाया जा सके। अब अधिकारियों का आंकलन है कि समूह द्वारा चुराये गए सर्विस टैक्स का आंकड़ा एक करोड़ तक जा सकता है।
कम लागत, ज्यादा मुनाफा : संकट में खरीदार
सरकारी मेहरबानी के तो क्या कहने जिसके चलते कंपनी ने भोपाल में सरकारी जमीन पर कब्जा करके बहुमंजिला इमारतें तान दी। वहीं कम लागत और ज्यादा मुनाफे के चक्कर में इंदौर में इंडस सेटेलाइट जैसी टाउनशीप विकसित की जहां छह बजे के बाद जाना खतरे से खाली नहीं रहता। यही स्थिति केलिफोर्निया सिटी में बने आईबीडी के 200 बंगलों की है। यह टाउनशीप भी बायपास से आठ किलोमीटर दूर है।
2012 में आयकर ने भी मारा था छापा
29 नवंबर 2012 को इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग ने सोम्या ग्रुप, अमृत होम्स, फॉर्च्यून ग्रुप  के साथ आईबीडी पर सर्च की थी। इसमें बड़ा कारोबार सामने आया था। इस छापे ने कंपनी की कमर तोड़ दी। कंपनी को बेलमोंट पार्क का प्रोजेक्ट छोड़ना पड़ा।
इंडस बिल्डर्स एंड डव्लपर्स : मालिक विनय भदौरिया
साम्राज्य : इंडस हॉलीडे एंड टूर ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड, इंडस इंफोकॉम, प्राइवेट लिमिटेड, इंडस सेवन, एसईएएस एक्पोर्टस प्राइवेट मिमिटेड, मेडिकल ट्रांसक्रपशन (बीपीओ ) समेत अन्य क्षेत्र में करोड़ों का कारोबार।
प्रोजेक्ट : भोपाल, होशंगाबाद, इंदौर, जबलपुर, रायपुर और उप्र के आगरा में प्रोजेक्ट जारी। इंडस टॉउन, आईबीडी हॉलमॉर्क सिटी कोलार, किंग्स पार्क सलैया, रॉयलस पार्क रायसेन रोड़, आयोध्या बायपास पर डुप्लेक्स की श्रृंखला।
पांच में से दो कंपनियां ही पंजीबद्ध
सर्विस टैक्स ने जिस आईबीडी ग्रुप पर कार्रवाई की उसने 2012 की इन्वेस्टर्स समिट में 780 करोड़ रुपए के एमओयू साइन किए थे। इसमें भी बड़ा फर्जीवाड़ा किया था। आईबीडी की जिन पांच अलग-अलग फर्मों ने इंदौर में नवेश प्रस्ताव दिए हैं उनसे से दो ही कंपनियां ऐसी है जो पंजीबद्ध है। इनमें आईबीडी स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि और आईबीडी यूनिवर्सल प्रा.लि. शामिल है। वहीं आईबीडी निरुपम बिल्डर्स एंड डेवलपर्स, आईबीडी रियलिटी डेवलपर्स और आईबीडी शिल्पी डेवलपर्स ऐसी कंपनियां हैं जिनका पंजीयन नहीं हुआ। न कंपनियों का कंपनी आईडेंटिफिकेशन नंबर (सिन)जारी हुआ। न ही संचालकों का डायरेक्टर आईडेंटिफिकेशन नंबर(डिन)।
कंपनी    प्रोजेक्ट  एमओयू  रोजगार
कंपनी लागत रोजगार
आईबीडी निरुपम बिल्डर्स एंड डेवलपर्स  इंटीग्रेटेड टाउनशिप 150   295
आईबीडी रियलिटी डेवलपर्स  मिडराइस अपार्टमेंट   180   295
आईबीडी शिल्पी डेवलपर्स   मिडराइस अपार्टमेँट 93 145
आईबीडी स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. प्रिमियम-मिडराइस 192 227
आईबीडी यूनिवर्सल प्रा.लि.  इंटीग्रेटेड टाउनशिप 165   255

57.12 करोड़ में थमाया ‘165’ के हवाई विकास का ठेका

प्राधिकरण का कारनामा
वर्कआर्डर के बाद मुआवजे के लिए आज तक चक्कर काट रही है कंपनी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
स्कीम-165 के नाम पर इंदौर विकास प्राधिकरण अब तक हवा में तीर छोड़ते आया है। किसानों से जमीन लेकर स्कीम के खांके को मैदानी रूप देने में पूरी तरह नाकाम रहे प्राधिकरण के हवाहवाई पदाधिकारियों ने बगैर जमीन के ही 24 महीनों की समयसीमा के साथ 57.12 करोड़ की सड़कें बनाने का ठेका दे डाला। ठेका लिया पीडी अग्रवाल ने, बिना जमीन के ठेका देने के मामले में प्राधिकरण पर से मुआवजा क्लेम कर रहे हें।
प्राधिकरण ने स्कीम के बायपास से लगे हिस्से के डेवलपमेंट के लिए 14 दिसंबर 2011 को टेंडर जारी किए थे। 13 जनवरी 2012 तक कंपनियों द्वारा टेंडर डाले गए। टेंडर कॉस्ट थी 52 करोड़, 49 लाख 32 हजार 800 रुपए। टेक्नीकल और फाइनेंशियल नेगोसिएशन के बाद 8 प्रतिशत अधिक दर में पीडी अग्रवाल इन्फ्रास्ट्रक्चर, 6 जॉय बिल्डर कॉलोनी को 10 मई 2012 को वर्क आॅर्डर दे दिया। 5.06 करोड़ की बैंक गारंटी देने के बाद जब कंपनी मौके पर काम करने पहुंची तो पता चला कि जिस प्राधिकरण ने वर्कआॅर्डर जारी किया है जमीन उसके नाम है ही नहीं। बहरहाल, कंपनी तीन साल से मुआवजा मांग रही है लेकिन प्राधिकरण है कि सुनने को तैयार ही नहीं है।
भू-अर्जन अवार्ड वर्कआर्डर के ढ़ाई साल बाद जारी हुआ
प्राधिकरण ने टेंडर निकाले थे दिसंबर 2011 में और वर्कआॅर्डर दिया था मई 2012 में जबकि जमीन के अधिग्रहण के लिए कलेक्टर इंदौर ने अवार्ड पारित (प्रकरण : 01अ82/11-12) किया था 14 नवंबर 2014 को। 40.318 हेक्टेयर जमीन के लिए जारी 119,72,138,20 रुपए का यह अवार्ड पहला था लेकिन इसके बाद कोई अवार्ड पारित नहीं हो सके। तीन महीने में प्राधिकरण को कोर्ट में पैसा भरकर जमीन का कब्जा लेना थी लेकिन प्राधिकरण सिर्फ 10 करोड़ ही चुका पाया उस अवधि में।
 जैसे ही जमीन मिलेगी डेवलपमेंट कर देंगे
जब कंपनी ने आईडीए से संपर्क किया तो अधिकारियों ने तर्क देते हुए कहा कि जमीन जल्द मिल जाएगी। इसीलिए टेंडर जारी किया है ताकि जमीन मिलने के बाद कागजी कवायदों में ज्यादा वक्त न लगे। विकास जल्द शुरू हो।
हकीकत यह थी कि 350 हेक्टेयर (८६५ एकड़) में से 50 हेक्टेयर जमीन प्रशासन को मुआवजे के आधार पर लेना थी। ४० हेक्टेयर सरकारी जमीन है। बाकी जमीन के लिए आईडीए किसान और जमीन मालिकों से एग्रीमेंट कर चुका है। पैसा नहीं दे पाया।
कंपनी का हुआ भारी नुकसान
जिस पीडी अग्रवाल इन्फ्रास्ट्रक्चर को 57 करोड़ का ठेका दिया गया था उससे 10 फीसदी के हिसाब से 5 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी ली थी। जमीन नहीं है प्राधिकरण ने कंपनी को नहीं बताया। मैदान में जाने के बाद कंपनी को पता चला। कंपनी ने प्राधिकरण को कई पत्र लिखे। जवाब नहीं दिया। उलटा, बैंक गारंटी जब्त करने की तैयारी शुरू कर दी। जिसे कंपनी ने कोर्ट में चुनौती दी। तब कहीं जाकर बैंक गारंटी बची। पूरी लड़ाई 2014-15 तक चली। कंपनी का ब्याज का तो नुकसान हुआ ही। अधिकारी पैसे के साथ कंपनी की दी हुई गाड़ियां तक वापरते रहे।
प्राधिकरण में मनमानी के अवाला कुछ नहीं
कंपनी के एक पदाधिकारी ने आत्म अनुभव बयां करते हुए बताया कि पहला ऐसा काम था जिसका वकआर्डर मिलने के बाद हम उस वक्त को कोसते रहे जब वकआर्डर जारी हुआ था। 24 महीने की समयसीमा तय की थी। यदि इसमें कंपनी काम नहीं करती तो हम पर रोज पेनल्टी लगती। बैंक गारंटी काटी जाती।  बिना जमीन के ही प्राधिकरण ने ठेका दिया तब भी अधिकारियों ने हमारी बैंक गारंटी जब्त करना चाही जबकि गलती कंपनी की थी भी नहीं। गलती प्राधिकरण की है तो मुआवजा उसे देना चाहिए।

