
Friday, July 23, 2010

तो मुंह नहीं ताकेंगे उद्योग
इंदौर। प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र जल्द ही सड़क, पानी, सफाई और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए स्थानीय निकायों पर आश्रित नहीं रहेंगे। क्षेत्रों में जरूरत के मुताबिक बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए गुजरात की तरह मप्र सरकार "इंडस्ट्रियल कॉरिडोर एक्ट" या "इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एक्ट" लागू करेगी। एक्ट लागू होने के बाद क्षेत्रों के बुनियादी विकास की जिम्मेदारी औद्योगिक केंद्र विकास निगम जैसी उद्योग हितैषी संस्थाओं की रहेगी।
प्रदेश की उद्योग नीति 30 जून तक लागू होनी है। मैसादा तैयार है। कैबिनेट ने अनुशंसा कर दी। इंतजार है तो सिर्फ नीति की विधिवत मंजूरी का। एक्ट लागू होते ही औद्योगिक क्षेत्रों के विकास का रोडमेप तैयार होगा। रोडमैप बीओटी और पब्लिक प्रायवेट पार्टनर्शिप (पीपीपी) पद्धति पर आधारित होगा। इसमें सड़कों का निर्माण एवं चौड़ीकरण, बाग-बगीचों का निर्माण-रखरखाव, स्ट्रीट लाइट, पेयजल, कचरा प्रबंधन और ऊर्जा बचत जैसी योजनाओं पर काम होगा।
इसलिए जरूरत पड़ी एक्ट की
2003-04 में स्वीकृत उद्योग नीति में औद्योगिक उपनगर बनाने की बात हुई थी। उपनगर व्यवस्था में स्थानीय निकायों की तरह औद्योगिक क्षेत्रों में प्रतिनिधि निर्वाचित होते। क्षेत्र की आवश्यकतानुसार काम करते और टैक्स लेते। लेकिन नगरीय प्रशासन ने उद्योग मंत्रालय के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। ऎसे में बुनियादी सुविधाओं के अकाल के कारण दम तोड़ते औद्योगिक क्षेत्रों को बचाने के लिए इन उपायों पर विचार किया गया। ताकि उद्योगों को सुविधाएं मिल सकें।
विनोद शर्मा

200 करोड़ का फटका
इंदौर । स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में विलय ने इनकम टैक्स के खजाने को भी तगड़ा झटका दिया है। झटका भी छोटा नहीं, सीधे 200 करोड़ रूपए सालाना है। अब तक इसका मुख्यालय इंदौर में होने से स्थानीय आयकर कार्यालय में यह मोटी रकम जमा होती थी, जो विलय के बाद मुंबई में जमा होगी। सालाना 50 हजार करोड़ से अधिक कारोबार करने वाली यह बैंक अब तक इंदौर की सबसे बड़ी करदाता रही है।
दूसरी ओर प्रदेश सरकार को आयकर के मिलने वाले करीब 60 करोड़ रूपए से हाथ धोना पड़ेगा। बहरहाल, विलय ने आयकर अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है।2008-09 की मंदी से 2009-10 में बमुश्किल उबरे आयकर इंदौर के सामने वर्ष 2010-11 में दो नई चुनौतियां हैं।
एक सबसे बड़े करदाता और दूसरी इस करदाता से मिलने वाले 200 करोड़ की भरपाई की। जानकारों की मानें तो विलय के बाद इंदौर बैंक का संचालन एसबीआई करेगी। एसबीआई का मुख्यालय मुंबई में है। ऎसी स्थिति में इंदौर बैंक से मिलने वाली रकम भी एसबीआई अपने खाते से मुंबई में जमा करेगी।
वह भी उस वक्त जब मौजूदा वित्तीय वर्ष में इंदौर रीजन का आयकर लक्ष्य करीब 1400 करोड़ से बढ़ाकर करीब 1600 करोड़ किया जाना प्रस्तावित है। आयकर के कई जिम्मेदार अधिकारी इतनी बड़ी रकम की भरपाई को लेकर हाथ खड़े कर चुके हैं। वहीं कुछ ने इसके लिए करदाताओं का सूक्ष्म सर्वे कराए जाने का प्रस्ताव भी आला अधिकारियों को देना शुरू कर दिया है।
...इसलिए व्याकुलता
इंदौर रीजन में इंदौर-उज्जैन संभाग के 14 जिले हैं। इनसे मिलने वाला राजस्व बीते वर्ष 1405 करोड़ था। ऎसे में बैंक दो जिलों के बराबर कर देती थी।
इंदौर, देवास व पीथमपुर में टाटा, रैनबैक्सी, फोर्स जैसी कंपनियां हैं। इनका कारोबार हजारों करोड़ में है, पर सबके मुख्यालय दूसरे राज्यों में होने से इंदौर को कुछ नहीं मिलता।
नुकसान तो मप्र का
आयकर को यही फर्क पडेगा कि इंदौर को मिलने वाला कर मुंबई में जमा होगा। नुकसान मप्र को है, क्योंकि बैंक 200 करोड़ का राजस्व चुकाती तो केंद्र को उसका 30 प्रश हिस्सा मप्र को लौटाना पड़ता था। यह राशि 60 करोड़ होती थी। सत्यनारायण गोयल, सीए
विनोद शर्मा

चलते रहेंगे चायना मोबाइल?
