Monday, March 21, 2016

कुंभ में संघर्ष का इतिहास : चार आश्रमों में से एक अंतिम संन्यास आश्रम के अनुयायी शैवों और वैष्णवों में शुरू से संघर्ष रहा है। शाही स्नान के वक्त अखाड़ों की आपसी तनातनी और साधु-संप्रदायों के टकराव खूनी संघर्ष में बदलते रहे हैं।
 
वर्ष 1310 के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तो तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गई थीं। वर्ष 1760 में शैव संन्यासियों व वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के कुंभ में भी शैव संन्यासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे।
 
अखाड़ा परिषद का गठन : विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संगतों के झगड़ों और खूनी टकराव की बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई, जो सरकार से मान्यता प्राप्त है। इसमें कुल मिलाकर तेरह अखाड़ों को शामिल किया गया है। प्रत्येक कुंभ में शाही स्नान के दौरान इनका क्रम तय है।
 
अखाड़ों का इतिहास : कालांतर में शंकराचार्य के आविर्भाव काल सन्‌ 788 से 820 के उत्तरार्द्ध में देश के चार कोनों में चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की। बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए, जिनमें सात पंचायती अखाड़े आज भी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत समाज में कार्यरत हैं।
शैव अखाड़े : अखाड़ों की स्थापना के क्रम की बात करें तो अखाड़ों के शास्त्रों अनुसार सन्‌ 660 में सर्वप्रथम आवाह्‍न अखाड़ा, सन्‌ 760 में अटल अखाड़ा, सन्‌ 862 में महानिर्वाणी अखाड़ा, सन्‌ 969 में आनंद अखाड़ा, सन्‌ 1017 में निरंजनी अखाड़ा और अंत में सन्‌ 1259 में जूना अखाड़े की स्थापना का उल्लेख मिलता है।लेकिन, ये सारे उल्लेख शंकराचार्य के जन्म को 2054 में मानते हैं। जो उनका जन्मकाल 788 ईसवीं मानते हैं, उनके अनुसार अखाड़ों की स्थापना का क्रम चौदहवीं शताब्दी से प्रारंभ होता है। यही मान्यता उचित भी है।

वैष्णव अखाड़े : बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी रक्षा के लिए अखाड़े बनें।
 
उदासीन अखाड़े : साधुओं की अखाड़ा परंपरा के बाद में गुरु नानकदेव के सुपुत्र श्री श्रीचंद्र द्वारा स्थापित उदासीन संप्रदाय भी चला, जिसके आज दो अखाड़े कार्यरत हैं। एक श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन और दूसरा श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन। इसी तरह पिछली शताब्दी में सिख साधुओं के एक नए संप्रदाय निर्मल संप्रदाय और उसके अधीन श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा का भी उदय हुआ।
 

जानिए अखाड़ा शब्द का अर्थ और उत्पत्ति

शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं

हले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। अखाड़ा साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द बना है। कुछ मानते हैं कि अक्खड़ से या आश्रम से।क्या अक्षवाट से बना अखाड़ा? : अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। प्राचीनकाल में भी राज्य की ओर से एक निर्धारित स्थान पर जुआ खिलाने का प्रबंध किया जाता था, जिसे अक्षवाट कहते थे।
 अक्षवाटः बना है दो शब्दों अक्ष और वाटः से मिलकर। अक्ष के कई अर्थ हैं, जिनमें एक अर्थ है चौसर या चौपड़, अथवा उसके पासे। वाट का अर्थ होता है घिरा हुआ स्थान। यह बना है संस्कृत धातु वट् से जिसके तहत घेरना, गोलाकार करना आदि भाव आते हैं। इससे ही बना है उद्यान के अर्थ में वाटिका जैसा शब्द।
 चौपड़ या चौरस जगह के लिए बने वाड़ा जैसे शब्द के पीछे भी यही वट् धातु का ही योगदान रहा है। इसी तरह वाट का एक रूप बाड़ा भी हुआ, जिसका अर्थ भी घिरा हुआ स्थान है। अप्रभंष के चलते कहीं-कहीं इसे बागड़ भी बोला जाता है।
 इस तरह देखा जाए तो, अक्षवाटः का अर्थ हुआ, ‘द्यूतगृह अर्थात जुआघर।’ अखाड़ा शब्द संभवत: यूं बना होगा- अक्षवाट अक्खाडअ, अक्खाडा, अखाड़ा।
 इसी तरह अखाड़े में वे सब शारीरिक क्रियाएं भी आ गईं, जिन्हें क्रीड़ा की संज्ञा दी जा सकती थी और जिन पर दांव लगाया जा सकता था।
 जाहिर है प्रभावशाली लोगों के बीच शान और मनोरंज की लड़ाई के लिए कुश्ती का प्रचलन था, इसलिए धीरे-धीरे कुश्ती का बाड़ा अखाड़ा कहलाने लगा और जुआघर को अखाड़ा कहने का चलन खत्म हो गया।
 अब तो व्यायामशाला को भी अखाड़ा कहते हैं और साधु-संन्यासियों के मठ या रुकने के स्थान को भी अखाड़ा कहा जाता है। हलांकि आधुनिक व्यायामशाला का निर्माण स्वामी समर्थ रामदान की देन है, लेकिन संतों के अखाड़ों का निर्माण पुराने समय से ही चला आ रहा है।
 व्यायाम शाला में पहलवान कुश्ती का अभ्यास करते हैं। दंड, बैठक आदि लगाकर शारीरिक श्रम करते हैं वहीं संतों के अखाड़ों में भी शरीरिक श्रम के साथ ही अस्त्र और शास्त्र का अभ्यास करते हैं।

शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े :
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)।
2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)।
4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती- त्रंब्यकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)
बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े :
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)।
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)।
10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)।
उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े :
11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)।
12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)।
13. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)।

Saturday, March 12, 2016

शिकायतें होती रही, नोटिस थमाए जाते रहे लेकिन नहीं रूका अवैध निर्माण

जब नगर निगम ही हो साथ तो शिकायतों की क्या बिसात
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
अवैध निर्माण के खिलाफ नगर निगम का मैदानी अमला पूरी तरह समर्पित है। लोग चाहे जितनी शिकायतें करते रहे, बड़े अधिकारी चाहे जितने कानून-कायदे बनाते रहें लेकिन अंतत: होगा वही जो जोन और वार्डों में तैनात अधिकारी चाहेंगे। 3/3 ओल्ड पलासिया स्थित बनी बिल्डिंग इसका बड़ा उदाहरण है जिसकी नींव में अफसरों ने कई शिकायतें दफन कर दी। मामला लोकायुक्त तक पहुंच चुका है लेकिन गैरकानूनी काम को कानूनी तरीके से करने में माहिर अफसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
3/3 ओल्ड पलासिया पर सुनील यादव व अन्य बिल्डिंग बना रहे हैं। इस बिल्डिंग में शुरू से अवैध निर्माण जारी है। 15 जून 2015 को जोन-10 के भवन अधिकारी भी भवन मालिक को नोटिस देकर स्पष्ट कर चुके हैं कि आप नगर निगम से अनुमति लिए बिना जो निर्माण कर रहे हैं वह अवैध है। कोई अनुमति है तो तीन दिन में दिखाएं। बिल्डर नहीं माना। इसीलिए 1 अगस्त 2015 को रिमुवल की कार्रवाई मुकरर्र करते हुए पलासिया थाने से पुलिस बल मांगा गया। कार्रवाई नहीं हुई। यही कहानी 26 और 30 सितबर को भी दोहराई गई। 30 सितंबर को सुनील यादव और राजाराम यादव को भी नोटिस दिया गया और 3 अक्टूबर 2015 को रिमुवल की तीसरी तारीख मुकरर्र हुई।
नोटिसों के तीर के बीच डल गई छत...
15 जून से 7 जुलाई 2015 के बीच नोटिस का दौर चलता रहा इसी दौरान यादव परिवार ने विवादित निर्माण को आगे बढ़ाते हुए छत भी डाल ली। जिसकी शिकायत भी शिकायतकर्ता ने की। अधिकारियों ने कहा कि स्थल निरीक्षण करके 26 जून 2015 को रिमुवल लगाया था लेकिन सामने वाले ने अवैध निर्माण स्वयं हटाने का आश्वासन दे दिया था। 20 जुलाई को मामले में शीघ्र रिमुवल के लिए लिखा गया।
अपर आयुक्त का आदेश भी हवा में
लगातार कार्रवाई के लिए लिखने के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई। इसीलिए शिकायतकर्ता ने अपर आयुक्त देवेंद्र सिंह को शिकायत की। सिंह ने 8 फरवरी 2016 को भवन अधिकारी महेश शर्मा और भवन निरीक्षक सुमित अस्थाना को पत्र लिखकर एक सप्ताह में कार्रवाई करके सुचित कराने के  निर्देश दिए। बावजूद इसके कार्रवाई नहीं हुई।
बड़ा पैसा बंटा !
शिकायतकर्ता ने 16 फरवरी 2016 को लोकायुक्त एसपी और सीएम हैल्पलाइन पर मय प्रमाण के शिकायत की। शिकायतकर्ता ने आशंका जताई कि जरूर नगर निगम के अफसरों ने अवैध निर्माण पर कार्रवाई न करने के लिए बिल्डर से पैसे ले लिए हैं इसीलिए कार्रवाई नहीं हो रही है। इसीलिए अब न सिर्फ अवैध निर्माण पर कार्रवाई हो बल्कि अवैध निर्माण को बढ़ावा देने वाले भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई हो। 