20 साल में भी ‘मोर्या हिल्स’ नहीं बन पाई भूरी टेकरी

200 से ज्यादा प्लॉटधारक परेशान, की शिकायत
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
स्वीमिंग पुल, क्लब, बगीचे, लैंडस्केपिंग और 24 घंटे सुरक्षा जैसी सहुलियतों के सब्जबाग दिखाकर 20 साल पहले जो मोर्या हिल्स नाम की कॉलोनी काटी गई थी वह आज भी कागजों पर चितरे नक्शों में ही दफन है। पहले भू-उपयोग का बहाना बनाया जाता रहा लेकिन मास्टर प्लान 2021 में भू-उपयोग आवासीय होने के बावजूद कॉलोनी का काम शुरू नहीं हुआ। इसका खुलासा मंगलवार को जनसुनवाई में प्लॉटधारकों द्वारा कलेक्टर को की गई शिकायत में हुआ।
खजराना के सर्वे नं. 1429/1/1, 1429/1/2 और 1429/1/3 की 133.30 एकड़ जमीन पर बी.जे.कंपनी प्रा.लि. (पंजी)ने मोर्या हिल्स नाम की कॉलोनी 1997 में काटी थी। 20 साल हो चुके हैं। अब तक टेकरी ने कॉलोनी का रूप नहीं लिया। ऐसे में जिन 200 से ज्यादा लोगों ने यहां जीवनभर की कमाई लगाकर प्लॉट खरीदे थे वे ठगे महसूस कर रहे हैं। दीपक पिता रामचरण मलिक ने बताया कि 2008 तक तो कॉलोनाइजर भू-उपयोग की आड़ लेता रहा। जनवरी 2008 में स्वीकृत हुए मास्टर प्लान में टेकरी आवासीय हो गई। फिर भी कॉलोनी पर काम नहीं हुआ। कुछ वक्त तक तो कॉलोनाइजर कहते रहे कि कर रहे हैं, कर रहे हैं। अब तो फोन उठाना  भी बंद कर दिया है।
रोड की जमीन की रजिस्ट्री कर दी
अहमदाबाद से आए गोपाल पिता सोहनलाल जेथलिया ने बताया कि 1997 से 2008 तक कॉलोनी का इंतजार करते रहे। विकसित नहीं हुई। इसीलिए हमने कहा कि जो जमीन जल्दी विकसित हो जाए, उसमें प्लॉट दे दो। इस पर सर्वे नं. 1429/1/1/5 के बदले सर्वे नं. 1429/1/2/131 की जमीन दे दी, कहा यहां विकास जल्दी होगा। 11 जनवरी 2008 को इसकी रजिस्ट्री हो गई। हैरानी तो तब हुई जब पता चला कि जिस जमीन 14962 वर्गफीट जमीन की रजिस्ट्री की है उसमें से 6997 वर्गफीट जमीन तो मास्टर प्लान की प्रस्तावित सड़क में जा रही है। बचेगी 7965 वर्गफीट जबकि पैसा लिया 14962 वर्गफीट का। यदि आज मौके पर 2500 रुपए वर्गफीट का भी भाव है तो हमारे साथ 1.74 करोड़ की ठगी हुई है। इसीलिए कॉलोनाइजर के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।
यह थी कॉलोनी की प्लानिंग
कुल जमीन 133 एकड़
प्लानिंग एरिया 113.02 एकड़
कनाड़िया रोड में जमीन 3.05 एकड़
नेट प्लानिंग एरिया 109.97 एकड़
प्लॉट एरिया 78.47 एकड़
क्लब हाउस 2.48 एकड़
हॉस्पिटल 1.52 एकड़
स्कूल 1.50 एकड़
पार्क/गार्डन/वॉटर 11.39 एकड़
रोड 14.61 एकड़
हमने कॉलोनी बेची ही नहीं, कृषि भूमि बेची थी
बीजी कंपनी के कर्ताधर्ताओं का कहना है कि कंपनी ने सिर्फ साकेत कॉलोनी ही काटी है। इसके अलावा कोई कॉलोनी नहीं काटी। मोर्या हिल्स कॉलोनी नहीं काटी। कृषि भूमि के रूप में जमीन बेची थी। जिसका जिक्र रजिस्ट्री पर भी है। कोई नक्शा वेलिड नहीं है। चूंकि कृषि भूमि थी इसीलिए जेथलिया ने कृषि भूमि के बदले कृषि भूमि ही एक्सचेंज की। यदि रोड यहां से जा रही है तो वहां से भी जा रही होगी।  कोई परेशानि थी भी तो शिकायतकर्ताओं को कंपनी में बात करना चाहिए थी। 