विनोद शर्माSaturday, April 04, 2009 06:42 [IST]
इंदौर। बगैर इंटरनेशनल मोबाइल इक्यूपमेंट आईडेंटिटी (आईएमईआई) नंबर वाले चायना मोबाइल बंद करने के दूरसंचार विभाग के आदेश के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। एक ओर मोबाइल डीलरों द्वारा स्पाइडर कार्ड के जरिए आईएमईआई नंबर उपलब्ध कराया जा रहा है, वहीं दूरसंचार विभाग और ट्राई का कहना है उन्होंने कार्ड को लेकर कोई अधिसूचना जारी नहीं की है।
देश में करीब ढाई करोड़ चाइना मोबाइल उपभोक्ताओं है और विभाग के आदेश के बाद मोबाइलों की बिक्री में 75 फीसदी तक की गिरावट आई सो अलग। आदेश जारी हुए चार दिन हो चुके हैं लेकिन किसी के मोबाइल बंद होने की सूचना नहीं मिली। मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों के इस रवैये ने उपभोक्ताओं को संशय में डाल दिया है वहीं ट्राई का कहना है कि आदेश दूरसंचार विभाग का है।
देश की सुरक्षा का हवाला देते हुए दूर संचार विभाग 1 अप्रैल से ऑपरेटर कंपनियों को देशभर में बगैर आईएमईआई नंबर के चायना मोबाइलों को फ्रीज करने के आदेश दे चुका है। इंदौर में ऐसे मोबाइलों की संख्या तकरीबन एक लाख से भी ज्यादा है। हालांकि 3 अप्रैल की रात तक किसी भी शहर के चायना मोबाइलों पर ऐसी कार्रवाई कंपनियों ने नहीं की। दूरसंचार विभाग और कंपनियों के बीच हर वो उपभोक्ता परेशान हैं जिन्होंने कम कीमत में महंगे मोबाइल सी सुविधाओं का लुत्फ उठाने के लिए चायना मोबाइल खरीदा था।
क्या है स्पाइडर कार्ड: इंदौर के लिए कार्ड की बुकिंग करवाने वाले मोबाइल विक्रेता राहुल लालवानी और मोनू तनवानी ने बताया स्पाइडर कार्ड एक आवेदन के साथ सामान्य रिचार्ज वेल्यू वाउचर की तरह होता है। कार्ड पर लगी काली पट्टी को स्क्रेच करने पर एक नंबर सामने आता है। यही आपका आईएमईआई नंबर है। इसकी पुष्टि वेबसाइट (www.trackimei.com) पर भी की जा सकती है। पुष्टि करते वक्त जैसे ही आप कार्ड पर लिखा नंबर आईएमईआई सर्च ऑप्शन में टाइप करके सर्च करेंगे वैसे ही डिटेल आपकी स्क्रीन पर होगी। यहां आपका मोबाइल मॉडल स्पाइडर कार्ड और ब्रांड स्पाइडर के नाम से रजिस्टर्ड होगा। इसमें सॉफ्टवेअर वर्जन, डिवाइस टाइप और बेंड डिटेल्स के साथ मोबाइल के चोरी होने संबंधित थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट की जानकारी भी उपलब्ध होगी। कार्ड आपको फोटो पहचान-पत्र के साथ आवेदन भरने के बाद ही दिया जाएगा। कार्ड सोमवार से इंदौर में भी मिलेंगे।
ऐसे नहीं बंटता आईएमईआई: नाम न छापने की शर्त पर ट्राई के वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट कर दिया कि आईएमईआई नंबर यूं किसी कार्ड पर नहीं बांटा जाता। नंबर हेंडसेट के अंदर ही होता है। ट्राय ने ऐसे किसी भी कार्ड को बाजार में लांच करने की स्वीकृति नहीं दी। वहीं हमारा मोबाइलों को बंद करने वाले आदेश से भी कोई वास्ता नहीं। यह दूरसंचार विभाग और ऑपरेटर कंपनियों के बीच का मामला है।