सख्त सरकार, टूटेगा अवैध लॉजीपार्क का द्वार

अर्जुन बरोदा में एम्पायर समूह की मनमानी को अफसरों का करारा जवाब
 बिना अनुमति शुरू किया विकास, प्रशासन ने नामांतरण पर भी लगाई रोक
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कॉलोनी के नाम पर कालापीला करने की कला में पारंगत इंदौर के जमीनी ‘जादूगर’ अब ग्रामीण क्षेत्रों में अपने ‘हुनर’ से कानून-कायदों को ठेंगा दिखा रहे हैं। इसका बड़ा उदाहरण एबी रोड स्थित अर्जुन बरोदा गांव में आकार ले रही एम्पायर लॉजीपार्क है। सुविधाओं का सब्जबाग दिखाकर बेचे जा रहे इस लॉजीपार्क का विकास जिला प्रशासन से विकास अनुमति लिए बिना ही किया जा रहा है। बहरहाल, सांवेर एसडीएम ने भी भू-माफियाओं के मंसूबों पर पानी फेरते हुए बिना अनुमति हुए विकास को नेस्तनाबूद करने की तैयारी कर ली है। इस कड़ी में लॉजीपार्क के भव्य द्वार को तोड़ने के नोटिस दे दिए गए हैं।
राजस्व दस्तावेजों के अनुसार ग्राम अर्जुन बरोदा में राधेश्वरी डेवलपर्स प्रा.लि. तर्फे डायरेक्टर साकेत कुमार पिता सुरेशकुमार के नाम पर 26.884 हेक्टेयर जमीन है। 25 वर्षों में एम्पायर स्टेट, एम्पायर रेसीडेंसी, एम्पायर विक्टोरी सहित आधा दर्जन से अधिक आवासीय प्रोजेक्ट पर काम करने वाले एम्पायर समूह इस जमीन पर लॉजीपार्क बनाकर गैर आवासीय प्लॉट बेच रहा है। लॉजीपार्क के लिए 3 अपै्रल 2014 को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से ले-आउट मंजूर (2383/एसपी/आउट-2/14/नग्रानि/2014) मंजूर किया था। टीएंडसीपी द्वारा स्वीकृत नक्शे के आधार पर जमीन का डायवर्शन भी हुआ लेकिन टीएंडसीपी के स्वीकृति आदेश की कंडिका क्रमांक 2 का उल्लंघन करते हुए कंपनी ने विकास अनुमति नहीं ली और विकास कार्य शुरू कर दिए।
कोर्ट ने नहीं कहा विकास अनुमति की जरूरत नहीं
कंपनी ने विकास अनुमति नहीं ली और प्रशासनिक कार्रवाई को मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खण्डपीठ में चुनौती दी। अक्टूबर 2015 को कंपनी को लिखे एक पत्र में सांवेर एसडीएम  ने स्पष्ट कर दिया कि आपने कोर्ट में याचिका (2876/2015) दायर की। 11 मई 2015 को कोर्ट ने विकास कार्य न रोकने के आदेश दिए लेकिन माननीय न्यायालय ने यह कहीं भी नहीं कहा कि आपको मप्र पंचायती राज अधिनियम के प्रावधानों के तहत विकास अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। इसीलिए आपको आदेशित किया जाता है कि आप विकास अनुमति के लिए आवेदन करें।
संभागायुक्त को भी दे चुके हैं जानकारी
दिसंबर 2015 में एसडीएम, सांवेर ने संभागायुक्त को पत्र लिखा और मामले की सूचना दी। कॉलोनाइजर की मनमानी का हवाला देते हुए बताया कि अक्टूबर 2015 में पत्र लिखने के बाद भी आज दिन तक कंपनी ने अनुमति के लिए आवेदन नहीं किया। मौके पर गेट बनाया जा रहा है।
तो बलपूर्वक हटाएंगे गेट
जनवरी 2016 में एसडीएम ने एक बार फिर आर.सी.डेवलपर्स और राधेश्वरी डेवलपर्स को नोटिस दिया और अनुमति न मिलने तक विकास कार्य रोकने के निर्देश दिए। यह भी कहा कि लॉजी पार्क में जो गेट बनाया जा रहा है वह अवैध है। इसीलिए तत्काल इस गेट को हटाएं। अन्यथा आपके विरूद्ध नियमानुसार कार्रवाई करते हुए गेट को बलपूर्वक हटा दिया जाएगा। इसकी पूरी जिम्मेदारी आपकी होगी।
ताकि न बिके प्लॉट, न हो नामांतरण
मप्र भूमि विकास अधिनियम और मप्र पंचायती राज अधिनियम के तहत एक बार टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से ले-आउट मंजूर होने के बाद बिना विकास अनुमति के पूरी जमीन को भूखंड के रूप में विकसित किया जा सकता है और न ही एक पूर्ण सर्वे क्रमांक के रूप में बेचा जा सकता है। ऐसे में यदि लॉजीपार्क में सौदा करके जमीन के नामांतरण की प्रक्रिया शुरू की जाती है या पहले बेचे गए प्लॉट का नामांतरण आवेदन प्रस्तुत किया गया है तो उसे मप्र भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 51 के तहत सक्षम अधिकारी निरस्त कर सकता है। एसडीएम ने शिप्रा टप्पा के नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक (डायवर्सन) और पटवारी (अर्जुन बरोदा) को नामांतरण पर रोक लगाने के आदेश दे दिए हैं।
एक नजर में एम्पायर पार्क...
सर्वे नं. 2, 5/2, 6, 7/1, 7/2, 7/3, 9/3, 25/1/1/1, 25/1/1/2, 30/2, 31, 32/1/1/2, 32/1/2, 33/1/1, 33/1/2, 33/1/3, 33/1/4, 33/2, 33/3, 34/1, 34/2, 35/1 ,35/2, 39/1, 39/3, 42, 43, 114, 115/2/1, 115/2/2, 116/1/1, 116/1/2, 116/1/3/1, 116/2/1/1, 116/3, 116/4/1, 116/6/1/1, 116/6/2/1, 117/1/1, 117/2/1, 119/1, 120/2, 120/3
मालिक - राधेश्वरी डेवलपर्स प्रा.लि. तर्फे साकेत सुरेशकुमार
कुल जमीन - 26.884 हेक्टेयर
नामांतरण - 2 सितंबर 2013
टीसीपी - 3 अपै्रल 2014
डायवर्शन - 1 जुलाई 2014
डायवर्ट जमीन -  2893770 वर्गफीट
क्या-क्या बना - गेट, बाउंड्रीवाल


इंदौर के केशव के खिलाफ दीपशिक्षा ने लिखाई घरेलू हिंसा की शिकायत

2012 में दोनों की थी शादी, 2015 में हुआ ब्रेकअप, 2016 में तलाक
मुंबई/इंदौर. दबंग रिपोर्टर ।
बिग बॉस के सीजन 8 में कंटेस्टेंट रहीं दीपशिखा नागपाल ने गुरुवार को दूसरे एक्स हसबैंक केशवकिशन अरोड़ा ‘जो कि इंदौर के रहने वाले हैं’,  के खिलाफ  बंगुरनगर थाने में घरेलू हिंसा का केस दर्ज कराया है। बताया जा रहा है कि पुलिस ने धारा 323 और 506 के तहत केस दर्ज करने के बाद केशव के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई शुरू कर दी है।
थाने पहुंची दीपशिखा ने एफआईआर दर्ज कराते हुए पुलिस को बताया कि केशव से उनकी शादी 19 जनवरी 2012 में दूसरी शादी की थी। 2015 में ब्रेकअप हुुआ। 24 फरवरी 2016 को बांद्रा कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी। संबंध खत्म होने के बावजूद 8 मार्च को किशन मेरे घर पहुंचा और  पैसे मांगने लगा। लेकिन जब मैंने इनकार कर दिया तो केशव ने डंडे से मेरी पिटाई शुरू कर दी। घटनाक्रम के दौरान दीपशिखा और उनका बेटा विवान ही घर पर था। दीपशिखा बताती हैं कि मैंने केशव के खिलाफ पुलिस में शिकायत की और वहां से मुझे एनसी (नॉन कॉग्निजबल आॅफेन्स) दिया है, लेकिन मैं अब एफआईआर करना चाहती हूं।
2015 में भी दर्ज कराई थी शिकायत
दीपशिखा ने केशव के खिलाफ 13 अपै्रल 2015 को भी शिकायत की थी। उस दौरान उनका आरोप था कि केशव ने उनके घर में घुसकर उन्हें और उनके बच्चों को जान से मारने की धमकी दी। पुलिस सुरक्षा की भी मांग की।
क्यों हुआ ब्रेकअप...
27 जनवरी 1977 को जन्मी दीपशिखा ने 1994 में बेताज बादशाह से बॉलीवुड में इंट्री की। 22 वर्षों में उन्होंने ‘बादशाह’, ‘दिललगी’, ‘कॉर्पोरेट’, ‘पार्टनर’ और 2015 में आई ‘सेकंड हैंड हसबैंड’ सहित 24 फिल्मों में काम किया। 1997 से 2016 के बीच 16 सीरियल किए। वहीं तमाम कोशिशों के बावजूद केशव का करियर परवान नहीं चढ़ा। उन्हें बॉलीवुड में दीपशिखा ने अपनी ही फिल्म ये दुरियां में ब्रेक दिया। दीपशिखा और केशव 2009 से एक-दूसरे के करीब थे। इस फिल्म में लीड रोल, स्टोरी, स्क्रीनप्ले, प्रोडक्शन और डायरेक्शन तक सारी कमान दीपशिखा ने संभाली। 26 अगस्त 2011 में फिल्म रिलीज हुई। जनवरी 2012 में दोनों ने शादी कर ली। दिल्ली और मुंबई के साथ इंदौर में भी जश्न हुआ। शादी के बाद केशव के सितारे नहीं चले। वे आखिरी बार 2013 में दीपशिखा के साथ ही नच बलिये-5 में ही नजर आए। यहां भी वे लंबी पारी नहीं खेल पाए। जल्द ही एलिमिनेट हो गए। केशव को दीपशिखा की कामयाबी बर्दाश्त नहीं हुई। इसीलिए बात बिगड़ी और ब्रेकअप हुआ।
1997 में की थी पहली शादी
2012 में केशव से दीपशिखा की दूसरी शादी हुई। इससे पहले 1997 में उन्होंने मलयालम और हिंदी फिल्मों के अभिनेता जीत उपेन्द्र से शादी की थी। 2007 में दोनों का तलाक हो गया था। पहले पति से उन्हें दो बच्चे हैं। वेधिका उपेंद्र और विवान उपेंद्र। अपने पहले प्यार के बिखरे के आत्मअनुभव को ही दीपशिखा ने ‘ये दुरिया’ फिल्म में दिखाया था।

एमएसएस फुड ने दी डीम्ड प्रोडक्शन को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती

मप्र हाईकोर्ट की प्रोसिडिंग पर स्टे
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
एक्साइज ड्यूटी की जद में आने वाले प्रोडक्ट का उत्पादन भले 15 दिन हो लेकिन ड्यूटी पूरे महीने की आरोपित की जाती है। बाकी दिन भले मशीनें बंद ही क्यों न पड़ी रही हो। इस नोटिफिकेशन के खिलाफ देशभर में पहले ही आवाज बुलंद थी शुक्रवार को इंदौर की एमएसएस फुड प्रोडक्ट ने भी सुप्रीमकोर्ट में नोटिफिकेशन और उसके आधार पर विभाग द्वारा आरोपित की गई ड्यूटी को चुनौती दे दी। अब मामले की सुनवाई सिर्फ सुप्रीमकोर्ट में ही होगी।
पान मसाला पैकिंग मशीन (क्षमता निर्धारण और ड्यूटी संग्रह) नियम 2008 के तहत 1 जुलाई 2008 को सेंट्रल एक्साइज ने नोटिफिकेशन नं. 30/2008 जारी किया था। इसके आर्टिकल 226 कांस्टिट्यूशनल वैलिडिटी के तहत डीम्ड प्रोडक्शन पर एक्साइज ड्यूटी आरोपित की जाती है। इसी नियम के आधार पर एमएसएस फुड प्रोडक्ट प्रा.लि. की बंद मशीनों पर भी ड्यूटी आरोपित की गई। जिसे कंपनी ने पहले हाईकोर्ट में चुनौती दी लेकिन वहां सरकारी वकील ने दलील दी कि ऐसे प्रकरण सुप्रीमकोर्ट में विचाराधीन है। इसके बाद कंपनी ने सुप्रीमकोर्ट में रीट पीटिशन (डब्ल्यूपी) नं.  419/2016 दायर की जिस पर शुक्रवार को जस्टिस मदन बी.लोकरू  और एनबी रमन्ना की कोर्ट (नं.8) ने सुनवाई की। सुनवाई के बाद कोर्ट ने हाईकोर्ट की प्रोसिडिंग को यथास्थिति रखने के आदेश देते हुए स्पष्ट कर दिया कि अब इस मामले की सुनवाई सिर्फ सुप्रीमकोर्ट में ही होगी।
क्या है डीम्ड प्रोडक्ट
किस कीमत के कितने पान मसाला पाउच एक मशीन बनाती है इसका आंकलन करके प्रति मशीन एक्साइज ड्यूटी आरोपित की जाती है। जैसे एक मशीन 1 से 1.5 रुपए तक की कीमत वाले 3744000 पाउच बनाती है। इससे किसी को आपत्ति नहीं थी। आपत्ति इस बात से थी कि यदि कोई कंपनी इसी मशीन से 15 दिन में 1872000 पाउच बनाकर प्रोडक्शन बंद कर देती है तो उससे वही ड्यूटी क्यों वसूली जा रही है जो 3744000 पाउच बनाने के बाद वसूल की जाना चाहिए थी। मशीन बंद होने के बाद जिस वैचारिक प्रोडक्ट पर ड्यूटी आरोपित की जा रही है उसे डिम्ड प्रोडक्ट कहते हैं। यह मामला देश के अन्य राज्यों की हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीमकोर्ट तक पहले ही जा चुका है। मप्र की हाईकोर्ट से भी मामला वहां पहुंच गया।
क्यों लगाया गया केस..
इसी विवादित नोटिफिकेशन और उसके आर्टिकल का सहारा लेकर एमएसएस फूड पर टेक्लीकल ग्राउंड पर 8 करोड़ की ड्यूटी आरोपित की गई थी। जबकि कंपनी इस बात के तमाम प्रमाण पेश कर चुकी है कि उत्पादन उतना हुआ ही नहीं। कंपनी के कर्ताधर्ताओं के अनुसार उत्पादन बंद करके मशीनें बंद कर दी थी। बंद होने के बाद एक्साइज अफसरों ने मशीन का देखी और सील की। समय-समय पर इसका असेसमेंट भी हुआ। जितने दिन मशीन चली उतने दिन की ड्यूटी चुकाई। बावजूद इसके डिमांड नोटिस जारी किया। 

नाले और बगीच पर ही दे दिए साधुओं को प्लॉट

सिंहस्थ में अधिकारियों का सेटेलाइट प्रेम बना सिरदर्द
उज्जैन से विनोद शर्मा।
सर हमारा प्लॉट आवंटित कर दो...। आवंटन-पत्र बताओ..। वो क्या होता है..? तहसीलदार ने दिया होगा न ...। नहीं, वो तो यही बोले कि साहब के पास चले जाओ, प्लॉट मिल जाएगा...। हम प्लॉट तभी देंगे जब वहां से आवंटन पत्र आएगा...। साहब, हमें क्यों यहां से वहां दौड़ा रहे हो, पहले ही बहुत परेशान हो चुके हैं...। माफ करना महाराज, हम कुछ नहीं कर सकते...। जमीन को लेकर मारामारी की यह कहानी किसी कॉलोनी की नहीं बल्कि उज्जैन के मेला क्षेत्र की है जहां अफसरों की लेतलाली के कारण साधुओं को जमीन के लिए परेशान होना पड़ रहा है। हालात यह है कि अफसरों ने नालों की जमीन पर प्लॉट काट दिए।
उज्जैन में मेला क्षेत्र को छह हिस्सों में बांटा गया है। कालभैरव, मंगलनाथ, दत्त अखाड़ा, महाकाल, त्रिवेणी और चामुंडा क्षेत्र। इसमें दत्त अखाड़े में सबसे ज्यादा 2352, मंगलनाथ क्षेत्र में 1500 और कालभैरव क्षेत्र में 800 प्लॉट निकाले गए हैं। महाकाल, चामुंडा और त्रिवेणी में प्लॉट नहीं है। प्लॉट को लेकर यूं तो तीनों प्रमुख जोन में कुछ न कुछ दिक्कतें आ रही है लेकिन सबसे ज्यादा हालत खराब है मंगलनाथ क्षेत्र में। यहां आए दिन साधुओं और अधिकारियों के बीच विवाद के किस्से सामने आ रहे हैं। अपर कलेक्टर ने बताया अब तक 1200 से अधिक प्लॉट आवंटित किए जा चुके हैं। अभी आवंटन जारी है।
जहां नाला, वहीं काट दिया प्लॉट
गुगल अर्थ और विकीमेपिया की सेटेलाइट इमेज पर स्कैल से जमीन नापकर अधिकारियों ने न सिर्फ मेला क्षेत्र डिजाइन किया बल्कि प्लॉटों की नंबरिंग भी कर दी। मैदान में जाकर मौका देखने तक की जहमत नहीं की। अब जब साधु आवंटन पत्र के साथ कब्जा लेने जा रहे हैं तो पता चल रहा है कि जहां प्लॉट बताया है वहां तो नाला बह रहा है। गड्ढा है या बगीचा बना है। गुरुवार को भी एक साधु को जहां प्लॉट का कब्जा दिया गया वहां जल जमाव था। बाद में साधु के विरोध के बाद अधिकारियों ने जमीन पर मिट्टी से भराव कर दिया। हालांकि बदबू अब भी बरकरार है।
साधुओं में हो रहा है झगड़ा..
सांदीपनि आश्रम के पास रामानंदी निर्मोही अखाड़े की जमीन और मंदिर है। यह जमीन मेला कार्यालय से भी आवंटित हुई है। शुक्रवार दापेहर 1 बजे निर्मोही अणि अखाड़ा के श्रीमहंत राजेंद्रदास, रामजीदास, परमात्मादास, , महेशदास सहित अन्य साधुओं ने जमीन पर पहुंचकर उनका सामान फेंक दिया। वाहनों में तोड़फोड़ की। रामेशवरदास, रामसहाय दास और नरसिंहदास के साथ मारपीट भी की। बंदुकें निकलने के बाद जीवाजीगंज पुलिस ने राजेंद्रदास, रामजीदास और उनके साथियों के खिलाफ धारा 427, 451 ,32, 506  और 34 के तहत केस दर्ज किया। बंदूकें कब्जे में ली।
एक का प्लॉट दूसरे को...
काम से जल्दी मुक्त होने के लिए पिछले सिंहस्थ की सूची को आधार बना कर उन साधु संतों को वहीं जमीन आवंटित कर दी है, जहां पिछले सिंहस्थ में जमीन दी गई थी। नंबरिंग उट पटांग है।  महंत सुखरामदास महाराज ने बताया कि जो प्लॉट आवंटित किया था वहां पहले किसी संत का आश्रम बन रहा था। बीते सिंहस्थ हमें जिस नंबर की जमीन दी थी वह भी बदल गया जबकि बाकी का वही नंबर है।
बुनियादी सुविधा का भी संकट
मंगलनाथ में जमीन पाने के बाद भी कई संत सुविधाओं के लिए खड़े नजर आ रहे हैं। कहीं जमीन आवंटन के बावजूद जमीन बराबर नहीं है। कहीं न नल के पते हैं, न ही बिजली के। न सुविधाघर के। महंत रामस्वरू ने बताया कि जमीन मिल गई है लेकिन पानी-बिजली नहीं है। पड़ौस में खेत है और किसान भला आदमी है जो पानी दे रहा है।