बिना अनुमति के ढ़ाई लाख वर्गफीट ज्यादा निर्माण

निगमायुक्त ने दिए ट्रूबा की जांच के आदेश
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
पंचायत की कथित अनुमतियां बताकर सागर इंस्टिट्यूट आॅफ रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी के ट्रूबा कॉलेज में जो मनमाना निर्माण किया जा रहा है उसकी जांच के आदेश नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह ने दे दिये हैं। सिंह ने अधिकारियों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि जब तक जांच न हो जाए तब तक मौके पर निर्माण नहीं होना चाहिए।
बायपास पर  कैलोद करताल के सर्वे क्रमांक 286, 287, 288, 289 और 290 की 4.213 हेक्टेयर (452476.2 वर्गफीट) जमीन पर चल रहे ट्रूबा कॉलेज परिसर में मनमाना निर्माण हो रहा है। इसका खुलासा दबंग दुनिया ने 3 जनवरी को ‘निगम की अनुमति के बिना तान दिया ट्रूबा कॉलेज’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इसके बाद भी लगातार खबरें प्रकाशित की जिनके आधार पर नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह ने ट्रूबा कॉलेज में जारी निर्माण की जांच के आदेश बिलावली जोन के अधिकारियों को दिए हैं।
काम शुरू न हो
सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि 2 जनवरी को ओडीएफ निरीक्षण के दौरान सामने आई अनियमितताओं व अवैध निर्माण के कारण बिल्डिंगों का जो काम रोका गया था वह आगे भी तब तक रूका रहे जब तक कि प्रबंधन अनुमतियां न बता दें। बताई जा रही अनुमतियों की भी जांच हो, वे जायज है भी या नहीं। इससे पहले निगम के अमले ने पंचनामा रिपोर्ट बनाकर कॉलेज परिसर में जारी काम रूकवा दिए थे।
ऐसी है अवैध निर्माण की कहानी
जनवरी 2005 में टीएंडसीपी ने नक्शा स्वीकृत करते हुए कॉलेज को 1.09लाख वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी थी। इसके अलावा 85 हजार वर्गफीट निर्माण प्रस्तावित के रूप में मंजूर किया गया था। वहीं अब तक कॉलेज में 4.5 लाख वर्गफीट अवैध निर्माण हुआ है यानी मंजूरी से 2.5 लाख वर्गफीट ज्यादा। नियमानुसार इसकी कंपाउंडिंग भी नहीं हो सकती।
लगातार रखी नजर
तारिख शीर्षक से प्रकाशित समाचार
4 जनवरी ट्रूबा कॉलेज में 2.5 लाख वर्गफीट निर्माण अवैध
5 जनवरी पार्क की जमीन पर बना दिया होस्टल
6 जनवरी कॉलेज के सामने कर दिया पीछे से गुजर रहा एमआर-3
7 जनवरी ग्रीन बेल्ट की जमीन पर प्रशासनिक भवन

सप्लाई शार्ट करके सीमेंट कंपनियां बढ़ाना चाहती है दाम

इंदौर. विनोद शर्मा ।
सीमेंट कंपनियों की बतौर मेहरबानी जल्द ही घर बनाना महंगा पड़ सकता है। बताया जा रहा है कि सीमेंट कंपनियों ने कारटेल बनाकर सीमेंट की सप्लाई डाउन कर दी है ताकि जल्द ही सीमेंट की कीमतें बढ़ाई जा सके।  हालांकि जनवरी से पहले कंपनियों की एक कोशिश नोटबंदी के कारण नाकाम हो भी चुकी है।
नोटबंदी के दौरान कम हुई मांग के कारण सीमेंट कंपनियों ने कीमतों में कटौती शुरू कर दी थी उन्होंने 1 जनवरी से अर्थव्यवस्था व बाजार में हल्के सुधार के बाद ही अपना रंग दिखा दिया। सीमेंट बनाने वाली कंपनियों ने कारटेल (एकजूट हुई) बनाया और सप्लाई धीरे-धीरे कम कर दी। हालात यह है कि कुछ जगह तो आॅर्डर लेकर भी सप्लाई वक्त पर नहीं हो रही है। इससे माना जा रहे हैं 26 जनवरी से पहले कंपनियां सप्लाई शॉर्ट बताकर सीमेंट की कीमत बढ़ा देंगी।
ऐसे बढ़ेगा भार
अभी इंदौर में सीमेंट की खत्पत एक लाख टन/माह है। यानी 20 लाख बोरी सीमेंट। एक बोरी सीमेंट की औसत कीमत 280 रुपए है। कंपनियां 20-30 रुपए बढ़ाना चाहती है यानी 20 लाख बोरियों की लागत 56 करोड़ से बढ़कर 62 करोड़ हो जाएगी।
क्यों शार्ट है सीमेंट
डीलरों के अनुसार कंपनियां ट्रांसपोर्टेशन में दिक्कत का हवाला दे रही है। कंपनियों के अनुसार जिस गति से सीमेंट का परिवहन होता था अभी वह गति है नहीं।
वहीं दूसरी तरफ इसकी वजह बीते दिनों भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) द्वारा 11 सीमेंट कंपनियों पर ठोके गए 6700 करोड़ के जुर्माने को बताया जा रहा है। कंपनियां जिसकी भरपाई करना चाहती है।
एक कोशिश नाकाम हो चुकी है
इंदौर के एक बड़े सीमेंट डीलर ने बताया कि कुछ समय भी कंपनियों ने सप्लाई शार्ट दिखाकर कीमतें बढ़ाना चाही थी लेकिन वे ऐसा कर नहीं सकी। उलटा, नोटबंदी के कारण कीमतें कम करना पड़ गई। मार्केट की स्थिति ऐसी है कि दोबारा कोशिश कर रही हैं तो भी कंपनियों को ज्यादा सफलता नहीं मिलेगी।

अभी जो रहे हैं
अल्ट्राटेक 280-285
जेके 275-280
कोरोमंडल 280-285
लाफार्ज 285-290
अंबूजा 280- 285
बिरला चेतक 278-283
वंडर सीमेंट 280-285
माइसेम 270-275

उपायुक्त ने निभाया संचालकों का साथ, खारिज की आपत्ति

सिंधी सहकारी संस्था
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
संचालकों की मनमानी के कारण बेदखल किए गए 671 सदस्यों के मंसूबों पर उपायुक्त सहकारिता के.पाटनकर ने पानी फेर दिया है। पाटनकर ने संचालकों द्वारा लिए गए बेदखली के फैसले के खिलाफ आई आपत्तियों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि जो अध्यक्ष ने किया हम तो वही मानेंगे। आपको आपत्ति लेना है तो अब कोर्ट  में जाएं। इसीलिए नाराज सदस्यों ने कोर्ट जाने का मन बना लिया है।
संस्थाध्यक्ष प्रकाश लालवानी और उपाध्यक्ष सरिता मंगवानी के साथ अन्य संचालकों ने ऋृण न लेने के कारण 671 सदस्यों को संस्था से बाहर कर दिया।  आगामी चुनाव में यह सदस्य मतदान नहीं कर सकते। संचालकों की इसी मनमानी को संचालक मंडल के सदस्य अनिल फतेहचंदानी व अन्य सदस्यों ने उपायुक्त सहकारिता के.पाटनकर के समक्ष चुनौती दी थी। हालांकि लालवानी बंधुओं के घर-आॅफिस में  हुई बैठक के बाद पाटनकर ने आपत्तियां खारिज कर दी।
विभाग की दलील
सदस्यों को बेदखल करने का निर्णय संचालक मंडल का है। हमने उसी लिस्ट को फाइनल किया है जो अध्यक्ष ने हमें सौंपी थी। वैसे भी माले में भोपाल से ही रजिस्ट्रीकरण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। यह सही है कि 2012 में ऋृणी व अऋृणी दोनों श्रेणी के सदस्यों ने मतदान किया था और यदि उस व्यवस्था में कोई बदलवा किया तो उसकी जानकारी एजीएम के माध्यम से सभी सदस्यों के समक्ष रखी जाना थी। बहरहाल, हम मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते।
क्यों उठे सवाल?
2012 से पहले भी अऋृणी के चुनाव न लड़ने का नियम था। 2012 में इसे सिथिल करते हुए ऋृणी और अऋृणी दोनों श्रेणी के सदस्यों को मतदान की पात्रता दी गई। तभी संचालक मंडल चुना भी गया। चुनने के बाद 2013 में बिना किसी चुनावी अवसर के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष ने नियम बदलकर अऋृणी सदस्यों से मतदान की पात्रता छीन ली। मतलब अपनी सहुलियत के हिसाब से नियम बनाओ, काम निकल जाए तो सहुलियत के लिहाज से बदल भी लो।
तो न्याय मिलता भी कैसे?
पूरे मामले में संचालक मंडल को सहकारिता विभाग का श्रेय प्राप्त है।  तभी तो शुरू से संस्था का आॅडिट करते आए आनंद खत्री को ही रजिस्ट्रीकरण अधिकारी बना दिया गया।
संस्था से बेदखल किए गए सदस्यों की जानकारी रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को डीआर/जेआर को देना थी। तीन दिन या पांच दिन का वक्त आपत्ति बुलाने के लिए तय करना था। ताकि सदस्य ऋृण लेकर सदस्यता बरराकर रख सकें। ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।