क्या है आईएमईआई: दुनियाभर की मोबाइल उत्पादक कंपनियों को मॉडल के हिसाब से यूके के ब्रिटिश अप्रुवल बोर्ड ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन (बीएबीटी) में रजिस्ट्रेशन करवाकर आईएमईआई नंबर की सीरिज आवंटित करवाना पड़ती है।
फायदा क्या- आईएमईआई नंबर युक्त हैंडसेट की हर कॉलिंग के साथ उसके नंबर और उपभोक्ता की लोकेशन की जानकारी ऑपरेटर कंपनियों को मिलती है। कोई भी सिम डालो, नंबर वहीं होगा। नंबर के आधार पर चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई जाए तो चोरों को पकड़ना आसान होता है।
इन मोबाइलों में आता है नंबर
मोबाइल विक्रेता बलराम अड़ियानी ने बताया निकटेल और सिग्माटेल चायना मोबाइलों के ऐसे ब्रांड हैं जो बीएबीटी से रजिस्टर्ड हैं। इन मोबाइलों में आईएमईआई नंबर होता है। बाजार में बिकने वाले बाकी ब्रांड के मोबाइलों में नंबर नहीं होता।
सौ रुपए में आईएमईआई नंबर
कंपनियां चायना मोबाइल बंद नहीं कर पाई इससे पहले ही ग्रेमार्केट और चायना मोबाइल डीलरों ने स्पाइडर कार्ड के रूप में बीच का रास्ता निकाल लिया। मात्र सौ रुपए में आईएमईआई नंबर उपलब्ध कराया जा रहा है। सनसिटी इलेक्ट्रॉनिक दिल्ली के मुकेश अरोरा (चायना मोबाइलों के बड़े आयातक) ने बताया हिंदुस्तानभर में करोड़ों मोबाइल बिक चुके हैं जिन्हें मनमाने ढंग से बंद नहीं किया जा सकता। आईएमईआई की दिक्कत दूर करने के लिए कोवलून टेक्नोलॉजिस, नई दिल्ली ने यूके की उस ऐजेंसी में रजिस्ट्रेशन करवाया है जो मोबाइल निर्माता कंपनियों को आईएमईआई नंबर जारी करती है।
incomtax
आयकर पर मंदी की मार
इंदौर. FPRIVATE "TYPE=PICT;ALT=Incometax"
विश्वव्यापी मंदी का असर अब वित्त वर्ष की समाप्ति के साथ ही आयकर विभाग पर भी नजर आने लगा है। बीते वर्षो में अंतिम मौके पर लक्ष्य बढ़ाकर रिकॉर्ड वसूली करने वाला विभाग इस बार लक्ष्य में 500 करोड़ की कटौती करने के बाद भी वसूली के मामले में 15 फीसदी दूर है। हालात ये हैं कि अब तो आयकर विभाग के आला अधिकारी भी लक्ष्य प्राप्ति की संभावनाओं को नकारने लगे हैं। उनका कहना है कि अंतर ज्यादा है जिसे तमाम कोशिशों के बावजूद पाटा नहीं जा सकता।
वर्ष 2006-07 और 2007-08 में जमा हुए कॉपरेरेट टैक्स और इनकम टैक्स के आंकड़ों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2008-09 के लिए मप्र-छत्तीसगढ़ को 6,972 करोड़ आयकर वसूली का लक्ष्य दिया था। हालांकि अगस्त-सितंबर 2008 से बाजार पर छाई मंदी ने सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
मंदी और वसूली में कमी की संभावनाओं को देखते हुए सरकार को लक्ष्य में 500 करोड़ की कटौती करना पड़ी। बावजूद इसके 25 मार्च तक 6,472 करोड़ के रिवाइज लक्ष्य के विरुद्ध 5,504 करोड़ रुपए ही जमा हो पाए। अंतर सीधे 968 करोड़ का। उधर, इस अंतर ने इंदौर, भोपाल और ग्वालियर के उन आयकर अधिकारियों के माथे पर पसीना ला दिया है जो लक्ष्य में 8 फीसदी की छूट मिलने के बाद राहत की सांस ले रहे थे। हालांकि उनका स्पष्ट कहना है कि हजार करोड़ के अंतर को पांच दिन में पाटा नहीं जा सकता।