Tuesday, March 8, 2016

दूसरी टोल प्लाजा से पहले ही लागत वसूल

इंदौर-खलघाट फोरलेन
- पीथमपुर-मानपुर-महेश्वर-धामनोद के लिए देना होगा टोल टैक्स
- आम्रपाली-2 के सामने बन रही है 10 लेन की प्लाजा 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
अब इंदौर से पीथमपुर, मानपुर, महेश्वर, धामनोद आने-जाने के लिए इंदौर-खलघाट फोरलेन पर टोल टैक्स देना होगा। जनविरोध के कारण बीते सात साल में टोल वसूली में नाकाम रही ओरियंटल पाथवे (इंडिया) लि. इसके लिए आम्रपाली-2 के सामने टोल प्लाजा बना रही है। हालांकि टोल बनने से पहले ही प्रोजेक्ट की लागत से ज्यादा टोल वसूली हो चुकी है जबकि अनुबंध की अवधि बाकी है। अभी कंपनी की एक मात्र टोल प्लाजा पर फोरव्हीलर से 80 रुपए वसूले जा रहे हैं जो नई प्लाजा बनने के बाद दो हिस्सों में बंट जाएगा। हालांकि टोल प्लाजा बनने से पहले ही प्रोजेक्ट की केपिटल कॉस्ट से ज्यादा टैक्स वसूला जा चुका है।
ओरियंटल पाथवे ने तकरीबन 472 करोड़ की लागत से 2005-09 के बीच इंदौर से खलघाट तक तकरीबन 77.52 किलोमीटर लंबा रोड (किलोमीटर 12.600 राऊ जंक्शन से 84.700 किलोमीटर खलघाट तक) बनाया था। नेशनल हाईवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया (एनएचएआई) और कंपनी के बीच हुए अनुबंध के अनुसार 2009 में टोल प्लाजा की तैयारी शुरू हुई थी जो ग्रामीणों के विरोध के बाद टल गई। विवाद के चौतरफा निराकरण के बाद आखिरकार कंपनी ने किलोमीटर 16.75 (राऊ जंक्शन से 4.150 किलोमीटर की दूरी पर) टोल प्लाजा का काम शुरू कर दिया। कंपनी ने एनएचएआई को टोल की लेन 10 से बढ़ाकर 12 करने का प्रस्ताव भी दिया है। 10 लेन अभी बनेगी। 2 प्रस्तावित है जिसके लिए एनएचएआई को जमीन जुटाना है। खलघाट प्लाजा का विस्तार भी प्रस्तावित है।
वसूल हो गई प्रोजेक्ट की कीमत
7 अगस्त 2009 को हुए नोटिफिकेशन के बाद खलघाट टोल प्लाजा पर 21 अगस्त 2009 से टैक्स वसूली शुरू हुई। एनएचएआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रोजेक्ट की केपिटल कॉस्ट 540 करोड़ थी जबकि 23 जनवरी 2014 तक 53 महीनों में 367.95 करोड़ रुपए का टोल कलेक्शन किया जा चुका था। औसत 7.07 करोड़/माह। इसके बाद हुई वाहन और टोल बढ़ोत्तरी को नजरअंदाज करके औसत 7.07 करोड़ के हिसाब से ही बात करें तो 29 फरवरी 2016 (78 महीनों) तक कुल 551.46 करोड़ का टोल टैक्स वसूला गया।
ईटीसी पर खर्च होंगे 1.29 करोड़
सड़क परिवहन मंत्रालय के निर्देशानुसार 10 लेन की टोल प्लाजा में सेंटर की एक-एक लेन इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ईटीसी) आधारित होगी। यह लेन सिर्फ ईटीसी टेग वाले वाहनों के लिए आरक्षित रहेगी। ईटीसी इंस्टॉलेशन पर 1 करोड़ 29 लाख 84 हजार 640 रुपए के खर्च का अनुमान है।
जितना इस्तेमाल, उतना टैक्स
ओरियंटल पाथवे कंपनी के अशोक कुमार गौड़ ने बताया कि 2009 से प्रस्तावित थी टोल प्लाजा, अब बन रही है। मई तक बनाकर तैयार कर देंगे। छूट प्राप्त वाहनों को छोड़ जो भी टोल प्लाजा से गुजरेगा उसे टोल देना होगा। फिर उसे पीथमपुर जाना हो या फिर मानपुर, महेश्वर,  धामनोद। नई प्लाजा बनने के बाद खलघाट प्लॉजा पर जितना टैक्स वसूला जा रहा है उसे दो हिस्सों में बांट देंगे। प्रॉपर कितना टैक्स वसूला जाएगा। इसकी गणना होना बाकी है।
सड़क पर लगता है जाम
अभी टोल प्लाजा के लिए सड़क के पुराने स्वरूप को पूरी तरह बदला जा रहा है। यहां सड़क की चौड़ाई 12 लेन की प्लाजा के हिसाब से बढ़ाई जा रही है। कुछ हिस्सा बंद। कुछ चालू है। जहां चालू है वहां दो तरफा वाहनों की आवाजाही के कारण जाम लगने लगा है।

ट्रांजिट पास से टेंशन में कारोबार

जल्द शुरू होगा चरणबद्ध आंदोलन
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
मप्र के वित्त मंत्री जयंत मलैया के जिस बजट को सरकार प्रदेश के लिए विकासोन्मुखी बता रही है उसके अनुसार तिलहन, तेल, इस्पात, चाय और पान मसाला के परिवहन पर ट्रांजिट पास लगेगा। मतलब, यदि कोई व्यापारी अपने गोदाम से माल निकालकर दुकान तक भी लाता है तो उसे ट्रांजिट पास लेना होगा। मंत्री मलैया द्वारा प्रस्तावित इस कागजी कानून से व्यापारी वर्ग नाराज है। बुधवार शाम हुई संयुक्त व्यापारिक संगठनों की बैठक में विरोध को लेकर रणनीति भी बन चुकी है जिसका असर एक-दो दिन में बाजारों में नजर आएगा।
अहिल्या चेम्बर आॅफ कॉमर्स के आह्वान पर बैठक शाम 5 बजे प्रीतमलाल दुआ सभागृह में संपन्न हुई। नाराज व्यापारियों ने एकमत होकर मंत्री मलैया के नए प्रावधान का विरोध किया जो कि पांच वस्तुओं पर बतौर प्रयोग लागू किया जाना है। सफलता की स्थिति में बाकी सभी उत्पादों पर ट्रांजिट पास लगेगा। व्यापारियों का कहना था कि चौतरफा चेकपोस्ट है, फार्म-49 की व्यवस्था है तो फिर ट्रांजिट क्यों? जबकि यह सिर्फ कागजी कवायद है इससे सरकार को कोई टैक्स भी नहीं मिलना है। इससे आॅफिसर राज बढ़ेगा जिसे सरकार अर्से से खत्म करने का वादा कर रही है। अफसरों को भ्रष्टाचार का मौका मिलेगा।
हमारी मांगों का कोई मतलब नहीं...
अहिल्या चेम्बर आॅफ कॉमर्स के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल ने बताया कि जांच चौकी खत्म करने और फार्म-49 व्यापारियों को राहत मिलना चाहिए। सरकारी सख्ती के कारण पहले ही मप्र के बाजार की हालत लगातार गिर रही है। पड़ौसी राज्यों का कारोबार फलफुल रहा है। मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री से मिलेंगे। यदि व्यापारी हित दरकिनार किया जाता है तो चरणबद्ध आंदोलन करेंगे। नईम पालवाला ने बताया कि बजट के सालाना विरोध से बचने के लिए हमने प्रस्ताव दिया था कि एक फोरम बनें जिसमें व्यापारियों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बने। कानून बने।  जनप्रतिनिधि सेतू का काम करें।
आगे कि यह है रणनीति...
व्यापारियों ने कहा बात पार्टी से हटकर पेट पर आ गई है। यदि ट्रांजिट पास को लेकर मंत्री मलैया अपना निर्णय वापस नहीं लेते तो अहिल्या चेम्बर आॅफ कॉमर्स अपने 80 सहयोगी व्यापारिक संगठनों के साथ आंदोलन करेगा। व्यापारी दुकानें बंद करके वाणिज्यिक कर  आयुक्त को चाबी सौंप देंगे।
यह है ट्रांजिट पास...
जैसे दूसरे राज्य से माल बुलाने पर फार्म-49 भरना होता है वैसे ही माल भेजने पर ट्रांजिट पास लगेगा। दिक्कत यह है कि ट्रांजिट पास लोकल परिवहन पर लगेगा। मसलन इंदौर से माल देवास भेजा तो, या फिर इंदौर से राऊ या विजयनगर भेजा तो।
दिक्कत यह : इसमें वो तमाम जानकारी दी जाना है जो फार्म-49 में दी जाती है। नाराज व्यापारी कहते हैं दिनभर सिर्फ फार्म भरने के काम करें। ग्राहकी करें या फार्म डाउनलोड करते रहें।
नाराजी की वजह और भी...
अंतर राज्यीय विक्रय पर मिलने वाली वेट की छूट समाप्त कर दी। मतलब किसी प्रोडक्ट पर 14 प्रतिशत वेट है और उसे गुजरात या कहीं भेजा जाता था तो उस पर वेट की छूट मिलती थी जो अब नहीं मिलेगी।
फार्म-49 में पहले 34 कमोडिटी शामिल थी। बजट से पहले इन्हें बढ़ाकर 64 किया। व्यापारियों ने विरोध किया बावजूद इसके बजट में सूची में सभी उत्पादों को शामिल कर लिया।