शिवालय में एक प्लॉट के दो-दो सौदे

डायरी पर सौदाचिट्ठी फाड़कर नकार दी कॉलोनाइजरों ने
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
बिजलपुर की जमीन पर शिवालय के नाम से कॉलोनी काटने वाली शिव रियल मार्ट प्रा.लि. कंपनी के कर्ताधर्ताओं ने एक-एक प्लॉट का सौदा दो या दो से अधिक लोगों से किया है। इसका खुलासा कलेक्टर और डीआईजी तक पहुंची प्लॉटधारकों की शिकायत में हुआ है। शिकायत पर दोनों ही अधिकारियों ने जांच के आदेश दे दिए हैं।
मोहम्मद खम्बाती, सैफूद्दीन खम्बाती, शैलेंद्र मिश्रा उर्फ पप्पू, और कमल कुमार माखिजा ने मिलकर 2010 में शिव रियल मार्ट प्रा.लि. नाम की कंपनी पंजीबद्ध कराई। इसके बाद बिजलपुर में जमीन खरीदी। 30 एकड़ जमीन पर  2012 में शिवालय नाम की कॉलोनी काटी।  टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से इसका ले-आउट मंजूर हुआ था 29 जनवरी 2013 को। शुरूआत में लोगों से पैसे लिए और डायरी पर प्लॉटों की बुकिंग कर दी। बाद में कभी डायरियों से बुकिंग की बात सिरे से नकार दी तो कभी थाने में शिकायत करके कहा कि घर में रखी डायरियां चोरी हो गई। मंगलवार को डीआईजी से मिले पंकज खंडेलवाल, आशीष राजदेव, अभिषेक गुप्ता और हेमेंद्रसिंह जादौन ने बताया कि कॉलोनाइजर चौकड़ी हमारी डायरियां नकार रही है। वहीं उन प्लॉटों का सौदा किसी और को कर दिया गया है जिसकी सौदा चिट्ठी डायरी पर लिखकर हमें दी थी।
पहले कहते रहें दे रहे हैं, फिर नकार दिया
आशीष राजदेव ने बताया कि 1100 वर्गफीट के प्लॉट नं. 298 की डायरी मैंने मोहम्मद खम्बाती और ईश्वर माखिजा द्वारा प्रमाणित किए जाने के बाद ही मैंने खरीदी थी। उसके आधार पर जब प्लॉट का दावा किया तो पहले जवाब मिलता रहा कर रहे हैं। फिर मोहम्मद खम्बाती के पास गए तो उन्होंने ईश्वर माखिजा के पास पहुंचाया। माखिजा ने शैलेंद्र मिश्रा उर्फ पप्पू के पास पहुंचाया। मिश्रा ने कांग्रेस नेता कमलेश खंडेलवाल के पास जाने को कहा। कहीं भी सुनवाई नहीं हुई। उलटा, हमारे खिलाफ ही झूठी शिकायतें की जाने लगी। सभी ने हमारे साथ धोखाधड़ी की है इसीलिए उनके खिलाफ 420 का मामला दर्ज होना चाहिए।
मनमाना निर्माण हुआ है कॉलोनी में
पंकज खंडेलवाल ने बताया कि कॉलोनी में मनमाना निर्माण हुआ है। कॉलोनी की टीएनसी के लिए 2012 में आवेदन किया गया था जबकि कॉलोनी पर काम शुरू हो गया था 2011 से। टीएनसी हुई 2013 में। बुनियादी विकास पूरा होने से पहले तक करीब-करीब सभी प्लॉट बेचे जा चुके थे। अब भी कॉलोनी की यदि नगर निगम नपती करे तो जांच में कई तरह की अनियमितताएं सामने आएंगी। 