ये दिन भी देखे
आयकर विभाग बीते वर्षो तक वसूली के मामले में बेहतर रहा। 2006-07 में विभाग को अंतिम तिमाही में लक्ष्य 4,575 से बढ़ाकर 4,863 करोड़ करना पड़ा। इन आंकड़ों से मजबूती मिलते ही 2007-08 में 5035 करोड़ का लक्ष्य रखना पड़ा। हालांकि इस बार भी बाजार की बेहतरी के चलते 403 करोड़ की बढ़ोतरी करके लक्ष्य 5,438 करोड़ रुपए तय करना पड़ा।
बावजूद इसके तकरीबन शत प्रतिशत वसूली हुई। इस वित्त वर्ष में 927 करोड़ के लक्ष्य के आगे 987 करोड़ की वसूली करके इंदौर ने रिकॉर्ड बनाया जबकि इस बार 2008-09 में हालात उलटे हैं। इस बार 1,165 में से करीब 900 करोड़ की ही वसूली हो पाई। अधिकारियों के अनुसार वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के बाद मंदी शुरू हुई। शुरुआत से होती तो यह आंकड़ा 750 से 800 करोड़ के बीच ही रह जाता।
कभी कॉपरेरेट, कभी इनकम टैक्स पर जोर
विभाग ने 6,972 करोड़ के लक्ष्य में कॉपरेरेट टैक्स 2,323 और इनकम टैक्स 4,649 तय किया था। हालांकि मंदी की मार से कंपनियों की हालत देखते हुए संशोधन के बाद स्थिति उलटी हो गई। अब कॉपरेरेट टैक्स 3,691 करोड़ है वहीं इनकम टैक्स का आंकड़ा 2,781 करोड़ रह गया।
विश्वव्यापी मंदी के कारण बिगड़ी बाजार की स्थिति को देखते हुए लक्ष्य कम किया था। बीते साल 25 मार्च तक 92 फीसदी वसूली हो चुकी थी, वहीं इस बार मामला 85 फीसदी तक पहुंचा है। वसूली के इन आंकड़ों और ग्राफ को देखते हुए अभी यह कह पाना मुश्किल है कि रिवाइज लक्ष्य तक भी पहुंचेंगे या नहीं। कोशिशें जारी हैं।
- एस.पी. सिंह, चीफ कमिश्नर, आयकर- इंदौर और भोपाल
इंदौर. FPRIVATE "TYPE=PICT;ALT=Incometax"
विश्वव्यापी मंदी का असर अब वित्त वर्ष की समाप्ति के साथ ही आयकर विभाग पर भी नजर आने लगा है। बीते वर्षो में अंतिम मौके पर लक्ष्य बढ़ाकर रिकॉर्ड वसूली करने वाला विभाग इस बार लक्ष्य में 500 करोड़ की कटौती करने के बाद भी वसूली के मामले में 15 फीसदी दूर है। हालात ये हैं कि अब तो आयकर विभाग के आला अधिकारी भी लक्ष्य प्राप्ति की संभावनाओं को नकारने लगे हैं। उनका कहना है कि अंतर ज्यादा है जिसे तमाम कोशिशों के बावजूद पाटा नहीं जा सकता।
वर्ष 2006-07 और 2007-08 में जमा हुए कॉपरेरेट टैक्स और इनकम टैक्स के आंकड़ों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2008-09 के लिए मप्र-छत्तीसगढ़ को 6,972 करोड़ आयकर वसूली का लक्ष्य दिया था। हालांकि अगस्त-सितंबर 2008 से बाजार पर छाई मंदी ने सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
मंदी और वसूली में कमी की संभावनाओं को देखते हुए सरकार को लक्ष्य में 500 करोड़ की कटौती करना पड़ी। बावजूद इसके 25 मार्च तक 6,472 करोड़ के रिवाइज लक्ष्य के विरुद्ध 5,504 करोड़ रुपए ही जमा हो पाए। अंतर सीधे 968 करोड़ का। उधर, इस अंतर ने इंदौर, भोपाल और ग्वालियर के उन आयकर अधिकारियों के माथे पर पसीना ला दिया है जो लक्ष्य में 8 फीसदी की छूट मिलने के बाद राहत की सांस ले रहे थे। हालांकि उनका स्पष्ट कहना है कि हजार करोड़ के अंतर को पांच दिन में पाटा नहीं जा सकता।