अब हर ट्रक का होगा वजन

सड़क परिवहन मंत्रालय के आदेश से बायपास और भैंसलाय टोल प्लाजा पर लगे वेट इन मोशन(विम)
- ओवरलोडिंग की स्थिति में होगी 10 गुना टैक्स की वसूली
- इंदौर खलघाट पर विम के साथ तौल कांटा भी 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
इंदौर-देवास फोरलेन और इंदौर-खलघाट टोल प्लाजा से किसी भी ओवरलोडेड वाहन का निकलना आसान नहीं होगा। क्योंकि सड़क परिवहन मंत्रालय और नेशनल हाईवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया के सख्त निर्देशों के बाद इन दोनों हाईवे की टोल प्लाजाओं पर ‘वेट इन मोशन’  सिस्टम लगाया जा रहा है। बायपास टोल प्लाजा पर सिस्टम ने काम शुरू कर दिया है जबकि इंदौर-खलघाट रोड की नई टोल प्लाजा पर ‘वेट इन मोशन’ के साथ एक तौल कांटे की व्यवस्था और की जा रही है जहां संशय की स्थिति में गाड़ियां तोली जाएगी।
वाहनों की ओवर लोडिंग और ओवरलोड वाहनों से सड़क को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए सरकार ने स्टेंडर्ड स्पेसिफिकेशन  का ड्राफ्ट जारी किया था। इसके अनुसार देशभर की सभी टोल प्लाजाओं पर इक्यूपमेंट, डिवाइस, सॉफ्टवेर और सिस्टम एक जैसे होंगे। टोल प्लाजाओं पर इंस्टॉल हो रहा वेट इन मोशन’ इसी का परिणाम है। सिस्टम के काम करने के बाद जैसे ही गाड़ियां सिस्टम से क्रॉस होंगी टोल विंडों पर बैठे कर्मचारी के उसके वजन की जानकारी स्वत: ही मिल जाएगी। सरकार के निर्देशानुसार ओवरलोडेड वाहनों को न सिर्फ खाली कराया जाएगा बल्कि ट्रांसपोर्टर से टोल दर के मुकाबले 10 गुना अधिक टैक्स वसूला जाएगा।
क्या है वेट इन मोशन
इस प्रणाली के तहत हाईवे की सड़क पर ऐसा इक्यूपमेंट लगाया जा रहा है जिसके ऊपर से गुजरते ही गाड़ी का कुल लोड कंप्यूटर पर जाएगा। जिसे एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से रिकॉर्ड किया जाएगा। यह सिस्टम इस तकनीक के जरिए चंद दूरी पर स्थित टोल प्लाजा को भी ओवरलोडिंग यानि मानका से ज्यादा वजन वाली गाड़ी की सूचना दे देगा। वेट इन मोशन (विम) में वाहन के टोल बूथ के प्लेटफार्म पर आते ही वजन हो जाता है। यह तकनीक वाहनों के ओरिजनल वजन को कुल वजन से घटाकर वाहन में भरे गए माल का वजन बता देती है। इसके लिए पहले ही वेट इन मोशन के साफ्टवेयर में सभी वाहनों का नियत वजन प्रकार के हिसाब से कितना माल ले जा सकता है, यह सब अपडेट है।
ओवरलोडिंग पर यह होगी व्यवस्था
-- एनएचएआई द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार अब हर टोल प्रवेश पर निर्धारित भार से ज्यादा मिलने पर वाहन रोके जाएंगे।
-- वाहन से अतिरिक्त सामान उतारने अथवा टोल फीस का दस गुना देना होगा।
--चालक/ मालिक जुमार्ना देने से मना करता है तो उसका वाहन क्रेन से खिंचवा कर अलग कर दिया जाएगा। इसका खर्चा एक हजार रुपये वाहन मालिक से वसूला जाएगा।
-- टोल परिसर में वाहन खड़ा होने पर 50 रुपये प्रति घंटा हजार्ना देय होगा। सात दिन बाद वाहन पुलिस को सौंप दी जाएगी।
विम के साथ तौल कांटा भी
इंदौर-खलघाट रोड पर भैंसलाय के पास जो 10 लेन की टोल प्लाजा बन रही है वहां वेट इन मोशन की व्यवस्था तीन-तीन लेन में की जा रही है भारी वाहनों का ट्रेफिक इन्हीं लेन पर रहेगा। चलती गाड़ी का वजन सिस्टम पर आ जाएगा। यहां किसी तरह का डाउट रहता है तो गाड़ी को पास ही बन रहे तौल कांटे पर तोला जाएगा। विम और तौल कांटे का इंस्टालेशन एनएचएआई के निर्देश और आर्थिक सहयोग से हो रहा है। डिपार्टमेंट ने इसके लिए बजट तय कर रखा है। हालाकि संचालन की जिम्मेदारी टोल कंपनी की ही रहेगी।
ए.के.गौर, ओरियंटल पाथवे

‘पर्यावरण’ के बिना तनी 15 मंजिला मेपल वुड

- एमपीएसईआईएए ने वॉयलेशन की सूची में डालकर दिल्ली भेजी फाइल
- 4 ब्लॉक में 300 फ्लैट तैयार
इंदौर. विनोद शर्मा । 
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सख्ती और मप्र स्टेट इन्वायरमेंट इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (एमपीएसईआईएए) की तगड़ी निगरानी के बावजूद सिद्धिविनायम डेवलपर्स और चूघ रियलिटी ने मिलकर पीपल्याकुमार में बिना पर्यावरणीय अनुमति के हाईराइज ‘मेपल वुड’ तान दी। एमपीएसईआईएए ने एक तरफ इसे जहां वायलेशन करने वाले प्रोजेक्ट की सूची में डालकर अगली कार्रवाई के लिए दिल्ली भेज दिया है वहीं जिला प्रशासन और नगर निगम की अनदेखी के कारण न सिर्फ टाउनशीप मों निर्माण जारी है बल्कि लोगों को 3000 रुपए वर्गफीट की दर से फ्लैट बेचे भी जा रहे हैं। एमपीएसईआईएए का कहना है कि बिना अनुमति निर्माण के कारण प्रोजेक्ट वॉयलेटशन की श्रेणी में है लेकिन काम रूकवाने की जिम्मेंदारी हमारी नही, जिला प्रशासन की है।
पीपल्याकुमार में आई टाउनशीप की बाढ़ और फ्लैट्स की डिमांड को देखते हुए चूघ रियलिटी प्रा.लि. और चूघ इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. की तकरीबन 15.64 एकड़ जमीन पर रेशो डील के साथ श्री सिद्धिविनायक डेवलपर्स प्रा.लि. ने ‘मेपल वूड’ प्लान की। यहां 682539 वर्गफीट (15.66 एकड़) जमीन पर 204761 वर्गफीट के ग्राउंड कवरेज के साथ 1583681 वर्गफीट टोटल बिल्टअप एरिया स्वीकृत किया गया। यहां 45 मीटर ऊंचे (जी+15) 18 टॉवर में कुल 1340 फ्लैट (2, 3 और 4 बीएचके) बनना है। 2012 से 2016 के बीच चार वर्षों में बिल्डरों ने 4 ब्लॉक बना भी दिए हैं जिनमें तकरीबन 300 फ्लैट (2, 3 और 4 बीएचके)  हैं। वह भी उस स्थिति में जब 23 दिसंबर 2015 को हुई एमपीएसईआईएए की 274वीं बैठक तक प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय अनुमति ही नहीं मिल पाई।
मौके पर ऐसे आगे बढ़ा प्रोजेक्ट
जनवरी से मार्च 2012 : साइट आॅफिस बना। जमीन की बाउंड्रीवाल हुई। प्रोजेक्ट के लिए खुदाई शुरू हुई।
जून 2012 : बेसमेंट तैयार हुआ।
नवंबर से दिसंबर 2012 : पहली-दूसरी मंजिल की छत चढ़ी।
नवंबर 2013 : 10 मंजिल से अधिक बना। क्लब का काम भी शुरू।
फरवरी 2014 : 15 मंजिल पूरी। मार्च 2014 में सामने के दो ब्लॉक में फिनिशिंग शुरू हुई जबकि पीछे के दो ब्लॉक में सीविल वर्क चलता रहा।
नवंबर 2014 : चारों ब्लॉक की फिनिशिंग पूरी। क्लब भी आधा बना।
मार्च 2015 : फ्लैट का पजेसन दे दिया।
अक्टूबर 2015 : गेट-सड़क तैयार। क्लब की बिल्डिंग भी पूरी।
वहां कागजों में झूलता रहा प्रोजेक्ट
23 मई 2013 : आवेदन किया (प्र.क्र. 1684/2013)
12 जून 2013 : एसईएसी को सौंपा
19 सितंबर 2013 : ईआईए उल्लंघन की रिपोर्ट एसईएसी को भेजी।
30 जुलाई 2014 : मामला कार्रवाई के लिए एसईएसी को लौटाया।
25 अगस्त 2014 : डेवलपर्स(पीपी) को इसकी जानकारी दी।
28 फरवरी 2015 : एसईआईएए की 174वीं बैठक में तय हुआ कि संबंधित प्राधिकारी द्वारा पीपी को स्पष्ट अनुमति/एनओसी के लिए आवश्यक निर्देश देने हेतु कलेक्टर को लेटर भेजें।
17 अपै्रल 2015 : 188वीं बैठक के निर्णयानुसार पीपी को लेटर लिखकर 30 जून 2015 से पहले जानकारी मांगी।
4 जुलाई 2015 : 211वीं बैठक में मामले चर्चा हुई। पीपी को 14 अगस्त से पहले अतिरिक्त जानकारी देने के लिए कहा। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) और एमएस,एसईएसी को एक पत्र भेजा। इन्वायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट (ईपीए) की धारा 15 के अंतरर्गत मामला दर्ज करने से पहले किए गए स्थल निरीक्षण की रिपोर्ट/निष्कर्षों 15 जुलाई 2015 से पहले उपलब्ध  कराने को कहा।
4 जुलाई 2015 : तकनीकी फाइल के साथ एमएस, एसईएसी को साइट विजिट और 14 अगस्त 2015 तक रिपोर्ट जमा करने के लिए पत्र लिखा।
14 अगस्त 2015 : 219वीं बैठक में स्थगित मामले पर 227वीं बैठक में बात हुई। 23 दिसंबर 2015 को होने वाली 274वीं बैठक से पहले जांच रिपोर्ट एमएस, एसईएसी को रिमांइडर भेजने को कहा।
23 दिसंबर 2015 : 274वीं बैठक में मामले को स्थगित रखने का निर्णय हुआ।
क्या है एमपीएसईआईएए
केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर एन्वायर्नमेंट क्लीयरेंस देने को राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव निर्धारण प्राधिकरण (एसईआईएए) बनाने का कानून बनाया है। यह अथॉरिटी नई इंडस्ट्री, खनन, इंफ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग प्रोजेक्ट्स आदि में पर्यावरण के प्रभाव का आकलन कर उन्हें पर्यावरण मंजूरी देती है। मप्र में वर्ष 2008 में इस अथॉरिटी का गठन कर तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था।
अनुमति जरूरी
1.50 लाख वर्ग मीटर या इससे ज्यादा बिल्टअप एरिया और 50 हेक्टेयर से अधिक जमीन का विकास करने वाले रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पर पर्यावरण अनुमति जरूरी होती है। इसके अलावा 20,000 वर्ग मीटर से अधिक बिल्टअप एरिया फॉर्म 1 और फॉर्म 1ए में जानकारी देना होगा और उसी के आधार पर पर्यावरण अनुमति मिलती है। एमपीएसईआईएए की अनुमति निरस्त होने के कारण एनजीटी ने करूणासागर के निर्माण पर रोक लगा दिया था।
300 फ्लैट तैयार..
कुल ब्लॉक बने : 4
कुल फ्लैट   : 300
2 बीएचके : 60
3बीएचके : 120
4 बीएचके : 120
वर्जन मेपल वुड..
कुछ मामले में एसईएसी की इन्वेस्टिगेशन में है जबकि कुछ मामले में वॉयलेशन देखते हुए उन्हें दिल्ली भेजा गया है। ताकि वहां तय हो सके कि इनका करन क्या है। बिना मंजूरी के प्रोजेक्ट पर काम होता है तो उसे रूकवाने की जिम्मेदारी स्थानीय निकाय की है।
डॉ. संजीव सचदेव, सीएसओ
एमपीएसईएआईआई