तिरंगा अगरबत्ती पर इंदौर सहित देश के कई शहरों में छापा, खुलासा

डमी डायरेक्टर बनाकर दो साल से चल रही है सेकरेड प्रोडक्ट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कानपुर की प्रमुख अगरबत्ती निमार्ता कंपनी तिरंगा ग्रुप के  इंदौर सहित देशभर में 13 ठिकानों पर इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग इंदौर, दिल्ली व कानपुर ने गुरुवार को छापेमार कार्रवाई की। इंदौर के पालदा में  दो साल से समूह की सहयोगी कंपनी सेकरेड प्रोडक्ट्स इंडिया प्रा.लि. संचालित है जिसमें खिजराबाद कॉलोनी के मोहम्मद असलम को डमी डायरेक्टर बना रखा है। बताया जा रहा है कि कार्रवाई के दौरान कर चोरी से संबंधित कई अहम दस्तावेज बरामद हुए हैं जो दिल्ली-कानपुर की टीम साथ ले जाएगी।
उप्र आयकर विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर (जांच) अमरेश तिवारी के निर्देश पर डिप्टी डायरेक्टर वेदप्रकाश, असिस्टेंट डायरेक्टर केके मिश्रा, सौरभ आनंद, अभिनव कुमार की टीम ने भारी फोर्स के साथ तिरंगा ग्रुप के मालिक नरेंद्र शर्मा के हैरिसगंज, चकेरी, रूमा, बिल्लौर, नयागंज, पीपीएन मार्केट स्थित आवास, कारपोरेट आॅफिस, गोदाम, फैक्ट्री समेत नौ ठिकानों पर धावा बोला। इन्हीं अधिकारियों ने आधा दर्जन टीमें बनाकर फैजाबाद और इंदौर स्थित कंपनी के आॅफिस और गोदाम पर छापेमार कार्रवाई की। इंदौर में कार्रवाई ग्राम पालदा के सर्वे नं. 330/3/1 और 330/3/2 पर रमेशचंद्र पिता लक्ष्मीलाल धर्मावत निवासी 103 सच्चिदानंदनगर की 0.174 हेक्टेयर जमीन पर बने गोदाम में दो साल से संचालित कंपनी की यूनिट पर हुई।
ऐसी रही कार्रवाई
कानपुर में नौ, फैजाबाद और इंदौर में दो-दो ठिकानों पर जांच पड़ताल की। सभी ठिकानों पर दस्तावेजों में बड़े पैमाने पर गड़बड़झाला पकड़ा गया है। करोड़ों रुपये टैक्स चोरी के संकेत मिले हैं। कुछ अन्य फर्मों में भी निवेश के सबूत हाथ लगे हैं।
असलम के हवाले कारखाना
तिरंगा  मां कामाख्या दरबार फ्रेगरेंस (इंडिया) प्रा.लि. कंपनी का ब्रांड है। 2003 में 368 हरीशगंज कानपुर में पंजीबद्ध हुई इस कंपनी के सर्वेसर्वा नरेद्र शर्मा और ब्रिजेंद्र मोहन शर्मा है। समूह की एक और सहयोगी कंपनी है  सेकरेड प्रोडक्ट्स इंडिया प्रा.लि. जो मुलत:  330/3/1, 330/3/2 पालदा के पते पर पंजीबद्ध (ंआरओसी नं. 032058/ग्वालियर) है। 1 जनवरी 2014 को ही पंजीबद्ध हुई इस कंपनी के डायरेक्टर नरेंद्र शर्मा (00965304) और मोहम्मद असलम (06763115) हैं। कंपनी की अथॉराइज्ड केपिटल और पेड केपिटल एक लाख है।
डमी डायरेक्टर है असलम
शर्मा 129/एल/9 बाबुपुरवा न्यू कॉलोनी कानपुर के रहने वाले हैं जबकि असलम का पता 46 खिजराबाद कॉलोनी (खजराना) है। शर्मा की डायरेक्टरशीप 25 सितंबर 2016 को खत्म हो चुकी है जबकि असलम की मार्च 2017 में खत्म होगी। बताया जा रहा है कि असलम कंपनी में डिजाइन का काम करता था लेकिन कंपनी ने उसे कंपनी खोलकर डमी डायरेक्टर बना दिया।
ऐसी है कंपनी
कंपनी मुलत: कानपुर की है। इसके अलावा उत्तरांचल, बिहार, झारखंड, मप्र, वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़ और आसाम में भी कंपनी का अच्छा कामकाज है। मां कामाख्या दरबार के बैनर तले तिरंगा अगरबत्ती और सेंट बनती है।
वहीं सेकरेड प्रोडक्ट्स इंडिया प्रा.लि. के बैनर तले सेकरेड ब्रांड अगरबत्ती बनती है। इस ब्रांड में ही मोगरा, बाबा फ्लोरा, अगर वुड्स, बृजवासी, हरिदर्शन, कस्तूरी, हीना, ग्रीन वुड्स, लेवेंडर, मेसूर चंदन, पाकीजा, रोज, पनडाडी दरबार, सेंडलवुड, वृंदावन फ्लोरा और महबूबा  अगरबत्ती बनती है। 

ट्रूबा कॉलेज की जांच शुरू, निगम ने रूकवाया काम

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
कैलोद करताल की जमीन पर बिना नगर निगम की अनुमति के एक के बाद एक तन रही ट्रूबा कॉलेज की अवैध बिल्डिंगों की जांच निगमायुक्त मनीष सिंह के निर्देश पर बिलावली जोन के अधिकारियों ने शुरू कर दी है। मैदानी अमले ने बिल्डिंगों में जारी अवैध निर्माण रूकवाकर मजदूरों को रवाना कर दिया है। प्रबंधन को स्पष्ट निर्देशित कर दिया है कि नियमानुसार कार्रवाई होने के बाद ही निर्माण की अनुमति दी जाएगी।
बायपास पर  कैलोद करताल के सर्वे क्रमांक 286, 287, 288, 289 और 290 की 4.213 हेक्टेयर (452476.2 वर्गफीट) जमीन पर चल रहे ट्रूबा कॉलेज परिसर में मनमाना निर्माण हो रहा है। इसका खुलासा दबंग दुनिया ने 3 जनवरी को ‘निगम की अनुमति के बिना तान दिया ट्रूबा कॉलेज’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इसके बाद भी लगातार खबरें प्रकाशित की जिनके आधार पर नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह ने ट्रूबा कॉलेज में जारी निर्माण की जांच के आदेश दिए थे। आदेश के अनुसार बिलावली जोन के अधिकारी विष्णु खरे और नागेंद्रसिंह भदौरिया टीम के साथ कॉलेज पहुंचे। उन्होंने वहां चल रहे निर्माण कार्य का रूकवाया दिया। कहा कि बिना अनुमति निर्माण न करें। अन्यथा कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
आगे क्या होगा कॉलेज का
बताया जा रहा है कि चूंकि कॉलेज में बिना अनुमति निर्माण किया है इसीलिए निर्माण शुरू करने से पहले नगर निगम में भवन अनुज्ञा के लिए आवेदन करना होगा। नगर निगम पेनल्टी लगाकर नक्शा मंजूर कर सकता है। तब तक निर्माण अवैध ही रहेगा।
यह है बड़ी अड़चन
कॉलेज को टीएंडसीपी ने 25 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज की अनुमति दी थी जो कि वह पहले ही कॉलेज बनाते वक्त इस्तेमाल कर चुका है। इसके बाद नई जमीनों पर निर्माण करके 50 फीसदी से ज्यादा ग्राउंड कवरेज किया गया है। अतिरिक्त ग्राउंड कवरेज पर तनी बिल्डिंगों की  कम्पाउंडिंग मुश्किल है।
प्रशासनिक संकूल की बिल्डिंग सर्वे नं. 287 की जिस जमीन पर बनी है मास्टर प्लान 2021 में उसका भू-उपयोग ग्रीन बेल्ट के रूप में आरक्षित है। इस पर भी निगम भवन अनुज्ञा जारी नहीं कर सकता।