ये दिन भी देखे
आयकर विभाग बीते वर्षो तक वसूली के मामले में बेहतर रहा। 2006-07 में विभाग को अंतिम तिमाही में लक्ष्य 4,575 से बढ़ाकर 4,863 करोड़ करना पड़ा। इन आंकड़ों से मजबूती मिलते ही 2007-08 में 5035 करोड़ का लक्ष्य रखना पड़ा। हालांकि इस बार भी बाजार की बेहतरी के चलते 403 करोड़ की बढ़ोतरी करके लक्ष्य 5,438 करोड़ रुपए तय करना पड़ा।
बावजूद इसके तकरीबन शत प्रतिशत वसूली हुई। इस वित्त वर्ष में 927 करोड़ के लक्ष्य के आगे 987 करोड़ की वसूली करके इंदौर ने रिकॉर्ड बनाया जबकि इस बार 2008-09 में हालात उलटे हैं। इस बार 1,165 में से करीब 900 करोड़ की ही वसूली हो पाई। अधिकारियों के अनुसार वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के बाद मंदी शुरू हुई। शुरुआत से होती तो यह आंकड़ा 750 से 800 करोड़ के बीच ही रह जाता।
कभी कॉपरेरेट, कभी इनकम टैक्स पर जोर
विभाग ने 6,972 करोड़ के लक्ष्य में कॉपरेरेट टैक्स 2,323 और इनकम टैक्स 4,649 तय किया था। हालांकि मंदी की मार से कंपनियों की हालत देखते हुए संशोधन के बाद स्थिति उलटी हो गई। अब कॉपरेरेट टैक्स 3,691 करोड़ है वहीं इनकम टैक्स का आंकड़ा 2,781 करोड़ रह गया।
विश्वव्यापी मंदी के कारण बिगड़ी बाजार की स्थिति को देखते हुए लक्ष्य कम किया था। बीते साल 25 मार्च तक 92 फीसदी वसूली हो चुकी थी, वहीं इस बार मामला 85 फीसदी तक पहुंचा है। वसूली के इन आंकड़ों और ग्राफ को देखते हुए अभी यह कह पाना मुश्किल है कि रिवाइज लक्ष्य तक भी पहुंचेंगे या नहीं। कोशिशें जारी हैं।
- एस.पी. सिंह, चीफ कमिश्नर, आयकर- इंदौर और भोपाल
तीन इंच बरसात में तीन करोड़ का नुकसान
विनोद शर्मा Friday, July 03, 2009
इंदौर. अब तक शहर में हुई बरसात शहरवासियों के लिए राहत तो सीमेंट व्यवसायियों के लिए सिरदर्द साबित हुई। इसका बड़ा उदाहरण है वे सवा लाख सीमेंट की बोरियां जो रेलवे प्रशासन की बदइंतजामी के कारण लक्ष्मीबाईनगर माल गोदाम में पत्थर बन चुकी हैं। नुकसान की लागत तकरीबन तीन करोड़ रुपए आंकी जा रही है। दूसरी ओर रेलवे ने इसे कंपनियों की मनमानी का परिणाम बताया। रेलवे प्रबंधन की मानें तो सालभर में मालगोदाम की दशा बदल चुकी है।
मामला लक्ष्मीबाईनगर माल गोदाम का है। यहां रोजाना एक लाख बोरी सीमेंट रेलगाड़ी से लाई जाती हैं। इन बोरियों को जिस प्लेटफार्म पर रखा जाता है उसकी छत जर्जर है। इसके चलते बीते दस दिनों में हुई तकरीबन तीन इंच बरसात में 12 कंपनियों की 1.20 लाख बोरियां बरसात की भेंट चढ़ चुकी हैं। कंपनियों के हाथ लगी तो पत्थर की बोरियां। 240 रुपए प्रतिबोरी के हिसाब से खराब बोरियों की लागत 2.88 करोड़ रुपए आंकी जा रही है। कंपनियों की मांग और नुकसानी के बावजूद रेलवे ने कभी माल गोदाम को दुरुस्त करने की कोशिश नहीं की।