अरबों रुपए की हेराफेरी करके फरार हुआ था निलेश

- दुबई में दर्ज है दो केस, रेड कॉर्नर नोटिस तक जारी कर चुका है यूएई 
- ब्रिटिश नागरिकता लेकर दुबई में पाना चाहता था ऊंचाई 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
क्राइम ब्रांच की मदद से इंटरपोल ने शुक्रवार रात जिस कुख्यात बिल्डर निलेश अजमेरा को पकड़ा है उसके खिलाफ यूएई की मिनिस्ट्री आॅफ इंटीरियर दो प्रकरण दर्ज कर चुकी है। पीडीसी चेक देकर बाद में भुगतान न करने के मामले में एक प्रकरण दुबई लैंड डिपार्टमेंट ने दर्ज कराया था तो दूसरा केस उस कंपनी ने दर्ज कराया जिसे अजमेरा बंधुओं ने दुबई में काम करने के लिए ज्वाइंटवेंचर बनाया था।
सूत्रों की मानें तो निलेश ने भारतीय नागरिकता के साथ अगस्त 1996 को पासपोर्ट बनवाया था जिसकी वैधता अगस्त 2006 में खत्म हो गई। इसी बीच 2005 में निलेश ने ब्रिटिश नागरिकता ली। जुलाई 2005 में उसका पासपोर्ट बना। इसके बाद निलेश की इंदौर में पूछपरख बढ़ी। इसके बावजूद भारत और यूएई के बीच उसका ज्यादा आनाजाना रहा। 2006-07 में जब दुबई में जमीन के भाव सातवें आसमान पर थे तब निलेश ने एक रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट तैयार किया जिसे अंजाम देने के लिए एक तरफ जहां इंदौर के ख्यात बिल्डरों से फंड जुटाया गया वहीं दूसरी तरफ दुबई की एक कंपनी को पार्टनर बनाया गया।
25 प्रतिशत दिया नकद, बाकी पीडीसी
दुबई में निजी जमीन नहीं है। वहां जमीन लैंड डिपार्टमेंट से लेना पड़ती है। बशर्तें कोई स्थानीय कंपनी या व्यक्ति प्रोजेक्ट में भागीदार हो।  इसीलिए भागीदार बनाया और जमीन का एक चक खरीदी। 25 प्रतिशत राशि इंदौरी बिल्डरों से फंड जुटाकर दी। बाकी 75 फीसदी राशि के पोस्ट डेटेड चेक (पीडीसी) दे दिए। 2008 तक आसमान छू रहे दुबई की जमीनों के भाव 2008-09 में वैश्विक मंदी के कारण जमीन पर आ गए। तकरीबन 80 फीसदी कीमतें गिरी। ऐसे में अजमेरा ने जितनी पहली किश्त दी थी पूरी जमीन की कीमत ही उससे भी कम हो गई। पैसे ज्यादा दे चुके थे। पीडीसी अलग। इसीलिए भारी आर्थिक नुकसानी से बचने के लिए अजमेरा बंधु आधे-अधूरे प्रोजेक्ट में जितनी रिकवरी हो सकती थी उतनी करके दुबई से फरार हो गए।
यूं दर्ज हुआ केस...
प्रोजेक्ट समेटने के लिए की गई अजमेरा बंधुओं की तैयारी से परे दुबई लैंड डिपार्टमेंट ने तय तारीख में पीडीसी क्लीयरिंग के लिए लगा दिए जो बाद में बाउंस हुए। अजमेरा और उसके भागीदार को नोटिस दिए गए लेकिन जवाब नहीं मिला। अंतत: इनके खिलाफ चेक बाउंस और आर्थिक धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया।
जैसे-तैसे भागे दुबई से...
यह भी बताया गया कि दुबई में जिस वक्त केस दर्ज हुआ था उस वक्त निलेश वहीं था। उसने वहां के कुछ स्थानीय अधिकारियों से सांठगांठ की। भारत के लिए उसकी फ्लाइट टेक आॅफ होने तक मामला टलवाया। निलेश के भारत रवाना होने के बाद पुलिस ने दुबई स्थित उसके ठिकानों पर दबिश दी।
यहां अफसरों ने की मदद
दुबई से इंदौर पहुंचे निलेश ने यहां बड़े-बड़े लोगों से दोस्ती की। इसमें इंदौर आईजी रहे संजय राणा व अन्य अधिकारियों के नाम भी शामिल थे। दोस्ती के कारण पुलिस निलेश पर कार्रवाई करने से बचती रही। फिर मामला दुबई केस की फरारी वाला हो या फिर इंदौर में फोनिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर निवेशकों के साथ की गई धोखाधड़ी का।
इनकम टैक्स की जांच
18 से 21 नवंबर 2015 के बीच इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने सेटेलाइट, चिराग रीयल एम्प्रेस, चौधरी एस्टेट, मयूरी हीना हर्बल प्रा.लि., और फोनिक्स ग्रुप के 20 ठिकानों पर दबिश दी। कार्रवाई आॅर्बिट मॉल स्थित फोनिक्स के आॅफिस, न्यू पलासिया स्थित चौधरी एस्टेट, पालिवालनगर स्थित अजमेरा बंधुओं के घर, चिराग शाह, वीरेंद्र चौधरी और अरूण डागरिया के घर पर हुई थी। अजमेरा के घर से 29 लाख नकद मिले। 68 लाख की ज्वैलरी मिली। कार्रवाई 21 नवंबर की सुबह 4 बजे अजमेरा बंधुओं द्वारा 20 करोड़ की काली कमाई स्वीकारे जाने के बाद खत्म हुई। 11 लॉकर सीज हुए।
ईडी का नोटिस
छापे में आईटी के हाथ कई सुराग लगे जिनसे अजमेरा बंधुओं द्वारा 400 करोड़ रुपया हवाला के माध्यम से इंदौर से दुबई पहुंचाने की पुष्टि हुई। इसके बाद तकरीबन एक हजार पन्नों की अप्राइजल रिपोर्ट आईटी ने मुख्यालय को सौंपने के साथ ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को सौंपी गई। ईडी जून 2010 में ईडी ने फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत अजमेरा बंधुओं सहित 13 लोगों के खिलाफ इन्फोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज की।
मुख्यमंत्री से भी बढ़ाई दोस्ती
इंदौर में पहली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (जीआईएस) 26-27 अक्टुबर 2007 को होटल फॉरर्च्यून में संपन्न हुई थी। इस समिट में 201 भारतीय और 100 विदेशी निवेशकों को न्यौता दिया गया। निमंत्रण पाने वालों में निलेश अजमेरा भी शामिल था जो उस वक्त सिप2सेव टेलीकॉम प्रा.लि. के डायरेक्टर थे। उनका नाम तत्कालीन उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने शामिल करवाया था। विजयवर्गीय के नजदीकी कहलाने वाले निलेश की इस समिट के बाद मुख्यमंत्री से भी करीबी बढ़ी। सितंबर 2005 में रजिस्टर्ड हुई इस कंपनी में मौजूदा डायरेक्टर निलेश के पिता पवन कुमार अजमेरा और सोनाली अजमेरा है।

पटियाला कोर्ट तय करेगी निलेश का भाग्य

निजामुद्दीन ट्रेन से ठगोरे को लेकर दिल्ली रवाना हुई पुलिस
इंदौर. दबंग रिपोर्टर ।
क्राइम ब्रांच की मदद से चेक बाउंस मामले में दुबई से फरार निलेश अजमेरा को गिरफ्तार करके सीबीआई रातभर व आधे दिन पूछताछ करती रही। शाम को टीम अजमेरा को लेकर निजामुद्दीन ट्रेन से दिल्ली रवाना हो गई। अब निलेश को दिल्ली स्थित पटियाला कोर्ट में पेश किया जाएगा जो अर्से से निलेश का गैर जमानती वारंट जारी कर चुकी है।
धोखाधड़ी के बाद प्रकरण दर्ज करके मिनिस्ट्रिी आॅफ इंटीरियर यूएई ने भारत के विदेश मंत्रालय सचिव को सौंपा। सचिव कार्यालय से मामला गृह मंत्रालय गया। गृह मंत्रालय से सीबीआई। सीबीआई से पटियाला कोर्ट गया। जहां पटियाला कोर्ट ने निलेश का अरेस्ट वारंट जारी कर दिया। इसी वारंट के आधार पर शुक्रवार रात को निलेश की गिरफ्तारी हुई। शाम को पलासिया थाने के एसआई मिलिंद सुलिया व अन्य निलेश को निजामुद्दीन ट्रेन से लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुए है। पटियाला कोर्ट में पेशी के बाद निलेश को दुबई पुलिस के हवाले किया जा सकता है।
नोटिस तामिल होते लेकिन नहीं मिलता था निलेश
होम मिनिस्टरी से इंदौर पुलिस को आदेश मिले थे की निलेश गिरफ्तार किया जाए। पहले पांच वारंट निलेश के अदम में तामील हो चुके थे। पुलिस उसे तलाशने के लिए जाती थी लेकिन निलेश उनके हाथ नहीं लगता था।
रेकी के बाद हाथ लगा
लंबी रेकी के बाद  डीआईजी संतोष कुमार सिंह को शुक्रवार निलेश  की पुख्ता लोकेशन मिली। सिंह ने एएसपी विनय पॉल को निलेश को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए। पॉल को पता चला था की निलेश पलासिया स्थित एक बिल्डर के आॅफिस पर पहुंचने वाला है। टीम दोपहर से डट गई। रात को निलेश बिल्डर से मिलकर बाहर निकला ही था कि पुलिस ने उसे धर दबोचा। निलेश को सेंट्रल कोतवाली स्थित क्राइम ब्रांच के आॅफिस ले जाया गया। वहां पूछताछ हुई। बाद में उसे पलासिया थाने पहुंचा दिया, जहां शनिवार को उसके ‘चिंतक’ व शुभचिंतकों की भिड़Þ लगी जो पुलिस के साथ उसे वीआईपी ट्रीटमेंट दे रहे थे।
फटकार के बाद मीडिया के सामने लाऐ निलेश को
टीआई शिवपालसिंह कुशवाह ने पहले मीडियाकर्मियों को निलेश का फोटो खिचवाने से मना कर दिया। इसकी शिकायत एएसपी पॉल को हुई। उन्होंने टीआई को फटकारा। तब निलेश को बाहर लाए। चर्चा यह भी थी कि पुलिस से सेटिंग हो गई। इंदौर पार होने के बाद निलेश को ट्रेन से उताकर कार से दिल्ली ले जाएंगे।
मोबाइल पर बात 2 लाख में...
गिरफ्तारी के बाद भी निलेश की अकड़ नहीं गई। वह पुलिस पर रौब झाड़ता रहा। इस पर एक पुलिस अधिकारी ने उसे जोरदार चांटा जड़ दिया। चांटा पड़ते निलेश चुपचाप गाड़ी में बैठ गया। एएसपी पॉल ने हुज्जत करने पर क्राइम ब्रांच के आॅफिस में भी निलेश को चांटे जड़े। सूत्रों के मुताबिक निलेश एक बार मोबाइल फोन पर बात करने के दो लाख रुपए का आॅफर कर रहा था। कुछ देर बाद उसे ट्रेन में साथ एक परिचित व्यक्ति को भेजने के लिए पांच लाख रुपए का भी आॅफर किया। लेकिन उसकी एक न चली।