टीएंडसीपी एक्ट में भू-अधिग्रहण के नाम पर होगी सरकारी मनमानी

दिसंबर 2016 में पास विधेयक, 1973 से लागू होगा
पीड़ितों से कोर्ट जाने के अधिकार तक छीने
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एक तरफ मोदी सरकार भू-अधिग्रहण कानून को कड़ा बना रही है ताकि किसानों को उनका वाजिब हक मिले वहीं मप्र सरकार ने मप्र नगर तथा ग्राम निवेश (संशोधन तथा विधिमान्यकरण) विधेयक-2016 को मंजूरी देकर किसानों की कमर तोड़ दी है। इस विधेयक को 1973 से प्रभावशाली माना गया है। मतलब सरकार 43 साल पुराना हवाला देकर किसी भी जमीन को अधिग्रहित कर सकती है। इतना ही नहीं अधिग्रहण के विरुद्ध कोर्ट जाने के अधिकार तक छीन लिए गए हैं। इस कानून के खिलाफ किसान अब एक होने लगे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में बिना जोनल प्लान के पूरे प्रदेश के विकास प्राधिकरणों की स्कीम अवैध करार दी गई थी। इससे बचने के लिए सरकार ने सितंबर में अध्यादेश लाकर कानून से जोनल प्लान ही खत्म कर दिया। अफसरों ने कारगुजारी करते हुए अन्य धाराओं में भी संशोधन कर दिए। इसमें किसानों से जबरिया जमीन लेने जैसा फैसला भी है। केंद्र के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जमीन का अधिग्रहण नहीं होना। यानी अफसर मनमाने तरीके अधिग्रहण के दाम तय करेंगे।
प्रजातंत्र है या...
युवा किसान संघ के अध्यक्ष नीरज द्विवेदी ने बताया कि इंदौर में किसानों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। जमीन देने से ऐतराज नहीं है, लेकिन कार्रवाई कानूनन हो। अभी तो यह हाल है कि सुनवाई की उचित व्यवस्था नहीं। यदि किसी किसान को न्याय नहीं मिला तो वह कोर्ट भी नहीं जा सकता है। कानून में संशोधन 43 साल पहले लागू करने से कई विसंगतियां होगी। एक्ट में बदलाव की मंजूरी राष्ट्रपति से भी नहीं ली गई।
सचिव विपिन पाटीदार ने बताया कि 3 साल की समय सीमा खत्म यानी कभी भी जमीन अधिग्रहण हो सकता है। यही नहीं, प्रदेश की सभी शहरी विकास योजनाओं के लिए होने वाले जमीन अधिग्रहण पर किसानों के कोर्ट जाने से रोकने का विवादास्पद बदलाव भी कर दिया।
बदलाव जिनका है बेहद विरोध
संसोधित विधेयक दिसंबर 2016 में मंजूर हुआ तो 1973 से कैसे लागू हो सकता है जबकि इंदौर जैसे शहर का पहला मास्टर प्लान ही 1975 में आया था।
विकास योजना की परिभाषा संशोधित मप्र नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 की धारा 18-19 को निर्मित विकास योजना तक सीमित रखा गया है। इससे धारा 20-21 के तहत होने वाली जोनल प्लानिंग खत्म कर दी गई है जबकि मास्टर प्लान 2021 जोनल प्लान पर अधारित था।
सुप्रीमकोर्ट के आदेशों के विपरीत जाकर सरकार ने जोनल प्लान को खत्म करने का प्रयास किया है। जोन प्लान खत्म होने से अधिकारी भू-उपयोग में मनमानी करेंगे।
धारा 56 में किए गए बदलाव के अनुसार किसी भी भू-अर्जन की कार्रवाई या भू-अर्जन के दौरान जारी पंचाट ही माना जाएगा। चुनौती नहीं दी जा सकती।
धारा 6 में विधिमान्यकरण के नाम पर किए गए संसोधन के तहत भू-अर्जन से प्रभावित होने वाले किसानों से कोर्ट जाने का अधिकार छीन लिया है।
अभी तो मामला कोर्ट में ही विचाराधीन है
संगठन के दिनेश पालीवाल ने बताया कि संगठन ने संशोधन तथा विधिमान्यकरण अध्यादेश की वैधता और उसमें समाहित किए गए किसान विरोधी बदलाव को मप्र हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ में याचिका (डब्ल्यूपी19342) के माध्यम से चुनौती दी थी। जो अभी विचाराधीन है। बावजूद इसके सरकार ने 6 दिसंबर को संसोधन विधेयक मंजूर कर दिया।
इंदौर में 5 हजार एकड़ जमीन पर असर
आईडीए की एमआर 10 और सुपरकॉरिडोर में आने वाली स्कीमें 171, 172, 174 व 151 आदि में करीब 5 हजार एकड़ जमीन टीएंडसीपी के एक्ट से प्रभावित है।
स्कीम 131 बी में किसानों को नोटिस भी दिए जाने लगे हैं। इंफोसिस, टीसीएस आदि को दी गई जमीनें भी कानूनी अड़चन में फंस रही थी। यही वजह है कि पूरे प्रदेश के लिए कानून बदल दिया गया।
इन स्कीमों का भविष्य भी संकट में। स्कीम-165, 169 ए और 169 बी, स्कीम-155। 

जनहित बताकर बिना अनुमति काट दी कॉलोनी

बचने के लिए कहते हैं आरटीओ के कारण हटाए लोगों को बसा रहे हैं
इंदौर. विनोद शर्मा ।
शासन और प्रशासन की तमाम सख्त कार्रवाइयों के बावजूद इंदौर में भू-माफियाओं की मनमानी जारी है। रालामंडल अभ्यारण्य के ठीक पीछे ढ़ाई एकड़ जमीन पर आकार ले रही सोनकर बंधुओं की कॉलोनी इसका बड़ा उदाहरण है। तकरीबन डेढ़ सौ प्लॉट की इस कॉलोनी में तीन से साढ़े तीन लाख रुपए में 600-600 वर्गफीट के प्लॉट थमाए गए हैं। सरपंच की शिकायत और कार्रवाई को लेकर कलेक्टर द्वारा दिए आश्वासन के बावजूद कॉलोनी में 90 फीसदी प्लॉट बिक चुके हैं।
मामला बिहाड़िया के सर्वे नं. 230/1 की 1.080 हेक्टेयर (करीब ढ़ाई एकड़) जमीन का है। राजस्व रिकार्ड में राजकुमार पिता देवनारायण कुमावत के नाम से चढ़ी इस जमीन पर दो महीने से कॉलोनी कट रही है। मुरम की सड़क बिछाकर 15 बाय 40 (600 वर्गफीट) के कुल 168 प्लॉट निकाले गए थे जिसमें से 130 प्लॉट बेचे जा चुके हैं। कुमावत की मानें तो वह जमीन कमल सोनकर और विकास सोनकर को बेच चुका है। अभी आधी जमीन की रजिस्ट्री हुई है, आधी की होना है इसीलिए राजस्व रिकार्ड पर उनका नाम चढ़ा हुआ है। कॉलोनी कमल सोनकर, विकास सोनकर और सुंदरलाल मालवीय काट रहे हैं जो मुलत: पालदा के रहने वाले हैं।
न बिजली के खम्बे, न पानी
जिस जमीन पर कॉलोनी काटकर 3 से 3.5 लाख रुपए में 130 से ज्यादा प्लॉट बेचे जा चुके हैं वहां मुरम की कच्ची सड़क के अलावा कोई जनसुविधा नहीं है। फिर बात बिजली की हो या पानी की। डेÑनेज, बगीचे और ट्रांसफार्मर की बात तो दूर है। दबंग स्टींग के दौरान कॉलोनाइजर ने कहा था कि सुविधा देते तो तीन लाख में प्लॉट कैसे देते। हम सिर्फ कॉलोनी काट रहे हैं, सुविधा पंचायत देगी। सरपंच जगदीश यादव से बात हो चुकी है।
जनहित की आड़ में खेल
कॉलोनाइजर कॉलोनी को जनहित से जोड़कर बताता है उनकी मानें तो तीन लाख में प्लॉट बेचकर लोगों की सेवा ही कर रहे हैं, इसमें मिलता क्या है। वहीं जब मौके पर अनुमति की बात करें तो कॉन्फिडेंस के साथ कॉलोनाइजर कहता है पालदा आॅफिस आ जाओ, सभी अनुमतियां है।
कोई अनुमति नहीं ली है
2015 से मैं सरपंच हूं अब तक कॉलोनी को लेकर कोई व्यक्ति अनुमति लेने नहीं आया है। कुछ प्लॉट होल्डर जरूर आए थे, तब मैंने कलेक्टर को शिकायत की थी। दो महीने हो चुके हैं। अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
जगदीश यादव, सरपंच
कॉलोनी से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। न हमने अनुमति दी थी। सब झूठ बोल रहे हैं।
किरण अनुराग, पूर्व सरपंच
कॉलोनी से लेना-देना नहीं है मेरा। मैं प्रॉपर्टी ब्रोकर हूं और राजू कुमावत से सोनकर बंधुओं को जमीन दिलाने का ही काम किया है। नायता मुंडला में आरटीओ बनने के दौरान जो लोग हटाए गए थे उन्हें पूर्व सरपंच किरण अनुराग विस्थापित कर रही थी।
संदीप यादव
कमल और विकास सोनकर को है। ढ़ाई एकड़ है। सेलडीड है। पेमेंट  पूरा नहीं है। हमने तो जमीन बेच दी। फंसे तो सोनकर फंसे। सवा एकड़ की रजिस्ट्री हुई है।
राजकुमार कुमावत, जमीन मालिक
कॉलोनी नहीं, जनहित है
बिहाड़िया में आप अवैध कॉलोनी काट रहे हैं?
नहीं, अनुमति है। पंचायत से।
सरपंच/पूर्व सरंपच कहते हैं अनुमति नहीं है?
आपको क्या आपत्ति है।
मतलब आप कॉलोनी काट रहे हैं?
कॉलोनी नहीं है। कांकड़ से हटाए लोगों को डेढ़-दो लाख रुपए में प्लॉट देकर विस्थापित किया है।
यह काम आपका तो नहीं है?
पर कर दिया, जनहित में।
साढ़े तीन लाख में 600 वर्गफीट, रोड से 4 किलोमीटर अंदर, कैसा जनहित?
आप तो आ जाओ, बैठकर बात कर लेंगे।
विकास सोनकर, कॉलोनाइजर