ग्रासिम इंडस्ट्रीज के सुरेंद्र लाहौटी के अनुसार बरसात के शबाब पर आने से पहले ही सवा लाख बोरियां बर्बाद हो चुकी हैं। कुल मिलाकर हम रेलवे की अव्यवस्थाओं का खामियाजा भुगत रहे हैं। शेड की ऊंचाई ज्यादा है। बरसात में 80 फीसदी माल खराब हो जाता है। खराब सीमेंट दोबारा इस्तेमाल नहीं होती। इंदौर सीमेंट डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल विजयवर्गीय ने बताया हर साल होने वाले नुकसान और रेलवे की उदासीनता को देखते हुए कंपनियों ने अपने खर्च पर मौजूदा प्लेटफार्म के जीर्णोद्धार और नए प्लेटफार्म के निर्माण का प्रस्ताव दिया था। इसे भी रेलवे खारिज कर चुका है।
विनोद शर्मा Friday, July 03, 2009
इंदौर. अब तक शहर में हुई बरसात शहरवासियों के लिए राहत तो सीमेंट व्यवसायियों के लिए सिरदर्द साबित हुई। इसका बड़ा उदाहरण है वे सवा लाख सीमेंट की बोरियां जो रेलवे प्रशासन की बदइंतजामी के कारण लक्ष्मीबाईनगर माल गोदाम में पत्थर बन चुकी हैं। नुकसान की लागत तकरीबन तीन करोड़ रुपए आंकी जा रही है। दूसरी ओर रेलवे ने इसे कंपनियों की मनमानी का परिणाम बताया। रेलवे प्रबंधन की मानें तो सालभर में मालगोदाम की दशा बदल चुकी है।
मामला लक्ष्मीबाईनगर माल गोदाम का है। यहां रोजाना एक लाख बोरी सीमेंट रेलगाड़ी से लाई जाती हैं। इन बोरियों को जिस प्लेटफार्म पर रखा जाता है उसकी छत जर्जर है। इसके चलते बीते दस दिनों में हुई तकरीबन तीन इंच बरसात में 12 कंपनियों की 1.20 लाख बोरियां बरसात की भेंट चढ़ चुकी हैं। कंपनियों के हाथ लगी तो पत्थर की बोरियां। 240 रुपए प्रतिबोरी के हिसाब से खराब बोरियों की लागत 2.88 करोड़ रुपए आंकी जा रही है। कंपनियों की मांग और नुकसानी के बावजूद रेलवे ने कभी माल गोदाम को दुरुस्त करने की कोशिश नहीं की।
ग्रासिम इंडस्ट्रीज के सुरेंद्र लाहौटी के अनुसार बरसात के शबाब पर आने से पहले ही सवा लाख बोरियां बर्बाद हो चुकी हैं। कुल मिलाकर हम रेलवे की अव्यवस्थाओं का खामियाजा भुगत रहे हैं। शेड की ऊंचाई ज्यादा है। बरसात में 80 फीसदी माल खराब हो जाता है। खराब सीमेंट दोबारा इस्तेमाल नहीं होती। इंदौर सीमेंट डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल विजयवर्गीय ने बताया हर साल होने वाले नुकसान और रेलवे की उदासीनता को देखते हुए कंपनियों ने अपने खर्च पर मौजूदा प्लेटफार्म के जीर्णोद्धार और नए प्लेटफार्म के निर्माण का प्रस्ताव दिया था। इसे भी रेलवे खारिज कर चुका है।
कांक्रीट के पहाड़ से बचाएगा ग्रीन बेल्ट
विनोद शर्मा Saturday, August 01, 2009
इंदौर. महापौर परिषद ने ग्रीन बेल्ट की अनुशंसा कर पांच मिलों की दो सौ एकड़ जमीन पर हरियाली देने का वादा तो कर लिया लेकिन अब उसके सामने इन जमीनों से जुड़े विवादों को हल करने, मास्टर प्लान में बदलाव और मजदूरों का हक दिलाने की बड़ी चुनौती है। एमआईसी का तर्क है कि ग्रीन बेल्ट नहीं बनाया तो इस जमीन पर कांक्रीट के पहाड़ खड़े हो जाएंगे और इससे शहर को बचाना है।