नीलेश को तीन साल की सजा सुना चुकी है दुबई कोर्ट

- दो रेड कॉर्नर नोटिस हुए थे जारी, दूसरे केस में ट्रायल जारी 
- पटियाला कोर्ट में पेश करने के बाद यूएई को सौंपा जाएगा ठगौरा 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
टाउनशिप के नाम पर अरबों रुपए की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार हुए नीलेश अजमेरा के खिलाफ दुबई में दो प्रकरण दर्ज है। चेक बाउंस के मामले में दुबई कोर्ट 2010 में जहां नीलेश को तीन साल की सजा सुना चुकी है वहीं जमीनी धोखाधड़ी के दूसरे मामले में ट्रायल होना बाकी है। सूत्रों की मानें तो पटियाला कोर्ट में पेश करने के बाद नीलेश को युनाइटेड अरब एमिरेट्स (यूएई) पुलिस के हवाले कर दिया जाएगा। जहां उसे तीन साल की सजा काटना है।
चेक बाउंस के मामले में सुनील साहनी नाम के व्यक्ति ने दुबई में नीलेश के खिलाफ क्रिमिनिल डिस्प्यूट (डीपी) का केस दायर किया था। दुबई कोर्ट में केस चला। चूंकि नीलेश फरार था। इसीलिए वह कोर्ट में पेश नहीं हो पाया। तमाम नोटिसों के बावजूद अनुपस्थिति को देखते हुए दुबई कोर्ट ने 2010 में एकपक्षीय फैसला सुनाते हुए नीलेश को तीन साल की सजा सुना दी। फरारी की स्थिति में मिनिस्ट्री आॅफ इंटीरियर, यूएई ने पहले रेड कॉर्नर नोटिस दिया। बाद में 2 अगस्त 2010 को भारत के विदेश मामलों के सचिव और सीबीआई को पत्र (एनेक्शर पी/2) लिखा और कहा कि नीलेश को तलाशे, गिरफ्तार करे और हमारे हवाले कर दें। यूएई के पत्र को गंभीरता से लेते हुए विदेश मामलों के सचिव और सीबीआई ने मप्र के एडीशनल डायरेक्टर जनरल (क्राइम) को 4 अगस्त 2010 को पत्र लिखकर नीलेश को तलाशने की जिम्मेदारी सौंपी।
नहीं चल पाई नीलेश की
सीबीआई ने मप्र के एडीशनल डायरेक्टर जनरल (क्राइम) के बीच 9 अगस्त 2010 को भी कम्यूनिकेशन हुआ जिसे नीलेश ने लंबी फरारी के बाद मई 2011 में मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में चुनौती दी। उसने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए विदेश मामले के सचिव, सीबीआई और एडीजी, एमपी को पार्टी बनाया। इस मामले में इंटरविनर बने सुनील साहनी। केस अगस्त 2015 में कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद से नीलेश की तलाश और गिरफ्तारी की तैयारियां एक बार फिर तेज हो गई।
पूल और मसाज में दिन काटते रही पुलिस
कोर्ट में मप्र सरकार की पेरवी करने वाले कानून विशेषज्ञों की मानें तो चेक बाउंस में जैसे भारत में धारा-138 में केस दर्ज होता है वैसे ही युएई में भी यह संगीन अपराध है। वहां केस दर्ज हुआ। रेड कॉर्नर नोटिस जारी हुए लेकिन विदेश विभाग और सीबीआई के बार-बार लिखने के बावजूद स्थानीय पुलिस अधिकारी नीलेश को गिरफ्तार करने के बजाय उसके साथ पूल खेलते रहे। घोड़ों पर दाव लगाते रहे। मालिश करवाने जाते रहे। अधिकारियों ने 9 अगस्त 2010 से लेकर मई 2011 में हाईकोर्ट में केश दायर होने तक 10 महीनों में नीलेश का वास्तविक पता न सीबीआई को दिया न विदेश मंत्रालय को। हाईकोर्ट भी मान चुकी है कि पुलिस मैनेज थी।
कोर्ट की सख्ती के बाद बताया एड्रेस...
सरकार की पेरवी करने वाले कानून विशेषज्ञों ने बताया कि यूएई के लगातार पत्र और विदेश मंत्रालय की फटकार के बावजूद पुलिस जानकारी नहीं दे रही थी। कोर्ट की सख्ती के बाद मप्र के एडीजी (क्राइम) कार्यालय ने सीबीआई को उन तीन पतों की सूची सौंपी जहां नीलेश रहता था या रहता है। इनमें पत्रकार कॉलोनी, पालिवालनगर (साकेतनगर) और एअरपोर्ट रोड बैंगलुरु का पता शामिल था।
आगे क्या होगा नीलेश का...
- एक केस में तीन साल की सजा हो चुकी है। फैसले के खिलाफ अपील भी नहीं हुई इसीलिए नीलेश का जेल जाना तय है।
- दूसरे मामले में अभी ट्रायल चल रहा है। दुबई जेल में रहते हुए भी नीलेश अब अपना पक्ष कोर्ट में रख सकता है।
- फरारी के दौरान नीलेश ने कई दस्तावेजों में फेरबदल की ताकि उसकी पहचान बदल सके। इसीलिए भारत का विदेश विभाग भी नीलेश के खिलाफ फेक आइडेंटिटी जनरेट करने के साथ धारा 467 और 468 के तहत केस दर्ज कर सकता है।
- ऐसा हुआ तो पहले यहां ट्रायल होगा। बाद में उसे दुबई पुलिस को सौंपा जाएगा।
- नीलेश ने भारत में 1996 में पासपोर्ट बनवाया था जिसकी वैधता 2006 तक रही। इसी बीच 2005 में नीलेश ने ब्रिटिश नागरिकता ली लेकिन दुबई से फरारी के बाद वह मप्र में छिपता रहा। इसीलिए यह भी जांच होगी कि ब्रिटिश नागरिकता के साथ वह यहां रहा कैसे? क्योंकि भारत में दोहरी नागरिकता प्रतिबंधित है।

मंजूरी से 40 फीसदी ज्यादा बनेगी मेपलवुड

- स्वीकृति 1583681 वर्गफीट की और निर्माण होना है 2204141 वर्गफीट 
- ब्रोशर से लेकर एजेंटों के वादें खोलते हैं पोल
इंदौर. विनोद शर्मा । 
मप्र स्टेट इन्वॉयरमेंट इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (एमपीएसईआईएए) से पर्यावरणीय अनुमति लिए बिना  तन रही मेपल वुड (हाइराइज) टाउनशिप में स्वीकृति से अधिक निर्माण हो रहा है। तमाम अनुमतियों में दर्ज आंकड़ों के अनुसार 22,04,141 वर्गफीट के लक्ष्य के साथ निर्माण किया जा रहा है जो कि स्वीकृत टोटल बिल्टअप एरिया से 620460 वर्गफीट ज्यादा है। वह भी उस स्थिति में जब टाउनशिप में अभी 3000/रुपए वर्गफीट की दर से सौदे किए जा रहे हैं। इसी मौजूदा लागत के लिहाज से ही बात करें तो अतिरिक्त निर्माण से ही 18.61 करोड़ रुपए बिल्डर-डेवलपर्स की जैब में जाएंगे।
चूूघ रियलिटी प्रा.लि. और चूघ इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. की पीपल्याकुमार स्थित तकरीबन 15.64 एकड़ जमीन है। 6 जुलाई 2010  को नामांतरण (आदेश क्र.35) हुआ। आवासीय उपयोग के लिए 682248 वर्गफीट जमीन का डायवर्सन (प्रकरण क्र.358/अ-2/10-11) हुआ 24 मई 2011 को। हाइराइज कमेटी ने जमीन पर 204761 वर्गफीट के ग्राउंड कवरेज 45 मीटर ऊंचे (जी+15) 18 टॉवर में कुल 1340 फ्लैट सहित 1583681 वर्गफीट टोटल बिल्टअप एरिया स्वीकृत किया गया।  फरवरी 2012 से रेशा डील के साथ श्री सिद्धिविनायक डेवलपर्स ने मेपल वुड का काम शुरू किया। अब तक 300 फ्लैट (2 बीएचके-60, 3 बीएचके-120 और 4 बीएचके-120) बनकर तैयार हैं। जिस औसत के साथ निर्माण किया जा रहा है उसके हिसाब से प्रोजेक्ट पूरा होने तक कुल  2204141 वर्गफीट निर्माण होगा।
करूणासागर जैसा काम....
इससे पहले कनाड़िÞया रोड पर करूणासागर को 26890 वर्गमीटर जमीन पर 516452 वर्गफीट निर्माण की अनुमति मिली जबकि निर्माण  शुरू किया गया 11 लाख वर्गफीट का लक्ष्य लेकर। इसी तरह मेपल वुड में भी शुरूआती औसत निर्माण स्वीकृत निर्माण से अधिक है। यहां सिर्फ फ्लैट का ही एरिया देखा जाए तो 2204141 वर्गफीट निर्माण होगा। तकरीबन 8 हजार वर्गफीट का क्लब हाउस, बेसमेंट और ग्राउंड फ्लोर का एरिया अलग जो तकरीबन 2 लाख फीट से अधिक है।
यहां बन रही है टाउनशिप...
सर्वे नं. रकबा
41/1 0.324
41/2 0.121
43 0.587
56/2 0.091
57/1 0.153
58 0.737
59/1 0.188
92 0.421
56/3 0.061
57/2 0.943
59/2 0.500
60 0.117
61/3 1.753
61/4 0.345
(जमीन चुघ इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. तर्फे डायरेक्टर मोहनलाल पिता ताराचंद चुघ के नाम है जिसका पता 503 आॅर्बिट मॉल है)
फ्लैट करीब औसत एरिया कुल एरिया
2 बीएचके 150 980.6 147090 वर्गफीट
3 बीएचके 850 1632.5 1387625 वर्गफीट
4 बीएचके 340 1968.9 669426 वर्गफीट
कुल 1340 2204141 वर्गफीट
इसके अलावा
बेसमेंट बना : 45 हजार फीट
(जैसे अभी हर ब्लॉक के नीचे बेसमेंट है उस हिसाब से बेसमेंट बनता है तो कुल 204761 वर्गफीट बेसमेंट बनेगा। )
क्लब हाउस : 10000 वर्गफीट
सुपर बिल्टअप एरिया का गणित
फ्लैट यूनिट सुपर बिल्टअप एरिया कुल
2 बीएचके 150 1383.34 207501
3 बीएचके 850 2306 1960100
4 बीएचके 340 2756 937040
कुल 1340 3104641 कुल
अब तक फाइल नहीं देखी...
टाउनशिप निपानिया पंचायत में आती थी जो कि नगर निगम सीमा में शामिल है। अवैध निर्माण को लेकर शुरू से विवादों में रही इस पंचायत से दस्तावेज मिलने के बावजूद नगर निगम के भवन अधिकारियों ने अब तक मेपल वुड का मौका देखा न ही फाइल। हालांकि अधिकारी कहते हैं कि बीच-बीच में निर्माण को लेकर शिकायतें जरूर मिलती रही।