डायरी में नोट होकर रह गई कलेक्टर की कार्रवाई

बिहाड़िया पंचायत की शिकायत के दो महीने बाद भी सोनकर बंधु बेखौफ काट रहे हैं कॉलोनी
पंचायत कहती है साहब ही नहीं सुने, तो हम क्या करें
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जब अवैध कॉलोनी कटना शुरू ही हुई थी कि हमने लिखित में कलेक्टर पी.नरहरि को शिकायत की। उन्होंने  पर्सनल डायरी में डिटेल नोट की। हमने कहा भी था कि साहब कार्रवाई डायरी में ही तो दबकर नहीं रह जाएगी। इस पर कलेक्टर ने कहा था कि प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई करेंगे, इसीलिए डायरी में नोट किया है। फिर भी दो महीने हो चुके हैं कॉलोनी कटते-कटते। प्लॉट बिकते-बिकते। कलेक्टर तो दूर पटवारी तक ने मौके पर जाकर नहीं देखा कि कॉलोनी अनुमति से कट रही है या बिना अनुमति से।
यह कहना है विकास सोनकर, कमल सोनकर और सुंदरलाल मालवीय की अवैध कॉलोनी की मुखालफत करने वाले बिहाड़िया पंचायत के पदाधिकारियों का। कॉलोनी कटती रही, आप देखते रहे? सवाल के जवाब में पदाधिकारियों ने दो टूक शब्दों में कहा कि कॉलानी का काम रूकवाना हमारे हाथ में नहीं है। कलेक्टर को लिखित शिकायत कर सकते थे, सो हमने की। अब कलेक्टर ही कार्रवाई नहीं करें तो अब हम किसके पास जाएं? और क्यों? हम ही सब कर लें तो पटवारी, आरआई और एसडीएम जैसा मैदानी अमला क्या करेगा।
कॉलोनी विस्तार की तैयारी
तकरीबन ढ़ाई एकड़ जमीन पर 168 प्लॉटों में से 80 फीसदी प्लॉट बेच चुकी भू-माफिया तिकड़ी अब कॉलोनी के विस्तार की तैयारी में है। इसके लिए जहां पीछे की तरफ सर्वे नं. 230/1 की जमीन खत्म हो रही वहां सर्वे नं. 231 और 225 की जमीन का अनुबंध करके कॉलोनी काटने की फिराक में है। बताया जा रहा है कि यहां करीब सौ प्लॉट निकलेंगे।
बिजली कहां से लाएंगे? खम्बे लगाएंगे न
कॉलोनी में अब तक मुरम की रोड बिछाई गई है। इसके अलावा व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं है। बिजली के सवाल पर सोनकर एंड टीम कहती है कि बिजली के खम्बे लगाएंगे। कब? जवाब मिलता है रजिस्ट्री कराओ और मीटर के लिए आवेदन कर दो। जब मीटर बढ़ जाएंगे तो आॅटोमेटिक बिजली कंपनी को खम्बे लगाना पड़ेंगे। कुछ ऐसा ही जवाब मिलता है पीने के पानी की व्यवस्था के नाम पर। कहते हैं आसपास खेतों में बोरिंग है ही किसी से टायअप करके लाइन डाल देंगे।
सरकारी अमले को तो जानकारी ही नहीं
बायपास (नायता मुंडला चौराहे) से बिहाड़िया 4 किलोमीटर दूर है। 3.5 किलोमीटर पर कॉलोनी कट रही है लेकिन पटवारी से लेकर एसडीएम तक मैदानी अमले में किसी की नजर कॉलोनी पर नहीं पड़ी। दो महीने में 168 प्लॉट की कॉलोनी में 140 प्लॉट बिकने तक यह कैसे संभव है? इसके दो ही मतलब है अधिकारी बिहाड़िया जैसे नजदीकी गांव में ही मौके पर नहीं जाते हैं या फिर कॉलोनी तो देख ली लेकिन उसे अनदेखा करने की फीस मिल गई हो।
आप ने जानकारी दी है, मैं दिखवाती हूं
पंचायत पदाधिकारियों ने शिकायत की होगी लेकिन मुझे मामले की जानकारी नहीं है। अब मामला संज्ञान में आया है हम आवश्यकतानुसार कार्रवाई करेंगे।
शालिनी श्रीवास्तव, एसडीएम
मुझे जानकारी नहीं है। मौका व दस्तावेज देखकर ही कुछ कह पाऊंगी।
श्रृद्धा पंचौली, पटवारी
हम सिर्फ शिकायत कर सकते हैं
पंचायत के पंचों ने सामुहिक रूप से कॉलोनी की शिकायत कलेक्टर पी.नरहरी को की थी। दो महीने हो चुके हैं। कॉलोनी में बिक रहे प्लॉट को देखकर नहीं लगता कि अब तक कार्रवाई हुई होगी।
जगदीश यादव, सरपंच