फैसले से निगम और एनटीसी आमने-सामने खड़े हो गए हैं। पुराने दस्तावेज और निगम अफसरों की मानें तो जमीन निगम की है। दूसरी ओर एनटीसी और उद्योग विभाग जमीन बेच रहे हैं। कल्याण और स्वदेशी मिल इसका बड़ा उदाहरण हैं। मास्टर प्लान-2021 में संशोधन के लिए प्रस्ताव राज्य शासन को सौंपा जाएगा।
जनकार्य समिति प्रभारी ललित पोरवाल और विधि एवं सामान्य प्रशासन प्रभारी अनिल बिंदल ने बताया हरियाली के लिए इतनी बड़ी जमीन शहरी क्षेत्र में दूसरी मिलना संभव नहीं है।
विनोद शर्मा Saturday, August 01, 2009
इंदौर. महापौर परिषद ने ग्रीन बेल्ट की अनुशंसा कर पांच मिलों की दो सौ एकड़ जमीन पर हरियाली देने का वादा तो कर लिया लेकिन अब उसके सामने इन जमीनों से जुड़े विवादों को हल करने, मास्टर प्लान में बदलाव और मजदूरों का हक दिलाने की बड़ी चुनौती है। एमआईसी का तर्क है कि ग्रीन बेल्ट नहीं बनाया तो इस जमीन पर कांक्रीट के पहाड़ खड़े हो जाएंगे और इससे शहर को बचाना है।
फैसले से निगम और एनटीसी आमने-सामने खड़े हो गए हैं। पुराने दस्तावेज और निगम अफसरों की मानें तो जमीन निगम की है। दूसरी ओर एनटीसी और उद्योग विभाग जमीन बेच रहे हैं। कल्याण और स्वदेशी मिल इसका बड़ा उदाहरण हैं। मास्टर प्लान-2021 में संशोधन के लिए प्रस्ताव राज्य शासन को सौंपा जाएगा।
जनकार्य समिति प्रभारी ललित पोरवाल और विधि एवं सामान्य प्रशासन प्रभारी अनिल बिंदल ने बताया हरियाली के लिए इतनी बड़ी जमीन शहरी क्षेत्र में दूसरी मिलना संभव नहीं है।
देशभर के सवा करोड़ कर्मचारी होंगे ऑनलाइन
विनोद शर्मा Saturday, May 30, 2009 05:57 [IST]
इंदौर. एक कंपनी को छोड़कर दूसरी कंपनी ज्वॉइन करने वाले कर्मचारियों को राज्य बीमा निगम में बार-बार पंजीयन नहीं कराना होगा। यह सिर्फ एक बार होगा। दूसरी कंपनी में जाते ही पंजीयन क्रमांक के आधार पर कर्मचारी और उसके परिवार से संबंधित जानकारियां अपडेट हो जाएंगी।
ये जानकारियां कम्प्यूटर या लैपटॉप की स्क्रीन पर होंगी। इसके लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम अपनी डिस्पेंसरियों व हॉस्पिटल के कम्प्यूटराजइेशन के साथ देश के सवा करोड़ कर्मचारी और उनके चार करोड़ परिजन की जानकारी भी ऑनलाइन करेगा। इस पर कुल 1100 करोड़ रुपए खर्च होंगे। योजना में सहयोग और सुझाव के लिए सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों की बैठक 30 मई को दिल्ली में होगी।
निगम के तहत देशभर में 3.52 लाख छोटी-मोटी फैक्टरियां। उनमें काम करने वाले 1.20 करोड़ कर्मचारी पंजीकृत हैं। इहें अब तक कंपनी बदलने के साथ ही नए सिरे से पंजीयन कराना पड़ता था। एक कंपनी में रहते उनके वेतन से कटी राशि और उससे मिलने वाली चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता था। इन असंगठित कर्मचारियों को संगठित करने के लिए निगम ने फरवरी के अंत में कम्प्यूटराइजेशन की योजना तैयार की थी।