‘ब्लू’ से ‘फ्लो’ तक छाई आरती

परिवार-शोरूम और कैफे के साथ संभाली फिक्की लेडिस आॅर्गनाइजेशन की कमान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
ईश्वर के शुक्रगुजार हैं जो उसने हमें सक्षम बनाया इसीलिए जो कमजोर हैं उनकी मदद करना हमारा दायित्व है।  जिस सोसायटी में रह रहे हैं वहां कुछ ऐसा करें कि लोग याद रखें। अकेले नहीं कर सकते तो किसी आर्गनाइजेशन के साथ जुड़कर करें। मगर करें। यह कहना है खुद्दारी के साथ कुछ गर गुजरने की चाह रखने वाली आरती सांघी का। इंदौर और भोपाल में आॅफिस संभालने और कैफे संचालित करने के साथ आरती फेडरेशन आॅफ इंडियन चेम्बर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा 2014 में इंदौर में स्थापित किए गए फिक्की लेडिस आॅर्गनाइजेशन (फ्लो) की कमान भी संभाल रही है।
कोलकाता के मॉर्डन हाइस्कूल फॉर गर्ल्स में पढ़ाई करते-करते ही आरती ने खुद्दार व स्वावलम्बी जीवन की शपथ ले ली थी। राजीव सांघी से 2002 में शादी हुई और वे इंदौर आ गई। दो-तीन साल बाद ही उन्होंने घर की दहलीज लांघकर नई पहचान बनाने की ठानी और गीताभवन चौराहे पर ब्लू के नाम से शोरूम खोल दिया। चार साल पहले इसकी भोपाल में ब्रांच खोली। दो साल पहले इंदौर में कैफे@ब्लू भी खोला। अब दूसरे कैफे की तैयारी है। काम के प्रति उनकी लगन और समर्पण को फिक्की ने भी स्वीकारा। शायद यही वजह थी कि जब 10 दिसंबर 2014 को फ्लो के इंदौर चेप्टर की शुरूआत हुई तो आरती को उसका फाउंडर चेयरपर्सन बनाया गया।
फ्लो को भी दी पहचान
31 मार्च 2016 को बतौर चेयरपर्सन आरती का कार्यकाल खत्म हो रहा है। करीब 16 महीनों में उन्होंने 112 महिलाओं को संस्था से जोड़ा। महिला सशक्तिकरण की दिशा में काफी काम किया। प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को सपोर्ट करते हुए वे अपनी सहभागियों संग झाड़ू लेकर लोगों को क्लीन इंदौर के लिए प्रेरित करती दिखीं। बीत कुछ दिनों से वे  निम्न आयवर्गीय महिलाओं के लिए ‘सेनेटरी नेपकिन फॉर आॅल’ कैंपेन चला रही हैं। मिथकों को तोड़कर मासिक धर्म में महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के मकसद से चलाए जा रहे इस कैम्पेन को फिक्की की गवर्निग बॉडी ने सराहा है, जल्द ही बाकी 14 चेप्टर  में भी शुरू होगा। आरती मानती है कि स्वच्छता प्रबंधन, कचरा प्रबंधन और साफ-सफाई के बड़े-बड़े दावों के बीच शर्म की बात यह है महिलाओं और लड़कियां मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता सामग्रियों से महरूम हैं। इसीलिए कैंपेन चलाया ताकि सबको सेनेटरी नेपकिन मिले। जल्द ही पहले चरण के तहत 50 स्कूल और हॉस्टल में वेंडिंग मशीन भी लगा रहे हैं।
बड़ी चीज है बैलेंस
शोरूम, कैफे, परिवार और एफएलयू के लिए वक्त निकालने की बात पर आरती कहती हैं आपसी समन्वय के साथ बैलेंस बनाए रखना बड़ी बात है। मैंने यही किया। जब आप काम करते हो तो मल्टी टास्किंग की आदत हो जाती है। इसमें  पति और परिवार ने मेरा भरपुर साथ दिया। उनका कहना है कि हर महिला अपनी प्रतिभा को पहचाने। वह अपनी प्रतिभा का जितना दोहन करेगी, उतनी सफलता मिलेगी।


पहचान बदलकर दिन काटता रहा नीलेश

एमसीए में पता बैंगलुरू का और वोटर आईडी इंदौर में 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
अरबों रुपए की धोखाधड़ी करके दुबई से फरार हुए नीलेश अजमेरा पुलिस से बचने के लिए भारत में नई पहचान बनाकर रह रहा था। पालिवालनगर और साकेतनगर के पुराने पते को छोड़ उसने अपनी नई पहचान बैंगलुरु के पते से बनाई। बहरहाल, एडीजी (क्राइम) मप्र ने उसके तीनों पतों की शिनाख्त करके सीबीआई को सौंप दी है।
नीलेश का पुराना पता 29 पालीवालनगर इंदौर है हालांकि 1 जनवरी 2016 को प्रकाशित हुई मतदाता सूची में नीलेश का नाम अब भी है। 40 वर्षीय नीलेश का मतदाता क्रमांक एलएचवी3576071 है। वहीं मिनिस्ट्री आॅफ कॉर्पोरेट अफेयर्स (एमसीए) से प्राप्त जानकारी के अनुसार नीलेश का पता फ्लैट नं. ए-13 डायमंड डिस्ट्रिक्ट एअरपोर्ट रोड बैंगलुरू है। इस पते का जिक्र उसने 29 दिसंबर 2014 को क्रिस्टल डेवकॉन प्रा.लि. की डायरेक्टरशिप (डायरेक्टर आइडेंटिफिकेशन नं. 01478045) लेने के लिए भी किया है। बताया जा रहा है कि उन तमाम दस्तावेजों की जांच होना है जिनके आधार पर नीलेश ने अपना पता बैंगलुरू का बताया है।
मेडिकेप्स वाले रमेश मित्तल भी हैं ठगोरे के पार्टनर
फ्लैट नं. 201 पुष्परतन पेराडाइज (वही फ्लैट जहा 2010 में देवास के कांग्रेस नेता मनोज राजानी ने रितेश अजमेरा उर्फ चम्पू को चांटे जड़े थे)  के पते से पंजीबद्ध क्रिस्टल डेवकॉन प्रा.लि. में रमेशचंद मित्तल भी नीलेश के साथ डायरेक्टर हैं जो कि मेडिकेप्स के मालिक हैं और बीते 5 साल से अजमेरा बंधुओं के साथ जमीनी काम कर रहे हैं।
यहां-वहां छिपता रहता था
अगस्त 2010 में दुबई से रेड कॉर्नर नोटिस जारी हुआ था। उसी दौरान तीन साल की सजा भी दुबई कोर्ट ने छिपाई। उस वक्त के आला पुलिस अधिकारियों से दोस्ती के कारण मई 2011 तक गिरफ्तारी नहीं हुई। इसके बाद उसने कोर्ट में शरण ली और यहां-वहां छिपता रहा। रहा इंदौर में ही। कभी पीपल्याकुमार स्थित द एड्रेस (जो कभी फोनिक्स टाउनशिप थी) के खाली फ्लैटों में दिन गुजारे। कभी पालीवालनगर में।
इंदौर की सभी कंपनियों से गायब...
नीलेश क्रिस्टल से पहले इंदौर और मुंबई के पतों पर पंजीबद्ध तकरीबन आधा दर्जन कंपनियों में डायरेक्टर था। इनमें फोनिक्स डेवकॉन प्रा.लि., इंदौर और सिप2सेव टेलीकॉम प्रा.लि. इंदौर के नाम भी शामिल हैं। सिप2सेव टेलीकॉम प्रा.लि. नाम की जिस कंपनी के डायरेक्टर के रूप में नीलेश को 2007 की ग्लोबल समिट में आमंत्रित किया गया था उसमें अब उसके पिता पवन कुमार अजमेरा (63 वर्ष) और पत्नी सोनाली अजमेरा (38 वर्ष) डायरेक्टर हैं।