जूम की 32 करोड़ की संपत्ति ईडी ने की अटैच

28 एकड़ जमीन के साथ विभिन्न कंपनियों के शेयर भी
अब क 132 करोड़ का अटैचमेंट
इंदौर. चीफ रिपोर्टर।
बैंक गारंटी के नाम पर 25 बैंकों को 2600 करोड़ की चपत लगाने वाली इंदौर की जूम डेवलपर्स प्रा.लि. की करीब 32 करोड़ रुपए संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सीज कर ली है। इसमें जमीन से लेकर अलग-अलग कंपनियों में जूम या उसके डायरेक्टर विजय चौधरी के नाम पर खरीदे गए शेयर भी शामिल हैं। अब तक ईडी कंपनी की 132 करोड़ की संपत्ति अटैच कर चुका है जिसकी बाजार कीमत 1500 करोड़ से ज्यादा है।
सीबीआई द्वारा मामला सौंपे जाने के बाद से ईडी जूम डेवलपर्स के खिलाफ प्रिवेंशन आॅफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) 2002 के तहत जांच कर रहा है। आरोप है कि इस कम्पनी ने अलग-अलग परियोजनाओं के नाम पर फर्जी दस्तावेजों के बूते सरकारी क्षेत्र के 25 बैंकों से करीब 2650 करोड़ रुपए का कर्ज और बैंक गारंटी हासिल की थी। बाद में मंदी की आड़ लेकर गारंटी केश करवा ली। जांच के दौरान सामने आए तथ्यों के आधार पर ईडी ने मंगलवार को 32 करोड़ की संपत्ति अटैच की।
ईडी के अधिकारियों ने बताया कि जब्त की गई संपत्ति में बेंगलुरू, इंदौर, मुंबई और रायगढ़ (महाराष्ट्र) में कुल 23.80 एकड़ जमीन, अलग-अलग कम्पनियों में उसके शेयर और कुछ अन्य निवेश कुर्क किया गया है। कानूनी प्रक्रिया के तहत कुर्की के इस अंतरिम आदेश की पुष्टि के लिए ईडी अब अपीलीय न्यायाधीकरण के सामने अपनी शिकायत पेश करेगा।
आरोप
जूम डेवलपर्स पर आरोप है कि उसने कर्जदाता भारतीय बैंकों के साथ धोखाधड़ी करते हुए इस रकम को संबंधित परियोजनाओं पर खर्च करने के बजाय अपनी अलग-अलग इकाइयों में लगा दिया और बैंकों का ऋण भी नहीं चुकाया।
अब तक हुई कार्रवाई
ईडी ने जुलाई 2015 में कंपनी की 200 करोड़ की संपत्ति सीज की थी। इसमें 130 एकड़ जमीन छोटा बांगड़दा में, 40 हजार वर्गफीट जमीन मुंबई में और केरला में जूम कंपनी की केरला इंडस्ट्रियल फायनेंस कॉर्पोरेशन शामिल है। जुलाई 2015 में ही ईडी ने बड़ी कार्रवाई करते हुए जूम की  कैलिफोर्निया स्थित 1280 एकड़ जमीन जब्त की। दस्तावेजों के हिसाब से जब्त की गई संपत्ति की कीमत 100 करोड़ है।
घपला : सीबीआई ने कहा 967, ईडी कहता है 2500 करोड़
चौकाने वाली बात यह है कि जूम के खिलाफ सात एफआईआर दर्ज कर चुकी सीबीआई ने अपनी छानबीन में पाया था कि जूम ने बैंकों के साथ 967 करोड़ की ही धोखाधड़ी की है। वहीं तीन साल की अपनी जांच में ईडी ने पाया कि मामला 2500 करोड़ से ज्यादा की धोखाधड़ी का है। मतलब ईडी और सीबीआई के आंकड़ों के बीच अंतर सीधे 1533 करोड़ का है। वहीं सीबीआई अब तक जूम के डायरेक्टर विजय चौधरी और मंजरी चौधरी में से किसी को भी पकड़ नहीं पाई है।

पाठक को बचाने के लिए जांच ईडी के पाले में

पुलिस पर शंका के चलते केस को सस्टेनेबल नहीं मानता डिपार्टमेंट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कटनी हवाला कारोबार में मंत्री संजय पाठक का नाम आने के बाद प्रदेश सरकार और भाजपा दोनों घिर रही थी। इसीलिए एक तरफ जांच करने वाले एसपी गौरव तिवारी का तबादला किया गया तो दूसरी तरफ सरकार ने जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के भरौसे छोड़ दी। वहीं आर्थिक मामले छोड़ ईडी पुलिस की जगह धोखाधड़ी का मामला तो जांच नहीं सकती। पुलिस की जांच जरूरी है जिसे स्वयं सरकार और उसके द्वारा नियुक्त किए गए कटनी के नवागत एसपी ही नकार रहे हैं।
देशव्यापी बदनाम हो चुकी एक्सिस बैंक के अधिकारियों की मिलीभगत से एसके मिनरल्स, महावीर ट्रेडिंग कंपनी और अमर ट्रेडिंग कंपनी के नाम से फर्जीवाड़ा 2008 से चल रहा है। इनकम टैक्स द्वारा थमाए गए नोटिस के बाद 5 जुलाई से दिसंबर के बीच धारा 420, 467, 471 भादवि के तहत चार एफआईआर (अपराध क्रमांक 738/16, 739/16, 741/16 व 1367/16 ) दर्ज हुई। एसके मिनरल्स का डायरेक्टर बनाए जाने के खिलाफ लाइनमेन रजनीश तिवारी, आॅटोमोबाइल दुकान संचालक विनय जैन  द्वारा महादेव ट्रेडिंग और उमादत्त होलकर द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर शामिल हैं। मामला बंद होने और री-ओपन होने तक सब सामान्य था। सरकार की नींद उड़ी मंत्री संजय पाठक का नाम सामने आने के बाद।
एसपी का ट्रांसफर, जांच ईडी को
मार्च से जुलाई तक तीन शिकायतों पर एफआईआर नहीं हुई थी लेकिन एसपी बनते ही गौरव तिवारी ने 5 जुलाई को तीन केस दर्ज किए थे। पुलिस की जांच परिणाम तक पहुंचती उससे पहले ही एसपी का ट्रांसफर कर दिया। नए एसपी शशिकांत शुक्ला ने करीब-करीब फाइनल हो चुकी तिवारी की जांच रिपोर्ट एक तरफ करते हुए नए सिरे से जांच शुरू कर दी। उन्होंने फर्जी कंपनियों के नेटवर्क से फोकस हटाकर इस बात पर लगा दिया कि फर्जी खाते खोले किसने? इसीलिए पाठक का नाम आते ही मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा ईडी से जांच कराए जाने का आश्वासन दिए जाने के बाद शुक्ला ने एफआईआर की कॉपी ईडी इंदौर को सौंप दी।
सिर्फ एफआईआर का क्या करें?
ईडी ने औपचारिकता निभाते हुए एफआईआर के आधार पर इन्फोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) के लिए अहमदाबाद आॅफिस से अनुमति मांगी है। हालांकि ईडी का साफ कहना है कि चूंकि मामला क्रिमिनिल अफेंस से जुड़ा है इसीलिए जांच सीबीआई को सौंपी जाती तो ज्यादा बेहतर थी। ईडी की सारी जांच पुलिस की जांच पर टिकेगी। हम ईसीआईआर दर्ज कर भी लें लेकिन पुलिस चार्जशीट फाइल नहीं करती तो हमारा भी सारा किया धरा पानी में जाएगा। क्योंकि एफआईआर पर ईसीआईआर दर्ज हो सकती है लेकिन प्रॉपर्टी अटैचमेंट के लिए पुलिस की चार्जशीट होना जरूरी है। फिलहाल जो परिस्थितियां कटनी में नजर आ रही है उसके चलते तो पुलिस की भूमिका अब शंकास्पद है। इसीलिए केस सस्टेनेबल नहीं है।
ईडी को क्यों नहीं..
मामले को पुलिस हवाले से जोड़कर देख रही है जबकि स्थानीय या अंतर राज्यीय हवाला ईडी की जांच के दायरे में नहीं आता। ईडी सिर्फ अंतरराष्ट्रीय हवाले के मामले में फेमा का केस दर्ज कर सकती है।
पीएमएलए के लिए धोखाधड़ी की धाराओं में क्रिमिनिल अफेंस या प्रिवेंशन आॅफ करपंशन एक्ट जरूरी है। क्रिमिनल अफेंस पर जांच करना  पुलिस/सीआईडी या सीबीआई का काम है वहीं पीसीए में ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त या सीबीआई का।