ग्लोबल टेंडरिंग के बाद योजना की जिम्मेदारी देश की अग्रणी आईटी कंपनी विप्रो को सौंपी गई। कंपनी को 18 महीने में योजना को अंजाम देना है। अनुबंध के अनुसार काम को वक्त पर अंजाम देने के लिए कंपनी ने दो हजार लोगों की भर्ती करके मार्च अंत से काम भी शुरू कर दिया है। दो महीने हो चुके हैं, 16 महीने अभी बाकी हैं। इस दौरान कंपनी को डिस्पेंसरियों से लेकर हॉस्पिटल तक पूरे सिस्टम को कम्यूटराइज्ड कर व्यवस्था ऑनलाइन करना होगी।
निगम के बीमा आयुक्त बी. सी. भारद्वाज ने बताया कर्मचारियों के कम्प्यूटराइजेशन की जरूरत वर्षो से महसूस की जा रही थी। योजना पर फरवरी में निर्णय हुआ और मार्च से अमल भी शुरू हो गया। अनुबंध के तहत कंपनी को पहले काम करना होगा, उसके बाद निगम भुगतान करेगा। पहले चरण में कंपनी को 500 करोड़ का काम करके देना होगा। कंपनी जितना काम करेगी, उतना ही भुगतान होगा।
विनोद शर्मा Saturday, May 30, 2009 05:57 [IST]
इंदौर. एक कंपनी को छोड़कर दूसरी कंपनी ज्वॉइन करने वाले कर्मचारियों को राज्य बीमा निगम में बार-बार पंजीयन नहीं कराना होगा। यह सिर्फ एक बार होगा। दूसरी कंपनी में जाते ही पंजीयन क्रमांक के आधार पर कर्मचारी और उसके परिवार से संबंधित जानकारियां अपडेट हो जाएंगी।
ये जानकारियां कम्प्यूटर या लैपटॉप की स्क्रीन पर होंगी। इसके लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम अपनी डिस्पेंसरियों व हॉस्पिटल के कम्प्यूटराजइेशन के साथ देश के सवा करोड़ कर्मचारी और उनके चार करोड़ परिजन की जानकारी भी ऑनलाइन करेगा। इस पर कुल 1100 करोड़ रुपए खर्च होंगे। योजना में सहयोग और सुझाव के लिए सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों की बैठक 30 मई को दिल्ली में होगी।
निगम के तहत देशभर में 3.52 लाख छोटी-मोटी फैक्टरियां। उनमें काम करने वाले 1.20 करोड़ कर्मचारी पंजीकृत हैं। इहें अब तक कंपनी बदलने के साथ ही नए सिरे से पंजीयन कराना पड़ता था। एक कंपनी में रहते उनके वेतन से कटी राशि और उससे मिलने वाली चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता था। इन असंगठित कर्मचारियों को संगठित करने के लिए निगम ने फरवरी के अंत में कम्प्यूटराइजेशन की योजना तैयार की थी।
ग्लोबल टेंडरिंग के बाद योजना की जिम्मेदारी देश की अग्रणी आईटी कंपनी विप्रो को सौंपी गई। कंपनी को 18 महीने में योजना को अंजाम देना है। अनुबंध के अनुसार काम को वक्त पर अंजाम देने के लिए कंपनी ने दो हजार लोगों की भर्ती करके मार्च अंत से काम भी शुरू कर दिया है। दो महीने हो चुके हैं, 16 महीने अभी बाकी हैं। इस दौरान कंपनी को डिस्पेंसरियों से लेकर हॉस्पिटल तक पूरे सिस्टम को कम्यूटराइज्ड कर व्यवस्था ऑनलाइन करना होगी।
निगम के बीमा आयुक्त बी. सी. भारद्वाज ने बताया कर्मचारियों के कम्प्यूटराइजेशन की जरूरत वर्षो से महसूस की जा रही थी। योजना पर फरवरी में निर्णय हुआ और मार्च से अमल भी शुरू हो गया। अनुबंध के तहत कंपनी को पहले काम करना होगा, उसके बाद निगम भुगतान करेगा। पहले चरण में कंपनी को 500 करोड़ का काम करके देना होगा। कंपनी जितना काम करेगी, उतना ही भुगतान होगा।
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